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31 जुलाई 2009

कर्नाटक में समय से पहले शुरू हुई गन्ना पेराई

बंगलुरु- कर्नाटक में, खासतौर से राज्य के दक्षिणी भाग की चीनी मिलों ने समय से पहले गन्ने की पेराई शुरू कर दी है। उन्होंने यह कदम इसलिए उठाया है ताकि इस कच्चे माल की पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित की जा सके। तीन साल के चीनी के सीजन के लिहाज से देखें तो राज्य में गन्ना उत्पादन में कमी आई है। इसके अलावा गुड़ इकाइयों की तरफ से भी गन्ने की मांग में बढ़ोतरी हुई है। ऐसे में चीनी मिलों का मानना है कि गन्ने की आपूर्ति सुलझाने का एक ही तरीका है पेराई जल्दी शुरू की जाए। राज्य में कुल उत्पादित गन्ने का करीब 25 से 30 फीसदी इस्तेमाल गुड़ उत्पादक करते हैं। गन्ने की पेराई का काम जुलाई के आखिरी हफ्ते से शुरू हो गया है। हालांकि राज्य की कुछ चीनी मिलों ने फसल तैयार होते ही जून में गन्ने की पेराई का काम शुरू कर दिया था। सितंबर में समाप्त हो चीनी सीजन में कर्नाटक में करीब 160 लाख टन गन्ने की पेराई का अनुमान है, जबकि इसके मुकाबले 2007-08 के चीनी सीजन में 265 लाख टन गन्ने की पेराई हुई थी। सूत्रों ने बताया, 'गन्ने की उपलब्धता एक बड़ा मसला है। चीनी मिलों और गुड़ उत्पादकों को यह बात अच्छी तरह से पता है कि चीनी और गुड़ की रीटेल कीमतों में 35 से 40 फीसदी का इजाफा हुआ है।
उद्योग के जानकारों का मानना है कि इस बार त्योहारों की शुरुआत जल्द होने से चीनी और गुड़ की मांग में जल्द ही जबरदस्त इजाफा देखने को मिल सकता है। इस समय चीनी की खुदरा कीमतों की तुलना में गुड़ की खुदरा कीमत करीब 15 से 20 फीसदी ज्यादा है। बढ़ी कीमतों के कारण चीनी मिलों और गुड़ उत्पादकों की नजरें ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमाने पर लगी हैं, लेकिन उद्योग के जानकारों ने रिकवरी रेट में कमी को लेकर चीनी मिलों को सचेत भी किया है। आमतौर पर दक्षिण कर्नाटक के चीनी मिलों का औसत रिकवरी रेट 9.5 फीसदी और उत्तरी कर्नाटक की मिलों का औसत रिकवरी रेट 10.5 फीसदी है, लेकिन डर इस बात का है कि चीनी की पेराई पहले होने से रिकवरी रेट 1.5 से 2 फीसदी घट सकती है। 2008-09 के चीनी कारोबारी साल में देश में करीब 1.40 से 1.60 करोड़ टन चीनी उत्पादन का अनुमान लगाया गया है। उत्पादन में साल-दर-साल 40 फीसदी से ज्यादा की कमी के आसार हैं। (ET Hindi)

...तो इसलिए भी महंगे हो रहे हैं अनाज?

नई दिल्ली: राशन की दुकान पर खड़े होकर महंगाई के लिए अगर आप केवल बारिश के देवता को कोस रहे हैं, तो शायद इंद्र के साथ कुछ ज्यादती होगी। दरअसल यहां धरती पर भी कई लोग हैं, जो आपकी जिंदगी को मुश्किल बनाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रहे। खाद्यान्नों का उत्पादन करने वाले इलाकों से डिलीवरी में 20 से 30 फीसदी तक की कमी दर्ज की जा रही है। खाद्यान्नों की ढुलाई के जो आंकड़े मिले हैं, उससे स्पष्ट है कि जुलाई के महीने में कृषि से जुड़े ट्रकों के फेरे कम हुए हैं। साफ है कि जमाखोरी जोरों पर है। इंडियन फाउंडेशन फॉर ट्रांसपोर्ट रिसर्च एंड ट्रेनिंग (आईएफटीआरटी) के अध्ययन में इस बात का खुलासा हुआ है। दिल्ली और खाद्यान्न उत्पादन इलाकों की विभिन्न एग्रीकल्चर प्रोडक्ट मार्केटिंग कमेटी (एपीएमसी) से मिले ट्रकों के संचालन संबंधी आंकड़ों के आधार पर यह रिपोर्ट तैयार की गई है।
रिपोर्ट में कहा गया, 'जून के दूसरे हफ्ते से अब तक दाल और खाद्यान्न की राज्य के भीतर और राज्यों के बीच ढुलाई 20 से 30 फीसदी तक कम हो गई गई है। इस दौरान इन कमोडिटी की कीमत में तेज उछाल आया है। कमजोर मॉनसून और अपेक्षाकृत कम क्षेत्र में बुआई की खबरों ने आवश्यक खाद्य पदार्थों की जमाखोरी की संभावना खोल दी, जिससे ट्रकों को कम ढुलाई के लिए कम खाद्यान्न मिला।' आईएफटीआरटी के वरिष्ठ फेलो एस पी सिंह ने ईटी को बताया, 'गुजरात और महाराष्ट्र से तिलहन की आवक में कमी आई है। मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ से सोयाबीन और पंजाब, हरियाणा तथा पूर्वी राजस्थान (गंगानगर आदि) से गेहूं की ढुलाई में 20 से 30 फीसदी की कमी आई है। मध्य प्रदेश और राजस्थान से दालों की आवक भी घटी है। इस काम से जुड़े ट्रांसपोर्टरों का कहना है कि बाजार काफी कम है। संबंधित इलाकों की एपीएमसी के आंकड़े भी इस बात की पुष्टि कर रहे हैं।' सिंह ने कहा, 'उत्पादन वाले इलाके के होल सेलर चढ़ती कीमतों को देखकर धीरे-धीरे माल निकाल रहे हैं। यह एक तरह की होर्गिंड ही है। ऐसे में दिल्ली जैसे गैर उत्पादक राज्यों में कीमतें बढ़ना सामान्य है। दरअसल दालों का आयात पहले ही कम हो चुका है। ऐसे में कारोबारी इस स्थिति का फायदा उठाना चाह रहा है।' उधर दिल्ली व्यापार महासंघ के चेयरमैन ओम प्रकाश जैन का कहना है कि दिल्ली में कारोबारियों को ज्यादा भंडारण की इजाजत नहीं है इस वजह से कई बार मांग के मुकाबले सप्लाई की स्थिति खराब हो जाती है। जैन के मुताबिक, 'हमें मिल वालों को दाल सप्लाई करने के अलावा उत्तर प्रदेश, हरियाणा और पंजाब जैसे राज्यों को भी दालों की सप्लाई करनी पड़ती है। ऐसे में सरकार को हमें ज्यादा भंडारण करने की इजाजत देनी चाहिए।' राजधानी फ्लोर मिल के एस पी जैन के मुताबिक, 'बाजार में ऊंची कीमतों का ट्रेंड बना हुआ है। बाजार में दालों की कमी नहीं है, लेकिन इस बार इनका सरप्लस न होने की वजह से भी कीमतों में कुछ तेजी बनी हुई है।' जैन कहते हैं कि अब मांग में कमी आ रही है और इससे आने वाले दिनों में दालों की कीमतों में गिरावट देखने को मिल सकती है। (ET Hindi)

विदेश में अच्छी पैदावार से धनिया के भाव और गिरने का अनुमान

दुनियाभर में उत्पादन में बढ़ोतरी के चलते अंतरराष्ट्रीय बाजार में धनिया और सस्ता हो गया है। पिछले तीन महीनों के दौरान अंतरराष्ट्रीय बाजार में धनिया के औसत मूल्य लगभग चार फीसदी से ज्यादा घट गए हैं। वहीं पिछले वर्ष के मुकाबले इस साल भाव बीस फीसदी कम हैं। इस कारण घरलू बाजार में भी धनिया के भावों पर लगातार दबाव बना हुआ है और निर्यात में बढ़ोतरी के बावजूद उत्पादकों को विशेष लाभ नहीं मिल पा रहा है। अगस्त के दूसरे पखवाड़़े में धनिया में और गिरावट आने का भी अनुमान है।भारतीय मसाला बोर्ड के अनुसार चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही के दौरान वजन के लिहाज से धनिया निर्यात लगभग 42 फीसदी बढ़ा है। लेकिन भाव कम होने के कारण मूल्य के लिहाज से यह बढ़ोतरी ग्यारह फीसदी तक सिमट गई है। वित्त वर्ष 2008-09 की पहली तिमाही में देश से 62.57 रुपये किलो के औसत भाव पर 10,242 टन धनिया निर्यात किया गया था। वहीं चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में धनिया निर्यात बढ़कर 14,500 टन पर पहुंच गया है। लेकिन प्रमुख उत्पादक देशों में पैदावार बेहतर होने से निर्यातकों को धनिया के औसत मूल्य 49.17 रुपये किलो ही मिल पाया है जो कि अप्रैल-मई में 51.41 रुपये किलो था। इस वजह से घरलू बाजार में भी धनिया के भाव पांच हजार रुपये क्विंटल के ऊपर नहीं निकल पा रहे हैं। इस वजह से एनसीडीईएक्स में भी अगस्त वायदा सौदों में धनिया गुरुवार तक करीब तीन फीसदी घटकर 4,174 रुपये क्ंिवटल रह गया है। हालांकि मांग निकलने से राजस्थान की हाजिर मंडियों में धनिये में पांच फीसदी का सुधार दर्ज किया गया है। कोटा मंडी में आज धनिया के भाव लूज 3750 से 3800 और बिल्टी में 4500 से 4625 रुपये क्ंिवटल दर्ज किए गए।राजकोट की निर्यातक कंपनी अदानी फूड प्रोडक्ट्स प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक सिद्धार्थ अदानी का कहना है कि पिछले वर्ष भारत समेत सभी उत्पादक देशों में धनिया की पैदावार कम हुई थी। इस कारण निर्यातकों को अंतरराष्ट्रीय बाजार में बेहतर मूल्य मिले थे। वहीं इस साल भारत के अलावा कनाड़ा और बुल्गारिया में भी धनिया की बंपर पैदावार हुई है। इस वजह से अंतरराष्ट्रीय बाजार में धनिया के भाव पिछले वर्ष के मुकाबले बीस फीसदी नीचे हैं। इसका घरलू बाजार पर भी असर पड़ा है। दूसरी तरफ कोटा मंडी के थोक व्यापारी सुभाष भटनागर का कहना है कि निचले स्तर पर मांग निकलने से दो दिन के दौरान हाजिर में धनिया के भावों में सुधार हुआ है। लेकिन भावों में और तेजी की संभावना कम है क्योंकि अगले महीने स्टॉकिस्टों की बिकवाली निकल सकती है। उल्लेखनीय है कि पिछले वर्ष निर्यात मांग और पैदावार में कमी के चलते अगस्त में धनिया 9,200 रुपये क्विंटल के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया था। वहीं इस साल धनिया के भावों पर दबाव रहने की आशंका है। इसके पीछे यह तर्क दिया जा रहा है कि मध्य प्रदेश में स्टॉकिस्ट सोयाबीन खरीदने के लिए नकदी जुटाने के इरादे से अगस्त के दूसर पखवाड़े से धनिया की बिकवाली शुरू कर देंगे। इससे धनिया की उपलब्धि बढ़ने से भावों पर दबाव बन जाएगा। (Business Bhaskar)

अगस्त के लिए 16.5 लाख टन चीनी कोटा जुलाई से ज्यादा

केंद्र सरकार ने अगस्त महीने के लिए 16.5 लाख टन चीनी का कोटा जारी किया है। त्यौहारी सीजन को देखते हुए जुलाई के मुकाबले अगस्त के लिए कोटे में बढ़ोतरी की गई है। जुलाई के लिए 14.9 लाख टन का कोटा जारी किया गया था। ज्यादा कोटा आने से दिल्ली थोक बाजार में गुरुवार को चीनी की कीमतों में 20 रुपये की गिरावट आकर एम ग्रेड चीनी के भाव 2635-2640 रुपये और एस ग्रेड चीनी के भाव 2600 से 2610 रुपये प्रति रह गए। इस दौरान एक्स फैक्ट्री चीनी के दाम 2500 से 2520 रुपये प्रति क्विंटल बोले गए। इस समय फुटकर बाजार में चीनी 27-29 रुपये प्रति किलो बिक रही है। अधिकारिक सूत्रों के अनुसार सरकार चीनी की कीमतों पर नजर रखे हुए हैं।खुले बाजार में अगर जरूरत हुई तो सरकार अतिरिक्त कोटा भी जारी कर सकती है। उधर अंतरराष्ट्रीय बाजार में इन दिनों चीनी की कीमतों में तेजी का रुख बना हुआ है। 23 जुलाई को अंतरराष्ट्रीय बाजार में चीनी के दाम 18.81 सेंट प्रति पाउंड थे जबकि 29 जुलाई को इसके दाम बढ़कर 19.09 सेंट प्रति पाउंड हो गए। कृषि मंत्रालय द्वारा जारी बुवाई आंकड़ों के मुताबिक चालू सीजन में देश में 42.50 लाख हैक्टेयर में गन्ने की बुवाई हुई है जो पिछले साल की समान अवधि के 43.79 लाख हेक्टेयर से कम है। चालू सीजन में देश में चीनी के उत्पादन में आई भारी कमी के कारण केंद्र सरकार ने मिलों को शुल्क मुक्त रॉ शुगर के आयात की अनुमति दी हुई है।उद्योग के सूत्रों के मुताबिक अभी तक करीब 25 लाख टन रॉ शुगर के आयात सौदे हो चुके हैं तथा इसमें से करीब 18-19 लाख टन भारतीय बंदरगाहों पर पहुंच चुकी है। इसके अलावा सरकारी कंपनियां 1.15 लाख टन चीनी के आयात अनुबंध कर चुकी हैं तथा इसमें से करीब 55,000 टन चीनी का आयात भी हो चुका है। मालूम हो कि केंद्र सरकार ने सरकारी कपंनियों एमएमटीसी, पीईसी और एसटीसी के माध्यम से दस लाख टन चीनी आयात करने का फैसला किया है। (Business Bhaskar)

आभूषणों की बिक्री बढ़ाने के लिए नुमाइश का सहारा

मुंबई July 30, 2009
निर्यात में आई 25 फीसदी की गिरावट से परेशान रत्न और आभूषण का कारोबार करने वाली संस्था घरेलू बाजार में मौजूदा कारोबारी संभावनाओं का लाभ उठाने केलिए बड़े स्तर पर प्रचार-प्रसार करने की योजना बना रही है।
इन संस्थाओं में सबसे बड़ी जेम्स ऐंड ज्वेलरी एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल (जीजेईपीसी),जिसकी स्थापना वाणिज्य मंत्रालय ने की है, ने घरेलू बाजार में प्रचार-प्रसार करने के लिए लिए 15 करोड रुपये के निवेश की योजना तैयार की है।
खासकर टीयर-2, 3 और टाइप 4 शहरों में इस पर खास ध्यान दिया जाएगा, जहां के उपभोक्ताओं में हीरे की खरीदारी में खासी दिलचस्पी है। इस निवेश के जरिये स्थानीय ज्वैलरी ब्रांड का विज्ञापन उपभोक्ता शिक्षा और अन्य जेनरिक उपायों के जरिये किया जाएगा।
जीजेईपीसी, पर्व-त्योहारों को देखते हुए स्थानीय बाजार में प्रचार-प्रसार का कार्य सितंबर से शुरू कर अगले साल फरवरी तकजारी रखने की योजना बना रही है। जीजेईपीसी के अध्यक्ष वसंत मेहता ने कहा कि घरेलू बाजार में आभूषणों में आई कमी को देखते हुए जेनरिक और स्थानीय ब्रांड को बाजार में बेहतर ढंग से पेश किए जाने की जरूरत है।
जिसके 17-45 वर्ष उम्र के ग्राहकों को आकर्षित करने पर खासा ध्यान दिया जाएगा। बकौल मेहता, कई ग्राहकों को हाल में उपहार के तहत मोबाइल और अन्य सामानों की खरीदारी करते देखा गया और अगर कोशिश की जाती तो उनको हीरे की खरीदारी की ओर आकर्षित किया जा सकता था।
मेहता का कहना है कि रत्न और आभूषणों के प्रचार-प्रसार के पीछे मकसद उपभोक्ताओं में हीरे के महत्व और इसकी कीमत के बारे में जानकारी देनी है, क्योंकि सोने की तुलना में हीरे के आभूषणों लोगों के बीच उतने लोकप्रिय नहीं हो पाएं हैं।
विश्व में कच्चे हीरे की आपूर्ति करने वाले सबसे बड़ी कंपनी डी बियर्स के प्रबंध निदेशक गरेथ पेनी केअनुसार हीरे के आभूषणों की बिक्री को 'लक्जरी हॉलीडे' से कड़ी टक्कर मिल रही है। करीब 300,000 से ज्यादा ज्वैलरों का प्रतिनिधित्व करने वाली देश की दूसरी सबसे कारोबारी संस्था ऑल इंडिया जेम्स ऐंड ज्वेलरी ट्रेड फेडरेशन (जीजेएफ) भी दीवाली से पहले अलग से प्रचार-प्रसार की योजना बना रही है।
जीजेएफ के अध्यक्ष विनोद हेयाग्रिव की पारस्प्रिक सहयोग से आभूषणों की बिक्री में 25 फीसदी तक की बढ़ोतरी हो सकती है और इसे वैश्विक वित्तीय संकट की वजह से इसकी बिक्री में आई गिरावट की भरपाई की जा सकती है।
हेयगिव ने कहा,'हरेक सदस्य को हमारा सुझाव है कि वे सभी प्रचार-प्रसार में निवेश करें और विज्ञापन देने केलिए सभी संचार माध्यमों का सहारा लें'। डी बियर्स ने भी क्रिसमस के समय अमेरिका में हीरे के आभूषणों के प्रचार-प्रसार पर निवेश की योजना बनाई है। (ET Hindi)

आलू वायदा का विशेष मार्जिन बढ़ने पर भी हाजिर में दाम चढ़े

वायदा कारोबार पर 20 फीसदी विशेष मार्जिन भी हाजिर में आलू की तेजी थामने में सफल नहीं हो पा रहा है। फॉरवर्ड मार्केट कमीशन (एफएमसी) ने 26 जून को विशेष मार्जिन को 15 फीसदी से बढ़ाकर 20 फीसदी कर दिया था। इससे पहले एफएमसी ने इसमें पांच फीसदी की बढ़ोतरी की थी। इसके बावजूद आलू के हाजिर भाव कम होने का नाम नहीं ले रहे हैं। हालांकि आलू की वायदा कीमतों में गिरावट आ चुकी है।थोक मंडियों में कोल्ड स्टोर वाले आलू के दाम 800-1100 रुपये प्रति क्विंटल चल रहे है, जबकि शिमला व हल्द्वानी लाइन आलू के भाव 1600-1800 रुपये प्रति क्विंटल बने हुए है। जून के दौरान वायदा में आलू के भाव 1300 रुपये प्रति क्विंटल के करीब पहुंचने के बाद एफएमसी ने 27 जून से इसके वायदा कारोबार पर विशेष मार्जिन 15 फीसदी से बढ़ाकर 20 फीसदी कर दिया था। उस समय हाजिर में आलू के दाम 800-1,000 रुपये प्रति क्विंटल थे। एफएमसी के इस कदम के बाद वायदा में तो इसके दाम घटने लगे लेकिन हाजिर में दाम कम होने की बजाय बढ़ते गए। मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज में 19 जून को आलू सितंबर वायदा के भाव 1,273 रुपये प्रति क्विंटल थे जो 30 जुलाई को घटकर 1,005 रुपये प्रति क्विंटल रह गए। कारोबारियों का कहना है कि वायदा में तेजी के कारण भी हाजिर में कीमतों में तेजी को बल मिला है। पोटेटो ऑनियन मर्चेट एसोसिएशन (पोमा) के महासचिव राजेंद्र शर्मा ने बिजनेस भास्कर को बताया कि आलू के दाम बढ़ने की प्रमुख वजह बिहार, बंगाल, गुजरात सहित कई राज्यों में आलू का उत्पादन कम होना है। इन राज्यों में उत्पादन घटने के कारण उत्तर प्रदेश और पंजाब से ही आलू की सप्लाई हो रही है। सप्लाई के मुकाबले मांग का दबाव होने से भाव ऊपर हैं। उनका कहना है कि अगर आलू के वायदा कारोबार पर पांबदी लगा दी जाए तो इसके हाजिर मूल्यों में 200 रुपये प्रति क्विंटल की गिरावट आ सकती है। उधर विशेष मार्जिन बढ़ने के बावजूद हाजिर में आलू के दाम कम नहीं होने के बारे में एफएमसी के अध्यक्ष बी.सी. खटुआ का कहना है कि आलू की वायदा कीमतों में हाजिर के मुकाबले अधिक बढ़ोतरी के चलते एफएमसी ने विशेष मार्जिन बढ़ाया था ताकि वायदा कीमतों को नियंत्रित किया जा सके। उनका कहना है कि एफएमसी के इस कदम के बाद आलू की वायदा और हाजिर कीमतों में अब कोई खास अंतर नहीं रह गया है। विशेष मार्जिन बढ़ने की वजह से एक्सचेंजों में आलू के सौदे में भी कमी आई है। नेशनल कमोडिटी एंड डेरिवेटिव्स एक्सचेंज (एनसीडीएक्स) में जून माह के दौरान आलू के 8,380 वायदा अनुबंध हुए, जुलाई माह के दौरान यह आंकडा़ घटकर 5,254 पर रह गया। वहीं जून के दौरान मात्रा के लिहाज से 1.28 लाख टन आलू का कारोबार हुआ था जो जुलाई में घटकर 78,810 टन रह गया। (Business Bhaskar)

