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23 जून 2009

कमजोर पड़ा मानसून, इकॉनमी के लिए चिंता बढ़ी

नई दिल्ली।। अगर मौसम वैज्ञानिकों की मानें, तो इस साल मॉनसून कमजोर रह सकता है और देश को सूखे के दौर से गुजरना पड़ सकता है। मौसम वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि 2004 की तरह 2009 में भी मॉनसून पर अल नीनो की छाया पड़नेवाली है। इसका मतलब है कि देश में इस बार मॉनसून कमजोर रहेगा और सूखा पड़ने की आशंका है। मौसम विभाग की देश के 36 में से 28 सब-डिविजनों से मिली रिपोर्टों के मुताबिक जून माह में पर्याप्त बारिश नहीं हुई है। जून महीने की 17 तारीख तक 39.5 मिमी बारिश रिकॉर्ड की गई है, जो नॉर्मल से 45 प्रतिशत कम है। भारतीय मौसम विभाग के डायरेक्टर बी. पी. यादव का कहना है कि, 'पिछले 5 महीनों के ट्रेंड देखने से यह आशंका बढ़ती जा रही है कि 2009 भी अल नीनो ईयर साबित हो सकता है।' बढ़ सकती है यूपीए सरकार की परेशानी मौसम वैज्ञानिकों की इस चेतावनी ने सरकार की चिंता बढ़ा दी है। मॉनसून सीजन के दौरान अगर भरपूर वर्षा नहीं हुई, तो उसका असर खाद्यान्न उत्पादन पर पड़ना तय है क्योंकि 65 फीसदी खरीफ (धान, दलहन, तिलहन) फसल पूरी तरह बारिश पर निर्भर हैं। अगर मंडियों में कम अनाज, दालें व तिलहन पहुंचे, तो इनकी कीमतों में अचानक और बढ़ोतरी हो सकती है। इन कारणों से सरकार का सब्सिडी बिल बढ़ सकता है और खाद्यान्न और तेलों का अत्यधिक मात्रा में आयात करना पड़ सकता है। लेकिन समस्या खाद्यान्न का आयात करना नहीं है, अगर जनता को दाल, गेहूं, तेल चाहिए और देश में उसकी कमी है, तो उसे बाहर के बाजार से मंगाना ही उपाय है। समस्या है अल्प वर्षा की स्थिति में अगर फसलों की बुवाई प्रभावित होती है और उत्पादन कम होता है, तो उन स्थितियों से निपटने की सरकार की कोई तात्कालिक योजना नजर नहीं आती है। क्या है अली नीनो? अल नीनो एक क्लाइमट फेनोमेना है। इसके चलते प्रशांत महासागर का पानी नॉर्मल से ज्यादा गर्म हो जाता है और यह लैटिन अमेरिका से साउथ एशिया की तरफ बहनेवाले व्यापार पवन की गति को मंद कर देता है। इसकी वजह से मॉनसून की ताकत कमजोर पड़ जाती है और सूखा पड़ने की आशंका बढ़ जाती है। मॉनसून पर अल नीनो का प्रभाव जब सेंट्रल प्रशांत महासागर का पानी गर्म होकर ऊपर उठने लगता है तो यह ऊपर के वातावरण को गर्म कर देता है। इसमें ड्राई एयर की काफी मात्रा होती है। यह मॉनसून के पानी बरसानेवाली नमी को सोख लेता है और मॉनसून कमजोर पड़ जाता है। अल नीनो के चलते उतनी बारिश नहीं हो पाती है, जितना की नॉर्मल ईयर में होती है। 2004 में मॉनसून पर पड़ा था अल नीनो का असर पिछली बार 2004 में अल नीनो ने मॉनसून पर असर डाला था। इस साल बारिश काफी कम हुई थी। आंकड़ों के मुताबिक इस साल नॉर्मल सूखे साल की तुलना में भी 10 फीसदी कम बारिश हुई थी। आप पर असर यदि मॉनसून कमजोर रहा और सूखा पड़ा तो अर्थव्यवस्था और आम आदमी पर इसके कई प्रतिकूल प्रभाव देखने को मिलेंगे। फसल की पैदावार कम होने की स्थिति में किसानों की आमदनी प्रभावित हो सकती है। वैश्विक मंदी का भारत पर काफी कम असर पड़ा जिसका एक कारण यहां की फलती-फूलती ग्रामीण अर्थव्यवस्था है। सूखा पड़ा तो हालात खराब होंगे। मिडिल क्लास और लोअर मिडिल क्लास के लिए यह और भी बुरी खबर हो सकती है। खाद्यान्न की कमी से इनकी कीमतें आसमान छू सकती हैं। यानी, पहले ही मंदी और महंगाई की मार झेल रही शहरी जनसंख्या के लिए आने वाला वक्त चुनौती भरा होगा। चीन और भारत ही ऐसे देश हैं जो मंदी को धता बताकर आगे बढ़ रहे हैं। लेकिन सूखा पड़ने की स्थिति में लोगों के पास पैसा कम होगा जिससे खपत भी कम होगी। इसका अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल असर पड़ेगा जिससे विकास की दर कम हो जाएगी। इसका सीधा असर देश के शेयर बाजारों पर पड़ेगा और यूपीए सरकार के गठन के बाद ऊपर की ओर जा रहा बाजार गोता लगाएगा। विदेशी निवेशक भारत में धन लगाने से हिचकेंगे जिसका सीधा असर कॉर्परट इंडिया की सेहत पर पड़ेगा। मॉनसून की फुहारों के साथ ही पूरे उत्तर भारत में तापमान हो जाता है और लोगों को भीषण गर्मी से राहत मिलती है। लेकिन इस बार जून के तीन हफ्ते बीत जाने के बावजूद मैदानी इलाकों में गर्म लू चल रही है। बारिश न हुई तो गर्मी का प्रकोप और बढ़ेगा। (ET Hindi)

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