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28 नवंबर 2009

आने वाला है चाय की कीमतों में उबाल

कोलकाता : चाय के शौकीन लोगों को एंड सीजन की किस्मों के लिए भी ज्यादा जेब ढील करनी होगी, क्योंकि कीमतें आसमान की ओर जा रही हैं। चाय सीजन 2009 तीन सप्ताह में खत्म होने वाला है और टाटा टी, हिंदुस्तान यूनिलीवर, वाघ बकरी गुप, गिरनार और हसमुखराय एंड कंपनी ऑफ सोसाइटी टी जैसी कंपनियां पिछले साल की तुलना इस बार 20-25 रुपए किलोग्राम ज्यादा कीमत पर भारी मात्रा में चाय खरीद रही हैं। कंपनियों की ओर से अभी खरीदी जा रही है यह चाय अगले चार महीने के दौरान दुकानों के शेल्फ तक पहुंच जाएगी। कलकत्ता टी ट्रेडर्स एसोसिएशन (सीटीटीए) के सचिव जे कल्याणसुंदरम ने कहा, 'चाय की कुछ किस्में ऐसी होती हैं, जिन्हें चार महीने से ज्यादा वक्त तक नहीं रखा जा सकता, क्योंकि यह अपना जायका और खुशबू, दोनों खो बैठती हैं। दूसरी किस्में भी हैं, जिन्हें छह महीने तक स्टोर किया जा सकता है और उसके बाद ब्लेंडिंग के लिए इस्तेमाल भी किया जा सकता है। हालांकि, इस साल हमने गौर किया है कि बड़ी और क्षेत्रीय, दोनों कंपनियां कीमतों में बढ़ोतरी के बावजूद इस बार ज्यादा खरीदारी कर रही हैं।' रीटेल के मोर्चे पर ग्राहकों को चाय की किस्मों के आधार पर 20 से 40 रुपए प्रति किलोग्राम ज्यादा दाम देने पड़ेंगे। पैकेटबंद चाय सेगमेंट में दाम बढ़े ही हैं, साथ ही खुली बिकने वाली चाय भी महंगी हो गई है। आम तौर पर खुली चाय असम, पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु जैसे राज्यों में बिकती है, जहां चाय उत्पादन होता है। फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स एसोसिएशन के चेयरमैन हरेंद्र शाह ने कहा, 'अगले साल फरवरी-मार्च में सीजन के अंत की चाय जब शेल्फ स्पेस में पहुंच जाएगी, तो एक बार फिर कीमतों की समीक्षा की जाएगी। सभी कमोडिटी के दामों में इजाफा हुआ है। हमें यह देखना होगा कि क्या ग्राहक दूसरी बार कीमत बढ़ाने का बोझ सह पाता है या नहीं। टाटा टी और हिंदुस्तान यूनिलीवर जैसी बड़ी पैकेटबंद चाय कंपनियां आम तौर पर कीमतों में बढ़ोतरी के चलन की अगुवाई करती हैं। ये कंपनियां हमारी सदस्य भी हैं।' बहरहाल ब्रांड विशेषज्ञ हरीश बिजूर का कहना है कि आज का ग्राहक चाय के दाम बढ़ने का बोझ सहन करने की हालत में नहीं है। हरीश बिजूर कंसल्ट्स इंक के मुख्य कार्यकारी अधिकारी बिजूर ने कहा, 'हम वैल्यू को लेकर संजीदा रहने वाले लोग ही बने रहेंगे। एक कप चाय के दाम महंगाई दर का मोटा-मोटा अंदाजा दे देते हैं, जिस तरह किसी दक्षिण भारतीय रेस्तरां में इडली की प्लेट की कीमत हमें बता देती है कि दुनिया कितनी महंगी हो चली है।' (ई टी हिन्दी)

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