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31 जनवरी 2009

अगले माह चने में गिरावट के आसार

फरवरी के दूसरे पखवाड़े में मध्य प्रदेश की मंडियों में चने की नई आवकों का दबाव बनने के बाद भावों में गिरावट की संभावना है। कर्नाटक और महाराष्ट्र में नई फसल की आवक हो रही है। लेकिन अन्य दालों के भावों में आई तेजी और स्टॉकिस्टों की बिकवाली कम आने से चने के भाव मजबूत बने हुए हैं। चालू फसल सीजन में बुवाई क्षेत्रफल बढ़ने से चने की पैदावार बढ़ने की संभावना है। ऐसे में फरवरी के आखिर तक चने के मौजूदा भावों में 150 से 200 रुपये प्रति क्विंटल की गिरावट आ सकती है।समर्थन मूल्य में बढ़ोतरीचालू फसल सीजन में केंद्र सरकार ने चने के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में 130 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी कर भाव 1730 रुपये प्रति क्विंटल तय किये हैं।बुवाई क्षेत्रफल बढ़ाकृषि मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार चालू फसल सीजन में देश में चने की बुवाई 85.33 लाख हैक्टेयर क्षेत्रफल में हुई है। जबकि पिछले वर्ष की समान अवधि में देश में इसकी बुवाई मात्र 77.93 लाख हैक्टेयर क्षेत्रफल में ही हुई थी। अभी तक लगभग सभी उत्पादक राज्यों में मौसम भी फसल के अनुकूल रहा है। ऐसे में चालू सीजन में देश में चने की पैदावार पिछले साल के 59 लाख टन से ज्यादा होने की संभावना है। केंद्र सरकार ने नई फसल के उत्पादन का लक्ष्य 62 लाख टन का रखा है।नई फसल की आवकचना व्यापारी बिजेंद्र गोयल ने बताया कि कर्नाटक की मंडियों में चने की दैनिक आवक 12 से 15 हजार बोरियों की हो रही है जबकि यहां भाव 2300 से 2350 रुपये प्रति क्विंटल चल रहे हैं। महाराष्ट्र की मंडियों में भी नई फसल की आवक 10 से 12 हजार बोरियों की हो रही है जबकि यहां इसके भाव 2350 से 2400 रुपये प्रति क्विंटल चल रहे हैं। उन्होंने बताया कि फरवरी-मार्च में मध्य प्रदेश और राजस्थान की मंडियों में नई फसल की आवकों का दबाव बनने के बाद चने के भावों में 150 से 200 रुपये प्रति क्विंटल की गिरावट के आसार हैं।बकाया स्टॉकअजय इंडस्ट्रीज के सुनील अग्रवाल ने बताया कि मध्य प्रदेश की मंडियों में चने का बकाया स्टॉक करीब तीन से चार लाख टन का बचा हुआ है। नई फसल को देखते हुए मिलर जरूरत के हिसाब से ही खरीददारी कर रहे हैं। मध्य प्रदेश की मंडियों में चने के भाव 2000 रुपये प्रति क्विंटल व इंदौर मंडी में चने के भाव 2175 रुपये प्रति क्विंटल चल रहे हैं। उन्होंने बताया कि मध्य प्रदेश में चने के बुवाई क्षेत्रफल में तो बढ़ोतरी हुई ही है साथ ही अभी तक मौसम भी फसल के अनुकूल है। ऐसे में चालू सीजन में उत्पादन में भारी बढ़ोतरी के आसार हैं।दिल्ली बाजार में आवकचना व्यापारी राधेश्याम गुप्ता ने बताया कि दिल्ली बाजार में चने की दैनिक आवक 22 से 25 मोटरों की हो रही है जबकि चना दाल में मांग कमजोर होने से यहां राजस्थान के चने के भाव 2225 रुपये और मध्य प्रदेश लाईन के चने के भाव 2200 रुपये प्रति क्विंटल चल रहे हैं।चने का आयातसूत्रों के अनुसार चालू वित्त वर्ष में सरकारी एजेंसियों ने बर्मा, तंजानिया और आस्ट्रेलिया से 17,000 टन चने का आयात किया है। इस समय मुंबई में आस्ट्रेलियाई चने के भाव 2320 रुपये प्रति क्विंटल बोले जा रहे हैं। चूंकि अगले दस-पंद्रह दिनों में घरेलू फसल की आवकों का दबाव बन जाएगा इसलिए नये आयात सौदे कम रहे हैं।वायदा में मजबूतीउत्पादक क्षेत्रों में नई आवकों का दबाव न होने से एनसीडीईएक्स पर मार्च वायदा में भाव 2350 रुपये प्रति क्विंटल पर मजबूत बने हुए है लेकिन मध्य फरवरी में आवकों का दबाव बनने के बाद इसमें गिरावट के आसार हैं। (Business Bhaskar...R S Rana)

प्याज निर्यात के लिए नाफेड ने न्यूनतम मूल्य घटाया

आने वाले दिनों में घरलू बाजारों में प्याज की कीमतों में और इजाफा देख जा सकता है। दरअसल नाफेड ने प्याज का निर्यात बढ़ाने के लिए इसके न्यूनतम निर्यात मूल्य (एमईपी) में 60 डॉलर प्रति टन की कटौती कर दी है। पिछले साल के दौरान नाफेड ने प्याज के निर्यात को हतोत्साहित करने के लिए एमईपी में लगातार इजाफा किया था। गौरतलब है कि मौजूदा समय में घरलू बाजारों में प्याज करीब 18 रुपये प्रति किलो चल रहा है। जबकि पिछले साल इस अवधि के दौरान प्याज के भाव दस रुपये से भी कम थे। जानकारों के मुताबकि प्याज का निर्यात बढ़ने और कई उत्पादक इलाकों में पैदावार घटने की संभावना से कीमतें बढ़ी हैं। इस दौरान नाफेड ने प्याज के एमईपी में 60 डॉलर की कमी कर इसे 320-325 डॉलर प्रति टन कर दिया है। पिछले तीन महीनों में पहली बार एमईपी घटाई गई है। नाफेड के सूत्रों का मानना है कि खरीफ प्याज की आवक फरवरी में शुरु हो जाएगी। ऐसे में घरलू बाजारों में उपलब्धता पर्याप्त रहेगी। हालांकि महाराष्ट्र और दक्षिण भारत के कई उत्पादक इलाकों में खराब मौसम की वजह से प्याज की पैदावार में करीब 20 फीसदी की कमी आने की आशंका जताई जा रही है। सरकारी अनुमान के मुताबिक चालू वित्त वर्ष के दौरान भारत से करीब 15 लाख टन प्याज का निर्यात होने की संभावना है। पिछले साल के दौरान निर्यात बढ़ने और घरलू बाजारों में भाव बढ़ने की वजह से नवंबर से इस साल जनवरी तक नाफेड ने प्याज के एमईपी में करीब 150 डॉलर का इजाफा किया था। मौजूदा समय में नाशिक में रोजाना करीब 45-60 हजार टन प्याज की आवक हो रही है। वहीं दिल्ली में रोजाना करीब आठ हजार टन आवक हो रही है। जो एक महीने पहले की आवक से ज्यादा है। मौजूदा समय में महाराष्ट्र के लासलगांव में प्याज का थोक भाव करीब 935 रुपये `िं टल और दिल्ली में करीब 1130 रुपये `िंटल चल रहा है। मौजूदा एमईपी दरों पर दुबई और शारजांह में प्याज का निर्यात बढ़ सकता है। (Business Bhaskar)

एफएमसी के खिलाफ एनसीडीईएक्स कोर्ट में

जिंस वायदा व्यापार पर ट्रांजेक्शन चार्ज घटाने से रोकने के वायदा व्यापार आयोग (एफएमसी) के फैसले के खिलाफ नेशनल कमोडिटी एंड डेरिवेटिव एक्सचेंज (एनसीडीईएक्स) ने अदालत की शरण ली है। पिछले दिनों एनसीडीईएक्स ने ट्रांजेक्शन चार्ज घटाने की पहल की तो एफएमसी ने इस पर तुरंत रोक लगा दी थी। एक्सचेंज ने एफएमसी के खिलाफ बांबे हाईकोर्ट में मुकदमा दायर किया है। एनसीडीईएक्स ने सुबह दस बजे से शाम पांच बजे के लिए ट्रांजैक्शन चार्ज को पांच रुपये से घटाकर तीन रुपये और शाम पांच बजे के बाद एक रुपये से घटाकर पांच पैसे प्रति एक लाख रुपये कर दिया था। एफएमसी ने एक बार पहले भी एनसीडीईएक्स को इस तरह का कदम उठाने से रोक दिया था। लेकिन एक्सचेंज द्वारा एक बार फिर चार्ज घटाने की घोषणा करने पर एफएमसी ने दोबारा रोक लगाई। एफएमसी के सदस्य राजीव अग्रवाल ने बताया कि एनसीडीईएक्स ने हमार निर्देशों के उलट जाते हुए कोर्ट में मुकदमा दायर किया है। उन्होंने बताया कि 26 जनवरी को एक्सचेंज को इसके लिए आयोग की तरफ से आगाह किया गया था। उधर एनसीडीईएक्स के मुख्य कार्यकारी अधिकारी और प्रबंध निदेशक आर रामाशेषन ने भी मुकदमा दायर करने की बात स्वीकारी है। ज्ञात हो कि एनसीडीईएक्स ने इस तरह का कदम मुख्य रूप से कारोबारियों का रुझान बढ़ाने के लिए उठाया है। दरअसल पिछले कुछ सालों से मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (एमसीएक्स) के मुकाबले इसके कारोबार में लगातार गिरावट दर्ज हो रही है। इससे पहले एमसीएक्स भी कम दरों पर कारोबार की सुविधा उपलब्ध कराता था। एफएमसी के अध्यक्ष बीसी खटुआ ने बताया कि एनसीडीईएक्स ने आयोग से ट्रांजैक्शन चार्ज घटाने की मंजूरी भी नहीं ली है। लिहाजा निर्देश जारी कर मामले की छानबीन की जा रही है। चालू महीने के पहले पखवाड़े के दौरान एनसीडीईएक्स के कारोबार में करीब 34 फीसदी की गिरावट आने से यह करीब 21,484.15 करोड़ रुपये रहा है। उल्लेखनीय है कि एनसीडीईएक्स में एग्री कमोडिटी का अन्य एक्सचेंजों के मुकाबले ज्यादा कारोबार होता है। इसमें चना, सरसो, सोयाबीन, ग्वार, चीनी, मक्का और जौ का कारोबार मुख्य रूप से होता है। (Business Bhaskar)

