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23 जनवरी 2009

उद्योगों के लिए तीखा हुआ शीरा

लखनऊ January 22, 2009
गन्ने की कम हुई पैदावार ने उत्तर प्रदेश के शराब निर्माताओं की पेशानी पर बल डाल दिए हैं। इसके चलते शीरे की कमी हो गई है और प्रदेश के ज्यादातर शराब निर्माताओं के भविष्य के लिए संकट नजर आ रहा है।
उत्तर प्रदेश सरकार के अधिकारियों का कहना है कि शीरे को 15 फीसदी तक नियंत्रण मुक्त कर देने के बाद भी समस्या का हल निकलता नही दिख रहा है। गन्ना आयुक्त कार्यालय के अनुसार इस समय पेराई का सत्र चल रहा है फिर भी मोटे अनुमान के मुताबिक बीते साल की तुलना में गन्ने की पैदावार में 30 प्रतिशत की कमी होगी। शीरे के मामले में यह मात्रा तो 50 फीसदी तक जा सकती है। गन्ना उत्पादन में गिरावट ने न केवल शराब निर्माताओं बल्कि एथेनॉल उत्पादकों को भी चोट दी है। गन्ना अधिकारियों के अनुसार सरकार ने अपनी तरफ से शराब निर्माताओ को भरसक राहत देने की कोशिश की है। सरकार को मिलने वाले राजस्व का अधिकांश शराब से ही मिलता है। हालांकि गन्ना अधिकारियों का कहना है कि शीरे के मांग के मुताबिक मौजूद न होने के मामले में कुछ किया नही जा सकता है।एथेनाल के बारे में पूछे जाने पर गन्ना अधिकारियों का कहना है कि बीते साल जब पेट्रोल की कीमतें आसमान छू रही थीं तब राज्य सरकार ने प्रदेश में गन्ने के रस से सीधे एनहाइड्रेड एल्कोहल बना कर इसका इस्तेमाल ईंधन के रूप में करने की इजाजत दी थी। गन्ने की खासी पैदावार को देखते हुए कई मिलों ने एथेनाल का उत्पादन भी शुरु कर दिया। बीते साल ही ईंधन के रुप में 45 करोड़ लीटर एथेनाल का उत्पादन किया गया। पर इस साल गन्ने की कमी को देखते हुए ऐसा संभव नही है। आबकारी विभाग के अधिकारियों के मुताबिक राज्य सरकार को देशी और अंग्रेजी शराब से होने वाली आय को देखते हुए पहले शीरे की आपूर्ति को सुनिश्चित करना है। लिहाजा गन्ने के रस का इस्तेमाल चीनी और शीरे के लिए करना प्राथमिकता होगी। गौरतलब है कि शीरा नियमावली में संशोधन के बाद समूहों के तौर पर स्थापित की गयी ऐसी चीनी मिलों से जो आसवनी परिसर के साथ नही हैं, से भी प्रशासनिक शुल्क के मद में धनराशि मिलने लगेगी। इसके साथ ही उच्चतम न्यायालय के फैसले के बाद समूह की चीनी मिलों में उत्पादित चीनी का 50 फीसदी शीरा जिसे वर्तमान प्रावधानों के अनुसार नियंत्रित कर पाना संभव नही है, वह फिर से सरकार के अधीन हो जाएगा। साथ ही आरक्षित शीरे का वर्तमान में जो 25 फीसदी तय है और आने वाले सालों में 30 फीसदी हो जाएगा, उसे भी 12 से 15 फीसदी की सीमा के तहत लाया जा सकेगा। (BS Hindi)

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