निर्यात में कमी के बावजूद काली मिर्च के भाव तेज

निर्यात मांग कम होने के बावजूद काली मिर्च की कीमतों में तेजी बनी हुई है। पिछले पंद्रह दिनों में कालीमिर्च की कीमतों में करीब चार फीसदी की तेजी आकर एमजी वन क्वालिटी काली मिर्च के भाव 12,900 रुपये प्रति क्विंटल हो गए। जबकि चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में निर्यात 33 फीसदी घटकर मात्र 5,000 टन रह गया। पैदावार में कमी के कारण स्टॉकिस्टों की बिकवाली कम आ रही है जिससे तेजी को बल मिल रहा है।कोच्चि मंडी स्थित मैसर्स केदारनाथ संस के डायरेक्टर अजय अग्रवाल ने बताया कि प्रमुख उत्पादक राज्य केरल में प्रतिकूल मौसम से पैदावार में गिरावट आई है। चालू सीजन में पैदावार पिछले साल के 50,000 टन के मुकाबले घटकर 45,000 टन ही रहने की संभावना है। पिछले साल नई फसल के समय बकाया स्टॉक भी 8,000- 10,000 टन का बचा हुआ था लेकिन चालू वर्ष में बकाया स्टॉक भी मात्र 5,000 टन बचने का अनुमान है। ऐसे में कुल उपलब्धता पिछले वर्ष के मुकाबले काफी कम है। इस समय ज्यादातर माल स्टॉकिस्टों के पास है जबकि उनकी बिकवाली कम आ रही है। इसीलिए भावों में तेजी का रुख बना हुआ है। पिछले पंद्रह दिनों में घरेलू बाजार में इसकी कीमतों में 400 रुपये की तेजी आकर एमजी वन क्वालिटी के भाव 12,900 रुपये और अनगार्बल्ड के भाव 12,400-12,500 रुपये प्रति क्विंटल हो गए।बंगलुरू के काली मिर्च निर्यातक अनीश रावथर ने बताया कि इस समय अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय काली मिर्च के भाव 2700-2750 डॉलर प्रति टन (सीएंडएफ) चल रहे हैं। उधर वियतनाम और इंडोनेशिया की काली मिर्च के भाव 2550-2600 डॉलर प्रति टन चल रहे हैं। वियतनाम अभी तक करीब 70,000 टन काली मिर्च की बिकवाली कर चुका है जबकि चालू सीजन में वियतनाम में 90,000 टन का उत्पादन हुआ था। ऐसे में अब वियतनाम के पास 20,000 टन स्टॉक बचा है। इसलिए वियतनाम की बिकवाली पहले की तुलना में घट गई है। इंडोनेशिया में नई फसल की आवक शुरू हो चुकी है। इंडोनेशिया में नई फसल से 30,000 टन काली मिर्च का उत्पादन होने की संभावना है। जबकि अभी तक इंडोनेशिया करीब 10 हजार टन के अग्रिम सौदे कर चुका है। उत्पादक देशों में कमजोर स्टॉक को देखते हुए इंडोनेशिया की बिकवाली भी कम आ रही है। इसीलिए पिछले एक महीने में अंतरराष्ट्रीय बाजार में वियतनाम और इंडोनेशिया की कालीमिर्च के भावों में करीब 100 डॉलर प्रति टन की तेजी आ चुकी है। (Business Bhaskar....R S Rana)

30 जुलाई 2009

कारों की बिक्री बढ़ने से लेड भाव सुधरे

मुंबई: डाओ जोंस इंडस्ट्रियल में मार्च के निचले स्तर से जो तेजी आई है उसका बेस मेटल पर सकारात्मक असर हुआ है। इसका फायदा खास तौर पर तांबे को हुआ है जिसने दोबारा बेंचमार्क इंडेक्स से अपना अनुकूल संबंध स्थापित कर लिया है। दरअसल, पिछला समूचा साल और इस कैलेंडर साल के पहले दो महीने डाओ के लिए उतार-चढ़ाव से भरपूर रहे थे। इस साल मार्च से अब तक तांबे के भाव और डाओ की तेजी में 93.1 फीसदी का अनुकूल संबंध रहा है। इससे विश्लेषकों को लग रहा है कि डाओ मौजूदा स्तरों से जितना ऊपर जाएगा तांबे में उससे ज्यादा बढ़त दर्ज होगी लेकिन विश्लेषकों का यह भी कहना है कि तांबे में मौजूदा तेजी की वजह बुनियादी से ज्यादा सेंटिमेंटल है। डाओ इस साल 9 मार्च के 6547.1 अंक के स्तर से अब तक करीब 39 फीसदी चढ़ चुका है।
इस दौरान तांबे का भाव 55 फीसदी चढ़कर 5,600 डॉलर प्रति टन के स्तर पर पहुंचा। दूसरी तिमाही में अमेरिकी कंपनियों के बेहतर नतीजों और आवासीय बिक्री के आंकड़ों से डाओ की तेजी को बढ़ावा मिला है। इससे तांबे जैसी मांग आधारित कमोडिटी के भाव में इजाफा हो रहा है। इन सबके बावजूद विश्लेषकों की चिंता अब भी अपनी जगह पर कायम है। उदाहरण के लिए मंगलवार को बाजार बंद होने के वक्त लंदन मेटल एक्सचेंज (एलएमई) में तांबे का स्टॉक 2,78,925 टन के उच्च स्तर पर था। गौरतलब है कि 13 जुलाई को तांबे का स्टॉक 2,56,900 टन के निचले स्तर पर था। इसके बाद तांबे का स्टॉक 27 जुलाई को 8 फीसदी बढ़कर 2,77,425 टन के स्तर पर पहुंच गया था। इस दौरान 3 महीने का कॉपर कॉन्ट्रैक्ट एलएमई में 4,895 डॉलर से बढ़कर 5,600 डॉलर प्रति टन के स्तर पर पहुंच गया था। इस तरह, तांबे के 3 महीने के कॉन्ट्रैक्ट में 14 फीसदी का इजाफा दर्ज हुआ है। इस पर विश्लेषकों का मानना है कि निकट भविष्य में तांबे में तेजी का जोर रहेगा। मुंबई की कमोडिटी और फॉरेक्स रिसर्च कंपनी कॉमट्रेंड्ज के निदेशक ज्ञानशेखर त्यागराजन के मुताबिक, 'मौजूदा हालात को देखते हुए अगर हम शेयर बाजार में और 15 फीसदी की तेजी की उम्मीद करते हैं तथा परस्पर संबंध का हमारा सिद्धांत सही है तो तांबे की कीमत में भी ऐसी ही तेजी दिख सकती है।' बिड़ला समूह की एक प्रमुख कंपनी के वरिष्ठ अधिकारी अरुण चोखानी यह तो नहीं बताते कि तांबे के भाव में कितनी तेजी आ सकती है लेकिन उनका कहना है कि इसकी कीमत अगले एक से डेढ़ महीने में और बढ़ सकती है। वह कहते हैं, 'डाओ के साथ सह संबंध तांबे की कीमत को ऊपर ले जा सकता है। इसलिए इसके उपभोक्ता और प्रतिभूति ट्रेडर अगले तीन या चार हफ्ते में अपने पोजीशन कवर (इंतजार करने के बजाय खरीदारी) कर सकते हैं।' (ET Hindi)

भरोसा डगमगाने से विदेश में तमाम जिंसों के दाम गिरे

पिछले पखवाड़े के दौरान बुधवार को पहली बार तमाम जिंसों के मूल्यों में गिरावट दर्ज की गई। अमेरिका में उपभोक्ताओं के भरोसे में कमी आने के कारण वित्तीय बाजारों में सुस्ती का माहौल है। कारोबारियों का कहना है कि लंबी अवधि तक बढ़त के बाद यह गिरावट सामान्य है। अमेरिकी उपभोक्ता भरोसा संबंधी जारी आंकड़ों के चलते कमोडिटी बाजार का रुख बदल गया। उपभोक्ताओं के भरोसे में कमी दर्ज की गई है। इसके अलावा डॉलर की मजबूती से भी कमोडिटी के मूल्यों में गिरावट को बल मिला। आखिरकार पिछले दो सप्ताह से चली आ रही तेजी लड़खड़ा गई और प्रमुख जिंसों के भावों में गिरावट रही। उपभोक्ता रुझान के आंकड़ों के असर से एशियाई बाजार भी नहीं बच पाए। एशियाई बाजार यूरोप की दिशा में ही चल रहे हैं। पिछले कुछ दिनों से तेज गति से बढ़त दर्ज कर रही कमोडिटीज को नीचे गिराने में इन आंकड़ों ने ऐसे समय में भूमिका निभाई, जब कीमतें साल के उच्चतम स्तर पर थीं। क्रूड ऑयल 1.4 फीसदी की गिरावट के साथ 66.49 डॉलर प्रति बैरल, कॉपर 4.2 फीसदी गिरकर 5,405 डॉलर प्रति टन और सोने के भाव 2.4 फीसदी की गिरावट के साथ 933.60 डॉलर प्रति औंस पर रहे। लंदन के आरबीसी कैपिटल मार्केट्स में बेस मैटल के प्रमुख एलेक्स हीथ ने कहा कि बाजारों में पिछले दो सप्ताह से लगातार बढ़त थी, ऐसे में आगे की मजबूती के लिए यह गिरावट आई है। अब बाजार की नजर अमेरिका के दूसरी तिमाही के जीडीपी नतीजों पर लगी हुई है। इस सप्ताह जारी किए गए कॉरपोरेट आय के आंकड़े नकारात्मक तस्वीर पेश कर रहे हैं। माइनिंग और ऑयल कंपनियों को पहली छमाही में घाटा हुआ है और साल के बाकी छह महीनों के लिए निष्कर्ष भी ज्यादा उत्साहजनक नहीं हैं। प्रमुख आर्थिक आंकड़े उम्मीद से कमजोर हैं। लेकिन इन सबके बावजूद उपभोक्ता बाजार की ओर लौट रहे हैं। (Business Bhaskar)

भारी बिकवाली से फीकी पड़ी सोने-चांदी की चमक

नई दिल्ली: वैश्विक बाजार में बहुमूल्य धातुओं की कीमतों में तेज गिरावट की आशंका में सोने के स्टॉकिस्टों की ओर से भारी बिकवाली के चलते इस पीली धातु की कीमत मुंबई में 220 रुपए प्रति दस ग्राम गिरकर 14,765 रुपए पर आ गई। दिल्ली में सोना 190 रुपए घटकर 14,990 रुपए प्रति दस ग्राम पर रहा। लंदन में बिकवाली के दबाव से सोने की कीमत एक सप्ताह से अधिक के निचले स्तर तक गिर गई। वहीं मजबूत होता डॉलर बहुमूल्य धातु की तुलना में बेहतर वैकल्पिक निवेश बनकर उभरा है। घरेलू बाजार में सोने की कीमत आमतौर पर वैश्विक बाजार से तय होती है। लंदन में सोना 1.42 डॉलर गिरकर 936.08 डॉलर प्रति औंस रह गया। कारोबार के दौरान एक बार यह 933.28 डॉलर प्रति औंस के निचले स्तर तक चला गया था, जो 17 जुलाई के बाद का सबसे निचला स्तर था।
पिछले दो कारोबारी सत्रों के दौरान स्टैंडर्ड सोना और ज्वैलरी सोने का भाव सकारात्मक बना हुआ था। ये दोनों सेगमेंट 190 रुपए की गिरावट के साथ क्रमश: 14,990 रुपए और 14,840 रुपए प्रति दस ग्राम पर आ गए। वहीं सॉवरेन 25 रुपए की कमजोरी के साथ 12,475 रुपए प्रति आठ ग्राम रहा। सोने की तरह ही चांदी में भी कमजोरी का भाव रहा। स्टॉकिस्टों ने जमकर चांदी की बिकवाली की। इंडस्ट्रियल इकाइयों और सिक्का निर्माताओं की तरफ से मांग कमजोर रही। चांदी तैयार 400 रुपए गिरकर 22,400 रुपए प्रति किलो रहा, वहीं साप्ताहिक डिलीवरी चांदी 540 रुपए की कमजोरी के साथ 22,220 रुपए प्रति किलो पर रहा। चांदी (100) सिक्का 200 रुपए की कमजोरी के साथ 29,300 रुपए (खरीद भाव) और 29,400 रुपए (बिक्री भाव) पहुंच गया। (ET Hindi)

निर्यात घटने से सोया मील के भाव और गिरने की संभावना

निर्यातकों के साथ ही घरेलू मांग कमजोर होने से सोया खली की कीमतों में गिरावट का रुख बना हुआ है। चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में निर्यात 75 फीसदी घटा है। इसीलिए पिछले दो महीने में इसकी कीमतों में करीब 17 फीसदी की गिरावट आ चुकी है। कांडला पोर्ट पर पहुंच सोयाखली के दाम 24,000 रुपये से घटकर 19,800 से 20,000 रुपये प्रति टन रह गए हैं। प्रमुख उत्पादक राज्यों मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में सोयाबीन की बुवाई तो बढ़ी ही है, साथ ही मौसम भी फसल के अनुकूल बना हुआ है। ऐसे में अक्टूबर तक इसकी मौजूदा कीमतों में और भी 15 से 20 फीसदी की गिरावट आने की संभावना है।सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सोपा) के प्रवक्ता राजेश अग्रवाल ने बिजनेस भास्कर को बताया कि सोयाखली में निर्यातकों की मांग काफी कमजोर है। विदेशों में सोयाबीन की अच्छी फसल को देखते हुए विदेशी आयातकों द्वारा खरीद सीमित मात्रा में ही की जा रही है। जिससे सोयाखली की गिरावट को बल मिल रहा है। देश के प्रमुख उत्पादक राज्यों मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में मौसम भी फसल के अनुकूल है। नई फसल तक मौसम ने साथ दिया तो सोयाबीन के उत्पादन में 10 से 15 फीसदी की बढ़ोतरी हो सकती है। कृषि मंत्रालय द्वारा हाल ही में जारी चौथे अग्रिम अनुमान के अनुसार वर्ष 2008-09 में देश में 99 लाख टन सोयाबीन के उत्पादन का अनुमान है। अग्रवाल के मुताबिक पिछले साल देश में 96 लाख हैक्टेयर में सोयाबीन की बुवाई हुई थी जबकि चालू सीजन में 20 जुलाई तक 87.5 लाख हैक्टेयर में बुवाई हो चुकी थी। चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में सोयाखली का निर्यात घटकर मात्र 2.73 लाख टन ही रहा है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 10.98 लाख टन का निर्यात हुआ था। जून महीने में निर्यात एक लाख टन का ही हुआ है तथा चालू महीने में निर्यात घटकर एक लाख टन से भी कम रहने की संभावना है। साई सिमरन फूड लिमिटेड के डायरेक्टर नरेश गोयनका ने बताया कि सोयाखली में पोल्ट्री फीड निर्माताओं की मांग काफी कमजोर है जबकि प्लांटों में स्टॉक ज्यादा है। अनुकूल मौसम से नई फसल के उत्पादन में बढ़ोतरी की संभावना से प्लांटों पर बिकवाली का दबाव बढ़ता जा रहा है।निर्यातकों की मांग वैसे ही कमजोर है। ऐसे में अक्टूबर तक सोयाखली की मौजूदा कीमतों में और भी 3000-4000 रुपये प्रति टन की गिरावट आने का अनुमान है। सोयाखली और तेल में उठान न होने से सोयाबीन की कीमतों में भी मंदे का रुख बना हुआ है। पिछले दो महीने में सोयाबीन की कीमतों में करीब 400 रुपये की गिरावट आकर प्लांट डिलीवरी भाव 2150-2200 रुपये प्रति क्विंटल रह गए। अक्टूबर तक सोयाबीन की कीमतें भी घटकर 1700-1800 रुपये प्रति क्विंटल के स्तर पर आने की उम्मीद है। (Business Bhaskar....R S Rana)

पहली तिमाही में मसाला निर्यात 19 फीसदी गिरा

चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही अप्रैल से जून के दौरान देश से मसाला निर्यात में 19 फीसदी की गिरावट आई है। भारतीय मसाला बोर्ड द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार इस दौरान 122,515 टन मसालों का निर्यात हुआ है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 150,920 टन मसालों का निर्यात हुआ था। बोर्ड के मुताबिक इस दौरान कालीमिर्च का निर्यात घटकर 5,000 टन का ही हुआ है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 7,430 टन का निर्यात हुआ था। भारत के मुकाबले वियतनाम की कालीमिर्च के भाव कम होने के कारण भारत से निर्यात घटा है। लालमिर्च का निर्यात चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में 44 फीसदी घटकर 37,500 टन का ही हुआ है जबकि पिछले साल की समान अवधि में लालमिर्च का निर्यात 67,100 टन का हुआ था। हालांकि इस दौरान इलायची के निर्यात में 67 फीसदी का इजाफा होकर कुल निर्यात 200 टन का हुआ है। पिछले साल की समान अवधि में इलायची का 120 टन का ही निर्यात हुआ था। धनिया के निर्यात में चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में 42 फीसदी की बढ़ोतरी होकर कुल निर्यात 14,500 टन का हुआ है। पिछले वर्ष की पहली तिमाही में धनिया का 10,245 टन का ही निर्यात हुआ था। (Business Bhaskar....R S Rana)