नई आवक बढ़ने के बावजूद लाल मिर्च में मजबूती कायम

आंध्रप्रदेश की उत्पादक मंडियों में लाल मिर्च की दैनिक आवक बढ़कर 38 से 40 हजार बोरी (एक बोरी 45 किलो) की हो गई। फिर भी घरेलू मांग अच्छी होने से भाव मजबूत ही बने हुए हैं। चालू फसल सीजन में किसानों द्वारा कॉटन की बुवाई ज्यादा करने से लाल मिर्च के बुवाई क्षेत्रफल में कमी आई है। ऐसे में लालमिर्च की पैदावार पिछले साल के 150 लाख बोरी के मुकाबले 120 से 125 लाख बोरी होने के आसार है। बुवाई से लेकर अभी तक मौसम फसल के अनुकूल रहा है। इसलिए चालू वर्ष में फटकी क्वालिटी की आवक कम और बढ़िया मालों की आवक ज्यादा होगी। फरवरी महीने के दूसरे पखवाड़े में आवक का दबाव बनने के बाद मौजूदा भावों में 400 से 500 रुपये प्रति क्विंटल की गिरावट आ सकती है।गुंटूर मंडी स्थित मैसर्स स्पाइसेज ट्रेडिंग कंपनी के डायरेक्टर विनय बुबना ने बिजनेस भास्कर को बताया कि गुंटूर में लाल मिर्च का पुराना स्टॉक मात्र सात से आठ लाख बोरियों का ही बचा हुआ है तथा इसमें भी बढ़िया माल कम हैं। नई फसल की आवक मात्र 38 से 40 हजार बोरी की हो रही है जबकि घरेलू मांग अच्छी है। इसलिए भाव मजबूत ही बने हुए हैं। गुंटूर मंडी में नई लालमिर्च की आवक 25 हजार बोरी, खम्माम में आठ से दस हजार और वारंगल में चार से पांच हजार बोरी की हो रही है। उन्होंने बताया कि आवक का दबाव बनने के बाद फरवरी के मध्य में 500 से 700 रुपये प्रति क्विंटल की गिरावट आ सकती है। मार्च में स्टॉकिस्टों के साथ ही होली की मांग शुरू हो जाती है इसलिए भावों में ज्यादा मंदे की उम्मीद नहीं है।गुंटूर मंडी में तेजा क्वालिटी के भाव 4800-5500 रुपये, 334 के भाव 4800-5200 रुपये, सनम के 5000-5500 रुपये, 273 क्वालिटी के 4500-5500 रुपये, ब्याडगी क्वालिटी के 5000-6300 रुपये व पांच नं0 के 4800-5700 रुपये तथा फटकी क्वालिटी के भाव 1800 से 2500 रुपये प्रति क्विंटल पर मजबूत बने हुए हैं।इंदौर के लालमिर्च व्यापारी खजोरमल प्रजापति ने बताया कि राज्य की मंडियों में लालमिर्च की साप्ताहिक आवक घटकर 45 से 50 हजार बोरी की रह गई है। जबकि बढ़िया मालों की आवक कम हो रही है। मध्य प्रदेश की मंडियों में भाव 4000 से 5200 रुपये प्रति क्विंटल क्वालिटीनुसार चल रहे हैं।मुंबई स्थित लालमिर्च के निर्यातक अशोक दत्तानी ने बताया कि मलेशिया, श्रीलंका, थाईलैंड व इंडोनेशिया के आयातक नई फसल को देखते हुए नए सौदे कम रहे हैं। चालू फसल सीजन में अनुकूल मौसम से बढ़िया माल की आवक ज्यादा होगी इसलिए आगामी महीनों में देश से निर्यात मांग में बढ़ोतरी की संभावना है। चालू वित्त वर्ष के अप्रैल से दिसंबर तक भारत से लालमिर्च का निर्यात 141,000 टन का ही हुआ है जोकि बीते वर्ष की समान अवधि के 149,755 टन से कम है। (Business Bhaskar.....R S Rana)

सोना 14,280 रुपए के रिकॉर्ड स्तर पर

अहमदाबाद : आंच में पड़ने पर सोने का और निखरना महज कहावतों की बात नहीं है। इस बार आंच वित्तीय संकट की है जिसमें निवेश की नजर से देखी जाने वाली तमाम संपत्तियां झुलस गईं लेकिन सोना एकमात्र कमोडिटी रहा जिसकी चमक बढ़ती रही। अंतरराष्ट्रीय हाजिर बाजार में सोना 926 डॉलर प्रति औंस पर है जो तीन महीनों का इसका उच्चतम स्तर है। मुंबई बाजार में शुक्रवार को इसने प्रति 10 ग्राम 14,280 रुपए का रिकॉर्ड स्तर छुआ। विश्लेषक भी लगातार 8 वर्षों से सोने की कीमतों में बढ़ोतरी से हैरान हैं। अंतरराष्ट्रीय बाजार में 180-200 कमोडिटी का डेरिवेटिव श्रेणी में कारोबार होता है लेकिन केवल सोने में ही तेजी का रुख दिखा है। पिछले 8 वर्षों में कच्चे तेल सहित सभी अन्य कमोडिटी ने अपने उच्चतम स्तर छुए और अब निमन्तम स्तर के आसपास हैं। विशेषज्ञों के अनुसार सोने की इस चमक के पीछे दो अहम कारण हैं। एक तो यह कि महंगाई से बचाव के रूप में सोने का इस्तेमाल किया जाता है और दूसरा यह कि अमेरिकी डॉलर के मुकाबले यह एकमात्र विकल्प है। मंदी के कारण कच्चे तेल का मिजाज ठंडा हो चुका है और इससे महंगाई का जोखिम भी घट गया है। हालांकि अमेरिकी अर्थव्यवस्था में मंदी की आशंका है जिसके कारण डॉलर से होने वाला जोखिम कम करने के लिए सोने की मांग बढ़ी है। पैराडाइम कमोडिटीज के एमडी बीरेन वकील ने कहा, 'अन्य संपत्ति श्रेणियों की साख खत्म होने के कारण सोना निवेश के सबसे पसंदीदा विकल्प के रूप में उभरा है। पिछले 8 वर्षों से सोने में तेजी का रुख है जो ऐतिहासिक है। हालांकि सोने में कारोबारी ढर्रा साफ नहीं है और यह कारोबारियों तथा निवेशकों के लिए अच्छी बात नहीं है। फरवरी 2008 में सोना 13,000-14,000 रुपए के करीब था और एक साल बाद अब यह फिर उसी स्तर के आसपास है। इससे पता चलता है कि निवेशकों को कोई फायदा नहीं मिला है। जिन्होंने अस्थिरता के दौरान ऊंचे भाव पर सोना बेचा था और निचले स्तर पर खरीदारी की थी, उन्हें ही रिटर्न मिला है।' सोने की कीमतों में 21वीं सदी की शुरुआत से ही तेजी रही जो 2008 तक बरकरार रही। इस अवधि में वैश्विक बाजार में सोना 250 डॉलर प्रति औंस से बढ़कर अपैल 2008 में 1,032 डॉलर प्रति औंस तक पहुंचा। बहरहाल सब-प्राइम संकट शुरू होने के बाद सोना अपना उच्चतम स्तर दोबारा हासिल नहीं कर सका। 2008 में सोने ने 680 डॉलर प्रति औंस का निचला स्तर दो बार छुआ लेकिन जल्दी ही इससे उबर गया।विशेषज्ञों के अनुसार घरेलू बाजार में सोना के 15,000 रुपए का स्तर छूने की मजबूत संभावना है। बॉम्बे बुलियन एसोसिएशन लिमिटेड के अध्यक्ष सुरेश हुंडिया ने कहा, 'घरेलू बाजार में सोना अब तक के उच्चतम स्तर पर है। बहरहाल अधिक दाम के कारण मांग काफी गिर गई है लेकिन अंतरराष्ट्रीय बाजार में गोल्ड एक्सचेंज टेडेड फंड में निवेश करने वालों की तादाद काफी बढ़ी है। इससे कीमतों को सहारा मिलेगा।' वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल के निदेशक (भारत) धर्मेश सोढ़ा ने ईटी से कहा, 'वित्तीय उथल-पुथल ने सोने में लोगों का भरोसा बढ़ाया है। दुनिया के सभी ईटीएफ के पास इस समय 1,011 टन सोना है और मांग अब भी बढ़ रही है।' (ET Hindi)

नई दिल्ली: इस साल जनवरी में हमेशा की तरह ठंड न रहने से सरकार के माथे पर पसीना छलक आया है। दरअसल इस बार तापमान सामान्य से अधिक रहा है जिसे देखते हुए आश

