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26 अक्तूबर 2009

बीटी बैगन के विरोध में किसान

नई दिल्ली October 25, 2009
किसानों ने बीटी बैगन का विरोध करने के लिए जबरदस्त एकजुटता दिखाई है। किसानों के संगठनों ने स्पष्ट संदेश दिया है कि वे आनुवांशिक रूप से संशोधित बैगन की खेती करने को तैयार नहीं हैं।
बैगन की सब्जी पूरे देश में लोकप्रिय है। नेताओं ने शांतिपूर्ण ढंग से पर्याप्त विरोध किया है, लेकिन अगर उनकी बात नहीं सुनी जाती है तो अब वे प्रत्यक्ष कार्रवाई के मूड में नजर आ रहे हैं। उनका कहना है कि देश के विभिन्न बैगन उत्पादक राज्यों के 20 करोड़ किसान उनके साथ हैं।
देश के किसानों के चार बड़े संगठनों ने इस सिलसिले में हाल ही में दिल्ली में बैठक की। इसमें उत्तर भारत के 11.5 करोड़ किसानों के प्रतिनिधित्व का दावा करने वाली भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू), महाराष्ट्र का शेतकरी संघटना, कर्नाटक राज्य रैयत संघ और तमिलनाडु की तमिझगा व्यावसायिगल संघम शामिल हुए।
इन संगठनों के कार्यकर्ताओं ने माहिको द्वारा विकसित बीटी बैगन को नियामक संस्था द्वारा अनुमति दिए जाने के फैसले पर विचार किया। पिछले सप्ताह जेनेटिक इंजीनियरिंग अप्रूवल कमेटी (जीईएसी) ने देश के पहले जीएम फूड की फसल , बीटी बैगन को मंजूरी दे दी। इससे सरकार को इसके व्यावसायीकरण की अनुमति देने का रास्ता साफ हो गया है। इस फैसले की तीखी प्रतिक्रिया हुई।
भारतीय किसान आंदोलन की समन्वय समिति के तत्वावधान में हुई किसानों के संगठन की बैठक में युध्दवीर सिंह के नेतृत्व वाली समन्वय समिति के आह्वान पर दिल्ली में हुई बैठक में सरकार के न सुनने की स्थिति में 'प्रत्यक्ष कार्रवाई' का फैसला किया गया।
दरअसल सवाल बुनियादी हैं। देश में आखिर जीएम बैगन की जरूरत क्या है, जबकि इस समय इसका अतिरिक्त उत्पादन होता है? जीएम बैगन पर विश्वास क्यों किया जा रहा है, जबकि इसके खिलाफ मानकों को लेकर सवाल उठ रहे हैं? सरकार उन तरीकों का इस्तेमाल क्यों नहीं कर रही है, जो पहले से ही जांचे परखे और उत्पादन बढ़ाने के लिहाज से विश्वसनीय हैं और उसे विश्व बैंक का भी समर्थन मिल रहा है?
बीटी बैगन को लेकर तरह तरह के सवाल उठाए जा रहे हैं। पहला मामला तो कीटनाशकों के प्रयोग से जुड़ा हुआ है। इस बीज के प्रयोग से कीटनाशकों की जरूरत कम नहीं होगी, क्योंकि इसका बीज तैयार करने वाली कं पनी माहियो ने खुद कहा है कि इसमें फल की गुणवत्ता और शूट बोरर का ही ध्यान रखा गया है।
अन्य कीट जैसे एफिड, जासिड्स, ह्वाइट फ्लाई और कवकों के हमलों के बचाव को ध्यान में रखकर कुछ सुधार नहीं किया गया है। सेतकारी संघम के विजय जावंधिया ने कहा कि कीटों से बैगन की फसल को नुकसान 20 प्रतिशत से ज्यादा नहीं है, जो अन्य फसलों को होने वाले नुकसान को देखते हुए सामान्य है।
उन्होंने कहा, 'हमें विभिन्न बीमारियों से बैगन को बचाने की जरूरत है, न कि जीएम किस्म की- जो सिर्फ एक कीट से ही सुरक्षा देता है। बीटी बैगन उगाने के लिए भारी मात्रा में कीटनाशकों की जरूरत पड़ेगी, जैसा बीटी कॉटन के मामले में हो रहा है।'
केंद्र सरकार के अनुदान से चलने वाले सिकंदराबाद स्थित सेंटर फार सस्टेनेबल एग्रीकल्चर का कहना है कि उसके पास किसानों की समस्या का समाधान है। इसके कार्यकारी निदेशक जीवी रामानजेयुलु ने बैठक में चौंकाने वाले रहस्योद्धाटन किए।
आंध्र प्रदेश के जिन किसानों ने पारिस्थितिकीय रूप से अनुकू ल और आर्थिक रूप से बेहतर तरीकों को चुना, कीटनाशकों का उचित प्रयोग किया, उन्हें बेहतर मुनाफा मिला। साथ ही पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिहाज से भी उत्पाद बेहतर साबित हुए। आने वाले दिनों में किसान अपनी आवाज जोरदार तरीके से उठाना चाहते हैं। सिंह ने चेतावनी दी कि अगर सरकार उनकी बात नहीं सुनती है तो किसान इसके खिलाफ मोर्चेबंदी कर देंगे। (बीएस हिन्दी)

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