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21 जुलाई 2009

खपत बढ़ने पर कॉपर सात फीसदी महंगा

नई दिल्ली. कॉपर की खरीदारी बढ़ने के कारण इसके दाम पिछले दो सप्ताह के दौरान घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजार में सात फीसदी तक बढ़ चुके है।लंदन मेटल एक्सचेंज (एलएमई) में कॉपर तीन माह डिलीवरी कांट्रेक्ट के भाव नौ माह के उच्च स्तर 5464 डॉलर प्रति टन पर पहुंच गया। दो सप्ताह पहले यह करीब 5100 डॉलर प्रति टन पर था। वहीं घरेलू हाजिर बाजार में इसके भाव 15 रुपये बढ़कर 260 रुपये प्रति किलो चल रहे हैं। जबकि मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (एमसीएक्स) में कॉपर अगस्त वायदा सोमवार को 264.60 रुपये प्रति किलो तक पहुंच गया। एंजिल ब्रोकिंग के विश्लेषक अनुज गुप्ता ने बिजनेस भास्कर को बताया कि बीते दिनों में कॉपर के भाव घटने के बाद अब इसकी खरीदारी तेज हो गई है। इस वजह से इसके मूल्यों में तेजी आई है।दिल्ली के मेटल कारोबारी सुरेश चंद गुप्ता का कहना है कि बीते महीनों के दौरान आर्थिक हालात सुधरने की वजह से कॉपर की मांग में इजाफा होने लगा है। उनके अनुसार केबल निर्माताओं, इंफ्रास्ट्रक्चर और हाउसिंग क्षेत्र से मांग निकलने लगी है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में 1.61 लाख टन कॉपर का उत्पादन हुआ है। पिछली समान अवधि में यह आंकड़ा 1.36 लाख टन पर था। बीते महीनों में चीन, ब्रिटेन और अमेरिका सहित कई देशों में कॉपर की खपत में वृद्घि हुई है। पिछले पांच माह के दौरान चीन ने 14 लाख टन कॉपर आयात किया है। यह पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले 130 फीसदी अधिक है। चीनी रिजर्व ब्यूरो ने मई में रिकॉर्ड 3.37 लाख टन कॉपर आयात किया था जो पिछले साल मई के मुकाबले काफी अधिक है। जानकारों के अनुसार चीन सरकार द्वारा राहत पैकेज देने के कारण इसके आयात में इजाफा हुआ है। शंघाई फ्यूचर एक्सचेंज में कॉपर के दाम सोमवार को तीन फीसदी बढ़कर अब तक सर्वोच्च स्तर 43100 युआन प्रति टन पर आ गए हैं। एलएमई में कॉपर का स्टॉक 2.65 लाख टन है। इंटरनेशनल कॉपर स्टडी ग्रुप (आईसीएसजी) के अनुसार वैश्विक बाजार में वर्ष 2009-10 के दौरान कॉपर का सरप्लस रहने का अनुमान है। इसके वर्ष 2009 में 3.45 लाख टन और वर्ष 2010 में 4 लाख टन सरप्लस रहने की संभावना है। कॉपर की सबसे अधिक खपत इलैक्ट्रिकल में 42 फीसदी, भवन निर्माण में 28 फीसदी, ट्रांसपोर्ट में 12 फीसदी, कंज्यूमर प्रोडक्ट में 9 फीसदी और इंडस्ट्रियल मशीनरी में 9 फीसदी होती है। इसका सबसे अधिक उत्पादन एशिया में 43 फीसदी होता है। इसके बाद 32 फीसदी अमेरिका,19 फीसदी यूरोप में किया जाता है। (Business Bhaskar)

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