कोच्चि : चालू वित्त वर्ष में अप्रैल से दिसंबर के बीच प्राकृतिक रबर का उत्पादन 7.9 फीसदी बढ़कर 6,69,080 टन हो गया। उम्मीद से कम खपत और अधिक आपूर्ति होने से शॉर्ट टर्म में रबर की कीमतों पर दबाव बना रह सकता है। शुक्रवार को एनसीडीईएक्स पर रबर का हाजिर भाव 68.54 रुपए किलो था। वहीं गुरुवार को घरेलू रबर की कीमत 69 रुपए प्रति किलो थी, जबकि एक दिन पहले बुधवार को रबर की कीमत 68.75 रुपए प्रति किलो थी। अंतरराष्ट्रीय बाजार में रबर की कीमत गुरुवार को मामूली बढ़त के साथ 74.92 रुपए प्रति किलो के स्तर पर थी। पिछले कई सप्ताह से रबर की कीमत इसी स्तर के आसपास बनी हुई है। अप्रैल से दिसंबर के बीच रबर की खपत 2.7 फीसदी बढ़कर 6,59,665 टन हो गई। चालू वित्त वर्ष में 8.99 लाख टन रबर की खपत का वास्तविक अनुमान लगाया गया था, लेकिन समीक्षा के बाद इसे घटाकर 8.62 लाख टन कर दिया गया है। रबर बोर्ड के एक अधिकारी के अनुसार, 'खपत में गिरावट के ट्रेंड से कीमतों पर दबाव बन सकता है।' वाणिज्यिक वाहनों के उत्पादन में गिरावट के कारण कीमत पर और प्रभाव पड़ सकता है। हालांकि, उनका मानना है कि फरवरी-मार्च में सीजन की शुरुआत में कीमतों में थोड़ी बढ़ोतरी हो सकती है। इस साल के लिए पहले किए गए 8.75 लाख टन के उत्पादन अनुमान को घटाकर 8.61 लाख टन किया गया है। दिसंबर में उत्पादन 14 फीसदी गिरकर 96,200 टन रहा। 2008 के दिसंबर के अंत में स्टॉक 1.91 लाख टन की तुलना में 2.06 लाख टन रहा। अप्रैल-दिसंबर के बीच 40,691 टन रबर का निर्यात किया गया, जबकि पिछले साल समान अवधि में निर्यात 24,581 टन रहा था। अप्रैल-दिसंबर के दौरान 65,748 टन रबर का आयात हुआ जबकि पिछले साल की समान अवधि में आयात 68,826 टन रहा था। (ET Hindi)

गेंहू का उत्पादन लक्ष्य रहेगा अधूरा?

नई दिल्ली: इस साल जनवरी में हमेशा की तरह ठंड न रहने से सरकार के माथे पर पसीना छलक आया है। दरअसल इस बार तापमान सामान्य से अधिक रहा है जिसे देखते हुए आशंकाएं उठने लगी हैं कि भारत 2008-09 में 7.9 करोड़ टन गेहूं उत्पादन का लक्ष्य हासिल कर पाएगा या नहीं। जाहिर है, चुनावी साल में ऐसी आशंकाएं किसी भी सरकार की नींद हराम कर सकती हैं। इसे देखते हुए ही हाल में गेहूं का न्यूनतम समर्थन मूल्य 80 रुपए बढ़ाकर 1,080 रुपए प्रति क्विंटल कर दिया गया ताकि उपज कैसी भी हो, सरकारी भंडार में अधिक से अधिक गेहूं आ जाए और सार्वजनिक वितरण प्रणाली तथा अन्य कल्याण कार्यक्रमों के लिए खाद्यान्न का भंडार मजबूत बना रहे। बढ़िया खरीद होने से सरकार को जरूरी होने पर बाजार में गेहूं की कीमतों पर नियंत्रण करने में भी सहूलियत होगी। इस साल पंजाब और हरियाणा जैसे प्रमुख गेहूं उत्पादक राज्यों में तापमान सामान्य से 2-4 डिग्री सेल्सियस तक ज्यादा रहा है। कृषि मंत्रालय के अधिकारियों और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के वैज्ञानिकों ने जनवरी में अधिक तापमान से गेहूं की उपज पर पड़ सकने वाले असर के बारे में फिलहाल कुछ नहीं कहा है लेकिन पंजाब कृषि विभाग के अधिकारियों ने बुधवार को कहा कि इस साल गेहूं की पैदावार की मात्रा और गुणवत्ता, दोनों घट सकती है। जनवरी के अधिकांश समय में तापमान कम रहने से गेहूं की फसल को लाभ होता है, हालांकि पाला नुकसानदायक होता है। अधिकारियों ने कहा कि अगर अस्वाभाविक रूप से अधिक तापमान की स्थिति बनी रहती है तो नवंबर में बोई गई फसल पर असर पड़ सकता है जिसे पहले ही अपेक्षाकृत कम वर्षा की मार बर्दाश्त करनी पड़ी है। खरीफ सीजन के दौरान देश भर में उत्तर पूर्वी मानसून में 31 फीसदी कम बारिश देखी गई। हरियाणा में भी कृषि विभाग के अधिकारियों ने इसी तरह की आशंका जताई है, हालांकि गेहूं शोध महानिदेशालय, करनाल के वैज्ञानिकों ने इस पर अभी मुहर नहीं लगाई है। गेहूं शोध संस्थान के निदेशक बी मिश्रा ने कहा कि अनुकूल तापमान के कारण हरियाणा, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों में इस साल गेहूं की बुवाई अक्टूबर के तीसरे सप्ताह से शुरू हो गई थी जबकि आमतौर पर इसकी शुरुआत 30 अक्टूबर से 15 नवंबर के बीच होती है। शीर्ष गेहूं उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश में गेहूं की बुवाई पश्चिमी हिस्सों में अक्टूबर के अंत में शुरू हुई जबकि मध्य भाग में धान के कारण इसकी बुवाई में देर हो गई। तापमान अधिक होने के अलावा जनवरी में शुष्क मौसम की शुरुआत भी जल्दी हो गई और रबी सीजन के लिए मामूली बारिश ही मिल सकी। इतना ही नहीं, अगले कुछ दिनों में मध्य प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में तापमान 4-7 डिग्री सेल्सियस और बढ़ सकता है। इस साल गेहूं बुवाई का रकबा करीब 2.9 करोड़ हेक्टेअर रहा और अनुमान के मुताबिक 2008-09 में उपज 20 लाख टन तक बढ़कर करीब 7.9 करोड़ टन तक पहुंच जाएगी। पिछले साल 7.84 करोड़ टन उत्पादन था।

माल्ट उद्योग में मांग से जौ में तेजी

मुंबई January 29, 2009
डिस्टिलरी और माल्ट उद्योग से मांग में हुई बढ़ोतरी की वजह से मंद पड़े जौ के बाजार में तेजी आने के आसार हैं। कारोबारियों के मुताबिक, मक्के, ज्वार, बाजरा और ग्वारसीड की कीमतों में बढ़ोतरी से भी इसे समर्थन मिल रहा है।
राजस्थान की बड़ी मंडियों में इसका हाजिर भार 880 रुपये प्रति क्विंटल के करीब रही। अन्य खर्चों को जोड़ने के बाद भी इसकी कीमत 930 रुपये प्रति क्विंटल है। अभी एक पखवाड़े पहले ही जौ की कीमत 800 रुपये प्रति क्विंटल थी। इसकी कुल खपत का 70 प्रतिशत हिस्सा माल्ट उद्योग में जाता है, जिसका उपयोग बियर बनाने में किया जाता है। इसके अलावा शेष हिस्से की खपत पशुओं के दाने और अन्य रूपों में होता है। ज्यादातर माल्ट उद्योग राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान में है।राजस्थान के श्रीमाधोपुर के जौ कारोबारी सुरेश वशिष्ठ ने कहा कि इस समय उत्तर भारत के माल्ट उद्योग की ओर से बहुत ज्यादा मांग आ रही है। इस समय परिष्करण की प्रक्रिया तेजी से होती है। इस समय कोई उम्मीद नहीं है कि जौ की कीमतों में कमी आए।राजस्थान के अलावा हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में भी जौ की खेती होती है। जौ की नेशनल कमोडिटी ऐंड डेरिवेटिव्स एक्सचेंज में अप्रैल की वायदा कीमतें 28 जनवरी को 938 रुपये प्रति क्विंटल पर पहुंच गई हैं। (BS Hindi)