अच्छी बारिश से हिमाचल के सेब में और मिठास की आस बढ़ी

नई दिल्ली: पिछले दो-तीन दिनों में हिमाचल प्रदेश में हुई अच्छी बारिश अपने साथ मिठास का संकेत लेकर आई है। दरअसल इस बारिश से सेब की गुणवत्ता बेहतर होने की उम्मीद जताई जा रही है। हिमाचल प्रदेश के सेब की बड़ी खपत दिल्ली में होती है। इस वक्त दिल्ली में विदेश से आयातित सेब की आपूर्ति हो रही है। आयातित सेब की कीमत 125 रुपए प्रति किलो के करीब चल रही है जबकि हिमाचल से आने वाले सेब की कीमत 30 से 40 रुपए प्रति किलो रहती है। इस साल गर्मी ज्यादा पड़ने की वजह से सेब के उत्पादन में गिरावट की आशंका जताई जा रही है। हिमाचल प्रदेश के बागवानी विभाग के निदेशक डॉ. गुरुदेव सिंह के मुताबिक, 'हाल की बारिश से उत्पादन में तो कोई बढ़ोतरी नहीं होगी क्योंकि सेब की फसल तकरीबन तैयार हो चुकी है लेकिन इससे सेब की क्वॉलिटी जरूर बेहतर हो जाएगी।'
दिल्ली में हर रोज 500 से 700 ट्रक सेब आता है। सीजन के चरम पर रहने के दौरान तो यह आवक बढ़कर 1,000 ट्रक तक पहुंच जाती है। एक ट्रक में 10 टन सेब होता है। दिल्ली की प्रमुख फल-सब्जी मंडी आजादपुर एपीएमसी के सदस्य मेठाराम कृपलानी के मुताबिक, 'हिमाचल में बारिश होने से वहां सेब की क्वॉलिटी में सुधार होगा। इसके अलावा सेब का रंग भी बेहतर होगा।' कारोबारियों का मानना है कि हिमाचल में सेब की अच्छी फसल होने से दिल्ली में सेब की कीमतों में नरमी आनी तय है। हिमाचल प्रदेश देश का प्रमुख सेब उत्पादक राज्य है। यहां होने वाले कुल उत्पादन का करीब 90 फीसदी घरेलू बाजार में खप जाता है, जबकि बकाया 10 फीसदी हिस्से का निर्यात कर दिया जाता है। हिमाचल प्रदेश के अलावा कश्मीर और उत्तराखंड में भी सेब का उत्पादन होता है। कश्मीर में सेब का उत्पादन करीब 12 लाख टन सालाना रहता है। मॉनसून में देरी और बढ़ती गर्मी के चलते हिमाचल प्रदेश में सेब की फसल का उत्पादन पिछले साल के मुकाबले कम रहने की आशंका है लेकिन पिछले कुछ दिनों में हुई ठीक-ठाक बारिश ने सेब की क्वालिटी पर छाए संकट के बादलों को कुछ हद तक कम किया है। साल 2008 में हिमाचल प्रदेश में 2.6 करोड़ बॉक्स सेब का उत्पादन हुआ था। एक बॉक्स में 25 किलो सेब होता है। इस तरह से साल 2008 में हिमाचल में सेब का कुल उत्पादन 6.5 लाख टन रहा था। साल 2009 में आशंका जताई जा रही थी कि सेब उत्पादन घटकर 4.5 लाख टन पर आ जाएगा। भारतीय मौसम विज्ञान (आईएमडी) के मुताबिक अगले कुछ दिनों तक हिमाचल प्रदेश, कश्मीर और उत्तर भारत के दूसरे हिस्सों में बारिश जारी रह सकती है। ऐसे में सेब की फसल को फायदा मिलने के पूरे आसार दिखाई दे रहे हैं। (ET Hindi)

सरकारी खरीद से भी नहीं सुधरे खुले बाजार में कोपरा के दाम

सरकारी नोडल एजेंसी भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ मर्यादित (नैफेड) की भारी खरीद भी कोपरा के खुले बाजारों में भाव सुधारने में सफल नहीं हो पा रहे हैं। यही वजह है कि कोपरा के दाम न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से नीचे बने हुए हैं। उत्पादक राज्यों की थोक मंडियों में कोपरा के दाम 3200- 3500 रुपये प्रति क्विंटल चल रहे है। जबकि नारियल का एमएसपी 4,450 रुपये प्रति क्विंटल है। सरकार ने इस साल एमएसपी 790 रुपये बढ़ाया था।कोपरा के दाम एमएसपी से नीचे रहने की वजह नारियल तेल निर्माताओं की ओर से मांग में कमी को माना जा रहा है। चेन्नई के कोपरा उत्पादक किसान मुत्तुलिंगा के अनुसार देश में खाद्य तेलों का भारी आयात होने की वजह से नारियल तेल निर्माताओं की ओर से मांग में भारी कमी आई है। सॉल्वेंट एक्सट्रेक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के मुताबकि चालू तेल वर्ष में अब तक करीब 53 लाख टन खाद्य तेलों का आयात हो चुका है जो कि पिछली समान अवधि के मुकाबले 63 फीसदी अधिक है। मुत्तुलिंगा का कहना है कि मलेशिया से सस्ती दर पर पाम तेल का भारी आयात होने के कारण नारियल तेल के मूल्यों में गिरावट आ रही है। यही कारण है कि नारियल तेल निर्माताओं की ओर से मांग कम है। इसके अलावा आर्थिक सुस्ती के कारण नारियल तेल की मांग भी गिरी है। उधर नैफेड के प्रबंध निदेशक एस. के. रूंगटा ने बिजेनस भास्कर को बताया कि नैफेड चालू सीजन में अब तक 13,095 टन कोपरा की खरीद कर चुकी है। जिसमें से 11,848 टन मिलिंग कोपरा और 1,247 टन बाल कोपरा की खरीद हुई है। पिछले साल महज 189 टन कोपरा की सरकारी खरीद हुई थी। इसमें 174 टन मिलिंग कोपरा और 15 टन बाल कोपरा शामिल था। प्रबंध निदेशक के अनुसार चालू सीजन के दौरान कोपरा की सरकारी खरीद 25,000 टन होने का संभावना है। हाल ही में अंडमान और निकोबार में भी कोपरा की सरकारी खरीद शुरू हो चुकी है। कर्नाटक में कोपरा की क्वालिटी हल्की रहने के कारण इसकी खरीद देर से शुरू हुई थी।रूंगटा का कहना है कि नैफेड कम से कम 75 एमएम आकार वाले बाल कोपरा को ही एमएमपी पर खरीदता है जबकि कर्नाटक में बाल कोपरा का आकार घटकर 45 एमएम रह गया था। नैफेड ने इस आकार वाले बाल कोपरा की खरीद के लिए एमएसपी को 4700 रुपये घटाकर 4250 रुपये प्रति क्विंटल तय करने बाद खरीद शुरू की। देश में नारियल का उत्पादन मुख्य रूप से केरल, तमिलनाडु और कर्नाटक में होता है। विश्व में फिलीपींस और इंडोनेशिया में नारियल के प्रमुख उत्पादक देश है। पूरे विश्व का करीब 47 फीसदी नारियल का उत्पादन फिलीपींस में होता है। (Business Bhaskar)

दिल्ली में फीकी रही दालों की खुली बिक्री

नई दिल्ली July 29, 2009
दिल्ली में सस्ती दरों पर दालों की बिक्री का असर दिखने लगा है। अरहर दाल सर्वोत्तम की थोक कीमत घटकर 70 रुपये प्रति किलोग्राम हो गई है।
दस दिन पहले यह कीमत 80-82 रुपये प्रति किलोग्राम थी। हालांकि बुधवार को सस्ती दालों के स्टॉल पर आशा के अनुरूप काफी कम भीड़ देखने को मिली। बताया जा रहा है कि इन स्टॉलों के बारे में व्यापक प्रचार नहीं किया गया है।
दाल के एक थोक कारोबारी ने बताया कि जल्द ही खुदरा बाजार में अरहर के भाव 75 रुपये प्रति किलोग्राम हो सकते हैं। क्योंकि दिल्ली में 70 जगहों पर अरहर की दालें बिना किसी शर्त के खुले तौर पर 75 रुपये प्रति किलोग्राम बिक रही है।
वे कहते हैं कि बुधवार को भले ही दाल खरीदने वालों की भीड़ नहीं उमड़ी हो, लेकिन धीरे-धीरे इसका प्रचार हो जायेगा। सबसे बड़ी ब ात है कि सस्ती दरों पर इन दालों की बिक्री के लिए कोई समय सीमा तय नहीं है। (BS Hindi)

नुकसान की भरपाई के लिए दलहन की खेती

लखनऊ July 29, 2009
कमजोर मानसून की वजह से उत्तर प्रदेश में इस खरीफ मौसम में धान की पैदावार प्रभावित होने के आसार के बीच कृषि वैज्ञानिकों ने कहा है कि किसान अपने नुकसान की भरपाई दलहन से कर सकते हैं।
पार्याप्त बारिश के अभाव में अभी तक राज्य में मात्र 40-45 फीसदी धान की रोपाई हुई है, इस वजह से किसान अब दलहन और तिलहन पर अपना सारा ध्यान केंद्रित कर रहे हैं।
इस बाबत कृषि वैज्ञानिक एस एस सिंह ने कहते हैं, 'कम रोपाई की वजह से धान की पैदावार कम होगी, लेकिन दूसरी तरफ दलहन और तिलहन की पैदावार में बढ़ोतरी हो सकती है। चूंकि, इस समय मसूर की कीमतों काफी अधिक हैं, इस वजह से दलहन की साधारण पैदावार की स्थिति में भी किसान इसे अपने नुकसान की भरपाई आसानी से कर सकते हैं।'
हालांकि, उन्होंने कहा कि राज्य में धान के पैदावार इस साल काफी कम रहेगी। दूसरी तरफ धान की कम पैदावार की वजह से चावल की कीमतें आसमान छू सकती है।
इस बाबत उत्तर प्रदेश चावल मिल मालिक एसोसिएयान के सचिव पी सी कनोदिया कहते हैं 'चूंकि इस साल अन्य राज्यों में भी धान की पैदावार काफी कम रह सकती है, इससे चावल की कीमतों में बढ़ोतरी की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है।' पिछले साल उत्तर प्रदेश में धान की कुल पैदावार 135 लाख टन हुई थी। (BS Hindi)

सीमेंट उद्योग लगातार बुलंदी की ओर

मुंबई July 29, 2009
भारत के सीमेंट उद्योग का जबरदस्त प्रदर्शन लागतार जारी है। निर्माण कार्यों में प्रयुक्त वस्तुओं की मांग में बढ़ोतरी की वजह से लगातार पांचवें महीने यानी जुलाई में भी विकास दर का दहाई अंकों में रहना तय माना जा रहा है।
उल्लेखनीय है कि भारत का 2.26 करोड़ टन का सीमेंट उद्योग चीन के बाद विश्व में सीमेंट का दूसरा सबसे बडा बाजार है। सीमेंट उद्योग के विश्लेषक और सीमेंट निर्माता कंपनियों के अनुमान के अनुसार सीमेंट की आपूर्ति 11 फीसदी की दर पर बरकरार रह सकती है।
इस बाबत सीमेंट मैनुफेक्चरर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष हरि मोहन बांगड़ ने कहा,' जुलाई में सीमेंट की मांग में काफी बढ़ोतरी देखी गई है, हालांकि, जून की तुलना में यह कम जरूर है, लेकिन इसके बावजूद साल-दर-साल के आधार पर विकास दर 11 फीसदी के स्तर पर को छू लेगा। जून में आपूर्ति में 12.4 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई थी।'
इससे साफ संकेत मिल रहे हैं कि जुलाई में 160 लाख टन से अधिक सीमेंट की आपूर्ति होगी जो पिछले साल की समान अवधि में 145 लाख टन था। पिछले साल जुलाई में सीमेंट उद्योग की विकास दर 8.13 फीसदी दर्ज की गई थी।
हालांकि, इस साल मानूसन ने कुछ क्षेत्रों में सीमेंट की मांग पर असर जरूर पडा है लेकिन इससे कोई खास अंतर नहीं पड़ेगा। इस बाबत अंबुजा सीमेंट के व्यावसायिक और विपणन प्रमुख अजय क पूर कहते हैं 'मानसून ने कुछ क्षेत्रों में मांग को प्रभावित किया है लेकिन जुलाई में कमोबेश मांग बेहतर रहेगी।' (BS Hindi)

विदेशी निवेशकों को भाने लगीं चीनी की कंपनियां

नई दिल्ली July 29, 2009
चीनी क्षेत्र की हालत में सुधार को देखते हुए विदेशी संस्थागत निवेशकों ने शीर्ष चीनी कंपनियों बजाज हिन्दुस्तान, बलरामपुर चीनी और रेणुका शुगर्स में अपनी हिस्सेदारी में बढ़ोतरी की है।
विश्लेषकों का मानना है कि यह रुझान आगे भी जारी रह सकता है, क्योंकि मौजूदा और उसके बाद की तिमाहियों में इन कंपनियों का प्रदर्शन लगातार बेहतर रहने की संभावना है।
इस बाबत निवेश सलाहकार एस पी तुलसीयान कहते हैं 'ये सभी कंपनियां जबरदस्त मुनाफा कमा रही है जिसे देखते हुए चीनी क्षेत्र में निवेश की संभावना सामान्य से काफी अधिक है, साथ ही इन कंपनियों के प्रदर्शन में आगे भी सुधार होने की संभावना है।'
उत्पादन के पिछले तीन सालों के सबसे निचले स्तर पर पहुंचने के बाद चीनी की कीमतों में काफी इजाफा हुआ है, जिससे सभी चीनी कंपनियों के मुनाफे में खासी बढ़ोतरी हुई है। देश की सबसे बड़ी चीनी उत्पादक कंपनी बजाज हिन्दुस्तान को जून की तिमाही में 60.80 करोड रुपये मुनाफा हुआ है जबकि पिछले साल की समान अवधि में इसे 35.41 करोड रुपये का नुकसान उठाना पडा था।
इसी तरह, बलरामपुर चीनी का शुध्द मुनाफा 294 फीसदी की उछाल के साथ 66.29 करोड रुपये रहा। दिलचस्प बात है कि शुध्द बिक्री में कमी के बावजूद कंपनियों ने मुनाफा अर्जित किया हैं। पिछले साल अक्टूबर से सत्र की शुरुआत के साथ ही बाजार में चीनी की कीमतों में करीब 50 फीसदी की तेजी आई है और इस समय इसकी कीमत प्रति क्विंटल 2,375-2,400 रुपये है।
ऐसा मौजूदा सत्र (अक्टूबर-सितंबर) में चीनी के घरेलू उत्पादन में 44 फीसदी की कमी के कारण हुआ है जबकि घरेलू खपत 22 मिलियन टन है। मांग और आपूर्ति में इस बड़े अंतर को पाटने के लिए चीनी मिल मालिक बिना किसी शुल्क के कच्ची चीनी का आयात कर रहे हैं।
मौजूदा सत्र में चीनी का आयात अब तक के सबसे ऊंचे स्तर यानी 25 लाख टन को छू लेगा। दूसरी तरफ मानसून के कमजोर रहने की वजह से गन्ने की फसल पर इसका प्रतिकूल असर पड़ सकता है जिससे इस साल अक्टूबर से शुरू होने वाले सत्र में चीनी का उत्पादन 18-19 मिलियन टन के आरंभिक अनुमानों से कम हो सकता है। (BS Hindi)

29 जुलाई 2009

हर साल बर्बाद हो जाता है 500 अरब रुपए का खाद्यान

नई दिल्ली: मॉनसून की पतली हालत से खेती-बाड़ी की सेहत बिगड़ने की आशंका के बीच सरकार ने सोमवार को स्वीकार किया कि भारत में हर साल 50,000 करोड़ रुपए का खाद्यान्न इस वजह से नष्ट हो जाता है, क्योंकि फसल की मड़ाई के बाद उसे संभाल कर रखने की व्यवस्था बेहद घटिया है। खाद्य प्रसंस्करण मंत्री सुबोध कांत सहाय ने राज्यसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में कहा, 'मड़ाई के बाद विभिन्न स्तरों पर बर्बादी के कारण करीब 50,000 करोड़ रुपए का खाद्यान्न नष्ट हो जाता है।' सहाय ने कहा कि खेतों के छोटे आकार, कृषि उत्पाद विपणन (विकास एवं नियमन) कानून के प्रावधानों और कोल्ड चेन, परिवहन, भंडारण और प्रसंस्करण सुविधाओं के अभाव के कारण खाद्यान्न की यह बर्बादी होती है। इस घटनाक्रम पर कमोडिटी विश्लेषकों ने आशंका जताई कि फसल की इतने बड़े पैमाने पर हो रही बर्बादी से खाद्य सुरक्षा कानून लागू करने की सरकार की योजना को पलीता लग सकता है, खासतौर पर ऐसे वक्त जब खराब मॉनसून के कारण कृषि उत्पादन घटने की आशंका प्रबल हो गई है।
कमोडिटी ब्रोकरेज कार्वी कॉमट्रेड में रिसर्च हेड अरबिंदो प्रसाद ने कहा, 'मड़ाई के बाद उपज की इतने बड़े पैमाने पर बर्बादी खाद्य सुरक्षा कानून से जुड़ी योजना में बाधा बन सकती है, क्योंकि मॉनसून की खराब स्थिति के कारण फसलों पर बुरा असर पड़ने की आशंका पहले ही बन चुकी है। सरकार को भंडार गृहों में होने वाले नुकसान सहित विभिन्न क्षेत्रों की खामियां दूर करने के लिए तुरंत उठाना चाहिए।' राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने पिछले महीने कहा था कि केन्द्र राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून बनाएगा जिसके तहत गरीबी रेखा से नीचे जीवन-यापन करने वाले हर परिवार को हर महीने 3 रुपए प्रति किग्रा. की दर से 25 किग्रा. राशन दिया जाएगा। एक अन्य कमोडिटी विश्लेषक ने कहा, 'कृषि उत्पादन मॉनसून पर ही निर्भर करता है। लिहाजा बारिश की खराब हालत के इस दौर में केंद्र को मड़ाई के बाद उपज की बर्बादी रोकने के लिए तुरंत उपाय करने चाहिए।' खाद्य एवं कृषि मंत्री शरद पवार ने पिछले सप्ताह संसद में कहा था कि मॉनसून की लचर हालत के कारण इस खरीफ सीजन में धान का उत्पादन प्रभावित हो सकता है। (ET Hindi)

मॉनसून की बारिश का पैदावार पर नहीं होता ज्यादा असर

July 28, 2009
अक्सर अच्छी फसल होने की संभावना को मॉनसून से जोड़ दिया जाता है।
दूसरी ओर सामान्य से कम बारिश को उत्पादन में कमी के संकेत के तौर पर देखा जाता है। लेकिन, पिछले रिकॉर्ड पर नजर दौड़ाएं तो यह संबंध बिल्कुल सीधा नहीं लगता। इसके बावजूद मॉनसूनी बारिश और फसल के उत्पादन के बीच सह संबंध है।
मॉनसून उन कई कारकों में से एक है जो कृषि उत्पादन को तय करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसके अतिरिक्त, मॉनसून के मामले में, बारिश का पैटर्न फसलों के उत्पादन के नजरिये से ज्यादा मायने रखता है, न कि कुल बारिश।
संलग्न तालिका, जो विभिन्न वर्षों में मॉनसूनी बारिश और खाद्यान्न के उत्पादन को प्रदर्शित करती है, से स्पष्ट संकेत मिलता है कि कम बारिश होने पर भी फसल की अपेक्षाकृत अधिक पैदावार होने की संभावना बनती है। इसकी ठीक विपरीत परिस्थिति होना भी उतना ही संभव है।
वर्तमान दशक में, मॉनसूनी बारिश और खाद्यान्न के उत्पादन में भारी उतार-चढ़ाव देखे गए हैं। लेकिन अधिकांश मामलों में बारिश और खाद्यान्न उत्पादन के बीच कोई तारतम्य नहीं रहा है। साल 2000 और 2001 में मॉनसूनी बारिश सामान्य की तुलना में एक जैसी 92 प्रतिशत रही।
लेकिन एक तरफ साल 2000 में जहां खाद्यान्न उत्पादन मुश्किल से 1,968 लाख टन रहा वहीं साल 2001 में यह 2,129 लाख टन रहा। साल 2001 का खाद्यान्न उत्पादन साल 2000 की तुलना में 160 लाख टन या 8 प्रतिशत अधिक रहा।
साल 2005 में सामान्य की तुलना में 99 प्रतिशत बारिश हुई जो साल 2001 के 92 प्रतिशत की तुलना में कहीं बेहतर थी। लेकिन साल 2005 का खाद्यान्न उत्पादन (2086 लाख टन) साल 2001 (2129 लाख टन) की तुलना में कम रहा।
अब साल 2003 और 2006 का उदाहरण ही देखिए। साल 2003 में बारिश सामान्य की तुलना में 102 प्रतिशत हुई थी और खाद्यान्न उत्पादन 2131 लाख टन रहा। साल 2006 में दो प्रतिशत कम बारिश हुई लेकिन खाद्यान्न उत्पादन में लगभग 40 लाख टन की बढ़ोतरी हुई थी और यह 2173 लाख टन रहा।
पिछले दो सालों के चलन को देखें तो मॉनसूनी बारिश और फसलों के उत्पादन के बीच सीधा सह-संबंध नजर नहीं आता। साल 2007 में सामान्य की तुलना में 106 प्रतिशत बारिश हुई थी। 2308 लाख टन के खाद्यान्न उत्पादन ने भी इस साल एक नया रिकॉर्ड बनाया।
इन वर्षों के दौरान साल 2008 में वर्षा के स्तर में 8 फीसदी की गिरावट देखी गई - इसके परिणामस्वरूप 2008 में मॉनसून सामान्य स्तर का 98 फीसदी था। हालांकि खाद्यान्न का उत्पादन नई ऊंचाई 2339 लाख टन पर पहुंच गया। ( 21 जुलाई को कृषि मंत्रालय द्वारा जारी साल 2008-09 के चौथे अग्रिम अनुमान के मुताबिक)
वास्तव में इस धारणा के बावजूद कि जुलाई में होने वाली बारिश फसल के उत्पादन के लिए महत्त्वपूर्ण होती है, इसमें पिछले साल भी कमी देखी गई थी। जुलाई 2008 में बारिश में 17 फीसदी की कमी से कृषि उत्पादन की बाबत चिंता जताई गई थी। लेकिन 2008-09 का उत्पादन अब तक के सर्वोच्च स्तर पर रहा था।
इस विश्लेषण से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि सामान्य से कम मॉनसूनी बारिश के बाद भी फसलों में अच्छी बढ़त देखी जा सकती है, अगर अन्य परिस्थितियां अनुकूल हों। वर्षा की मात्रा और वितरण के अलावा जलवायु के दूसरे तत्त्व मसलन तापमान और आर्द्रता भी महत्त्वपूर्ण होते हैं।
जलवायु के तत्त्वों के अलावा दूसरी चीजें भी समान रूप से महत्त्वपूर्ण होती हैं मसलन बीज, खाद, सिंचाई और पौधों की रक्षा करने वाले रसायन, कृषिशास्त्र व फसल प्रबंधन से जुड़ी प्रथा, तकनीक और बीमारी व कीटनाशक के प्रभाव आदि। ऐसे में सिर्फ बारिश के आधार पर फसलों के उत्पादन के अनुमान पर फैसला सामने रखना गलत हो सकता है। (BS Hindi)

