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17 फ़रवरी 2010

फूल और सब्जियों की राह से गुजरती किसानों की संपन्नता

नई दिल्ली February 17, 2010
हापुड़ ब्लाक के श्यामपुर गांव के किसान भारतीय किसानों की छवि को बदल चुके हैं।
हाथ में महंगे मोबाइल फोन लेकर चलने वाले ये किसान बसों से नहीं, बलेरो व सूमो में घूमते हैं। उनके बच्चे बोर्डिंग स्कूल में पढ़ते हैं। यह सब पिछले पांच-सात सालों की मेहनत का नतीजा है।
प्रोफेशनल सोच रखने वाले इस गांव के किसान गेहूं-चावल छोड़ फूल व सब्जी की खेती करने लगे हैं। पानी कम लगने के साथ लागत में भी कमी आ गई और कमाई कई गुना बढ़ गई। किसानों के मुताबिक एक एकड़ जमीन में फूलों की खेती करने पर 1.5-1.75 लाख रुपये की शुध्द आय होती है। वहीं इतनी ही जमीन पर धान या गेहूं से अधिकतम 15-16 हजार रुपये की आय होती है।
कमाई के इस बड़े फासले ने ही किसानों को संपन्न बना दिया है। श्यामपुर गांव के लल्लू सिंह के पास दो गाड़ियां है और इनमें से एक सूमो है। वे अपने पार्टनर देवेंद्र सिंह के साथ मिलकर 20 एकड़ जमीन पर फूलों की खेती करते हैं। प्रति एकड़ 1.5 लाख रुपये की कमाई के हिसाब से इनकी आय का सहज अंदाजा लगाया जा सकता है।
उनके मुताबिक इसके अलावा फूलों के बीज से अलग से कमाई होती है। लल्लू ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया, 'हमने इस गांव में 14 साल पहले फूलों की खेती शुरू की थी। तब हम इस प्रकार की खेती में अकेले थे। आज 20 से अधिक किसान हमारे गांव में फूलों की खेती कर रहे हैं।'
लगभग 4000 जनसंख्या वाले इस गांव का रकबा 1200 एकड़ हैं। इनमें से 60 फीसदी से अधिक जमीन पर अब फूल व सब्जी की खेती हो रही है। हाल ही में फूलों की खेती में उतरे गंगापाल कहते हैं, 'लीक से हटकर खेती करने वाले किसानों की संपन्नता ही उन्हें भी इस खेती में खींच लाई है। फूल उगाने वाले सारे किसान कार से चलते हैं।'
इस गांव में मुख्य रूप से गुलाब, गेंदा, बेलिया, गुलदौदी व ग्लाइडोलेसिया जैसे फूलों की खेती होती है। फूलों की खेती से गांव में कम जमीन या बेकार लोगों को रोजागार भी उपलब्ध हो रहा है। लल्लू ने 22 लोगों को अपनी खेती के लिए काम पर लगाया हुआ है। वे कहते हैं कि इस गांव की सफलता को देख पास के बछरौता गांव में भी कई किसान फूलों की खेती करने लगे हैं।
फूल से साथ सब्जी उगाने वाले किसान भी कोई कम संपन्न नहीं है। इस गांव में करैला, कद्दू व अन्य कई सब्जियों के उत्पादन के लिए खेतों में जाल लगाए गए हैं। ये किसान किसी भी सब्जी की खेती नहीं करते। पहले वे यह पता करते हैं कि बाजार में किस सब्जी की कमी है या किसकी खेती से उन्हें ज्यादा पैसे मिलेंगे।
इस गांव में टमाटर, करैला, मटर, लौकी एवं अन्य कई मौसमी सब्जियों की खेती होती है। सब्जी उगाने वाले किसान कहते हैं, 'सब्जी हो या फूल, इसकी खेती में पानी कम लगता है। इससे हमारे गांव का जलस्तर भी नीचे नहीं जा रहा है और हमारी आय भी अधिक हो रही है।' (बीएस हिन्दी)

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