चावल की बिक्री में कमी के आसार

नई दिल्ली January 29, 2009
औद्योगिक मंदी के कारण जालंधर व आसपास के इलाकों में चावल की बिक्री में 25 फीसदी की गिरावट आ गयी है। सुनकर थोड़ा अटपटा लगता है, लेकिन यह हकीकत है।
इस इलाके में चावल की बिक्री मुख्य रूप से बिहार व उत्तर प्रदेश से आए श्रमिकों के कारण होती है। मंदी के कारण औद्योगिक इकाइयों में काम करने वाले श्रमिक वहां से पलायन कर चुके हैं। साथ ही खेतों में भी कोई खास काम नहीं होने के कारण इन दिनों प्रवासी श्रमिकों का आगमन कम ही हो रहा है।जालंधर अनाज मंडी के पदाधिकारी नरेश मित्तल कहते हैं, 'पंजाब में चावल खाता ही कौन है। अगर इस इलाके में बाहर से आए श्रमिक न हो तो चावल की बिक्री 50 फीसदी तक कम हो जाएगी।' बिक्री में गिरावट आने से चावल की कीमत भी कम हो गयी है। पिछले साल जिस परमल (साधारण) चावल की कीमत 16 रुपये प्रति किलोग्राम थी, वह घटकर 14 रुपये प्रति किलोग्राम के स्तर पर आ गयी है। वैसे ही उम्दा परमल चावल के भाव 23-24 रुपये से गिरकर 19-20 रुपये प्रति किलोग्राम के स्तर पर आ गए हैं। चावल कारोबारियों के मुताबिक मंदी के कारण यहां की स्थानीय औद्योगिक इकाइयों से जुड़े प्रवासी श्रमिकों को काम मिलना बंद हो गया है। दूसरी बात यह है कि गेहूं की बुआई भी खत्म हो चुकी है इसलिए बड़े पैमाने पर खेतों में भी काम नहीं हो रहा है। लिहाजा खेतों में काम करने वाले श्रमिक भी पंजाब की ओर अपना रुख नहीं कर रहे हैं। पकाने में आसान व पसंदीदा भोजन होने के कारण अधिकतर प्रवासी श्रमिक दोनों वक्त चावल ही खाते हैं।कारोबारियों ने बताया कि यहां की सरकार बहुत ही कम मात्रा में चावल की खरीदारी करती है। मांग नहीं होने के कारण फुटकर विक्रेता भी कम ही मात्रा में चावल की खरीदारी कर रहे हैं। (BS Hindi)

नहीं छंट रहे हैं सरसों तेल के दुर्दिन

नई दिल्ली January 30, 2009
सरसों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में बढ़ोतरी के बावजूद सरसों तेल में मंदी का दौर जारी है।
अन्य वनस्पति तेलों में लगातार गिरावट एवं सरसों की बंपर फसल के अनुमान के तहत पिछले एक माह के मुकाबले सरसों तेल में प्रति किलोग्राम 12-13 रुपये की गिरावट हो चुकी है। जुलाई-अगस्त के मुकाबले सरसों तेल में 20 रुपये प्रति किलोग्राम की गिरावट दर्ज की जा चुकी है। शुक्रवार को सरसों तेल की कीमत थोक बाजार में 52 रुपये प्रति किलोग्रम के स्तर पर थी। कारोबारी अगले 10-15 दिनों में सरसों तेल में और 5 रुपये प्रति किलोग्राम की गिरावट का अनुमान लगा रहे हैं। सरसों बाजार में भी नरमी के आसारसरकार ने सरसों के एमएसपी में 30 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी की है और अब यह 1800 रुपये प्रति क्विंटल की जगह 1830 रुपये प्रति क्विंटल हो गया है। जबकि पिछले साल तेजी के दौरान सरसों 3200 रुपये प्रति क्विंटल के स्तर पर चला गया था। कारोबारी कहते हैं कि इस बार सरसों का उत्पादन 70 लाख टन के आसपास रहने का अनुमान है जो कि पिछले साल के मुकाबले लगभग 15-18 फीसदी अधिक है। दूसरी बात यह है कि तेज धूप एवं मौसम के साफ होने के कारण इस साल सरसों की आवक तय समय से 15-20 दिन पहले ही शुरू हो जाएगी।इसके अलावा पाम तेल व सोयाबीन तेल से समर्थन नहीं मिलने के कारण सरसों की कीमत अधिकतम 2000 रुपये प्रति क्विंटल तक जाने की उम्मीद की जा रही है। पाम तेल कांडला पोर्ट पर 270 रुपये प्रति 10 किलोग्राम तो सोयाबीन तेल इंदौर की मंडी में 465-480 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से बिक रहे हैं। सरसों का उत्पादन मुख्य रूप से राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, गुजरात व उत्तर प्रदेश में होता है।वनस्पति घी से नहीं मिलेगा समर्थनतेल के थोक कारोबारी हेमंत गुप्ता कहते हैं, 'सरसों की आवक मंडी में 15 फरवरी तक शुरू हो जाएगी और 2000 रुपये प्रति क्विंटल की दर से बिकने पर सरसों तेल की कीमत 45.75 रुपये प्रति किलोग्राम होगी। इस लिहाज से सरसों तेल में 7 रुपये प्रति किलोग्राम तक की गिरावट हो सकती है।'सरसों या सरसों तेल में तेजी की संभावना इसलिए भी नहीं बन रही है कि इस साल वनस्पति घी में इसका इस्तेमाल किसी भी कीमत पर नहीं हो पाएगा। पहले वनस्पति घी में 30 फीसदी तक सरसों तेल की मिलावट की जाती रही है। लेकिन इस बार 38-40 रुपये प्रति किलोग्राम बिकने वाले वनस्पति घी में 50 रुपये प्रति किलोग्राम बिकने वाले सरसों तेल को मिलाना किसी उत्पादक के लिए फायदेमंद नहीं होगा।एमएसपी से खुश नहींसरसों तेल उत्पादक कहते हैं कि सरसों का एमएसपी और बढ़ाया जाना चाहिए था। क्योंकि गेहूं के मुकाबले सरसों की उत्पादकता प्रति हेक्टेयर मात्र 30 फीसदी है। यानी कि 1 हेक्टेयर जमीन पर खेती करने से अगर 10 क्विंटल गेहूं का उत्पादन होता है तो सरसों का उत्पादन मात्र 3 क्विंटल होगा। ऐसे में सरसों के न्यूनतम मूल्य में प्रति क्विंटल मात्र 30 रुपये का इजाफा जायज नहीं है। गेहूं् के समर्थन मूल्य में 80 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी की गयी है। (BS Hindi)

Tariff Value of Edible Oils, Brass Scrap and Poppy Seeds Notified

Central Board of Excise and Customs (CBEC), Department of Revenue has issued Notification No.19/2009-Customs (N.T.) dated January 30, 2009 notifying tariff values of edible oils, brass scrap (all grades) and Poppy seeds as shown in the table below.
“T A B L E”
S.No.--Chapter heading/ sub-heading/tariff item--Description of goods--Tariff value US $
--------------------------------------------------------------------------(Per Metric Tonne)
(1)----------(2)------------------------------------------(3)-----------------(4)
1---------1511 10 00-----------------------------Crude Palm Oil------447 (i.e. no change)
2--------1511 90 10------------------------------RBD Palm Oil--------476 (i.e.no change)
3--------1511 90 90----------------------------Others – Palm Oil-----462 (i.e. no change)
4--------1511 10 00----------------------------Crude Palmolein-------481 (i.e. no change)
5--------1511 90 20-----------------------------RBD Palmolein--------484 (i.e. no change)
6--------1511 90 90-----------------------------Others – Palmolein----483 (i.e. no change)
7---------1507 10 00--------------------------Crude Soyabean Oil------580(i.e. no change)
8---------7404 00 22-------------------------Brass Scrap (all grades)----2966
9------1207 91 00------------------------Poppy seeds-------------3920--BSC/BY/GN-28/09

30 जनवरी 2009

माल्ट उद्योग में मांग से जौ में तेजी

मुंबई January 29, 2009
डिस्टिलरी और माल्ट उद्योग से मांग में हुई बढ़ोतरी की वजह से मंद पड़े जौ के बाजार में तेजी आने के आसार हैं। कारोबारियों के मुताबिक, मक्के, ज्वार, बाजरा और ग्वारसीड की कीमतों में बढ़ोतरी से भी इसे समर्थन मिल रहा है।
राजस्थान की बड़ी मंडियों में इसका हाजिर भार 880 रुपये प्रति क्विंटल के करीब रही। अन्य खर्चों को जोड़ने के बाद भी इसकी कीमत 930 रुपये प्रति क्विंटल है। अभी एक पखवाड़े पहले ही जौ की कीमत 800 रुपये प्रति क्विंटल थी। इसकी कुल खपत का 70 प्रतिशत हिस्सा माल्ट उद्योग में जाता है, जिसका उपयोग बियर बनाने में किया जाता है। इसके अलावा शेष हिस्से की खपत पशुओं के दाने और अन्य रूपों में होता है। ज्यादातर माल्ट उद्योग राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान में है।राजस्थान के श्रीमाधोपुर के जौ कारोबारी सुरेश वशिष्ठ ने कहा कि इस समय उत्तर भारत के माल्ट उद्योग की ओर से बहुत ज्यादा मांग आ रही है। इस समय परिष्करण की प्रक्रिया तेजी से होती है। इस समय कोई उम्मीद नहीं है कि जौ की कीमतों में कमी आए।राजस्थान के अलावा हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में भी जौ की खेती होती है। जौ की नेशनल कमोडिटी ऐंड डेरिवेटिव्स एक्सचेंज में अप्रैल की वायदा कीमतें 28 जनवरी को 938 रुपये प्रति क्विंटल पर पहुंच गई हैं। (BS Hindi)