अल्यूमीनियम का स्टॉक 15 फीसदी गिरा

सिंगापुर. जापान के प्रमुख बंदरगाहों पर जून के दौरान अल्यूमीनियम के स्टॉक में कमी देखी गई। कारोबारियों के मुताबिक चीन को निर्यात में बढ़ोतरी होने के कारण स्टॉक में करीब 15 फीसदी की कमी दर्ज की गई है। पिछले चार महीनों से चीन के लिए निर्यात बढ़ने से यहां के बंदरगाहों पर अल्यूमीनियम के स्टॉक में लगातार कमी आ रही है। वहीं दूसरी तिमाही के दौरान यहां आयात में भी गिरावट आई है। जिसका असर अल्यूमीनियम के स्टॉक पर पड़ा है। जून के अंत में यहां करीब 207,600 टन अल्यूमीनियम का स्टॉक रहा। जिसमें से करीब 106,900 टन योकोहामा में, 87,900 टन नागोया में और 12,800 टन ओसाका में स्टॉक था। हालांकि पिछले साल जून के मुकाबले यह स्टॉक करीब 2.6 फीसदी ज्यादा था। आने वाले दिनों में यहां स्टॉक में और कमी आ सकती है। करीब 200,000 टन अल्यूमीनियम का औसत स्टॉक माना जा रहा है। इस साल जून में अल्यूमीनियम के उत्पादन में करीब 30 फीसदी की गिरावट आने की भी संभावना जताई जा रही है। ऐसे में इस महीने के अंत तक अल्यूमीनियम के स्टॉक में और कमी आने की संभावना है। कारोबारियों के मुताबिक जुलाई के अंत मे स्टॉक करीब 1.80 से 1.90 लाख टन के बीच रह सकता है। हालांकि वैश्विक स्तर पर कम मांग और लंदन मेटल एक्सचेंज में इन्वेंट्री बढ़ने के बावजूद पिछले कु छ महीनों में अल्यूमीनियम की कीमतें तेजी से बढ़ी हैं। ऐसे में तीसरी तिमाही के दौरान इसका औसत भाव करीब 1,500 डॉलर प्रति टन रहने की संभावना है। मंलवार को एलएमई में अल्यूमीनियम की इन्वेंट्री करीब 4,448,850 टन रही। इस साल जनवरी के बाद से इसमें करीब 90 फीसदी का इजाफा हो चुका है। कारोबारियों का मानना है कि मौजूदा स्टॉक के लिहाज से अल्यूमीनियम का बेहतर भाव चालू साल के अंत तक ही देखने को मिल सकेगा। (Business Bhaskar)

ड्यूटी फ्री रॉ शुगर जुलाई के बाद भी आयात करने की इजाजत

सरकार ने ड्यूटी फ्री रॉ शुगर आयात करने की अनुमति एक अगस्त से भी आगे जारी रखने का फैसला किया है। रॉ शुगर के आयात के लिए निर्यात की कोई शर्त नहीं होगी। सरकार ने चीनी आयात करने के लिए सरकारी कंपनियों की अनुमति भी जारी रखने का फैसला किया है। ये कदम देश में चीनी की सुलभता बढ़ाने के लिए उठाए गए हैं।अधिकारिक सूत्रों ने बताया कि इन फैसलों की पुष्टि की है लेकिन यह नहीं बताया है कि आयात की यह अनुमति कब तक के लिए होगी। ये फैसले पिछले सप्ताह हुई केबिनेट की बैठक में लिए गए। उम्मीद है कि कृषि व खाद्य मंत्री शरद पवार मंगलवार को संसद में इन फैसलों की घोषणा कर सकते हैं। देश में हल्की बारिश होने के कारण एक अक्टूबर से शुरू हो रहे नए सीजन में भी चीनी का उत्पादन कम रहने की आशंका के बीच सरकार ने फैसला किया है। 17 जुलाई तक गन्ने की बुवाई का रकबा 42.50 लाख हैक्टेयर रहा जबकि पिछले साल इस तारीख तक 43.79 लाख हैक्टेयर में बुवाई हो गई थी। सरकार ने चीनी उत्पादन में कमी आने की आशंका पैदा होने पर पिछले अप्रैल में रॉ शुगर के आयात पर देय 60 फीसदी शुल्क हटा दिया था। इसके अलावा सरकार ने ओपन जनरल लाइसेंस (ओजीएल) के तहत रॉ शुगर आयात करने की अनुमति दी थी। ओजीएल के तहत आयात होने पर निर्यात की कोई शर्त नहीं होती है। सरकार ने यह अनुमति 31 जुलाई तक के लिए दी थी। इसके अलावा एक अगस्त से पहले दस लाख टन चीनी आयात करने के लिए सरकारी कंपनियों एमएमटीसी, एसटीसी व पीईसी को अनुमति दी थी।उद्योग के जानकारों के मुताबिक देश में अब तक 16.81 लाख टन रॉ शुगर का आयात हो चुका है। इस महीने के अंत तक 1.65 लाख टन रॉ शुगर और प्राप्त हो जाएगी। चीनी मिलें अब तक करीब 29 लाख टन रॉ शुगर के आयात के लिए अनुबंध कर चुकी है। इसी तरह सरकारी कंपनियां 1.15 लाख टन चीनी आयात के अनुबंध कर चुकी हैं। इसमें से 53,550 टन चीनी का आयात भी कर चुकी हैं। इस महीने के अंत तक कुल 79,605 टन चीनी का आयात हो जाएगा। देश में चीनी का उत्पादन मौजूदा सीजन के दौरान घटकर 155 लाख टन रहने के कारण तेजी का रुख बना हुआ है। इसी कारण चीनी की सुलभता बढ़ाने के लिए सरकार ने कदम उठाए। पिछले सीजन में देश में 264 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ था। देश में करीब 225 लाख टन चीनी की खपत होती है। उत्पादन घटने के कारण चीनी के दाम एक साल में 16-17 रुपये से बढ़कर 27-30 रुपये प्रति किलो तक पहुंच गए। (Business Bhaskar)

एमपी में सोयाबीन की बुवाई सुधरी, रिकार्ड उपज की आशा

हालत ठीक रहे तो इस बार मध्य प्रदेश में सोयाबीन की रिकार्ड पैदावार होने के अनुमान हैं। कृषि विभाग के आंकड़ों के अनुसार चालू खरीफ सीजन में निर्धारित लक्ष्य से भी एक लाख हैक्टेयर ज्यादा क्षेत्र में सोयाबीन की बुवाई हुई है। वहीं धान के मामले में जरूर अभी तक बुवाई लक्ष्य के मुकाबले आधी ही हो पाई है। लेकिन विभाग का कहना है कि कुछ ही दिनों में लक्ष्य के मुताबिक धान की बुवाई हो जाएगी।कृषि विभाग के उप संचालक पी. के. जैन ने बताया कि खरीफ सीजन 2009 के लिए 106.7 लाख हैक्टेयर में बुवाई का लक्ष्य रखा गया था। जिसमें से 95 लाख हैक्टयर में खरीफ फसलों की बुवाई हो चुकी है। खास बात यह है कि इस साल पिछले वर्ष के मुकाबले सात लाख हैक्टेयर ज्यादा क्षेत्र यानि 50.5 लाख हैक्टेयर में सोयाबीन की बुवाई का लक्ष्य था। लेकिन सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 51.74 लाख हैक्टेयर क्षेत्र में सोयाबीन की बुवाई हो चुकी है जो कि निर्धारित लक्ष्य से करीब एक लाख हैक्टेयर ज्यादा है।इस आधार पर प्रदेश में सोयाबीन के रिकार्ड उत्पादन की उम्मीद की जा रही है। सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के प्रवक्ता राजेश अग्रवाल का कहना है कि अभी तक फसल की हालत बहुत अच्छी है। लेकिन अगस्त और सितंबर की बारिश ही सोयाबीन के उत्पादन की दिशा तय करेगी। उन्होंने कहा कि पिछले वर्ष भी देश भर में करीब 95.5 लाख हैक्टेयर में बुवाई की गई थी। लेकिन बाद में बारिश कम होने के कारण उत्पादन कमजोर रह गया था। उन्होंने कहा कि अगर इस बार बारिश ने साथ दिया तो सोयाबीन का रिकार्ड उत्पादन तय है।प्रदेश में खरीफ फसलों की बुवाई भले ही लक्ष्य के करीब पहुंच गई हो। लेकिन धान के मामले में अब तक लक्ष्य का आंकड़ा आधा ही हासिल हो पाया है। वैसे भी पिछले साल की 17.5 लाख हैक्टेयर की तुलना में इस वर्ष धान का लक्ष्य 16.25 लाख हैक्टेयर रखा गया है जो कि करीब एक लाख हैक्टेयर कम हैं।लक्ष्य में कमी के बावजूद अब तक 8.88 लाख हैक्टेयर में ही धान की बुवाई हो पाई है। हालांकि कृषि विभाग का कहना है कि 15 अगस्त तक धान की बुवाई की जा सकती है। जिसके चलते जल्द ही धान की बुवाई का लक्ष्य भी पूरा हो जाएगा। लेकिन प्रदेश में धान के पौधों की रोपाई के लिए खेत में पानी भरा रहना जरूरी है। ऐसी स्थिति में अगर आने वाले दिनों में बारिश नहीं हुई तो धान की बुवाई पिछड़ सकती है। बारिश की अनियमितता के चलते देशभर में धान की बुवाई प्रभावित हुई है। (Business Bhaskar)

मूंगफली का उत्पादन 40 फीसदी घटने का अंदेशा

गर्मियों के सीजन की मूंगफली के उत्पादन में इस साल 40 फीसदी तक की भारी गिरावट आ सकती है। उद्योग जगत से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि मूंगफली की बुवाई के रकबे में कमी और कुछ स्थानों पर भारी बारिश होने के कारण फसल को नुकसान हुआ है। इससे उत्पादन में भारी गिरावट रह सकती है।इंडियन ऑयल सीड्स प्रोड्यूस एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के चेयरमैन संजय शाह ने कहा कि यह एक अजीब स्थिति है। जब देश के ज्यादातर क्षेत्र बारिश की कमी से जूझ रहे हैं। वहीं गुजरात के कुछ हिस्सों में ज्यादा बारिश के कारण मूंगफली उत्पादन प्रभावित हो रहा है। भारत ने 31 मार्च को समाप्त विपणन वर्ष में 75 लाख टन मूंगफली का उत्पादन किया था। इसमें से गर्मी सीजन की बुवाई से 55 लाख टन का उत्पादन हुआ था। गुजरात मूंगफली उत्पादन में देश में अव्वल है। मूंगफली के कुल उत्पादन का 40 फीसदी अकेले गुजरात में होता है। गुजरात के प्रमुख मूंगफली उत्पादक क्षेत्र सौराष्ट्र में एक जून से 22 जुलाई तक सामान्य से 50 फीसदी ज्यादा बारिश हुई है। शाह ने कहा कि देश के दूसरे प्रमुख भागों में किसानों ने मूंगफली छोड़कर कॉटन और दालों की बुवाई शुरू कर दी है। इससे भी उत्पादन घट सकता है। आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और महाराष्ट्र अन्य प्रमुख मूंगफली उत्पादक राज्य हैं। इन राज्यों में किसानों ने मूंगफली छोड़कर अन्य फसलों की ओर रुख कर लिया है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इस वर्ष 1 जून से 16 जुलाई तक मूंगफली की बुवाई का रकबा घटकर 25 लाख हैक्टेयर रह गया है जबकि गत वर्ष इस दौरान 27.6 लाख हैक्टेयर में मूंगफली की बुवाई की गई थी। (Business Bhaskar)

मौसम सुधरने से जुलाई के बाद चाय के दाम गिरने की उम्मीद

पिछले दिनों चाय उत्पादक राज्यों में अच्छी बारिश होने के कारण इसके दामों में गिरावट आने की उम्मीद है। अभी तक उत्पादन कम रहने के कारण चाय के दाम पिछले छह माह के दौरान 30 फीसदी तक बढ़ चुके हैं। टी बोर्ड के मुताबिक पिछले साल से पहले मौसम अनुकूल न रहने के कारण मई माह तक चाय की पैदावार में 10 फीसदी की गिरावट आई। उद्योग के जानकारों द्वारा चाय की पैदावार में सुधार होने की उम्मीद जताई जा रही है। दरअसल जुलाई-सितंबर के दौरान सबसे अधिक चाय का उत्पादन होता है। भारतीय टी बोर्ड के अधिकारी कहना है कि बीते दिनों में चाय उत्पादक इलाकों में बारिश होने से चाय उत्पादन सुधरने की उम्मीद है। अधिकारी के अनुसार जून में मई मुकाबले अधिक चाय उत्पादन होने की संभावना है। ऐसे में चाय की कीमतों में गिरावट आ सकती है। खेतान का कहना है कि जुलाई माह के बाद चाय की कीमतों में गिरावट आने लगेगी।लेकिन पिछले छह माह के दौरान चाय के दाम में जोरदार तेजी दर्ज की गई। भारतीय टी बोर्ड के आंकड़ों के अनुसार जनवरी में चाय के औसत नीलामी भाव 86 रुपये प्रति किलो थे जो अब 112 रुपये प्रति किलो हो चुके है। वहीं पिछले साल जुलाई में इसकी नीलामी भाव 88 रुपये प्रति किलो थे। इंडियन टी एसोसिएशन (आईटीए) के चैयरमेन आदित्य खैतान ने बिजनेस भास्कर को बताया कि सीजन की शुरूआत में बारिश कम होने के कारण चाय का उत्पादन पिछले साल के मुकाबले लगातार घट रहा है। इस वजह से जनवरी से लेकर अब चाय के दाम 30 फीसदी तक बढ़ चुके हैं। उनका कहना है कि चालू वर्ष में भारत के अलावा अन्य चाय उत्पादक देश श्रीलंका, केन्या में भी चाय उत्पादन कम हुआ है। चाय उत्पादन कम होने के कारण इसके दाम पिछले साल के मुकाबले काफी बढ़ चुके है। श्रीलंका में जनवरी-जून के दौरान पिछली समान अवधि के मुकाबले उत्पादन 23.8 फीसदी घटकर 13.05 करोड़ किलो रहा। भारतीय चाय बोर्ड के आंकड़ों के अनुसार जनवरी-मई के दौरान चाय उत्पादन करीब दस फीसदी घटकर 21.58 करोड़ किलो रह गया है। पिछली समान अवधि में यह आंकडा़ 24.02 करोड़ किलो था। हालांकि अप्रैल के मुकाबले मई में चाय की पैदावार 14 फीसदी सुधरकर 7.13 करोड़ किलो रही। अप्रैल में मार्च के मुकाबले चाय की कीमतें 50 फीसदी तक बढ़ गई थी। इसके अलावा थोक में चाय के दाम बढ़ने के कारण चाय कंपनियों ने भी कीमतों में बढ़ोतरी की थी। इस दौरान बाघ बकरी समूह ने पैकेट बंद चाय के मूल्य में 60 रुपये प्रति किलो की बढ़ोतरी करके की थी और भाव 179 रुपये प्रति किलो तय किया। जबकि लोचन टी कंपनी पैकेज्ड चाय की कीमतें 50 रुपये बढ़ाकर 170 रुपये प्रति किलो कर दी थी। चाय उत्पादन घटने की वजह से वर्ष 2008 में 98.08 करोड़ किलो चाय का उत्पादन हुआ था। जबकि वर्ष 2007 में यह आंकडा 94.46 करोड़ किलो रहा। (Business Bhaskar)

कम बारिश से धान का बुवाई रकबा 27प्रतिशत गिरा

कृषि व खाद्य मंत्री शरद पवार ने कहा है कि मानसूनी बारिश कम होने के कारण धान की रोपाई इस साल 27 फीसदी पिछड़ गई है। इसके अलावा गन्ने की भी बुवाई करीब 2.5 फीसदी कम क्षेत्र में हो पाई है। गन्ने के बुवाई रकबे में आई कमी से कहीं ज्यादा गिरावट इसके उत्पादन में हो सकती है क्योंकि उत्पादक इलाकों में बारिश की कमी से फसल पर बुरा असर पड़ने का अंदेशा है। इन हालातों के बावजूद पवार ने कहा है कि घबराने की कोई जरूरत नहीं है क्योंकि अगस्त में बेहतर बारिश होने की पूरी उम्मीद है।पवार ने मंगलवार को लोकसभा में सूखे पर हुई चर्चा के जवाब में बताया कि देश में अब तक सिर्फ 156 लाख हेक्टेयर में धान की रोपाई हो पाई है, जबकि पिछले साल अब तक 217 लाख हेक्टेयर में रोपाई हो गई थी। 22 जुलाई तक मानसूनी बारिश में 19 फीसदी की कमी दर्ज की गई है। पवार ने कहा कि देश में 300 लाख टन चावल और 251 लाख टन गेहूं की सरकारी खरीद होने से खाद्यान्न की किल्लत होने की आशंका नहीं है।बारिश की संभावनाओं के बारे में पवार ने बताया कि मौसम विभाग के अनुसार अगस्त माह में बेहतर बारिश हो सकती है। अगस्त के हालात देखने के बाद ही सरकार परिस्थितियों पर विचार करेगी और ठोस फैसला करेगी। पवार ने गन्ने की बुवाई के बारे में कहा कि चीनी के इस कच्चे माल की बुवाई 438 लाख हेक्टेयर के बजाय 427 लाख हेक्टेयर में हो पाई है। (Business Bhaskar)

