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23 मार्च 2009

चीनी की कीमतों को लेकर सरकार पर उठ रहे हैं सवाल

नई दिल्ली : आम लोकसभा चुनावों से पहले चीनी की कीमतों को नियंत्रित करने के लिए सरकार की आयात शुल्क और री-एक्सपोर्ट बाध्यताओं को खत्म करने की योजना को व्यापारी वर्ग की आलोचना का शिकार होना पड़ रहा है। सरकार की योजना है कि अगर चीनी की रीटेल कीमतें 29 प्रति किलोग्राम से ज्यादा हो जाती हैं तो इस पर लगने वाले आयात शुल्क को हटा दिया जाए। वहीं कारोबारियों में एडवांस्ड लाइसेंस स्कीम के तहत कच्ची चीनी के री-एक्सपोर्ट बाध्यताओं को खत्म करने संबंधी सरकार के संभावित फैसले को लेकर भी चर्चाओं का बाजार गर्म है। दिल्ली के एक कमोडिटी जानकार का कहना है, 'सरकार को जरूरी कमोडिटीज की कीमतों को नियंत्रित करने के लिए नियामक मानकों के पीछे उस समय तक भागने की जरूरत नहीं है, जब तक कि इसके लिए प्रशासनिक विकल्प उपलब्ध हैं।' जानकारों का कहना है कि चीनी और दूसरी कमोडिटीज के स्टॉक लिमिट के बारे में सरकार के आदेश पर अमल इस महीने के आखिर तक हो जाएगा। जानकारों ने बताया कि सरकार को कोई भी नियामक कदम उठाने से पहले थोड़ा इंतजार करना चाहिए। चीनी के स्टॉक और टर्नओवर के बारे में सरकार के नोटिफिकेशन को कैबिनेट ने 23 फरवरी को मंजूरी दी थी। इसका मकसद चीनी की जमाखोरी को रोकना और इसकी बढ़ती कीमतों पर लगाम लगाना था। अधिकारिक रूप से इस नोटिफिकेशन की घोषणा 12 मार्च को की गई। सरकार के इस आदेश को अगले 15 दिनों के अंदर लागू किया जाना है और यह नोटिफिकेशन की तारीख से 4 महीने बाद तक की अवधि के लिए वैध है। चीनी के अलावा चावल, गेहूं, दाल और खाद्य तेल की स्टॉक लिमिट तय की गई है। सरकार को क्रूड सोया ऑयल (सीएसओ) से आयात शुल्क हटाने और दाल के निर्यात पर प्रतिबंध की सीमा अवधि बढ़ाने पर भी आलोचना का सामना करना पड़ रहा है। (ET Hindi)

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