चावल की बिक्री में कमी के आसार

इस इलाके में चावल की बिक्री मुख्य रूप से बिहार व उत्तर प्रदेश से आए श्रमिकों के कारण होती है। मंदी के कारण औद्योगिक इकाइयों में काम करने वाले श्रमिक वहां से पलायन कर चुके हैं। साथ ही खेतों में भी कोई खास काम नहीं होने के कारण इन दिनों प्रवासी श्रमिकों का आगमन कम ही हो रहा है।जालंधर अनाज मंडी के पदाधिकारी नरेश मित्तल कहते हैं, 'पंजाब में चावल खाता ही कौन है। अगर इस इलाके में बाहर से आए श्रमिक न हो तो चावल की बिक्री 50 फीसदी तक कम हो जाएगी।' बिक्री में गिरावट आने से चावल की कीमत भी कम हो गयी है। पिछले साल जिस परमल (साधारण) चावल की कीमत 16 रुपये प्रति किलोग्राम थी, वह घटकर 14 रुपये प्रति किलोग्राम के स्तर पर आ गयी है। वैसे ही उम्दा परमल चावल के भाव 23-24 रुपये से गिरकर 19-20 रुपये प्रति किलोग्राम के स्तर पर आ गए हैं। चावल कारोबारियों के मुताबिक मंदी के कारण यहां की स्थानीय औद्योगिक इकाइयों से जुड़े प्रवासी श्रमिकों को काम मिलना बंद हो गया है। दूसरी बात यह है कि गेहूं की बुआई भी खत्म हो चुकी है इसलिए बड़े पैमाने पर खेतों में भी काम नहीं हो रहा है। लिहाजा खेतों में काम करने वाले श्रमिक भी पंजाब की ओर अपना रुख नहीं कर रहे हैं। पकाने में आसान व पसंदीदा भोजन होने के कारण अधिकतर प्रवासी श्रमिक दोनों वक्त चावल ही खाते हैं।कारोबारियों ने बताया कि यहां की सरकार बहुत ही कम मात्रा में चावल की खरीदारी करती है। मांग नहीं होने के कारण फुटकर विक्रेता भी कम ही मात्रा में चावल की खरीदारी कर रहे हैं। (BS Hindi)

उपभोक्ता का बजट बिगाड़ेगा एमएसपी

नई दिल्ली January 29, 2009
गेहूं के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) बढ़ाने के सरकार के निर्णय से किसानों को लाभ होगा, लेकिन इससे आने वाले दिनों में उपभोक्ताओं का बजट बिगड़ेगा।
रोलर फ्लोर मिल्स फेडरेशन आफ इंडिया की सचिव वीना शर्मा ने पीटीआई को बताया ''एमएसपी में बढ़ोतरी से उपभोक्ताओं के लिए गेहूं महंगा हो जाएगा। व्यापारी गेहूं की जमाखोरी शुरू करेंगे जिससे बाजार में गेहूं की किल्लत पैदा हो जाएगी।''उन्होंने कहा कि अधिक एमएसपी के साथ ही 100 रुपये अतिरिक्त प्रसंस्करण लागत से गेहूं का आटा और महंगा होगा। उल्लेखनीय है कि सरकार ने वर्ष 2009-10 विपणन सीजन के लिए गेहूं का न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाकर 1,080 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया है। वर्ष 2008-09 के लिए गेहूं का एमएसपी 1,000 रुपये प्रति क्विंटल था। आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक मौजूदा समय में देश भर में गेहूं की खुदरा कीमतें 11 से 20 रुपये प्रति किलोग्राम के दायरे में हैं। दिल्ली में भाव 13 रुपये प्रति किलो, मुम्बई में 15 रुपये प्रति किलो और चेन्नई में 18 रुपये प्रति किलोग्राम है। एक प्रख्यात अर्थशास्त्री ने हालांकि कहा कि गेहूं के एमएसपी में बढ़ोतरी से मुद्रास्फीति की दर पर तत्काल कोई असर नहीं पड़ेगा।क्रिसिल के प्रधान अर्थशास्त्री डी के जोशी ने कहा, 'गेहूं का अधिक एमएसपी खाद्य कीमतों पर दबाव बनाए रखेगा। मुद्रास्फीति की दर पर इसके असर को लंबे समय में महसूस किया जाएगा।''एआरपीएल एग्री बिजनेस सर्विसेज के प्रबंध निदेशक विजय सरदाना ने भी इसी तरह के विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा, 'आधार मूल्य बढ़ने से उपभोक्ता मूल्य निश्चित तौर पर बढ़ेगा।' उन्होंने कहा कि अधिक एमएसपी से व्यापारियों पर कीमतें बढ़ाने का मनोवैज्ञानिक दबाव बढ़ेगा और उपभोक्ताओं को अधिक लागत का बोझ उठाना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि सरकार ने आम चुनावों से पूर्व किसानों को खुश करने के लिए यह कदम उठाया है।उन्होंने कहा कि केवल गेहूं किसानों के फायदे के लिए कदम उठाए जाने से दलहन और और तिलहन की फसलें प्रभावित होंगी और देश में पहले से ही इनकी कमी है। सरदाना ने कहा, 'सरकार को वैज्ञानिक तरीके से कीमतों के बारे में सोचना चाहिए था। गेहूं की फसल से लाभ अधिक होने की दशा में अधिकांश किसान इसकी खेती का रुख करेंगे। (BS Hindi)

विदेश में मांग घटी, काजू का धंधा मंदा

पणजी : ब्राजील और वियतनाम से पहले ही काफी प्रतिस्पर्धा झेल रहे देश के काजू किसानों की समस्या को वैश्विक मंदी ने और अधिक बढ़ा दिया है। बाजार के अनुमान के अनुसार, देश भर में करीब तीन लाख काजू किसान हैं। भारत टूटे काजू का सबसे बड़ा निर्यातक है, मांग कम होने के कारण उत्पादकों को प्रॉफिट मार्जिन कम करना पड़ रहा है। इसके बावजूद कम दरों पर काजू आयात करना बेहतर विकल्प साबित हो रहा है। काजू एक्सपोर्ट प्रमोशनल काउंसिल ऑफ इंडिया (सीपीईसीआई) के आंकड़ों के मुताबिक, 2006-07 के 11.5 लाख टन के मुकाबले 2007-08 में काजू निर्यात घटकर 11 लाख टन रह गया है, लेकिन आने वाले साल में इसमें और गिरावट की आशंका है। एक बड़ी काजू निर्यात फर्म के मैनेजिंग पार्टनर सुरेश जयंत का कहना है, 'काजू को लग्जरी आइटम की तरह माना जाता है। इस कारण अगर खराब स्थिति आती है तो सबसे ज्यादा असर काजू के कारोबार पर पड़ेगा।' भारत मुख्यतौर पर अमेरिका और यूरोप को काजू का निर्यात करता है, लेकिन ये दोनों ही मंदी से त्रस्त हैं। इस कारण काजू निर्यातक एशिया के विकसित देशों जैसे जापान, इजरायल और सऊदी अरब पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। काजू के निर्यात से भारत को अच्छी खासी विदेशी मुद्रा मिलती है और नकदी फसलों के निर्यात में इसका स्थान दूसरा है। निर्यात के अलावा भारत सबसे ज्यादा उपभोग करने वाले देशों में भी शामिल है। इससे कारोबारियों को बाजार से बने रहने की उम्मीद है। हालांकि, देश में 2007-08 में काजू उत्पादन में छह फीसदी की बढ़ोतरी हुई। 2006-07 के 6.2 लाख टन के मुकाबले इस बार उत्पादन बढ़कर 6.6 लाख टन हो गया, लेकिन ट्रेडरों का कहना है कि इस दौरान निर्यात में भी अच्छी खासी बढ़ोतरी हुई। 2006-07 में देश ने 5.9 लाख टन काजू का निर्यात किया था, लेकिन 2007-08 में निर्यात बढ़कर 6.5 लाख टन हो गया। एक काजू टेडर का कहना है, 'घरेलू बाजार में काजू खरीदने के मुकाबले इसका आयात सस्ता है।' आयातित कच्चे काजू नट की कीमत 45 से 48 रुपए प्रति किलो पड़ती है। इसके मुकाबले भारतीय किस्म 50-55 रुपए प्रति किलो पड़ता है। जयंत का कहना है, 'बात जब काजू की होती है तो लोगों को गुणवत्ता के बारे में पता नहीं होता है। कम कीमत ही बिक्री को बढ़ाती है।' गोवा काजू ट्रेडर्स एसोसिएशन के प्रेसिडेंट ए एस कामत का कहना है कि उच्च गुणवत्ता वाली भारतीय काजू के अभाव में कीमतों में अंतर है। उन्होंने कहा, 'हमारे पास बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए उत्पादकता बढ़ाने की तकनीक है, लेकिन दुर्भाग्य से इसका इस्तेमाल विदेशों में होता है, अपने देश में नहीं।' (ET Hindi)

भारत का कॉटन निर्यात 41 फीसदी घटने की आशंका

विश्वव्यापी आर्थिक मंदी के चलते चालू मार्केटिंग सीजन में कॉटन का निर्यात सरकार के पिछले अनुमान से काफी नीचे रहने की आशंका है। सराकार ने कॉटन के निर्यात में करीब 41 फीसदी की गिरावट आने की आशंका जताई है। मौजूदा समय में वैश्विक बाजारों में भारतीय कॉटन की मांग बेहद कम है। वहीं घरेलू भाव ज्यादा रहने से इसका होड़ लेने की क्षमता भी कम है। इस साल कपास के उत्पादन में भी गिरावट आई है। कॉटन कारपोरशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष व प्रबंध निदेशक सुभाष ग्रोवर के मुताबिक साल 2008-09 के दौरान 50 लाख गांठ (एक गांठ में 170 किलो) कॉटन का निर्यात होने का अनुमान है, जो कॉटन एडवायजरी बोर्ड के अनुमान से काफी कम है। बोर्ड ने इस दौरान करीब 75 लाख गांठ कॉटन का निर्यात होने की संभावना जताई था।साल 2007-08 के दौरान भारत से करीब 85 लाख गांठ कॉटन का निर्यात हुआ था। ग्रोवर ने बताया कि इस साल कॉटन का उत्पादन 3.22 करोड़ गांठ तक रहने का अनुमान था। अब उत्पादन करीब तीन करोड़ गांठ ही रहने की संभावना है। इससे भी निर्यात में कमी देखी जा सकती है। भारतीय कॉटन का भाव 60,670 रुपये प्रति टन है। जबकि अमेरिकी कॅाटन वैश्विक बाजारों में 50,350 रुपये प्रति टन पर उपलब्ध है। कॉटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष धीरन सेठ ने बताया कि उत्पादक इलाकों में खराब मौसम से कॉटन के उत्पादन में पिछले अनुमान के मुकाबले गिरावट देखी जा सकती है। ऐसे में उत्पादन तीन करोड़ से भी नीचे यानी करीब 2.85 करोड़ गांठ रह सकता है। जबकि निर्यात करीब 50-55 लाख गांठ तक रहने का अनुमान है। कॉटन कारपोरेशन ऑफ इंडिया ने इस साल देश भर में करीब 62 लाख गांठ कॉटन की खरीद की है। इस दौरान कॉटन के वैश्विक उत्पादन में भी करीब नौ फीसदी की गिरावट आने से 2.38 करोड़ टन रह सकता है जो साल 2003-04 के स्तर से भी नीचे है। (Business Bhaskar)