तीन हफ्तों के उच्चतम स्तर पर गया कच्चा तेल

लंदन: कच्चे तेल में तेजी जारी है। सोमवार को लगातार तीसरे दिन इसकी कीमतों में उछाल आया और यह तीन हफ्तों के सबसे ऊपरी स्तर पर पहुंच कर 69 डॉलर प्रति बैरल हो गया। असल में कच्चे तेल के इस स्तर के पीछे आर्थिक स्थिति सुधरने की उम्मीद के कारण शेयर बाजारों का आगे बढ़ना है। आस है कि आर्थिक हालात बेहतर होने से कच्चे तेल की मांग बढ़ेगी। पिछले आठ महीनों को देखें तो यूरोपीय शेयरों के दाम अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच चुके हैं। उम्मीद से बेहतर आमदनी के कारण ऐसा हुआ। एशियाई शेयर बाजारों में भी तेजी का रुख बना हुआ है। बीते नौ कारोबारी सत्रों में से आठ में अमेरिकी कच्चे तेल के दाम बढ़े हैं। सोमवार को इसमें 58 सेंट की तेजी आई और यह 68.63 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गया।
पूरे दिन के कारोबार के दौरान कीमत 68.99 डॉलर के स्तर पर पहुंच गई। 2 जुलाई के बाद से यह उच्चतम स्तर है। ब्रेंट क्रूड के दाम 61 सेंट बढ़कर 70.93 डॉलर पर पहुंच गए। पेट्रोमैट्रिक्स में ऑयल एनालिस्ट ओलिवर जैकब ने कहा, 'अभी नतीजों का मौसम चल रहा है और अमेरिका से भी आंकड़े आने अभी बाकी है। शेयरों की कीमत बढ़ने से तेल बाजार में भी तेजी आने की संभावना है।' पिछले कुछ महीनों से तेल और कमोडिटी बाजार शेयर बाजारों पर नजर बनाए हुए हैं। विश्लेषकों को लग रहा है कि अब आर्थिक हालात में थोड़ा सुधार हो रहा है। आर्थिक गिरावट के दौरान पूरी दुनिया में कच्चे तेल की मांग कम हुई जो पिछले 25 सालों में पहली बार देखने को मिला। इस हफ्ते एक्सॉन मोबिल, होंडा मोटर, मोटोरोला, डोएचे बैंक और बीपी के नतीजे आए। साथ ही अमेरिका में नए घरों की बिक्री और सकल घरेलू उत्पाद के भी आंकड़े भी सामने आए। दूसरी ओर एशियाई अर्थव्यवस्थाओं में भी हालात तेजी से सुधर रहे हैं। इस मामले में चीन सबसे आगे है। कुछ विश्लेषकों का कहना है कि इसके चलते आने वाले महीनों में कच्चे तेल की कीमतों को और समर्थन मिलेगा। बार्कलेज कैपिटल का कहना है, 'एशिया में जिस तेजी से सुधार होगा उसका असर तेल उत्पादों पर पड़ेगा। किसी दूसरे क्षेत्र के मुकाबले आर्थिक हालात सुधरने के साथ एशिया में तेल की मांग में ज्यादा इजाफा होता है। एशियाई देशों की अर्थव्यवस्थाएं अनुमान से बेहतर गति से सुधर सकती हैं।' गोल्डमैन सैक्स का कहना है कि इस साल के अंत तक अमेरिकी कच्चे तेल के दाम 85 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच सकते हैं। रॉयटर्स के एक सर्वे के मुताबिक बीते दो सालों के मुकाबले 2010 में पूरी दुनिया में तेल की खपत बढ़ेगी। वैश्विक अर्थव्यवस्था में सुधार आने से तेल की मांग में इजाफा होगा। दिसंबर में तेल के दाम चार सालों के न्यूनतम स्तर 32.40 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गए थे। (ET Hindi)

आंध्र प्रदेश में अब सहकारी मॉडल से लहलहाएगी खेती

हैदराबाद: आंध्र प्रदेश में सहकारी कृषि को खेती-बाड़ी के विकास के नए मंत्र के रूप में आजमाया जाएगा। पिछले पांच साल में राज्य में कृषि की वृद्धि दर 6.4 फीसदी रही है जो 4 फीसदी के राष्ट्रीय औसत से काफी ज्यादा है। उत्पादन में बढ़ोतरी के दम पर आंध्र प्रदेश राष्ट्रीय खाद्य भंडार में योगदान करने वाला दूसरा सबसे बड़ा राज्य बन गया। प्रदेश सरकार ने कहा कि अब किसानों को आधुनिकतम प्रौद्योगिकी, बढि़या खाद-बीज, समय पर कर्ज और मड़ाई के बाद की उपयुक्त सुविधाओं के साथ बाजार संबंधी जानकारी मुहैया कराना शीर्ष प्राथमिकता है ताकि उनकी आमदनी बढ़ सके। इसके लिए सहकारी कृषि को जरिया बना जाएगा। प्रदेश के हर जिले के दो गांवों में यह योजना प्रयोगात्मक आधार पर शुरू की जाएगी।
इस योजना की बुनियादी बात यह है कि किसान की जमीन और उस पर उसका मालिकाना हक एक सहकारी समिति के हवाले कर दिए जाएंगे। प्रदेश सरकार ने प्रस्ताव किया है कि किसान अपनी हिस्सेदारी सहकारी समिति के सदस्यों को बेच सकेंगे। अगर वे सदस्य यह हिस्सेदारी खरीदने को इच्छुक न हों तो उसे सरकार बाजार भाव पर खरीद लेगी। देश के अन्य हिस्सों में चल रही डेयरी सहकारी समितियों की तर्ज पर बनाई जा रही इस योजना से अपेक्षाकृत कम जमीन वाले किसानों की मुश्किलों का काफी हद तक निपटारा होने की उम्मीद की जा रही है। कृषि क्षेत्र से आमदनी बढ़ाने के मकसद से सरकार ने सिंचाई योजनाओं के लिए 17,800 करोड़ रुपए और बिजली सब्सिडी की मद में 6,040 करोड़ रुपए तय किए थे। प्रदेश के वित्त मंत्री ने कहा कि सरकार की महत्वाकांक्षी योजना जलयज्ञम से सिंचाई सुविधाओं में बढ़ोतरी होगी। सरकार ने इन योजनाओं को समय से पूरा करने का वायदा किया है। इसके अलावा सरकार ने कृष्णा जल विवाद न्यायाधिकरण की ओर से लगाए गए प्रतिबंधों में ढील मिलने के बाद महबूबनगर, नलगोंडा, प्रकाशम और कुर्नूल जिलों में अतिरिक्त सुविधाओं के सृजन का प्रस्ताव किया है। प्रदेश 2004-09 के दौरान 8.98 फीसदी की सालाना वृद्धि दर के साथ खाद्यान्न उत्पादन किया जबकि इस अवधि में राष्ट्रीय औसत 1.9 फीसदी रहा। राष्ट्रीय चावल भंडार में राज्य अपने कुल चावल उत्पादन का करीब 60 फीसदी हिस्सा देता है। (ET Hindi)

बारिश में सुधार से बंधी अच्छी फसल की उम्मीद

नई दिल्ली: पिछले दो दिनों में पंजाब, हरियाणा समेत उत्तर भारत के कई हिस्सों में हुई अच्छी बारिश से फसलों को राहत मिलने की उम्मीद है। देर से ही सही, पर इस बारिश ने फसलों के उत्पादन पर पैदा हो रहे संकट के बादलों को कुछ हद तक कम किया है। भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) के मुताबिक अगले 2-3 दिनों तक हिमाचल प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल के कई हिस्सों में अच्छी बारिश देखने को मिल सकती है। विशेषज्ञों का कहना है कि इस बारिश का खरीफ की बोई जा चुकी और बोई जा रही फसलों पर अच्छा असर पड़ेगा। इसके अलावा पानी की कमी की वजह से फसलों को बचाने की जुगत में डीजल और बिजली के जरिए सिंचाई कर रहे किसानों को लागत खर्च से भी राहत मिलेगी।
पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के शोध निदेशक डॉ पी एस मिन्हास के मुताबिक, 'इस बारिश ने किसानों को काफी राहत दी है। लेकिन पंजाब के दक्षिण-पश्चिमी इलाकों में बारिश नहीं हुई है। इससे इन इलाकों में कपास की खेती में सुधार होता नहीं दिख रहा है।' मानसून में देरी के चलते इस बार किसानों ने खेती पैटर्न में बड़ा शिफ्ट किया है। पंजाब में बासमती की खेती अमूमन तीन लाख हेक्टेयर जमीन पर होती है, इस बार बारिश में देरी के चलते यह रकबा बढ़कर 5.5 लाख हेक्टेयर हो गया है। बासमती की बुआई जुलाई मध्य से होती है साथ ही इसे पानी की भी कम जरूरत होती है। पानी न बरसने की वजह से धान की खेती में तेज इजाफा हुआ। ट्यूबवेल से सिंचाई पर 40 लीटर प्रति एकड़ डीजल का खर्च किसानों पर पड़ रहा है। मिन्हास के मुताबिक, 'अब बारिश होने से इस लागत में कमी आएगी।' हरियाणा में भी अच्छी बारिश से बासमती की खेती में सुधार होगा। हिमाचल में बारिश से वहां सेब की फसल में बढ़ोतरी होने की उम्मीद जताई जा रही है। दिल्ली की आजादपुर एपीएमसी के सदस्य और फल कारोबारी मेठाराम कृपलानी के मुताबिक, 'बारिश से सेब का रंग भी बेहतर होगा। साथ ही क्वॉलिटी भी सुधारेगी।' उत्तर प्रदेश में 27 तारीख को हालांकि बारिश हुई है लेकिन इससे बहुत ज्यादा फायदा होने की उम्मीद विशेषज्ञों को नहीं है। चंदशेखर कृषि और तकनीकी विश्वविद्यालय, कानपुर के कृषि अर्थव्यवस्था और सांख्यिकीय के विभागाध्यक्ष डॉ आर के सिंह के मुताबिक, 'वाराणसी से आगरा तक की बेल्ट में बारिश हुई है। इससे अरहर, ज्वार, बाजरा जैसी फसलों को फायदा होगा। चंबल से सटे इलाकों में इनकी बुआई भी बढ़ेगी।' सिंह कहते हैं, 'उत्तर प्रदेश और बिहार में धान को इस बार बड़ा नुकसान है। उत्पादन में 40 फीसदी से भी ज्यादा की गिरावट आएगी।' दिल्ली दाल मिलर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष अशोक गुप्ता के मुताबिक, 'इस बारिश से खाद्यान्नों की कीमतों में बनी हुई तेजी में कमी आ सकती है।' दिल्ली व्यापार महासंघ के चेयरमैन ओम प्रकाश गुप्ता के मुताबिक, 'इस बारिश से पैदावार में इजाफा होगा। उत्पादन में बढ़ोतरी से कीमतों पर भी फर्क पड़ेगा। (ET Hindi)

दूध के दाम पर अंकुश के लिए मिल्क पाउडर के आयात की तैयारी

नई दिल्ली: दूध की कीमतों पर अंकुश लगाने और घरेलू बाजार में इसकी आपूर्ति सुधारने के लिए दुनिया में दूध का सबसे बड़ा उत्पादक भारत आने वाले सप्ताहों में स्किम्ड मिल्क पाउडर (एसएमपी) का आयात कर सकता है। लोकसभा को एक लिखित जवाब में कृषि राज्य मंत्री के वी थॉमस ने कहा, 'आने वाले सप्ताहों में अगर स्थिति बिगड़ती है तो नेशनल डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड को टैरिफ रेट कोटा (टीआरक्यू) के तहत एसएमपी आयात करने के लिए एक योजना तैयार करने की सलाह दी गई है।' राष्ट्रीय स्तर पर दूध का उत्पादन पर्याप्त है जो घरेलू स्तर पर दूध और दूध के उत्पादों की मांग पूरा करने में समर्थ है। उन्होंने कहा कि अगर दूध की बहुत ज्यादा कमी होती है तो टीआरक्यू के तहत पांच फीसदी आयात शुल्क पर 10,000 टन दूध पाउडर आयात करने की अनुमित दी जा सकती है।
अंतरराष्ट्रीय बाजार के मुकाबले घरेलू बाजार में एसएमपी की अधिक कीमतों की बात स्वीकार करते हुए उन्होंने कहा कि यह महज 'सीजन की मांग' के कारण है। आमतौर पर गर्मियों में दूध और दूध पाउडर की कीमतों में बढ़ोतरी देखने को मिलती है क्योंकि गर्मी के कारण पशुओं को मुश्किल होने से दुग्ध उत्पादन और भंडारण, दोनों के ऊपर बुरा असर पड़ता है। उन्होंने बताया कि ओसेनिया, पश्चिमी यूरोप और अमेरिका में एसएमपी की कीमतें दूध के उत्पादन लागत पर निर्भर करती हैं और वहां की संबंधित सरकारें निर्यात सब्सिडी भी देती हैं। थॉमस ने बताया कि भारत में जुलाई में एसएमपी की कीमतें 140 रुपए प्रति किलो पर थीं जबकि ओसियाना और अमेरिका में कीमत 97 रुपए प्रति किलो और पश्चिमी यूरोप में कीमत 114 रुपए प्रति किलो। दिल्ली के डेयरी विशेषज्ञ आर एस खन्ना का कहना है, 'गर्मियों के दौरान कम उत्पादन के बीच मांग बढ़ जाने के कारण कीमतों में तेजी देखने को मिलती है। हालांकि एसएमपी उत्पादन करने के लिए देश में दूध की कमी नहीं है और आयात करने की जरूरत नहीं है।' 2007-08 के दौरान देश में दूध का कुल उत्पादन 10.48 करोड़ टन रहा था। (ET Hindi)

मॉनसून में देरी से बढ़ेंगी खाद्य पदार्थों की कीमतें: आरबीआई

नई दिल्ली: भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने चिंता जाहिर की है कि मॉनसून के देर से आने और अपर्याप्त बारिश के कारण इस साल खाद्य उत्पादन पर बुरा असर पड़ेगा और इसका प्रभाव खाद्य पदार्थों की कीमतों पर पड़ेगा। मॉनसून में देर की वजह से खरीफ फसलों की बुआई पर असर पड़ा है। देश के कुल कृषि उत्पादन में खरीफ फसलों का योगदान 57 फीसदी होता है। केंद्रीय बैंक ने 2009-10 के लिए मौद्रिक नीति की अपनी पहली तिमाही रिपोर्ट में कहा है, 'दक्षिण पश्चिम मॉनसून की गति बेहद धीमी और अपर्याप्त है। खरीफ फसलों की बुआई जुलाई में अधिकतम होती है, लेकिन मॉनसून में देर के कारण कृषि उत्पादन पर बुरा असर पड़ सकता है।' कृषि क्षेत्र की महत्ता का उल्लेख करते हुए बैंक ने कहा है कि खाद्य कीमतों को काबू में रखने के लिए कृषि क्षेत्र में विकास दर को बनाए रखना बेहद जरूरी है। देश की कुल जीडीपी में कृषि क्षेत्र का योगदान घटकर महज 17.5 फीसदी रह गया है। (ET Hindi)

सोना इठलाया..तो घर के जेवर बेच कैश ले जाने लगे लोग

नई दिल्ली: भाव में तेजी क्या आई, भारतीय घरों में पीढि़यों से जमा हो रहा सोना भी बाजारों की नजर हो गया। यह सामाजिक जीवन पर आर्थिक जगत के बढ़ते असर की एक बानगी है। सोने की कीमतों में आई तेजी ने परिवारों में अपने पास मौजूद सोने को बेचकर पैसा बनाने का ट्रेंड पैदा किया है और लोग अपने परिवार के पुराने के गहने बेचकर जमकर मुनाफा कमा रहे हैं। लंबे वक्त से सर्राफा कारोबार से जुड़े दरीबा बाजार के रतनचंद ज्वालानाथ ज्वैलर्स के तरुण गुप्ता बताते हैं, 'ऐसा पहली बार हो रहा है जब लोग अपने पास मौजूद गहनों को बेचकर कैश ले जा रहे हैं। इससे पहले जो भी लोग आते थे वे पुराने सोने के बदले में सोने के नए गहने खरीदकर ले जाते थे। हालांकि यह ट्रेंड जनवरी से अप्रैल के दौरान ज्यादा रहा और अब इसमें कमी आ रही है।'
जानकारों के मुताबिक जब भी सोने के भाव में 2,000 से 3,000 रुपए प्रति 10 ग्राम की तेजी आती है तो लोग सोना बेचना शुरू कर देते हैं। चांदनी चौक के कूचामहाजनी के बुलियन मर्चेंट एसोसिएशन के प्रेसिडेंट श्रीकिशन गोयल के मुताबिक, 'सोना जब 10,000 से 14,000 के स्तर पर आया तो इसके स्क्रैप की बिक्री में भारी तेजी आई। लेकिन अब इसमें कुछ कमी आई है। अब लोग सोने के और ऊपर जाने के इंतजार में रुके हुए हैं।' गोयल के मुताबिक दिल्ली में 200 से 300 टन सोने की सालाना खपत होती है। ज्वैलरी के कारोबारी बताते हैं कि दिल्ली में पहले अगर एक दुकानदार दिनभर में 100 ग्राम सोने के गहने बेचता था तो उसके पास केवल पांच ग्राम पुराना सोना बिक्री को आता था। सोने के भाव में आई तेजी से यह ट्रेंड बदल गया है। गुप्ता बताते हैं, 'जनवरी से अप्रैल के दौरान नए सोने की बिक्री तो गिरकर 10 ग्राम पर आ गई जबकि दुकानदारों के पास बिकने वाले पुराने सोने की मात्रा 100 ग्राम हो गई।' जानकारों के मुताबिक स्क्रैप बिक्री की प्रवृत्ति पहले भी थी लेकिन सोने के 14,000 रुपए प्रति 10 ग्राम के स्तर पर पहुंचने को लोगों ने इसकी बिक्री के जरिए पैसा बनाने का बेहतरीन मौका माना है। बोनांजा ब्रोकरेज के असिस्टेंट वाइस प्रेसिडेंट (गोल्ड) विभुरतन धारा के मुताबिक, 'लोगों ने इस बार स्कैप गोल्ड की काफी बिक्री की है। ऊंची कीमतें इसकी सबसे बड़ी वजह है। साल 2005-06 के 7,000 रुपए के स्तर से जब सोने के भाव साल 2007 के फरवरी में 10,758 रुपए के स्तर पर पहुंचे थे, उस वक्त भी सोने के स्क्रैप की घरेलू बिक्री में तेजी आई थी।' दरीबा ज्वैलर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष निर्मल जैन के मुताबिक, 'इस वक्त बिक्री पहले के मुकाबले 50 फीसदी भी नहीं है। लोग शादियों में भी कैश से खरीद के बजाय पुराने सोने को बेचकर गहने खरीदने पर ज्यादा जोर दे रहे हैं।' (ET Hindi)

अब जूलरी कारोबार का आउटसोर्सिंग हब बना इंडिया

नई दिल्ली: दुनिया में सोने की सबसे ज्यादा खपत करने वाला भारत इस कारोबार में आउटसोर्सिंग का एक बड़ा ठिकाना बन रहा है। गहने बनाने वाली देश की कई इकाइयां दुबई से सोने का आयात कर उसके गहने बना कर वापस दुबई में निर्यात करने के कारोबार में लगी हैं। पिछले कुछ सालों में इस कारोबार में खासी तेजी आई है। आउटसोर्सिंग की कई इकाइयां दिल्ली और नोएडा में मौजूद हैं। दुबई सोने के कारोबार का एक बड़ा हब है। सोने की कीमतों में आई तेजी ने दुबई के साथ भारत के सोने के कारोबार में तेज इजाफा किया है। साल 2008 में भारत का दुबई के साथ सोने का ट्रेड साल 2007 के 19 अरब डॉलर से 53 फीसदी बढ़कर 29 अरब डॉलर पर पहुंच गया।
जानकारों के मुताबिक साल 2009 में इस कारोबार में और ज्यादा तेजी रहने की उम्मीद है। सोने की ज्वैलरी बनाने वाली कई इकाइयां दिल्ली और नोएडा में मौजूद हैं। इन इकाइयों में दुबई से आने वाले सोने से गहने बनाकर उन्हें दोबारा दुबई निर्यात कर दिया जाता है। नोएडा के स्पेशल इकनॉमिक जोन (सेज) में सोने के गहने बनाने वाली करीब 50 से 55 निर्यात केन्द्रित इकाइयां (ईओयू) मौजूद हैं। इसके अलावा दिल्ली में भी 3-4 ईओयू इकाइयां हैं जो दुबई से सीधे सोने का आयात कर गहने बनवाकर वापस निर्यात कर देती हैं। दिल्ली की इसी तरह की एक यूनिट के मुताबिक करीब 1.5 टन सोना सालाना दिल्ली आता है और वह गहनों के तौर पर वापस दुबई चला जाता है। दिल्ली के उलट नोएडा के सेज में दुबई से आने वाले सोने की मात्रा करीब 15 टन मासिक है। पिछले कुछ वक्त से इस कारोबार में काफी तेजी आई है। नोएडा में इसी तरह की एक इकाई के अधिकारी के मुताबिक, 'साल 2007 के मुकाबले साल 2008 में यह कारोबार बढ़कर दोगुना हो गया। इस साल भी यह कारोबार इसी रफ्तार से बढ़ रहा है।' इस अधिकारी के मुताबिक, 'दुबई से सोने के गहने यूरोपीय और दूसरे बाजारों में चले जाते हैं।' दुबई से आने वाला पूरा सोना 90 दिन की री-एक्सपोर्ट के नियम के साथ देश में आता है। पी सी ज्वैलर्स के प्रबंध निदेशक बलराम गर्ग के मुताबिक, 'दुबई से आयात होने वाले सोने के गहने बनवाकर वापस भेज देने का कारोबार तो है ही लेकिन इस बार पुरानी ज्वैलरी को शुद्ध सोने में बदलकर उसे दुबई निर्यात करने का कारोबार काफी बढ़ा है। इसकी वजह घरेलू बाजार में कम हो रही मांग है।' गर्ग बताते हैं कि सालाना करीब 200 से 300 टन ऐसा सोना देश में आता है जिसे गहनों में बदलकर पूरी तरह से निर्यात कर दिया जाता है। दुबई के साथ इस कारोबार के बढ़ने की अहम वजह भारत में ज्वैलरी के बेहतर कारीगरों का सस्ती दर पर उपलब्ध होना है। नोएडा की ईओयू इकाई के अधिकारी ने कहा, 'इस पूरे कारोबार में मार्जिन केवल यही कम मैन्युफैक्चरिंग लागत से बचने वाली रकम है।' (ET Hindi)

