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26 अगस्त 2009

महंगी चीनी:सरकार-मिलों की मिलीभगत?

चीनी की मिठास महंगी होने के पीछे मिलों का हाथ तो है ही, सरकार भी कम जिम्मेवार नहीं हैं। चीनी मिलों ने तो कीमत बढ़ने के आसार देखकर खुले बाजार में सप्लाई पर इस सीजन की शुरुआत से ही ब्रेक लगाना शुरू कर दिया था। दूसरी ओर सरकार भी मिलों पर कार्रवाई करने की बजाय उन्हें अपने मकसद में कामयाब होने के लिए मौका देती रही।
CNBC आवाज की छानबीन में पता चला कि चीनी के उत्पादन में कमी की संभावना को देखते हुए चीनी मिलों ने पहले ही चीनी स्टॉक करना शुरू कर दिया था। मिलों ने सरकार की ओर से जारी होनेवाले मासिक कोटे की पूरी सप्लाई करना भी जरूरी नहीं समझा।
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक सितंबर 2008 से अप्रैल 2009 तक चीनी मिलों ने सरकारी कोटे की करीब 3 लाख 71 हजार टन चीनी बाजार में नहीं बेची। जिसे सरकार ने बाद में लेवी में बदल दिया। इस दौरान चीनी की कीमतें खुले बाजार में उन्नीस रुपए से बढ़कर चौबीस-पच्चीस रुपए किलो तक पहुंच गई।
इतना ही नहीं सरकार ने चीनी मिलों पर दरियादिली दिखाने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी। जब भी जरूरी हुआ, सरकार चीनी मिलों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने के बजाय उन्हें अपने मंसूबे में कामयाब होने का मौका देती रहीं।
हालात बिगड़ते देख सरकार ने सरकार ने करीब 257 मिलों को नोटिस तो जारी कर दिया लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की। चीनी मिलों के खिलाफ एसेंशियल कमोडिटीज एक्ट के तहत कार्रवाई करने से भी सरकार बचती। हद तो तब हो गई जब सरकार ने मार्च महीने की बची हुई चीनी अप्रैल में बेचने की छूट दे दी।
सरकार की ढिलाई देखते हुए मिलों ने मई कोटे की भी चीनी पूरी तरह बाजार में नहीं उतारी। सरकार ने एक बार फिर मई की चीनी 15 जून तक बेचने की छूट दे दी जिसका सीधा फायदा चीनी मिलों को मिला। क्योंकि, जो चीनी वो छह महीने पहले सोलह-सत्रह रुपए किलो बेचा करते थे उसी चीनी को अब उन्हें उनतीस रुपए किलो तक बेचने का मौका मिल रहा है।
चीनी की बढ़ती कीमतों के पीछे कम उत्पादन भी एक वजह है लेकिन इतना साफ है सरकार शुरू से सख्त रवैया अपनाती तो आज शायद चीनी इतनी महंगी नहीं होती। (Awaj)

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