भारतीय बासमती अभी भी होड़ लेने में पीछे

वैश्विक बाजारों में भारतीय बासमती चावल मूल्य के लिहाज से अपने प्रतिस्पर्धियों खासकर पाकिस्तान के आगे होड़ लेने में टिक नहीं पा रहा है। केंद्र सरकार द्वारा न्यूनतम निर्यात मूल्य में कमी और निर्यात शुल्क हटाने के बावजूद वैश्विक बाजारों में भारतीय बासमती की कीमतें तेज हैं। कारोबारी सूत्रों के मुताबिक सरकार के इन फैसलों से भारतीय बासमती का विश्व बाजार में कोई आकर्षण नहीं बढ़ पाया है। केआरबीएल लिमिटेड के अध्यक्ष व प्रबंध निदेशक अनिल मित्तल ने बताया कि पता नहीं सरकार को इस तरह की नीति बनाने के लिए किसने गुमराह किया है। मौजूदा नीतियों की वजह से भारतीय बासमती उद्योग बुरी तरह से प्रभावित हो रहा है। भारतीय बासमती का निर्यात बढ़ाने के लिए पिछले सप्ताह सरकार ने न्यूनतम निर्यात मूल्य (एमईपी) को 1200 डॉलर से घटा कर 1100 डॉलर कर दिया था। इसके अलावा 8000 रुपये प्रति टन निर्यात शुल्क हटा दिया गया था।मित्तल ने बताया कि मौजूदा समय में पूसा बासमती नंबर वन की मांग 875-900 डॉलर प्रति टन से ऊपर भाव पर नहीं है। जबकि पूसा 1121 की मांग करीब 1,000 डॉलर प्रति टन पर है। मौजूदा समय में महज सऊदी अरब एक हजार डॉलर प्रति टन पर भारतीय ब्लेंडेड बासमती के लिए दे रहा है। जबकि यूरोपीय आयातक महज 850-900 डॉलर प्रति टन पर ही खरीद को तैयार हैं। ऐसे में भारतीय बासमती की मांग बेहद कम है। वहीं पाकिस्तान नई फसल की बासमती 900 डॉलर प्रति टन और पुरानी बासमती एक हजार डॉलर प्रति टन के भाव पर विश्व बाजार में बेच रहा है।बासमती का ऊंचे एमईपी की वजह से घरेलू बाजारों में नवंबर के बाद से इसके भाव करीब तीस फीसदी तक गिर चुके हैं। ऐसे में किसानों को जहां बेहतर दाम नहीं मिल पा रहा है, वहीं निर्यातकों के सामने आने वाले दिनों में मुश्किलें बढ़ने की आशंका जताई जा रही है। (Business Bhaskar)

एमएसपी बढ़ने से उपभोक्ताओं को 8 फीसदी महंगा मिलेगा गेहूं

केंद्र सरकार ने चालू रबी सीजन के लिए गेहूं का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 80 रुपये प्रति क्विंटल बढ़ाकर किसानों को राहत तो दे दी है लेकिन इससे देश में गेहूं का औसत थोक भाव करीब 100 रुपये प्रति क्विंटल (करीब 8 फीसदी) बढ़ जाएगा। इससे आम उपभोक्ताओं का खाने का बजट बढ़ना तय है। सरकार ने इस साल एमएसपी 1080 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है।पिछले साल भी एमएसपी में अच्छी बढ़ोतरी के परिणामस्वरूप ही पिछले साल देश में गेहूं की रिकार्ड 784 लाख टन की पैदावार हुई थी। चालू सीजन में बुवाई क्षेत्रफल में बढ़ोतरी हुई है। नई फसल की आवक तक मौसम ने साथ दिया तो चालू सीजन में भी गेहूं का उत्पादन पिछले साल ेसे भी ज्यादा रहेगा। रोलर फ्लोर मिल फेडरेशन ऑफ इंडिया की सचिव वीणा शर्मा ने बताया कि गेहूं के एमएसपी में हुई 80 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी से नई फसल की आवक के समय गेहूं के भावों में लगभग 100 रुपये प्रति क्विंटल की तेजी बन सकती है। एफसीआई को खुले बाजार में बिक्री के लिए 10 लाख टन गेहूं फरवरी महीने तक फ्लोर मिलों को देना है। जबकि इसमें से अभी तक मात्र 4.70 लाख टन गेहूं का ही उठान हो पाया है। अभी तक चूंकि खुले बाजार में गेहूं की आवक हो रही थी और भाव भी ज्यादा ऊपर नहीं थे, इसलिए मिलें एफसीआई का गेहूं कम उठा रही थी लेकिन अब खुले बाजार में गेहूं का भाव बढ़ गया है और एफसीआई का गेहूं सस्ता पड़ रहा है। ऐसे में अगले तीन महीने तक फ्लोर मिलें एफसीआई का ही गेहूं उठाएंगी। अगली फसल आने पर गेहूं का भाव बढ़ने की संभावना से भी मिलें एफसीआई से माल उठाने में ज्यादा रुचि ले सकती हैं।चालू फसल सीजन में देश में गेहूं की बुवाई बढ़कर 275.5 लाख हैक्टेयर में हुई है जबकि पिछले वर्ष की समान अवधि में इसकी बुवाई 273.63 लाख हैक्टेयर में ही हुई थी। अभी तक मौसम भी फसल के अनुकूल ही चल रहा है। एक अप्रैल को सरकारी गोदामों में गेहूं का स्टॉक 98.97 लाख टन बचने की संभावना है जोकि तय बफर स्टॉक 40 लाख टन के दोगुने से भी ज्यादा है। पिछले वर्ष एफसीआई ने एमएसपी पर 226 लाख टन गेहूं की खरीद की थी। नए सीजन में केंद्र ने गेहूं की खरीद का लक्ष्य 200 लाख टन रखा है। लेकिन एसएसपी में बढ़ोतरी और पैदावार अच्छी होने से एफसीआई की खरीद पिछले वर्ष से भी ज्यादा होने की संभावना है। एमएसपी बढ़ने से गेहूं का औसत थोक भाव बढ़ने की संभावना से व्यापारी ही सहमत दिखाई दे रहे हैं। थोक व्यापारी कमलेश जैन का मानना है कि अगली फसल बाजार में आने के बाद गेहूं के भाव पिछले साल से हर हाल में ज्यादा रहेंगे। बाद में भले ही सप्लाई का दबाव बढ़ने में कोई गिरावट आए।दिल्ली की फ्लोर मिलों ने 25 हजार टन गेहूं की निविदा भरीनई दिल्ली। दिल्ली की फ्लोर मिलों ने 25 हजार टन गेहूं लेने के लिए निविदा भरे हैं। इस समय दिल्ली की फ्लोर मिलों को भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) द्वारा 1029.20 रुपये प्रति क्विंटल की दर पर गेहूं उपल्बध कराया जा रहा है। मिलों ने निविदा 1029.50 रुपये से 1040 रुपये प्रति क्विंटल की दर से भरी है। इस मूल्य पर एफसीआई का गेहूं मिल पहुंच 1040 से 1060 रुपये प्रति क्विंटल में पड़ेगा। खुले बाजार में गेहूं के भाव 1185 से 1190 रुपये प्रति क्विंटल चल रहे हैं। खुले बाजार में गेहूं की दैनिक आवक मात्र पांच से छ: हजार बोरियों की हो रही है। इसलिए मिलें एफसीआई का ही गेहूं ज्यादा उठा रही हैं। फरवरी महीने तक एफसीआई द्वारा दिल्ली की मिलों को एक लाख टन गेहूं निविदा के माध्यम से रिलीज करना है। (Business Bhaskar.....R S Rana)

