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24 अप्रैल 2010

गेहूं बंपर, आटा-मैदा मिलें टॉप पर

मुंबई April 23, 2010
लगातार दो सीजन से गेहूं की बंपर पैदावार से इसे रखने को लेकर भले ही सरकार कठिनाई में हो, लेकिन इस जिंस ने देश भर की फ्लोर मिलों की गतिविधियां तेज कर दी है।
देश में 800 गेहूं प्रसंस्करण मिलें हैं, जिन्होंने अपनी क्षमता में 15 प्रतिशत का विस्तार किया है। मिलें जून में बढ़ने वाली मांग का फायदा उठाना चाहती हैं। इस समय मिलों का क्षमता उपयोग बढ़कर 40-45 प्रतिशत हो गया है, जो एक साल पहले 30-35 प्रतिशत था।
महाराष्ट्र रोलर फ्लोर मिल्स एसोसिएशन के अध्यक्ष गोपाल लाल सेठ ने कहा, 'इस साल स्थिति बिल्कुल अलग है। फ्लोर मिलें अपने उपकरणों को दुरुस्त कर रही हैं, साथ ही अन्य सहायक उपकरण लगा रही हैं, जिससे पूरी क्षमता का उपयोग हो सके। पिछले साल सरकार ने गेहूं की आपूर्ति को लेकर नियम बनाए थे, जबकि उत्पादन ज्यादा हुआ था। इसके चलते प्रसंस्करण क्षेत्र में क्षमता विस्तार को लेकर भय पैदा हो गया था।'
उन्होंने कहा- इस समय गेहूं की पर्याप्त उपलब्धता है, जिसके चलते यह उद्योग अपनी क्षमता का बेहतर इस्तेमाल कर रहा है। साथ ही सरकार की नीतियों से भी प्रसंस्करणकर्ताओं को मदद मिली है। सामान्यतया गेहूं से बने उत्पादों, जैसे आटा, सूजी, मैदा की मांग मॉनसून शुरू होने के बाद बढ़ती है और सामान्य से ज्यादा खपत होती है। इसके चलते फ्लोर मिलों ने अप्रैल से ही तैयारी शुरू कर दी है।
क्षमता विस्तार के पीछे गोपाल दो कारणों को बताते हैं। पहला- हाजिर बाजार से गेहूं की खरीदारी सस्ती दरों पर हो रही है, क्योंकि पिछले साल जब सरकार ने आपूर्ति का नियमन किया जो कृत्रिम कमी की स्थिति बन गई और कीमतें बढ़ गईं। इस समय गेहूं के दाम 10 रुपये किलो है जबकि पिछले साल इस दौरान कीमतें 16-18 रुपये प्रति किलो पर पहुंच गई थीं।
कीमतों में गिरावट के चलते प्रसंस्करणकर्ताओं के मुनाफे में भी बढ़ोतरी हुई है। दूसरा कारण है कि सरकार के हस्तक्षेप का खतरा नहीं है, जिससे प्रसंस्करणकर्ताओं को क्षमता विस्तार के लिए प्रोत्साहन मिल रहा है।
भारत गेहूं उत्पादन के 820 लाख टन के नए रिकॉर्ड की ओर इस साल बढ़ रहा है, जबकि पिछले साल 807 लाख टन उत्पादन हुआ था। पिछले साल के बचे अग्रिम स्टॉक के साथ इस साल के रिकॉर्ड उत्पादन के चलते सरकार की खरीद एजेंसी भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) को भंडारण में दिक्कतें आ रही हैं।
विश्लेषकों का कहना है कि एफसीआई गेहूं की खरीद सुस्त कर देगी, क्योंकि इस समय उसकेपास आवश्यक बफर स्टॉक की तुलना में तीन गुना संग्रह हो गया है। 1 अप्रैल को यह 50 लाख टन था। शिवाजी रोलर फ्लोर मिल के प्रबंध निदेशक अजय गोयल ने कहा कि गेहूं प्रसंस्करणकर्ताओं को गेहूं की उपलब्धता को लेकर कोई संकट नहीं आने वाला है, साथ ही कीमतों पर भी दबाव बना रहेगा।
अनुमान के मुताबिक चल रही करीब 400 फ्लोर मिलें करीब 7-8 लाख टन गेहूं की खपत प्रति माह करती हैं और इनकी सालाना खपत 78-80 लाख टन है। इसके अलावा संचालन के लिए पूंजी के अभाव में करीब 400 मिलें बंद पड़ी हैं। जाड़े के समय में प्रसंस्करण गतिविधियां सुस्त रही थीं।
सिर्फ महाराष्ट्र में ही 40 मिलें अपनी कुल क्षमता का 50 प्रतिशत चल रही हैं और 1 लाख टन गेहूं का मासिक प्रसंस्करण कर रही हैं। गोपाल ने कहा कि प्रसंस्करणकर्ताओं ने इस समय बहुराष्ट्रीय कंपनियों से गेहूं खरीदना बंद कर दिया है, क्योंकि हाजिर बाजार में कीमतें कम हैं।
इसके साथ ही यह भी महत्त्वपूर्ण है कि मात्रा को लेकर कोई प्रतिबंध नहीं लगाया गया है। विकल्प के रूप में इस समय मिलें हाजिर बाजार से माल उठा रही हैं। इसके पहले करीब 10 प्रतिशत खरीदारी बहुराष्ट्रीय कंपनियों से होती थी, जिन्हें मिलें किस्तों में भुगतान करती थीं। (बीएस हिंदी)

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