आज से दिल्ली में दालों की सस्ती दरों पर बिक्री

नई दिल्ली July 27, 2009
दिल्लीवासियों को मंगलवार से 74 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से अरहर की दालें मिलेंगी।
दिल्ली सरकार एवं दाल मिलर्स एसोसिएशन के संयुक्त प्रयास के तहत दिल्ली की 80 जगहों पर खुदरा बाजार से कम कीमत पर दालों की खुली बिक्री की जायेगी। एक आदमी को अधिकतम 4 किलोग्राम दाल दिये जाएंगे।
दाल बिक्री का शुभारंभ मंगलवार को दिल्ली सचिवालय से किया जायेगा। दूसरी तरफ दालों की इस खुली बिक्री के फैसले से दलहन बाजार में सोमवार को गिरावट का रुख देखा गया। और दालों में कीमतों में प्रति किलोग्राम 1-2 रुपये प्रति किलोग्राम की गिरावट देखी गयी।
रियायत दरों पर फिलहाल अरहर, मूंग, उड़द एवं चना दाल की बिक्री की जायेगी। अरहर 74 रुपये, मूंग धुली 58 रुपये, उड़द 49 रुपये तो चना दाल 34 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से बिकेंगी। खुदरा बाजार के मुकाबले इन दालों की कीमत करीब 10 रुपये प्रति किलोग्राम कम होगी। दालों की बिक्री 1 किलोग्राम के पैकेट में होगी।
दाल मिलर्स एसोसिएशन के पदाधिकारियों के मुताबिक खाद्य एवं आपूर्ति विभाग के सर्किल कार्यालयों के पास इन दालों की बिक्री होगी। मंगलवार को दिल्ली सरकार उन्हें और जगह मुहैया करायेगी। दालों की बिक्री कहां हो रही है, इसकी सूचना जनता तक पहुंचाना दिल्ली सरकार का काम होगा।
अभी यह भी तय नहीं हुआ है कि खुदरा बाजार से सस्ती दरों पर कब तक इस प्रकार से दालों की बिक्री होगी। दाल मिलर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष अशोक गुप्ता कहते हैं, हमारे पास दालों की कोई कमी नहीं है और पूरी दिल्ली को तीन महीने तक दाल खिलाने का स्टॉक उनके पास मौजूद है।
दलहन कारोबारियों का कहना है कि सस्ती दरों पर दाल बेचने के फैसले के बाद से ही दालों की कीमतों में गिरावट आने लगी। गत शुक्रवार को इस संबंध में सरकार एवं दाल कारोबारियों के बीच बैठक हुई।
उस दिन अरहर दाल के भाव 2 रुपये प्रति किलोग्राम गिर गये। शनिवार को भी गिरावट का दौर जारी रहा। सोमवार को भी अरहर के साथ सभी दालों की कीमतों में 1 रुपये प्रति किलोग्राम की कमी दर्ज की गयी। (BS Hindi)

कीमतें बढ़ने से सोने की खरीदारी में कमी

मुंबई July 27, 2009
तेजी से बढ़ते दाम की वजह से मध्यम वर्गीय लोगों के लिए सोना में निवेश करने की प्रवृत्ति घटती जा रही है।
जब तक सोना का भाव मौजूदा स्तर से प्रति दस ग्राम 750 रुपये कम यानी 14,500 रुपये प्रति दस ग्राम पर नहीं आ जाए तब खुदरा उपभोक्ताओं से सोना में निवेश करने को प्राथमिकता देते नजर नहीं आ रहे हैं।
मुंबई के जावेरी बाजार स्ट्रीट में सोना की बिक्री में गिरावट पिछले कुछ दिनों से जारी है और शुक्रवार को तो यह शून्य के स्तर तक पहुंच गया। इसी दिन सोना का भाव 15,020 रुपये प्रति दस ग्राम पर पहुंच गया।
पिछले हफ्ते सोना के भाव में 80 रुपये प्रति दस ग्राम की तेजी आई। सोना के भाव में साल भर पहले के स्तर से 12.76 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। साल भर पहले सोना का भाव 13,320 रुपये प्रति दस ग्राम पर था। विश्लेषकों का मानना है कि सोना के भाव में बढ़ोतरी के लिए कारोबारियों के बीच इसकी बढ़ती लोकप्रियता जिम्मेवार है। (BS Hindi)

नई फसल के बाद भी जूट में गिरावट नहीं

भुवनेश्वर July 27, 2009
नयी फसल के आने के बावजूद कच्चे जूट के भाव में कमी नहीं आ रही है और इसका भाव 30,000 रुपये प्रति टन पर बरकरार है।
आने वाले दिनों में इसके भाव में और बढ़ोतरी होने की संभावना ने जूट उद्योग की चिंता बढ़ा दी है। जूट बेलर्स एसोसिएशन द्वारा एकत्रित आंकड़ों के मुताबिक 20 जुलाई को कच्चे जूट का भाव 30,100 रुपये प्रति टन रहा। जबकि इसी साल जून के दौरान जूट का औसत भाव 27,670 रुपये प्रति टन रहा।
वहीं पिछले साल जुलाई के दौरान कच्चे जूट का औसत भाव 14,880 रुपये प्रति टन था। बी टि्वल जूट का भाव 20 जुलाई को 41,500 रुपये प्रति टन था। (BS Hindi)

लौह अयस्क के शिपिंग भाड़े में बढ़ोतरी

मुंबई July 27, 2009
चीन से लौह अयस्क की मांग बढ़ने की वजह से शिपिंग कंपनियों ने वहां के लिए माल ढुलाई के किराए में बढ़ोतरी कर दी है।
भारतीय शिपिंग कंपनियों ने पिछले एक महीने में माल ढुलाई भाडे में 26.32 फीसदी की बढ़ोतरी कर दी है। महीने भर पहले छोटे जहाजों के जरिए गोवा से चीन माल भेजने के लिए भाड़ा के तौर पर 18-19 डॉलर प्रति टन चुकाना पड़ता था। यह अब बढ़कर 23 से 24 डॉलर प्रति टन हो गया है।
बड़े जहाजों का माल ढुलाई भाड़ा भी बढ़कर 19 से 20 डॉलर प्रति टन हो गया है। गोवा मिनरल ओर एक्सपोर्टस एसोसिएशन के सचिव ग्लेन कलावंपारा माल भाड़े में बढ़ोतरी के लिए चीन की ओर से बढ़ती मांग को जिम्मेवार ठहराते हैं।
चीन का खरीद अनुबंध 30 जून को समाप्त हो गया है। नए अनुबंध के लिए चीन की बातचीत में कई पेच हैं। चीन के स्टील मिलों ने लौह अयस्क के वैश्विक भाव में 33 प्रतिशत से ज्यादा कटौती का आग्रह किया था। चीन के स्टील मील पिछले साल के स्तर से 45 फीसदी कटौती की वकालत करते रहे हैं। पिछले दो साल में भाव में 100 फीसदी से ज्यादा की बढ़ोतरी हो चुकी है।
फेडरेशन ऑफ इंडियन मिनरल इंडस्ट्रीज (एफआईएमआई) के महासचिव आरके शर्मा के मुताबिक चीनी स्टील मिलों और वैश्विक लौह अयस्क खनन करने वालों के बीच होने वाली बातचीत में हो रही देरी की वजह से सीधा फायदा भारतीय निर्यातकों को मिल रहा है।
भारतीय निर्यातकों को हो रहे फायदे को इस तरह भी समझा जा सकता है कि चीनी बंदरगाहों पर भारतीय मूल के लौह अयस्क के भाव में पिछले दो महीने में 35 फीसदी की बढ़ोतरी हो चुकी है। यह 65 डॉलर प्रति टन से बढ़कर 90 डॉलर प्रति टन हो गया है। इसमें माल भाड़ा शामिल है।
विश्लेषकों का मानना है कि अगर चीन के स्टील मिलों और वैश्विक निर्यातकों के बीच दीर्घावधि अनुबंध होने में और देरी होगी तो लौह अयस्क का भाव 100 डॉलर प्रति टन के आंकड़े को भी पार कर सकता है। चीन में बढ़ती मांग की वजह से भारतीय बंदरगाहों पर भी लौह अयस्क के भाव में 10 फीसदी की बढ़ोतरी हो गई है।
भारतीय लौह अयस्क फाइन ग्रेडिंग 63.5 का हाजिर भाव 700 से 710 युआन प्रति टन पर पहुंच गया है। यह इसी साल के अप्रैल के स्तर से 50 फीसदी अधिक है। शर्मा ने कहा कि भारतीय निर्यातकों का विदेशी आयातकों के साथ लंबे समय का अनुबंध नहीं है, इसलिए हाजिर भाव में होने वाली किसी भी तरह की वृध्दि का सीधा मतलब यह है कि भारतीय निर्यातकों को अतिरिक्त आमदनी होगी।
पिछले वित्त वर्ष में भारतीय निर्यातकों ने 9.2 करोड़ टन लौह अयस्क आयात किया था। इसमें से 90 फीसदी अकेले चीन को निर्यात किया गया था। इस साल मई में 1.05 करोड़ टन लौह अयस्क का निर्यात किया गया। जबकि पिछले साल मई में 90 लाख टन लौह अयस्क का निर्यात किया गया था। (BS Hindi)

वनस्पति तेल का आयात 80 लाख टन तक

अहमदाबाद July 27, 2009
देश में तिलहन उत्पादन में कमी आ रही है, इसी वजह से आयात पर निर्भरता बढ़ रही है।
वनस्पति तेल का आयात मौजूदा तेल वर्ष (नवंबर 2008 से अक्टूबर 2009) में 80 लाख टन का आंकड़ा छूने ही वाला है। इस साल अब तक 58.2 लाख टन का आयात कर लिया गया है।
देश में तिलहन का उत्पादन लगभग 2.6-2.7 करोड़ टन के करीब ही स्थिर हो गया है और उत्पादकता 950 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है। भारत तिलहन के लिए पूरी तरह से आयात पर निर्भर है। पिछले तेल वर्ष में देश में 20,000 करोड़ रुपये चुका कर 63 लाख टन का आयात किया था।
सॉल्वेंट एक्ट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एसईए) के उपाध्यक्ष अशोक सेथिया का कहना है, 'इस तेल वर्ष में भी हम लगभग 20,000 करोड़ रुपये के लगभग 80 लाख टन का आयात करने को मजबूर होंगे ताकि मांग और आपूर्ति के अंतर को कम किया जा सके।'
वर्ष 2008-09 तेल वर्ष के पहले आठ महीने के दौरान वनस्पति तेल के आयात में 79 फीसदी का उछाल आया और यह 58.2 लाख टन हो गया जो इससे पहले साल की समान अवधि में 35.7 लाख टन था। इस साल जून के दौरान आयात पिछले साल की समान अवधि के 5.94 के मुकाबले 7.81 लाख टन रहा है। इस तरह इसमें 31 फीसदी की वृद्धि हुई है।
इस शीर्ष कारोबारी संस्था ने वनस्पति तेल के लिए भारत की आयात पर बढ़ती निर्भरता पर चिंता जताई है जो अब लगभग 50 फीसदी हो गई है। इस संस्था की मांग है कि वनस्पति तेल पर फिर से सीमा शुल्क लगाया जाना चाहिए और ज्यादा आयात पर नियंत्रण करना चाहिए।
इसके साथ ही तिलहन विकास फंड बनाने की सलाह दी गई है। इस बीच एसईए ने वर्ष 2008-09 में रेपसीड-सरसों फसलों के अनुमान की समीक्षा की है। एसईए रेपसीड-मस्टर्ड प्रमोशन काउंसिल ने रेपसीड-सरसों की फसल में 2 लाख टन की कमी की है और इसे 62 लाख टन कर दिया है। इससे पहले एसोसिएशन ने फरवरी 2009 में कुल 64 लाख टन फसल का अनुमान लगाया था।
क्या है वजह?
तिलहन का उत्पादन 2.6-2.7 करोड़ टन पर स्थिर हुआ मांग व आपूर्ति के अंतर को कम करने के लिए आयात में हो रही है लगातार बढ़ोतरी (BS Hindi)

यूपी और बिहार में आएगी बरखा बहार

पुणे July 27, 2009
बादलों की बेईमानी से दम तोड़ती आस की बेल फिर हरी होती नजर आ रही है।
दरअसल मौसम विभाग को उम्मीद है कि सूखे के कगार पर पहुंच चुके कई इलाकों में बारिश कयासों से बेहतर होने जा रही है। उसने उत्तर प्रदेश, बिहार, हरियाणा और पूर्वोत्तर राज्यों को सराबोर कर देने वाली बरसात की उम्मीद जताई है।
देश में फिलहाल बिहार और हरियाणा ही हैं, जहां 1 जून के बाद से बहुत कम बरसात हुई है। यहां सामान्य से 68 फीसदी कम पानी पड़ा है। उत्तर प्रदेश में भी सामान्य से 58 फीसदी कम बरसात हुई है, जबकि समूचा पूर्वोत्तर भारत भी अभी जमकर भीगने को तरस रहा है। लेकिन मौसम विभाग ने उम्मीद जताते हुए कहा है कि अगले 7 दिनों में यहां बरसात अच्छी तरह से होगी।
देश में अभी मॉनसून के 14 उपखंड ऐसे हैं, जहां बरसात काफी कम हुई है। यहां सामान्य से 20 फीसदी से 59 फीसदी तक कम वर्षा हुई है। मौसम विभाग को हालात अब सुधरने की उम्मीद है। इस हफ्ते में उसे उत्तर प्रदेश, बिहारा और हरियाणा में जमीन तर होने के आसार दिख रहे हैं।
मौसम विभाग के आंकड़ों के अनुसार देश भर में मॉनसून की तस्वीर में पिछले दो हफ्तों के दौरान जबरदस्त सुधार देखने को मिला है। 1 जून से अब तक पहली बार इसी हफ्ते में कुल मिलाकर 300 मिलीमीटर बारिश दर्ज की गई है। पिछले साल इसी दरम्यान 368 मिलीमीटर बारिश हुई थी। इस लिहाज से बरसात में केवल 18 फीसदी कमी देखी गई है।
मौसम विभाग के उप महानिदेशक डॉ. ए बी मजूमदार ने कहा, 'इस हफ्ते समूचे उत्तर और पूर्वोत्तर क्षेत्र में सामान्य से अधिक बरसात होने की उम्मीद है। मध्य और पश्चिमी क्षेत्रों में इस बार कम बरसात होने की संभावना है।'
लेकिन आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्रों में बरसात की भविष्यवाणी करने के मामले में मौसम विभाग ने सतर्कता बरती है। आंध्र में सामान्य से 41 फीसदी और मराठवाड़ा में 25 फीसदी कम बरसात हुई है। इन दोनों इलाकों में आगे भी अच्छी बरसात की उम्मीद नहीं है।
हालांकि मजूमदार ने कहा, 'जुलाई के महीने में बरसात के हालात सुधरे हैं। हमें उम्मीद है कि अगस्त में इन इलाकों को और भी राहत मिलेगी।'
मौसम विभाग ने जताई बरसात में सुधार की उम्मीदयूपी, बिहार और हरियाणा में होगी सामान्य से अधिक बरसातपूर्वोत्तर को भी बादल कर देंगे पूरी तरह तरमध्य और पश्चिम भारत में बरसात में आएगी कमीजुलाई में सुधरे हालात, अगस्त में और बेहतर की उम्मीद
और सराबोर हो गई दिल्ली
राजधानी दिल्ली को हफ्ते के पहले दिन ही उमस भरी दोपहर में सावन का तोहफा मिल गया। समूचे दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में आज दोपहर बाद जमकर बरसात हुई और शाम ढलने के बाद भी पानी पड़ता रहा।
देश भर में इस बार कम बारिश हुई है। खास तौर पर उत्तर की पट्टी तो कमोबेश सूखी ही रही है। ऐसे में सावन का महीना तकरीबन आधा बीत जाने पर भी दिल्ली सूखी ही थी। लेकिन दिल्ली ही नहीं पड़ोसी नोएडा, गाजियाबाद और फरीदाबाद में लगातार हुई मूसलाधार बारिश की वजह से ठंडक आ गई। (BS Hindi)

ई-नीलामी से कोयले की कीमत में बढ़ोतरी, उपभोक्ताओं में रोष

भुवनेश्वर July 28, 2009
देश भर के कोयले के उपभोक्ताओं ने फॉरवर्ड ई-नीलामी के जरिए कोयले की फ्लोर कीमतों को दोगुना दर पर तय करने कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) के फैसले पर चिंता जताई है।
कोयला उपभोक्ताओं का यह आरोप है कि सीआईएल उपभोक्ताओं की हित का ख्याल रखे बिना कोयले की फॉरवर्ड ई-नीलामी की बिक्री के जरिए ज्यादा मुनाफा कमाना चाहती है।
उद्योग के एक सूत्रों का कहना है, 'फॉरवर्ड ई-नीलामी के जरिए कोयले की बिक्री की ज्यादा फ्लोर कीमतों का मुद्दा उठाया है और उनका कहना है कि कोयले के उपभोक्ता ज्यादा ऊंची दर पर कच्चे माल को नहीं खरीद सकते।
हालांकि सीआईएल प्रबंधन का कहना है कि फॉरवर्ड ई-नीलामी की कीमतें गहरी खानों से निकले कोयले के मुकाबले ऊंची होंगी जिसमें उत्पादन की ज्यादा लागत भी शामिल है। इसके इस रास्ते के जरिए बेचा जाएगा।'
सीआईएल ने यह स्पष्ट किया है कि उच्च श्रेणी वाला कोयला जो गहरे खदान से निकला हो और जिसमें राख की मात्रा कम हो उसे फॉरवर्ड ई-नीलामी के जरिए बेचा जाएगा। इस कोयले की फ्लोर कीमत को ज्यादा होना चाहिए क्योंकि गहरी खान के कोयले के उत्पादन की लागत ओपेन कास्ट प्रोजेक्ट के मुकाबले ज्यादा होती है।
सीआईएल के मुख्य महाप्रबंधक (मार्केटिंग) का कहना है, 'फॉरवर्ड ई-नीलामी के जरिए बेचे लाने वाले कोयले की फ्लोर कीमत ज्यादा होगी क्योंकि बिक्री के लिए उच्च श्रेणी और कम राख वाले कोयले का ऑफर दिया जा रहा है। जबकि उपभोक्ता कम कीमत पर कोयले की आपूर्ति चाहते हैं। हालांकि कोयले की बिक्री अधिसूचित कीमतों पर ही की जाती है।'
वर्ष 2009-10 में 4.5 करोड़ टन कोयले की बिक्री ई-नीलामी के जरिए की जाती है जबकि 10 फीसदी ई-नीलामी वाले कोयले को फॉरवर्ड ई-नीलामी के जरिए बेचने का प्रस्ताव है। फॉरवर्ड ई-नीलामी को दो मंच एमजंक्शन डॉट कॉम और एमएसटीसी लिमिटेड हैं।
कोयले के उपभोक्ताओं को इस बात पर भी ऐतराज है कि सीआईएल फ्यूल सप्लाई एग्रीमेंट (एफएसआई) पर हस्ताक्षर करने में देरी कर रही है। कोयले के आयात की शर्त के मुताबिक यह जरूरी था कि कोयले के उपभोक्ताओं को आयातित कोयले और घरेलू कोयले को तयशुदा कीमत पर सीआईएल से खरीदना होगा।
कोयले के उपभोक्ताओं को इस बात पर ऐतराज था कि आयातित कोयला व्यावसायिक रूप से बेहतर नहीं है। इस मुद्दे पर कोयले के इन उपभोक्ताओं ने इस साल 27 मार्च को हुई बैठक में सीआईएल को ध्यान दिलाया था।
लगभग चार महीने के बाद सीआईएल प्रबंधन ने आयातित कोयले से जुड़ी इस शर्त में थोड़ी ढ़ील देने की बात कही है। इस आश्वस्ति के मुताबिक कोयले के उपभोक्ताओं को आयातित कोयला खरीदने के लिए एफएसए और सीआईएल के साथ जुड़ने की कोई जरूरत नहीं है। (BS Hindi)