रबी फसलों के समर्थन मूल्य घोषित

आखिरकार लंबे इंतजार के बाद केंद्र सरकार ने वर्ष 2008-09 की रबी फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) घोषित कर दिये। पिछले साल रबी फसलों के एमएसपी की घोषणा अक्टूबर महीने के प्रथम पखवाड़े में ही हो गई थी। तिलहन का घरेलू उत्पादन बढ़ाने के लिए किसानों को प्रोत्साहन देने का दम भरने वाली केंद्र सरकार ने जहां रबी तिलहनों की प्रमुख फसल, सरसों के एमएसपी में मामूली 30 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी की है वहीं सैफ्लावर की फसल के एमएसपी में कोई बढ़ोतरी नहीं की है। पिछले साल प्रतिकूल मौसम से सरसों की पैदावार में भारी गिरावट आई थी जिसके कारण घरेलू मंडियों में पूरे साल सरसों के भाव तेज ही बने रहे। ऊंचे भावों को देखते हुए किसानों ने इस बार सरसों की बुवाई ज्यादा की है। एमएसपी में मामूली बढ़त और पैदावार में बढ़ोतरी को देखते हुए नये साल में सरसों किसानों को वाजिब दाम मिलने के आसार कम ही हैं।केंद्र सरकार ने गेहूं के एमएसपी में 80 रुपये की बढ़ोतरी कर भाव 1080 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है। पिछले वर्ष केंद्र सरकार ने गेहूं के एमएसपी में 250 रुपये की बढ़ोतरी कर भाव 1000 रुपये प्रति क्विंटल तय किया था। जौ का एमएसपी 30 रुपये बढ़ाकर भाव 680 रुपये प्रति क्विंटल तय किया गया है।रबी में तिलहन की प्रमुख फसल सरसों के एमएसपी में मात्र 30 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी कर भाव 1830 रुपये प्रति क्विंटल तय किया गया है। सैफ्लावर का एमएसपी पिछले साल के 1650 रुपये प्रति क्विंटल पर ही रहेगा।दलहन की फसलों के एमएसपी में जरूर अच्छी बढ़ोतरी की गई है। रबी सीजन में दलहन की प्रमुख फसल चने के न्यूनतम समर्थन मूल्य में 130 रुपये की बढ़ोतरी कर भाव 1730 रुपये प्रति क्विंटल तय किया गया है। मसूर के एमएसपी में भी 170 रुपये की बढ़ोतरी कर भाव 1870 रुपये प्रति क्विंटल तय किए गए हैं। (Business Bhaskar.....R S Rana)

29 जनवरी 2009

Minimum Support Prices approved for Rabi Crops of 2008-09

The Cabinet Committee on Economic Affairs has approved, on the recommendations of CACP, the MSP for Rabin Crops of 2008-09 season. The MSP of Wheat has been fixed at Rs.1080 per quintal, marking an increase of Rs.80 per quintal over the last years MSP.
The MSP of Barley has been raised by Rs.35 per quintal and has been fixed at Rs.680 per quintal.
The MSP of Gram has been fixed at Rs.1730 per quintal, marking an increase of Rs.130 per quintal over the last years MSP.
The MSP of Masur (Lentil) has been fixed at Rs.1870 per quintal, marking an increase of Rs.170 per quintal over the last years MSP.
The MSP of Safflower remains unchanged at Rs.1650 per quintal but the MSP of Rapeseed/Mustard has been raised by Rs.30 per quintal and fixed at Rs.1830 per quintal.

Hike in wheat MSP boon to farmers, bane for consumers: Experts

New Delhi, Jan 29 (PTI) The government' & chr(39) & 's decision to hikeminimum support price (MSP) for wheat will benefit farmers,but consumers would have to shell out more for foodgrain inthe coming days, farm and industry experts say. "A rise in MSP will make wheat costlier for consumers.Traders will start hoarding the crop and this would createscarcity in the market," Roller Flour Mills Federation ofIndia Secretary Veena Sharma told PTI. Higher MSP, plus the additional processing cost of Rs100, would further increase the wheat flour rates, she said. The Centre has increased the wheat MSP to Rs 1,080 aquintal for the 2009-10 marketing season from Rs 1,000 perquintal in the previous season. According to official data, currently, retail prices ofwheat are ruling in the range of Rs 11-20 a kg across thecountry. The price in Delhi stood at Rs 13 a kg, in Mumbai Rs15 a kg and in Chennai Rs 18 a kg. A noted economist, however, said that the hike in wheatMSP may not impact inflation immediately. "Higher wheat MSP will keep the pressure on food prices.Its impact on inflation would be felt in the long run," CrisilPrincipal Economist D K Joshi said. ARPL Agri Business Services Managing Director VijaySardana also expressed similar views. "Consumer price willdefinitely increase with a rise in the base price. Higher MSPgives a psychological boost to traders to increase the pricesand consumers will have to bear the cost," he said The government has taken the step to please farmers aheadof the general elections, he added. He, however, cautioned the government, saying thatfavouring wheat farmers will only harm crops like pulses andoilseeds, in which the country is deficit. The government should have (handled prices) in a morescientific way. As profitability is high in wheat, morefarmers will divert to this crop. This will further createshortfalls in crops (whose) MSP is very low," Sardana said. Farm experts raised concerns about the nutritionalsecurity and income in other crops. Currently, India is facingshortages in pulses and edible oils. The government shouldhave taken steps to give a boost to these crops. Inflation has increased to 5.64 for the week endedJanuary 17 from 5.60 in the previous week. PTI

तापमान बढ़ने से गेहूं उत्पादन को लेकर चिंता

विशेषज्ञों का कहना है कि जनवरी माह में तापमान अधिक रहने से गेहं का उत्पादन प्रभावित हो सकता है। उनका कहना है कि आगे भी मौसम ऐसा रहा तो प्रमुख गेहूं उत्पादक राज्यों पंजाब और हरियाणा में गेहूं उत्पादन घट सकता है। पंजाब के कृषि निदेशक बी एस सिद्दू ने बताया कि तापमान में वृद्वि गेहूं की फसल के लिए बेहतर नहीं है। हालांकि इस यह कहना जल्दबाजी होगा कि गेंहू के उत्पादन में कमी आ सकती है। सिद्दू ने आगे अनुकूल मौसम अनुकूल रहने की उम्मीद जताई है। जिससे गेहूं के अच्छे उत्पादन होने की संभावना है।उधर हरियाणा कृषि विभाग के अतिरिक्त निदेशक बी एस दुग्गल ने बताया कि इस समय गेहूं की फसल के लिए ठंडे तापमान की आवश्यकता होती है। यदि तापमान में वृद्धि लंबे समय तक जारी रहने पर गेहूं के उत्पादन में कमी आ सकती है। पिछले एक सप्ताह के दौरान पंजाब,हरियाणा और चंडीगढ़ में न्यूनतम तापमान सामान्य से 2 से तीन डिग्र ऊपर चला गया है। (Business Bhaskar)

कपास खरीद से सीसीआई को 500 करोड़ का घाटा

भारतीय कपास निगम (सीसीआई) को वर्ष 2008-09 के दौरान ऊंचा न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) होने के कारण करीब 500 करोड़ रुपये का नुकसान हो सकता है। सीसीआई ने 500 करोड़ रुपये के इस घाटे की भरपाई की सरकार से मांग की है। उसने सरकार से 2000 करोड़ रुपये की वित्तीय सहायता की और मांग की है ताकि कपास की खरीद का काम पूरा किया जा सके।सीसीआई के चैयरमेन और प्रबंध निदेशक सुभाष ग्रोवर ने बताया कि वित्त वर्ष 2008-09 के लिए सरकार से 500 करोड़ रुपये संभावित घाटे की भरपाई के लिए मांग की गई है। इसके अलावा 2000 करोड़ रुपये की और वित्तीय मदद मांगी गई है। ग्रोवर का कहना है कि निगम ने एमएसपी पर कपास की खरीदारी की है। लेकिन घरेलू और वैश्विक बाजार में इसके दाम कम रहने से निगम को ऊंचे एमएसपी पर खरीद करने से नुकसान हुआ है। निगम ने कल तक 62 लाख गांठ (एक गांठ 170 किलोग्राम) की खरीदार हो चुकी है।घरेलू कारोबारी एमएसपी से कम दामों पर कपास की खरीदारी के कारण किसान कपास की बिक्री निगम को अधिक कर रहे है। जिसकी वजह से इस कपास की खरीदारी 80-90 लाख बेल्स पहुंचने का अनुमान है। निगम ने वित्त वर्ष 2007-08 में 27.5 लाख बेल्स की खरीदारी की थी। लेकिन सरकार ने चालू वित्त वर्ष के लिए स्टेंडर्ड कपास के लिए एमएसपी को पिछले साल के 2030 रुपये क्विंटल से बढ़ाकर 3000 रुपये और मीडियम कपास के लिए पिछले साल के 1800 रुपये से बढ़ाकर 2500 रुपये क्विंटल कर दिया है। सीसीआई ने इस महीने रोजाना 75-95 हजार बेल्स की खरीदारी की है। (BS Hindi)

घरेलू खाद्य तेल उत्पादन से 46त्न मांग पूरी होगी

वर्ष 2008-09 के दौरान भारत में 70.4 लाख टन खाद्य तेलों का उत्पादन होने की संभावना है। इससे भारत की सिर्फ 46 फीसदी आवश्यकता ही पूरी हो सकेगी।अमेरिकी कृषि विभाग (यूएसडीए) के अनुसार भारत कुल 130 लाख टन खाद्य तेलों की जरूरत होती है। यूएसडीए के विश्लेषण के अनुसार पिछले तीन सालों से भारत का खाद्य तेल उत्पादन 69.9 से 71.6 लाख टन के बीच रहा है। दूसरी ओर आयातित तेलों पर भारत की निर्भरता लगातार बढ़ रही है। वर्ष 2006-07 में भारत में 55.3 लाख टन खाद्य तेलों का आयात किया गया जबकि वर्ष 2008-09 में यह आंकड़ा बढ़कर 58.7 लाख टन तक पहुंच गया। भारत में पिराई के लिए 275.4 लाख टन तिलहन सुलभ होंगे।वर्ष 2008-09 में 338.5 लाख टन तिलहनों का उत्पादन होने का अनुमान है। यह उत्पादन पिछले साल से थोड़ा कम होगा। दूसरी ओर विश्व स्तर पर तिलहनों की मांग उत्पादन से ज्यादा रहने की संभावना है। विश्व स्तर पर 1306.6 लाख टन तिलहनों की मांग रह सकती है जबकि उत्पादन 1334.9 लाख टन के आसपास रहेगा। इस तरह उपलब्धता मांग से कहीं ज्यादा रहेगी। विश्व स्तर पर पाम तेल की मांग दूसर खाद्य तेलों से कहीं ज्यादा रहेगी। पाम की मांग बढ़कर 422.2 लाख टन रह सकती है जबकि पिछले साल इसकी मांग 400 लाख टन रही थी। सोयाबीन की मांग में गिरावट आ सकती है। इसकी मांग घटकर 371.8 लाख टन रहेगी। रपसीड की वैश्विक मांग 196.1 लाख टन, नारियल की मांग 36.3 लाख टन, ओलिव ऑयल की मांग 47.7 लाख टन, मूंगफली की मांग 50.1 लाख टन और सूरजमुखी की मांग 107.1 लाख टन रह सकती है। (Business Bhaskar)

