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26 फ़रवरी 2009

भारत में बीटी चावल के व्यवसायीकरण में लगेंगे अभी 8 साल

मुंबई February 26, 2009
आनुवांशिक रूप से परिवर्धित चावल के बीजों का परीक्षण किया जा रहा है। ये बीज कम पानी में भी उगाए जा सकते हैं।
इन परिवर्धित बीजों (जीएम)का व्यावसायीकरण करने में कम से कम 8 साल लग जाएंगे। यह कहना है कृषि वैज्ञानिक भर्ती बोर्ड (एएसआरबी)के चारूदत्ता दिगंबराव माई का।
पहले से ही पॉली हाउस में जीएम राइस के पहले चरण का परीक्षण सफलता पूर्वक किया गया है। अब इस बीज का नियंत्रित परीक्षण कराया जा रहा है। इसके तहत परंपरागत फसल की बुआई एक प्रतिबंधित क्षेत्र में होता है। यह क्षेत्र परंपरागत फसल की बुआई के क्षेत्र से एक किलोमीटर दूर होगा।
वर्ष 2010-11 तक यह परीक्षण खुले क्षेत्रों में भी कराया जाएगा। सरकार के कड़े नियंत्रण के अंतर्गत यह परीक्षण कम से कम दो सालों के लिए होगा। उसके बाद इन बीजों के व्यावसायिकरण के लिए कुछ गिने-चुने किसानों को ही इजाजत दी जाएगी। इसके लिए बड़े किसानों की मेहनत को देखते हुए ही उन्हें इन बीजों के व्यावसायीकरण की इजाजत दी जाएगी।
सरकार की नजर पौधे की बढ़ोतरी, तने का आकार, लवणता, बीजों का विकास, नमी, फसल की कटाई के बाद भूमि का प्रबंधन और फसलों के भंडारण पर भी होगी। चावल के संदर्भ में छोटे पैमाने पर व्यावसायीकरण 5-6 सालों तक चलता रहेगा। गैर खाद्य कृषि जिंसों के लिए यह अवधि केवल 2 साल है।
माई का कहना है कि सभी तरह के परीक्षणों से संतुष्ट होकर ही जीएम राइस का बड़े पैमाने पर व्यावसायीकरण शुरू किया जाएगा। जब उनसे बीटी बैगन के व्यावसायीकरण के संदर्भ में पूछा गया तो उनका कहना था, 'गैर-सरकारी संगठन इस तरह की फसलें नहीं चाहती हैं। इसी वजह से वे इस तरह की फसलों का परीक्षण 25 सालों तक लगातार कराना चाहती हैं। इसी वजह से बीटी बैगन जैसी फसलों का व्यावसायीकरण ही नहीं करने देना चाहती हैं।'
इस तरह के बड़े पैमाने पर होने वाले परीक्षणों के दौरान कुछ ऐसे मुद्दे पैदा हो जाते हैं जिनका खत्म होना बहुत जरूरी होता है। इससे कृषि वृद्धि की रफ्तार अगर प्रभावित नहीं हो तो वह बेहतर है।
माई का कहना है, 'मुझे पूरा यकीन है कि बीटी बैगन का व्यावसायीकरण वित्तीय वर्ष 2011 तक हो जाने की उम्मीद है। सरकार फिलहाल बैगन से ज्यादा चावल पर ही जोर दे रही है।' भारत बॉयोटेक फसलों का इस्तेमाल करने वाला चौथा सबसे बड़ा देश है और इसने पिछले साल कनाडा को पछाड़कर यह स्थान लिया।
देश में बीटी कॉटन बीजों की बुआई 76 लाख हेक्टेयर पर हुई जो वर्ष 2008 के कुल बुआई क्षेत्र 82 फीसदी के बराबर है। वर्ष 2007 में 66 फीसदी की बढ़ोतरी के साथ 62 लाख हेक्टेयर भूमि पर बीटी कॉटन की बुआई का काम हुआ।
एक्विजीशन ऑफ एग्री बॉयोटेक एप्लीके शंस (आईएसएएए)की अंतरराष्ट्रीय सेवा के मुताबिक वर्ष 2008 में रिकॉर्ड स्तर पर 50 लाख छोटे और गरीब किसानों ने बीटी कॉटन की बुआई की। वर्ष 2007 में 38 लाख किसानों ने बीटी कॉटन की बुआई की थी।
पिछले 13 सालों में (1996-2008 के बीच) दुनिया भर में परिवर्धित बीजों में 74 गुणा बढ़ोतरी हुई उसके मुकाबले भारत में परिवर्धित बीजों की बुआई क्षेत्र में 150 गुणा की बढ़ोतरी हुई। इस अवधि में किसानों की आय में प्रति हेक्टेयर 10,000 रुपये की बढ़ोतरी हुई।
राष्ट्रीय स्तर पर किसानों की आय में वर्ष 2002-07 के बीच 3.2 अरब डॉलर की बढ़ोतरी हुई और केवल वर्ष 2007 में 2 अरब डॉलर की बढ़ोतरी हुई। दुनिया भर में परंपरागत बीजों वाले खाद्यान्नों की कमी का संकट 2050 तक जबरदस्त रूप से पैदा होने वाला है। बीटी फसलों से किसानों की आय में बढ़ोतरी होगी।
ऐसा इसलिए होगा क्योंकि फसल की पैदावार बहुत ज्यादा होगी और फसल चक्र प्रक्रिया में भी कमी आएगी। किसानों को भूमि में नमी की कमी का सामना भी नहीं करना पड़ेगा।
बॉयोटेक्नोलॉजी के जरिए कम पानी में फसल उगाने की चुनौती का उपाय भी ढूंढा जा सकता है। इस वक्त उत्पादकता को बढ़ाने पर तवज्जो दिया जा रहा है। कम पानी में उगने वाले मक्के के बीज का व्यावसायीकरण अमेरिका में 2012 तक होने की उम्मीद है। जबकि दुनिया भर में यह बीज 2017 तक मौजूद होगा। (BS Hindi)

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