एनएसईएल को कारोबार में बढ़ोतरी की उम्मीद

नई दिल्ली July 28, 2009
वित्त वर्ष 2009-10 के अंत तक नैशनल स्पॉट एक्सचेंज लिमिटेड का कारोबार 150 करोड़ रुपये रोजाना हो जाएगा।
फिलहाल एनएसईएल में 60-70 करोड़ रुपये रोजाना का कारोबार हो रहा है। कंपनी के प्रबंध निदेशक व सीईओ अंजनी सिन्हा ने ऐसी उम्मीद जताई है।
सिन्हा ने कहा कि गुजरात, महाराष्ट्र और राजस्थान में एनएसईएल का कारोबार काफी तेजी से बढ़ रहा है और आने वाले दिनों में उड़ीसा, पंजाब और हरियाणा भी एनएसईएल के मानचित्र पर आ जाएगा।
उन्होंने कहा कि अगले महीने उड़ीसा में एक्सचेंज काम करना शुरू कर देगा और अक्टूबर-नवंबर में पंजाब-हरियाणा में एनएसईएल की स्थापना कर दी जाएगी। वैसे बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक, केरल आदि राज्यों में एनएसईएल का फैलाव हो चुका है।
नैशनल स्पॉट एक्सचेंज लिमिटेड जल्दी ही कटनी में दलहन का हाजिर कारोबार शुरू करेगा। इसकी विस्तृत जानकारी देने से इनकार करते हुए अंजनी सिन्हा ने कहा इस बारे में बाद में बताया जाएगा। यह पूछे जाने पर कि एनएसईएल के जरिए कारोबार से क्या वास्तव में किसानों को फायदा मिल रहा है, सिन्हा ने कहा कि इससे किसान लाभान्वित हो रहे हैं।
लेकिन सूत्र बताते हैं कि एनएसईएल ने इस बाबत एक रिपोर्ट तैयार की है, जिसे उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय के सचिव यशवंत भावे को भेजी गई है। इसकी प्रति बिजनेस स्टैंडर्ड के पास भी है। केस स्टडी के जरिए तैयार रिपोर्ट में कहा गया है कि गुजरात में अरंडी के उत्पादकों को एनएसईएल से काफी फायदा मिला है। (BS Hindi)

बारिश की थाप पर नाचे किसान, कारोबारी थोड़े परेशान

नई दिल्ली July 28, 2009
सोमवार की बारिश से किसानों के चेहरे खिल उठे तो पानी जमा होने के कारण कारोबारियों के चेहरे थोड़े मलीन हो गए।
धान एवं सब्जी उगाने वाले किसान फिर से खेत की ओर चल दिए हैं। गन्ना किसानों को बारिश से कीड़े के खात्मे की पूरी उम्मीद बन गयी है। बारिश ने सब्जियों की कीमतों में भी गिरावट के आसार बना दिये हैं।
लेकिन दिल्ली के सदर बाजार एवं चांदनी चौक जैसे इलाकों के दुकानदार मंगलवार की सुबह व्यापार शुरू करने से पहले घंटों पानी निकालने के काम में लगे रहे। सदर बाजार के कारोबारी अपनी परेशानी को लेकर दिल्ली नगर निगम के आयुक्त से मुलाकात करने वाले हैं।
किसानों को फायदा ही फायदा
सोमवार को दिल्ली एवं आसपास के इलाकों में कुल 126 मिलीमीटर की बारिश दर्ज की गयी। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कई इलाकों में करीब इतनी ही बारिश हुई। गाजियाबाद के किसान राजबीर सिंह कहते हैं, बारिश से हमें कई फायदे हुए हैं। धानों की बुआई तेज हो गयी।
गन्ने के पौधों में लगने वाले कंसवा जैसे कीड़े मर जायेंगे। खेतों में पानी जमा होने से कई दिनों तक पानी पटाने का काम नहीं करना पड़ेगा जिससे हमारे पैसे बचेंगे और बिजली की खपत भी कम होगी। किसानों का यह भी कहना है कि अब उन्हें बिजली भी अधिक देर तक मिल सकेगी और वे कम कीमत पर खेतों में पानी दे सकेंगे।
सब्जियों की कीमतों में कमी
मंगलवार को दिल्ली की आजादपुर मंडी में घिया, भिंडी, टिंडा, तोरी एवं अन्य हरी सब्जियों की कीमतों में 4 रुपये प्रति किलोग्राम की गिरावट दर्ज की गयी। थोक सब्जी विक्रेता बलबीर सिंह कहते हैं, यह कमी इसलिए आयी क्योंकि सोमवार को बारिश के कारण देर शाम में किसान मंडी में अपनी सब्जियों का सौदा नहीं कर पाये थे।
लेकिन वे यह भी कहते हैं कि इस बारिश के कारण आने वाले दो-चार दिनों में सब्जियों के भाव जरूर कम होंगे। पानी नहीं मिलने से खेतों में सब्जियां सूख रही थी। जिससे जून के मुकाबले कीमत में 20 फीसदी तक की बढ़ोतरी हो चुकी है।
कारोबारी परेशान
मेन सदर बाजार की मुख्य सड़क के दोनों किनारे बने दुकानदार मंगलवार की सुबह से ही पानी निकालने में जुटे रहे। इस इलाके की अधिकतर दुकानें सड़क के मुकाबले नीचे चली गयी है। इससे दुकान के फर्श पर रखे सामान भी बारिश में बर्बाद हो जाते हैं।
सड़कों पर पानी जमा होने से खरीदार भी इन इलाकों में आने से कतराते हैं। चांदनी चौक इलाके की कई दुकानों में भी बारिश का पूरा असर देखने को मिला। बेसमेंट की दुकानों का तो बुरा हाल था।
सदर बाजार के कारोबारी देवराज बवेजा ने बताया कि दिल्ली नगर निगम को पानी जमा होने की समस्या से कई बार अवगत कराया गया है। लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गयी। मंगलवार को व्यापारियों का एक प्रतिनिधिमंडल निगमायुक्त से मुलाकात कर रहा है।
पंजाब और हरियाणा में झमाझम बारिश
चंडीगढ़ से भाषा के मुताबिक कमजोर पड़े दक्षिण पश्चिम मानसून के दोबारा सक्रिय होने से पंजाब और हरियाणा के कई हिस्सों में आज भारी बारिश हुई। उत्तर पश्चिम क्षेत्र में एक जुलाई से 25 जुलाई के दरम्यान बेहद कम बारिश हुई, लेकिन आज की जबर्दस्त बारिश से लोगों को राहत मिली जिसकी उन्हें लंबे समय से तलाश थी।
आज हुई बारिश से राज्य में बिजली संकट से भी कुछ निजात मिल सकेगी। कृषि प्रधान पंजाब और हरियाणा के किसानों के लिए भी यह बारिश राहत की सांस लेकर आई क्योंकि बारिश की कमीं से फसलों को नुकसान होने की आशंका था। मौसम विभाग ने यहां कहा कि लुधियाना में क्षेत्र में सबसे ज्यादा 142.8 मिमी. बारिश हुई। वाराणसी भी सराबोर
कल शाम से रातभर पूर्वांचल में झमाझम बारिश हुई। बारिश कम से कम उन किसानों के लिए वरदान है, जिन्होंने भारी सूखे के बावजूद किसी तरह से रोपाई कर ली है। बादल कल दिनभर अठखेलियां करते रहे लेकिन शाम को झमाझम बारिश हुई। हालांकि बारिश ऐसी नहीं हुई कि खेत लबालब भर जाएं लेकिन इस मौसम में शायद पहली बार धरती पानी से तर हो गई।
कृषि विशेषज्ञ डा मथुरा राय ने बताया कि सिंचाई के संसाधनों की अपेक्षा यह बारिश तो अमृत है। इससे वैकल्पिक खेती के लिए भी बेहतर मौसम हो गया। मौसम विज्ञानी प्रो बी आर डी गुप्ता ने बताया कि बंगाल की खाड़ी में बन रहे कम दबाव के क्षेत्र के चलते यह बारिश हुई।
अगर यह कम दबाव का क्षेत्र और गहरा होता है तो अगले दो-तीन दिन लगातार पानी बरस सकता है। बहरहाल, बारिश से किसानों को थोड़ी उम्मीद जगा दी, क्योंकि पूर्वाचल के किसान वर्षा नहीं होने से त्रस्त थे।
उत्तराखंड में दो दिनों से लगातार बारिश
उत्तराखंड के बीएस संवाददाता के मुताबिक वहां पिछले दो दिनों से लगातार बारिश हो रही है। उत्तराखंड के मौसम विभाग के मुताबिक एक या दो जिलों को छोड़ पूरे उत्तराखंड में दो दिनों से लगातार बारिश हो रही है।
अच्छी बरसात के कारण मैदानी एवं पहाड़ी दोनों ही इलाकों में किसान धान की बुआई में व्यस्त हो गये हैं। मौसम विभाग के निदेशक आनंद शर्मा के मुताबिक इन दिनों उत्तराखंड में मानसून सक्रिय है। बारिश की वजह से प्रदेश में बिजली की उत्पादकता में भी सुधार है।
बारिश का असर
गन्ने में लगने वाले कीड़ों का होगा खात्मागर्मी के कारण सब्जियों की बढ़ती कीमत पर रोकधान की बुआई में आएगी तेजी (BS Hindi)

27 जुलाई 2009

Kharif production could be affected, says RBI

Mumbai, Jul 27 (PTI) Kharif production which accounts for
about 57 per cent of the overall agricultural production,
could be affected, particularly major kharif crops such as
rice, tur, urad, maize and soyabean which are
monsoon-dependent, the Reserve Bank said.
The delayed progress of the south-west monsoon and the
associated deficient rainfall in June has dampened the
prospects for agricultural production, the RBI said in its
Macroeconomic and Monetary Developments First Quarter Review
2009-10.
However, rainfall in July so far has been relatively good
and the improved sowing position as on July 17 indicates that
sowing of most pulses, oilseeds and coarse cereals are close
to last year's levels.
Paddy sowing is, however, still substantially below last
year's, the RBI said.
Last fiscal, the lower kharif output was made good by
Rabi output and as a result the overall agricultural
production exhibited a turnaround in the fourth quarter of the
year.
The Reserve Bank said the procurement of foodgrain (rice
and wheat) up to July 13 was higher than that in the year-ago
period. The offtake too up to April 30 was higher as compared
to the year-ago period, the apex bank said. (MORE) PTI

Govt allows duty-free raw sugar import beyond August 1

New Delhi, July 27 (PTI) The Centre has extended beyond
August 1 the import facility for raw sugar at zero duty
without any export obligation and that of white sugar through
state-owned trading firms to augment domestic supply.
"The government has extended the import of duty-free raw
sugar (under open general licence) as well as that of white
sugar through three PSUs beyond their deadline of August 1,"
an official source said, declining, however, to comment on how
long the relaxation will stay.
The decision, approved by the Cabinet in its meeting last
week, is likely to be announced by Food and Agriculture
Minister Sharad Pawar in Parliament tomorrow, he added.
The move has come amid growing apprehension about the
fate of sugar production next season, starting October,
following a decline in the area under sugarcane to 42.50
lakh hectares as on July 17 from 43.79 lakh hectares in the
same period last year.
Earlier in April, the government had scrapped a 60 per
cent import duty on raw sugar and allowed duty-free import
till August 1 under the open general licence (OGL) scheme,
under which mills do not have any export obligation.
It had also allowed MMTC, STC and PEC to import refined
sugar up to 10 lakh tonnes at zero duty till August 1.

India has imported raw sugar of 16.81 lakh tonnes so far,
while another 1.65 lakh tonnes are expected to reach by the
end of this month, industry sources said, adding that about 29
lakh tonnes have been contracted so far.
Similarly, the PSUs have contracted 1.15 lakh tonnes of
refined sugar so far, out of which 43,550 tonnes have already
arrived, the sources said. A total of 79,605 tonnes may land
in India by the end of this month, they added.
These steps by the government had followed projections of
a slump in the country's sugar production to 155 lakh tonnes
for this season (October-September) from about 264 lakh tonnes
in 2007-08.
The country, which is the largest consumer of sugar in
the world, needs about 225 lakh tonnes of the sweetener for
its annual domestic consumption.
The lower output has resulted in a higher price of sugar,
which is currently selling at Rs 27-30 a kg in retail markets,
compared with Rs 16-17 a kg a year before. PTI

विदेश में तेजी के बाद भी घरेलू बाजार में रबर स्थिर

विदेशी बाजार में पिछले दस दिनों में नेचुरल रबर की कीमतों में करीब दस फीसदी की तेजी आई है। लेकिन निर्यातकों के साथ-साथ टायर निर्माताओं की मांग कमजोर होने से घरेलू बाजार में भाव स्थिर बने हुए हैं। सिंगापुर के सीकॉम में रबर के भाव बढ़कर 89-90 रुपये प्रति किलो (भारतीय मुद्रा में) हो गए। लेकिन कोट्टायम में नेचुरल रबर आरएसएस-4 के भाव 98 रुपये और आरएसएस-5 के 96 रुपये प्रति किलो पर स्थिर बने हुए हैं। उधर कच्चे तेल की कीमतों में पिछले एक सप्ताह में 4.6 फीसदी की तेजी आई है। ऐसे में अगर विदेशी बाजार में नेचुरल रबर की कीमतों में और चार-पांच फीसदी की तेजी आती है तो फिर घरेलू बाजार में भाव बढ़ सकते हैं।रबर मर्चेट एसोसिएशन के सचिव अशोक खुराना ने बताया कि सिंगापुर के सीकॉम में रबर के भाव पिछले दस दिनों में 81-82 रुपये से बढ़कर 89-90 रुपये प्रति किलो (भारतीय मुद्रा में) हो गए। लेकिन आयात में 107 फीसदी की भारी बढ़ोतरी और निर्यात में भारी कमी आने के कारण घरेलू बाजार में तेजी नहीं आ रही है। विदेशी बाजार में नेचुरल रबर की कीमतों में और चार-पांच फीसदी की तेजी आती है तो आयात पड़ता महंगा होने से घरेलू बाजार में भी भाव बढ़ सकते हैं। पिछले एक सप्ताह में कच्चे तेल की कीमतों में 4.6 फीसदी की तेजी आकर शुक्रवार को अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसके भाव 66.97 डॉलर प्रति बैरल हो गये।उन्होंने बताया कि अप्रैल-मई में उत्पादक क्षेत्रों में बारिश कम होने से पहली तिमाही में नेचुरल रबर का उत्पादन घटा है लेकिन जून और जुलाई में हुई बारिश से आगामी महीनों में उत्पादन बढ़ेगा। चालू महीने के दौरान घरेलू बाजार में रबर की कीमतों में मात्र एक-दो रुपये प्रति किलो की घटबढ़ देखी गई।रबर बोर्ड के मुताबिक चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही अप्रैल से जून के दौरान 159,520 टन नेचुरल रबर का उत्पादन हुआ जो कि पिछले साल की समान अवधि के 179,565 टन के मुकाबले करीब 11 फीसदी कम है। इस दौरान नेचुरल रबर का आयात 107 फीसदी बढ़कर 44,093 टन हो गया। जबकि पिछले साल की समान अवधि में 21,259 टन का आयात हुआ था। आयात तो बढ़ा ही है, साथ ही निर्यात में इस दौरान भारी गिरावट दर्ज की गई। चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में देश से मात्र 834 टन नेचुरल रबर का निर्यात हुआ है जोकि गत वर्ष की समान अवधि के 16,300 टन के मुकाबले काफी कम है। इंटरनेशनल रबर स्टडी ग्रुप के मुताबिक चालू वर्ष में विश्व स्तर पर रबर के उत्पादन में 2.3 फीसदी कमी आने की संभावना है। (Business Bhaskar.....R S Rana)

निर्यातकों की मांग निकलने से हल्दी दस फीसदी महंगी

निर्यातकों के साथ घरेलू मांग अच्छी होने से हल्दी में तेजी का रुख बना हुआ है। पिछले दस दिनों में घरेलू बाजार में इसकी कीमतों में करीब दस फीसदी की तेजी आ चुकी है। शनिवार को निजामाबाद मंडी में हल्दी के भाव बढ़कर 6,250 रुपये और इरोड़ में 6,700 रुपये प्रति क्विंटल (बिल्टी कट) हो गए। हालांकि हल्दी के बुवाई क्षेत्रफल में बढ़ोतरी हुई है लेकिन हाजिर बाजार में कमजोर स्टॉक और त्यौहारी मांग से मौजूदा कीमतों में और भी तेजी की संभावना है।हल्दी व्यापारी पूनम चंद गुप्ता ने बिजनेस भास्कर को बताया कि खाड़ी देशों के आयातकों की मांग में इजाफा हुआ है तथा कमजोर स्टॉक होने से बिकवाली कम आ रही है। इसलिए पिछले दस दिनों में इसकी कीमतों में लगभग दस फीसदी की तेजी आ चुकी है। उत्पादक मंडियों में इस समय हल्दी का मात्र 13-14 लाख बोरी (एक बोरी 70 किलो) का ही स्टॉक बचा है जो कि पिछले साल की समान अवधि के 20 लाख बोरी से कम है। इरोड़ में 7 लाख बोरी, निजामाबाद में 1.20 लाख, डुग्गीराला में 1.75 लाख, सांगली में 1.50 लाख और वारंगल, नांदेड़ और अन्य मंडियों में करीब 2.25 लाख बोरी का स्टॉक बचा हुआ है। नई फसल की आवक फरवरी महीने में बनेगी। अत: औसतन हर महीने घरेलू खपत और निर्यात मांग को मिलाकर दो लाख बोरी की खपत होती है। ऐसे में नई फसल की आवक के समय हल्दी का स्टॉक बहुत कम बचेगा। इसीलिए स्टॉकिस्टों ने पहले की तुलना में बिकवाली कम कर दी है जिससे हल्दी की तेजी को बल मिल रहा है।इरोड़ स्थित मैसर्स ज्योति ट्रेडिंग कंपनी के डायरेक्टर सुभाष गुप्ता ने बताया कि चालू सीजन में हल्दी की कीमतों में तेजी बनी रही। इसलिए किसानों ने हल्दी की बुवाई ज्यादा क्षेत्रफल में की है। हल्दी की बुवाई का कार्य लगभग पूरा हो चुका है तथा चालू बुवाई सीजन में करीब 15 से 20 फीसदी अधिक बुवाई होने की संभावना है। नई फसल तक मौसम फसल के अनुकूल रहा तो नए सीजन में देश में हल्दी का उत्पादन बढ़कर 50 लाख बोरी से ज्यादा का अनुमान है। जबकि चालू सीजन में इसका उत्पादन घटकर 42 लाख बोरी का ही हुआ था। इस समय हल्दी में त्यौहारी मांग भी अच्छी बनी हुई है। दिवाली तक त्यौहारी मांग बराबर रहने से मौजूदा कीमतों में और भी तेजी की संभावना है। भारतीय मसाला बोर्ड के अनुसार चालू वित्त वर्ष के पहले दो महीनों अप्रैल-मई में हल्दी के निर्यात में 17 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। इस दौरान 10,500 टन का निर्यात हो चुका है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 9,010 टन का ही निर्यात हुआ था। वित्त वर्ष 2008-09 में देश से हल्दी का 52,500 टन का निर्यात हुआ था। (Business Bhaskar......R S Rana)

