कुल पेज दृश्य

14 जनवरी 2010

मांग सुधरने से एक माह में कॉपर के दाम सुधरे

अंतरराष्ट्रीय बाजार में इन्वेंट्री बढ़ने के बावजूद पिछले एक माह के दौरान कॉपर की कीमतों में तेजी दर्ज की गई है। जानकारों के मुताबिक तेजी की वजह चीन द्वारा अधिक आयात करना है। हालांकि पिछले दिनों चीन में कर्ज पर सख्ती किए जाने से बुधवार को कॉपर व दूसरी बेसमेटल्स में गिरावट दर्ज की गई। लंदन मेटल एक्सचेंज में पिछले एक माह के दौरान कॉपर के दाम 6900 डॉलर से बढ़कर 7450 डॉलर प्रति टन और घरेलू बाजार में इसके 320 रुपये से बढ़कर 348 रुपये प्रति किलो हो गए हैं। एलएमई में पिछले एक माह के दौरान कॉपर की इन्वेंट्री करीब 4।50 लाख टन से बढ़कर 5.21 लाख टन हो गई। एंजिल ब्रोकिंग के टेक्नीकल विश्लेषक अनुज गुप्ता का कहना है कि चीन द्वारा अधिक आयात करने की वजह से एलएमई में कॉपर की कीमतों में बढ़ोतरी हुई है।दिसंबर 2009 के दौरान चीन में कॉपर और कॉपर प्रोडक्ट का आयात 28 फीसदी बढ़कर 3.69 लाख टन हो गया। नवंबर के दौरान यह 10 फीसदी बढकर 2.90 लाख टन हो गया था जबकि वर्ष 2009 के दौरान चीन में कॉपर का आयात 63 फीसदी बढ़कर 42.9 लाख टन हो गया। इस वजह से कापॅर के मूल्यों में वृद्धि हुई है। वहीं कॉपर कारोबारी सुरेश चंद गुप्ता के मुताबिक एलएमई में दाम बढ़ने से घरेलू बाजार में भी पिछले एक माह के दौरान कीमतें बढ़ी है। उनका कहना है कि घरेलू बाजार में कॉपर के दाम काफी हद एलएमई पर निर्भर करते हैं। अनुज गुप्ता का कहना है कि मुनाफावसूली के चलते अगले कुछ दिनों तक इसके मूल्यों में गिरावट के आसार हैं, बाद में फिर तेजी आ सकती है। उधर भारत में चालू वित्त वर्ष में अक्टूबर माह तक 4.57 लाख टन कॉपर का उत्पादन हुआ, जबकि पिछली समान अवधि में यह 3.65 लाख टन था। कारोबारियों के अनुसार चीन, अमेरिका में इक्विटी मार्केट सुधरने से कॉपर की औद्योगिक मांग और सुधरने की संभावना हैं। सथ ही भारत में सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी बढ़ने से देश में अगले साल भी कॉपर की मांग बढ़ने की उम्मीद हैं। इंटरनेशनल कॉपर स्टडी ग्रुप (आईसीएसजी) के मुताबिक अगले साल चीन में अगले कॉपर की खपत आठ फीसदी बढ़कर 58.3 लाख टन तक पहुंच सकती है।लिहाजा चालू वर्ष के दौरान चीन में कॉपर का आयात अधिक होने की संभावना है। उल्लेखनीय है कि कॉपर की सबसे अधिक खपत इलैक्ट्रिकल में 42 फीसदी, भवन निर्माण में 28 फीसदी, ट्रांसपोर्ट में 12 फीसदी, कंज्यूमर प्रोडक्ट में 9 फीसदी और इंडस्ट्रियल मशीनरी में 9 फीसदी होती है। इसका सबसे अधिक उत्पादन एशिया में 43 फीसदी होता है इसके बाद 32 फीसदी अमेरिका,19 फीसदी यूरोप में किया जाता है।चीन में कर्ज की सख्ती से कॉपर, अल्यूमीनियम नरम लंदन सिंगापुर। चीन में सख्ती की वजह से बुधवार को बेसमेटल्स की कीमतों में गिरावट दर्ज की गई। जानकारों के मुताबिक यह गिरावट अस्थाई है। बुधवार को लंदन मेंटल एक्सचेंज में कॉपर के दाम 0.6 फीसदी घटकर 7400 डॉलर प्रति टन, अल्यूमीनियम 0.4 फीसदी घटकर 2,272 डॉलर पर आ गए। वहीं शंघाई फ्यूचर एक्सचेंज में कॉपर तीन माह अनुबंध गिरकर 60,160 युआन प्रति टन रहा। एमएफ ग्लोबल के विश्लेषक एडवर्ड मायर का कहना है कि बेसमेटल्स में आई यह गिरावट अस्थाई है। चालू वर्ष की पहली छमाही के दौरान इसके मूल्यों में तेजी बनी रहेगी। उनके अनुसार इस दौरान कॉपर के दाम 6,700-7,900 डॉलर प्रति टन के बीच रहने के आसार हैं। (एजेंसी) (बिज़नस भास्कर)

कोई टिप्पणी नहीं: