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27 अगस्त 2009

पाबंदी में ढील के बाद भी गेहूं उत्पादों का निर्यात सुस्त

नई दिल्ली : निर्यात पर लगी पाबंदी पर ढील दिए लगभग दो महीने हो गए, लेकिन भारत को अपने गेहूं उत्पादों का कोई विदेशी खरीदार ही नहीं मिल रहा है। अब मिलरों को डर है कि वे इस साल गेहूं उत्पादों की 6।5 लाख टन मात्रा का निर्यात नहीं कर पाएंगे जिसकी इजाजत केंद्र सरकार ने मार्च तक करने की छूट दे रखी हैं। निर्यात की इस मात्रा पर किसी तरह की सब्सिडी नहीं दी जाएगी। असल में पाबंदी पर राहत मिलने से पहले गेहूं उत्पादों के निर्यात पर दो साल तक रोक लगी हुई थी और इन दो सालों में भारतीय गेहूं उत्पादों के पारंपरिक विदेशी खरीदारों ने दूसरों का हाथ पकड़ लिया। मिलरों का कहना है कि उन देशों ने नया बाजार ढूंढ लिया है ताकि उन्हें बिना किसी बाधा के गेहूं उत्पाद मिल सकें। मिलरों की चिंता केवल इतनी ही नहीं है।
उनका कहना है कि देश में सूखे जैसे हालात हैं और कृषि उत्पादों का उत्पादन इस साल काफी कम रह सकता है, ऐसे में निर्यात को लेकर सरकारी नीति और भी ज्यादा अनिश्चितताओं से घिर गई है। रोलर फ्लोर मिलर्स फेडरेशन ऑफ इंडिया के प्रेसिडेंट एम के दत्ताराज कहते हैं, 'पाबंदी के दौरान हमने अपने ग्राहकों को खो दिया है अब हम अपने गेहूं उत्पादों का निर्यात नहीं कर पा रहे हैं। हालांकि हम अपने पुराने बाजार में फिर से घुसने की रणनीति अपना रहे हैं। हो सकता है कि हम निर्यात करने में सफल हो पाएं।' दो साल पहले भारत ने गेहूं उत्पादों के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था, लेकिन इस साल जून में सरकार ने 6।5 लाख टन उत्पादों को निर्यात करने की छूट दे दी। पाबंदी से पहले भारत मुख्य तौर पर चक्की आटा का निर्यात करता था। खरीदारों में शारजाह, दुबई और पश्चिम एशिया के कुछ दूसरे देश शामिल थे। इसके अलावा, दत्ताराज का यह भी कहना है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में गेहूं की कीमतें कम हुई हैं, लेकिन इस तरह की कमी भारत में नहीं देखी जा रही है और किसी प्रकार की सब्सिडी भी नहीं मिल रही है। इसके कारण भारत मिलर अंतरराष्ट्रीय बाजार में पीछे होते चले जा रहे हैं। (इत हिन्दी)

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