मांग हल्की पड़ने से प्लास्टिक दाना सस्ता

प्लास्टिक दाने की ग्राहकी कमजोर पड़ने लगी है। इस वजह से पिछले दस दिनों के दौरान इसके दाम पांच फीसदी तक घट चुके हैं। कारोबारियों के मुताबिक आगे भी प्लास्टिक दाने की मांग में सुधार होने की संभावना बहुत कम है। ऐसे में इसकी कीमतों में और गिरावट आ सकती है।प्लास्टिक बाजार में दो सप्ताह के दौरान पीपी-100 दाना की कीमत 82 रुपये से घटकर 78 रुपये, एलडी-40 दाना 83 रुपये से घटकर 79 रुपये, एलडीपीई के दाम 78 रुपये से घटकर 74 रुपये प्रति किलो रह गए हैं। जबकि एचएम के दाम 82 रुपये से घटकर 77 रुपये प्रति किलो रह गए हैं। सदर बाजार प्लास्टिक ट्रेडर एसोसिएशन के प्रधान राजेंद्र गर्ग ने बिजनेस भास्कर को बताया कि प्लास्टिक दाने की मांग में कमी के कारण इसके मूल्यों में पिछले दस दिनों के दौरान चार रुपये प्रति किलो की गिरावट आ चुकी है। हालांकि प्लास्टिक दाना सप्लाई करने वाली कंपनियों ने इसके मूल्यों में कोई कमी नहीं की है। कारोबारियों के मुताबिक प्लास्टिक दाने की मांग में कमी की वजह धन की तंगी है। इसके चलते स्टॉकिस्ट बाजार से गायब हैं। प्लास्टिक कारोबारी राजेश मित्तल के अनुसार दिल्ली सरकार द्वारा प्लास्टिक थैली की बिक्री, खरीद और भंडारण पर पाबंदी का असर न केवल प्लास्टिक कैरी बेग की बिक्री पर पड़ा हैं बल्कि अन्य प्लास्टिक उत्पादों की बिक्री पर भी पड़ रहा है। कारोबारियों के मुताबिक क्रूड ऑयल की कीमतों में उतार-चढ़ाव के कारण भी मांग प्रभावित हो रही है। गर्ग का कहना है कि बीते दिनों में क्रूड ऑयल के दाम 60-70 डॉलर प्रति बैरल के बीच चल रहे हैं। ऐसे स्टॉकिस्ट इस उतार-चढ़ाव के कारण अधिक खरीदारी से परहेज कर रहे हैं और तत्कालिक जरूरत के हिसाब से प्लास्टिक दानों की खरीदारी कर रहे हैं। जुलाई माह की शुरूआत में कंपनियों ने प्लास्टिक दाने की कीमतों में पांच तक की बढ़ोतरी की थी। इसकी वजह क्रूड ऑयल का महंगा होना था।गौरतलब है कि जून माह के दौरान कंपनियों ने सस्ते क्रूड ऑयल (40 डॉलर प्रति बैरल के आसपास) से उत्पादित प्लास्टिक दाने को निकालने के लिए इसके मूल्यों में करीब 12 फीसदी की कटौती की थी। भारत में प्लास्टिक दाने की सप्लाई करने वाली कंपनियों में रिलायंस पेट्रोकेमिकल्स, हल्दिया पेट्रोकेमिकल्स लिमिटेड और गेल इंडिया लिमिटेड प्रमुख है। दिल्ली में करीब 4,000 इकाइयां प्लास्टिक प्रोडक्ट बनाने का काम करती हैं और इस उद्योग से करीब दस हजार कारोबारी जुडे हैं। इसका सालाना कारोबार दस हजार करोड़ रुपये का है। (Business Bhaskar)

अब सहकारी मॉडल से लहलहाएगी खेती

हैदराबाद- भारत में चावल का कटोरा कहे जाने वाले आंध्र प्रदेश में सहकारी कृषि को खेती-बाड़ी के विकास के नए मंत्र के रूप में आजमाया जाएगा। पिछले पांच सालों में राज्य में कृषि की वृद्धि दर 6.4 फीसदी रही है जो 4 फीसदी के राष्ट्रीय औसत से काफी ज्यादा है। उत्पादन में बढ़ोतरी के दम पर आंध्र प्रदेश राष्ट्रीय खाद्य भंडार में योगदान करने वाला दूसरा सबसे बड़ा राज्य बन गया। प्रदेश सरकार ने कहा कि अब किसानों को आधुनिकतम प्रौद्योगिकी, बढि़या खाद-बीज, समय पर कर्ज और मड़ाई के बाद की उपयुक्त सुविधाओं के साथ बाजार संबंधी जानकारी मुहैया कराना शीर्ष प्राथमिकता है ताकि उनकी आमदनी बढ़ सके। इसके लिए सहकारी कृषि को जरिया बना जाएगा। प्रदेश के हर जिले के दो गांवों में यह योजना प्रयोगात्मक आधार पर शुरू की जाएगी।
इस योजना की बुनियादी बात यह है कि किसान की जमीन और उस पर उसका मालिकाना हक एक सहकारी समिति के हवाले कर दिए जाएंगे। प्रदेश सरकार ने प्रस्ताव किया है कि किसान अपनी हिस्सेदारी सहकारी समिति के सदस्यों को बेच सकेंगे। अगर वे सदस्य यह हिस्सेदारी खरीदने को इच्छुक न हों तो उसे सरकार बाजार भाव पर खरीद लेगी। देश के अन्य हिस्सों में चल रही डेयरी सहकारी समितियों की तर्ज पर बनाई जा रही इस योजना से अपेक्षाकृत कम जमीन वाले किसानों की मुश्किलों का काफी हद तक निपटारा होने की उम्मीद की जा रही है। कृषि क्षेत्र से आमदनी बढ़ाने के मकसद से सरकार ने सिंचाई योजनाओं के लिए 17,800 करोड़ रुपए और बिजली सब्सिडी की मद में 6,040 करोड़ रुपए तय किए थे। प्रदेश के वित्त मंत्री ने कहा कि सरकार की महत्वाकांक्षी योजना जलयज्ञम से सिंचाई सुविधाओं में बढ़ोतरी होगी। सरकार ने इन योजनाओं को समय से पूरा करने का वायदा किया है। इसके अलावा सरकार ने कृष्णा जल विवाद न्यायाधिकरण की ओर से लगाए गए प्रतिबंधों में ढील मिलने के बाद महबूबनगर, नलगोंडा, प्रकाशम और कुर्नूल जिलों में अतिरिक्त सुविधाओं के सृजन का प्रस्ताव किया है। प्रदेश 2004-09 के दौरान 8.98 फीसदी की सालाना वृद्धि दर के साथ खाद्यान्न उत्पादन किया जबकि इस अवधि में राष्ट्रीय औसत 1.9 फीसदी रहा। राष्ट्रीय चावल भंडार में राज्य अपने कुल चावल उत्पादन का करीब 60 फीसदी हिस्सा देता है। (ET Hindi)

उर्वरक सब्सिडी सुधारों की राह में तमाम खरपतवार

नई दिल्ली- यूपीए की नई सरकार उस इलाके में कदम रखने जा रही है जहां जाने की हिम्मत इससे पहले की कोई भी सरकार नहीं जुटा सकी थी। यह इलाका है उर्वरक सब्सिडी सुधारों का। यूपीए सरकार इस वित्त वर्ष के उत्तरार्द्ध में इस दिशा में कदम बढ़ाने वाली है। उर्वरक सब्सिडी बिल एक लाख करोड़ रुपए तक पहुंच चुका है। लिहाजा यह मुद्दा सिर्फ किसानों के लिए ही नहीं, बल्कि उन सभी लोगों के लिए अहम हो गया है जिन्हें इतनी बड़ी सरकारी रकम दूसरे रूपों में लाभ पहुंचा सकती है। सरकार की पहल का मुख्य उद्देश्य यह है कि सब्सिडी सीधे किसानों तक पहुंचे। इसके अलावा किसी खास इलाके की जमीन के लिए जरूरी पोषक तत्वों की मात्रा से भी इस सब्सिडी को जोड़ा जाएगा। इस समय इस्तेमाल किए गए उर्वरक की समूची मात्रा पर सब्सिडी दी जाती है जबकि कई मामलों में पाया गया है कि उर्वरकों के अत्यधिक इस्तेमाल से जमीन की उर्वरा क्षमता को नुकसान पहुंचा है। सरकार का विचार तो बढि़या है लेकिन इस राह में बाधाएं विशाल दिख रही हैं। अन्य बातों के अलावा एक फर्क तो यही आएगा कि उर्वरकों की कीमत पांच गुनी तक बढ़ सकती है। किसान और उनके स्वयंभू नेता भी इस पहल का विरोध कर सकते हैं। सरकार को भी इन बाधाओं का अनुमान है और इनसे निपटने की रणनीति तैयार की जा रही है। नई पहल के कई फायदे बताए जा रहे हैं। इसके अनुसार सब्सिडी बिल तो घटेगा ही, यूरिया जैसे सस्ते उर्वरकों के अंधाधुंध इस्तेमाल पर अंकुश भी लगेगा। उर्वरकों की कीमतें बाजार के हवाले किए जाने के एक वर्ष के भीतर यूरिया सेक्टर में 2,900 करोड़ रुपए के निवेश का प्रस्ताव भी है। उर्वरक एवं रसायन मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों के मुताबिक इसका मुख्य उद्देश्य सब्सिडी प्रबंधन को इंडस्ट्री मैनेजमेंट से अलग करना और दोनों ही क्षेत्रों में उच्च दक्षता सुनिश्चित करना है। उदाहरण के लिए, तीन साल की कर छूट की अवधि खत्म होने के बाद अकुशल उद्योगों का बोरिया-बिस्तर बंधने पर इंडस्ट्री मैनेजमेंट के क्षेत्र में करीब 4,500 करोड़ रुपए की बचत होने का अनुमान है। उर्वरक सब्सिडी के लिए भी सरकार विशेष बजटीय आवंटन करेगी और इसे कीमतों में उतार-चढ़ाव के आधार पर तय करने की परंपरा बंद हो जाएगी। बहरहाल सब्सिडी सुधारों का सबसे बड़ा असर यह होगा कि किसानों के लिए उर्वरकों की कीमतें मौजूदा स्तर से पांच गुना तक बढ़ जाएंगी। उर्वरक मंत्रालय का मानना है कि कीमतों में यह बदलाव लंबे अरसे से लंबित था। इसके पक्ष में यह दलील दी जा रही है कि प्रमुख उर्वरकों के दाम 2002 से एक ही स्तर पर बने हुए हैं। इस समय यूरिया की उत्पादन लागत 13,000 रुपए प्रति टन है लेकिन उपभोक्ता के लिए इसका मूल्य 4,850 रुपए प्रति टन ही है। डीएपी की उत्पादन लागत 19,000 रुपए प्रति टन है लेकिन किसानों को यह 9,815 रुपए प्रति टन मिलती है। इसी तरह पोटाश का उपभोक्ता मूल्य 4,500 रुपए प्रति टन है जो इसकी वास्तविक उत्पादन लागत का पांचवां हिस्सा है। मंत्रालय को उम्मीद है कि नई पहल से अकेले यूरिया की मांग में ही 20 फीसदी कमी आएगी जिससे सब्सिडी मद में 3,000 करोड़ रुपए तक की बचत होगी। बहरहाल इस कहानी का दूसरा पहलू यह हो सकता है कि महंगे होने से उर्वरकों का उपभोग घटेगा जिससे उत्पादकता प्रभावित हो सकती है लेकिन सरकार को उम्मीद है कि कंपनियों की प्रतिद्वंद्विता के चलते खुदरा कीमतें वाजिब स्तर पर बनी रहेंगी। नई प्रणाली का खाका अगस्त के अंत तक तैयार होने की उम्मीद है और इसे मंजूरी के लिए सितंबर के अंत या अक्टूबर की शुरुआत में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति के पास भेजा जा सकता है। मंत्रालय क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों और सहकारी बैंकों के खातों, किसान क्रेडिट कार्ड और अन्य उपायों के जरिए सब्सिडी को सीधे किसानों तक पहुंचाने की व्यवस्था करने में जुटा है।
उर्वरक सचिव अतुल चतुर्वेदी ने ईटी से कहा, 'देशभर में जमीन की घटती उपजाऊ शक्ति और भूजल एवं अन्य जल स्त्रोतों के प्रदूषण को लेकर चिंता बढ़ती जा रही है। उर्वरकों और अन्य पोषक तत्वों को समाहित करने की जमीन की क्षमता घट गई है जिससे उत्पादन पर असर पड़ा है। लिहाजा पोषक तत्व आधारित सब्सिडी प्रणाली का असली फायदा जमीन की गुणवत्ता में सुधार के रूप में सामने आएगा जिससे प्रति हेक्टेयर उत्पादकता बढ़ेगी।' बहरहाल किसानों को सीधे सब्सिडी की राह में कई बाधाएं हैं। यह साफ नहीं है कि ग्रामीण बैंकों की शाखाएं अपने खाताधारक किसानों की ओर से खरीदे गए उर्वरकों पर सब्सिडी की गणना करेंगी या नहीं। इलाकावार उर्वरक उपयोग की सीमा तय करने का विचार तो है लेकिन देश में इतनी मृदा परीक्षण प्रयोगशालाएं ही नहीं हैं जो इस तरह का पैमाना तय कर सकें। यह भी साफ नहीं है कि सब्सिडी मनचाही खरीद पर होगी या जमीन के आधार पर प्रति किसान इसकी कोई सीमा होगी। ऐसे तमाम सवालों के जवाब के लिए हमें थोड़ा और इंतजार करना पड़ेगा। (ET Hindi)

आज से ग्वारसीड का वायदा फिर शुरू

मुंबई July 26, 2009
देश का सबसे बड़ा कमोडिटी एक्सचेंज मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (एमसीएक्स) आज से ग्वारसीड का वायदा कारोबार फिर शुरू कर रहा है।
ग्वारसीड के वायदा कारोबार को एमसीएक्स में 2005 को शुरू किया गया था लेकिन 16 अप्रैल 2008 से इस पर पाबंदी लगी हुई थी।
आज से सितंबर, अक्टूबर और नवंबर अनुबंध के लिए वायदा कारोबार शुरू होगा। ग्वारसीड के लिए बीकानेर को डिलिवरी सेंटर बनाया है।
पूर्व में जोधपुर ग्वारसीड का डिलिवरी सेंटर था। गंगानगर और दीसा को डिलिवरी सेंटर बनाया गया है। (BS Hindi)

25 जुलाई 2009

चीनी मिलों पर किसानों का एक हजार करोड़ रुपये भुगतान बाकी

देशभर में चीनी मिलों पर किसानों से गन्ना खरीद का करीब 1,023 करोड़ रुपये अभी भी बाकी है। किसानों का सबसे ज्यादा पैसा उत्तर प्रदेश की चीनी मिलों पर बाकी है।कृषि व खाद्य मंत्री शरद पवार ने राज्यसभा में लिखित जवाब में बताया कि इस मामले में स्थिति काफी खराब है। विभिन्न राज्यों में चीनी मिलों पर 314.24 करोड़ रुपये सितंबर 2008 से चालू मौजूदा सीजन से पहले का भुगतान बाकी है। इस साल 30 अप्रैल तक चालू सीजन के दौरान खरीदे गए गन्ने का 709.02 करोड़ रुपये बाकी है। उत्तर प्रदेश की मिलों पर 53 फीसदी एरियर बाकी है। इसी तरह पिछले सीजन के एरियर को मिलाकर कुल 1,023 करोड़ रुपये बाकी भुगतान में उत्तर प्रदेश की मिलों पर 474.42 करोड़ रुपये बाकी है।इस तरह यूपी की मिलों पर 47 फीसदी देनदारी है। चीनी उद्योग के एक अधिकारी के अनुसार गन्ने के वैधानिक न्यूनतम मूल्य (एसएमपी) और राज्य के परामर्श मूल्य (एसएपी) में भारी अंतर होने के कारण यूपी में मिलों पर एरियर ज्यादा बाकी है। एसएमपी जहां केंद्र सरकार गन्ने की लागत के आधार पर तय करती है जबकि राज्य अपने स्तर पर एसएपी निर्धारित करते हैं। राज्य द्वारा निर्धारित एसएपी केंद्र के एसएमपी से ऊंचा है। यूपी में राज्य सरकार ने चालू सीजन वर्ष 2008-09 के लिए गन्ने का एसएपी 140 रुपये प्रति क्विंटल तय किया था जबकि केंद्र सरकार का एसएमपी 81.80 रुपये प्रति क्विंटल था। उधर पवार ने कहा कि ऐसी कोई रिपोर्ट नहीं है कि किसानों ने मिलों से भुगतान न मिल पाने के कारण गन्ने की खेती करना बंद कर दिया है। उन्होंने कहा कि चीनी के भाव में तेजी आने की वजह गन्ने का कम उत्पादन रही है। गन्ने की कमी के कारण चीनी का उत्पादन कम रहा। इसके कारण खुले बाजार में नॉन लेवी चीनी का मूल्य बढ़ता चला गया। (Business Bhaskar)

चीन में लौह अयस्क के हाजिर भावों में बढ़ोतरी

चीन में पहुंच लौह अयस्क के हाजिर भाव में शुक्रवार को जोरदार तेजी दर्ज की गई। मेटल बुलेटिन के आंकड़ों के मुताबिक शुक्रवार को लौह अयस्क के भाव 94 से 95 डॉलर प्रति टन रहे। चीन में स्टील के रिकॉर्ड उत्पादन होने से मध्य अप्रैल से ही लौह अयस्क की कीमतों में लगातार बढ़ोतरी हो रही है।इंफ्रास्ट्रक्चर और उससे जुड़े सेक्टरों में खर्च बढ़ाने के सरकारी प्रयासों और चीन के तीन लाख करोड़ युआन के प्रोत्साहन पैकेज से लौह अयस्क की कीमतों में बढ़ोतरी आई है। चीन का क्रूड स्टील उत्पादन 6 फीसदी बढ़कर जून में 4.94 करोड़ टन रहा। चीन के आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक देश के कंस्ट्रक्शन क्षेत्र में तेजी आई है और इससे स्टील उत्पादों की मांग बढ़ती रहेगी। स्टील कंसल्टेंसी माईस्टील के वरिष्ठ विश्लेषक यु लिआंगुई ने कहा कि लौह अयस्क की कीमतों में बढ़ोतरी का प्रमुख कारण अप्रैल से स्टील कंपनियों का रिकॉर्ड उत्पादन रहा है। अभी उत्पादन बढ़ाने के लिए करीब तीन महीने और हैं। इस सप्ताह की शुरूआत में लौह अयस्क के हाजिर भाव 63.5 फीसदी बढ़त के साथ एक साल के उच्चतम स्तर 90 डॉलर प्रति टन पर पहुंच गए थे। स्टील उत्पादन बढ़ने और मई में चायनीज मिलों के आठ महीनों में पहली बार मुनाफे में पहुंचने के कारण मध्य अप्रैल से कीमतें चढ़ने लगी थी। चायना आयरन एंड स्टील एसोसिएशन के आंकड़ों के मुताबिक चीन में स्टील की कीमतें जून में 3.9 फीसदी और मई में 2.7 फीसदी बढ़ीं। जुलाई के आंकड़े अभी उपलब्ध नहीं हुए हैं लेकिन चीन की प्रमुख स्टील निर्माता कंपनियों बाओस्टील ग्रुप, जिआंगसु शगांग ग्रुप और अन्य कंपनियों ने कीमतों में बढ़ोतरी जारी रखी।चीन में लौह अयस्क के हाजिर भावों में तेजी इस तथ्य के बावजूद आई है कि वहां की बोड़ी स्टील कंपनियों ने लौह अयस्क खरीदने के लिए मूल्य के बिंदु पर अस्थाई समझौते किए हैं। स्टील कंपनियों और लौह अयस्क आपूर्ति करने वाली कंपनियों के बीच वार्षिक अनुबंधित दरों पर सहमति नहीं बन पाई है। यु ने कहा कि हाजिर और वायदा सौदों में हमेशा अंतर रहता है और हाजिर भाव में हमेशा कीमतें तेज रहती हैं। एंग्लो-ऑस्ट्रेलियन कंपनी बीएचपी बिलीटन लिमिटेड और चीन की रियो टिंटो पीएलसी ने मूल्य पर समझौता न होने से लौह अयस्क की आपूर्ति कम कर दी है। (Business Bhaskar)