थोक के मुकाबले रिटेल चेन स्टोरों में दालें पचास फीसदी तक महंगी

भले ही थोक में दालें काफी सस्ती हो गई हों, लेकिन फुटकर में उपभोक्ताओं को कोई राहत नहीं मिल रही है। सस्ते दामों के सहारे उपभोक्ताओं को लुभाने वाली रिटेल कंपनियां भी दालों के मामले में उपभोक्ताओं को कोई खास राहत देने को तैयार नहीं दिखाई दे रही हैं। इन कंपनियों के रिटेल स्टोर पर पेचीदा स्कीमों के बीच उपभोक्ताओं के लिए यह तय करना भी खासा मुश्किल है कि दालें सस्ती हैं या फिर नहीं। कंपनियों की दालों के भाव भी दोहरे हैं। किसी स्कीम के साथ दालें सस्ती हैं लेकिन बिना स्कीम के दालें काफी महंगी हैं। थोक बाजार के मुकाबले इन स्टोरों पर दालें म्क् फीसदी तक महंगी बिक रही हैं। बात की जाए अगर रिटेल बाजार के सबसे बड़े खिलाड़ी रिलायंस फ्रेश की तो यहां हर दिन दालों के भाव बदलते हैं। बुधवार को दिल्ली के रिलायंस फ्रेश के एक आउटलेट में चना दाल के भाव 41 रुपये, अरहर दाल के 60 रुपये, मूंग छिल्का के 50 रुपये, मूंग बिना छिल्का के 56 रुपये, उड़द छिल्का के 50 रुपये व उड़द बिना छिल्का के 60 रुपये तथा मसूर दाल के 75 रुपये प्रति क्विंटल थे। स्टोर में काम करने वाले एक कर्मचारी ने बताया कि हमारे यहां दालों के अलावा अन्य जिंसों के भाव भी नियमित रूप से बदलते रहते हैं। किसी खास तरह की स्कीम के अंतर्गत भावों में घट-बढ़ होती रहती है।इसी तरह से स्पैंसर रिटेल स्टोर पर चना दाल के भाव बगैर स्कीम 53 रुपये, स्कीम के साथ 45 रुपये, अरहर दाल के बगैर स्कीम 65 रुपये तथा स्कीम के साथ 59 रुपये, मूंग छिल्का सहित दाल के 59 रुपये (इसमें कोई स्कीम नहीं है), मूंग बिना छिल्का के भाव स्कीम के साथ 56 रुपये तथा बिना स्कीम के 62 रुपये, उड़द छिल्का वाली दाल के भाव बिना स्कीम 59 रुपये तथा स्कीम के तहत 49 रुपये, बिना छिल्का उड़द दाल के 61 रुपये (इसमें कोई स्कीम नहीं है) तथा मसूर दाल के भाव 66 रुपये प्रति किलोग्राम हैं। स्कीम के बारे में पूछने पर रिटेल स्टोर पर काम करने वाले कर्मचारी ने बताया कि अगर ग्राहक चार-पांच किलो अलग-अलग तरह की दाल लेता है तो ही उसे छूट का फायदा मिलेगा। रिटेल के एक अन्य स्टोर बिग बाजार की बात करें तो यहां चना दाल के भाव 41 रुपये, अरहर दाल के 58 रुपये, मूंग छिल्का के 52 रुपये, मूंग बिना छिल्का के 58 रुपये, उड़द छिल्का के 60 रुपये तथा उड़द बिना छिल्का के 68 रुपये और मसूर के भाव 74 रुपये प्रति किलो हैं।दाल व्यापारी गौरी शंकर ने बताया कि दिल्ली थोक बाजार में चना दाल के भाव 29 से 30 रुपये, अरहर दाल के 48 से 50 रुपये, मूंग बगैर छिल्का के 41 से 42 रुपये, छिल्का सहित के 39 से 40 रुपये, उड़द छिल्का के भाव 32 से 38 रुपये और बिना छिल्का के 40 रुपये तथा मसूर दाल के भाव 48 से 50 रुपये प्रति किलो चल रहे हैं। दिल्ली थोक बाजार में साबूत दालों के भाव चना 2250 रुपये, अरहर 3175 रुपये, मूंग 3400 रुपये, उड़द 2700 रुपये तथा मसूर के भाव 4200 रुपये प्रति क्विंटल चल रहे हैं।दलहन आयातक संतोष उपाध्याय ने बताया कि आयातित दालों के भाव मुंबई में लेमन तुअर के 3400 से 3500 रुपये, उड़द के भाव 2600 से 2610 रुपये, मूंग के 3000 से 3200 रुपये व चने के भाव 2250 से 2275 रुपये प्रति क्विंटल चल रहे हैं। (Business Bhaskar...R S Rana)

सूरजमूखी तेल की कीमतें 8 साल के निचले स्तर पर पहुंची

नई दिल्ली : सूरजमुखी का तेल अब मॉड्यूलर किचेन की चारदीवारियों से निकलकर आम आदमी की रसोई में भी अपनी खुशबू बिखेरने लगा है। दरअसल सरकार ने सूरजमुखी तेल को सीमा शुल्क से मुक्त क्या किया, भारी मात्रा में हुए आयात ने इसकी खुदरा कीमतों की हवा ही निकाल दी। हालत यह है कि सालों से उच्चवर्गीय परिवारों की रसोई का हिस्सा माने जाने वाले इस प्रीमियम तेल के दाम आठ साल के न्यूनतम स्तर पर आ गए हैं। यानी दिल का दोस्त अब आम लोगों का भी हमदम बन गया है। केवल 60 रुपए प्रति किलोग्राम के भाव से बिक रहे सूरजमुखी तेल ने कई शहरी रसोई घरों से सोया और मूंगफली के तेल का साम्राज्य ध्वस्त कर दिया है। कीमत के अलावा सूरजमुखी तेल के ग्राहकों के लिए बोनस यह है कि इसमें अब उन्हें शुद्धता की गारंटी भी मिल सकती है। अब तक सूरजमुखी का तेल इतना महंगा होता था कि ब्रांड इन्हें सोया तेल मिलाकर बेचा करते थे लेकिन नए समीकरणों के लिहाज से इस तरह की कवायद बेमानी हो गई है। भारत में आम तौर पर हर साल 12 लाख टन सूरजमुखी तेल की खपत होती है। देश में खाद्य तेल बनाने वाले सबसे बड़े ब्रांड 'फॉर्च्यून' की उत्पादक कंपनी अदानी विल्मर के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, 'हमने पिछले कुछ हफ्तों में सूरजमुखी तेल की अधिकतम खुदरा कीमतों में भारी कमी की है। इसके सबसे बड़े बाजार मुंबई में हमने इसका दाम घटाकर 55 रुपए प्रति किलोग्राम कर दिया है।' लेकिन सूरजमुखी तेल के प्रीमियम ब्रांड बेचने वाली कई कंपनियां दाम घटाने के बजाय उसी दाम में अतिरिक्त मात्रा के प्रमोशनल ऑफर को तरजीह दे रही हैं। एक प्रमुख सनफ्लावर तेल ब्रांड के वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, 'किसी महंगे ब्रांड के लिए एकाएक कीमतें कम करना बहुत मुश्किल होता है क्योंकि ऐसे में उपभोक्ताओं को कई तरह के संदेह होने लगते हैं।' मुंबई के सूत्रों का कहना है कि सीमा शुल्क शून्य किए जाने के कारण आयातित सूरजमुखी का तेल आयातित सोया और घरेलू मूंगफली के तेल के मुकाबले कम से कम 3 रुपए प्रति किलोग्राम सस्ता पड़ने लगा है। अगर शुल्क शून्य के स्तर पर बना रहा तो अगले चार महीनों में रूस और यूक्रेन से करीब 4 लाख टन सूरजमुखी का तेल आयात होगा। हालांकि घरेलू कीमतों में और गिरावट आने की संभावना कम है क्योंकि अंतरराष्ट्रीय कीमतों में पहले ही बढ़ोतरी दिखने लगी है। पिछले साल रेकॉर्ड अंतरराष्ट्रीय कीमतों के कारण कच्चे सूरजमुखी तेल के आयात में 90 फीसदी की गिरावट आई थी। (BS Hindi)

घाटे की भरपाई करे केंद्र सरकार

नई दिल्ली January 28, 2009
राज्य सरकारों ने केंद्र से कहा है कि सामान एवं सेवा कर (जीएसटी) लागू होने से अगर राजस्व में कोई हानि होती है तो उसकी भरपाई केंद्र सरकार को करनी चाहिए। जीएसटी अप्रैल 2010 से लागू होना है।
एक सरकारी अधिकारी ने कहा कि राज्य सरकारों को कुछ सुविधाएं (जैसे मूल्यवर्धित कर) मिलनी चाहिए, जिससे वे तीन साल तक सुचारु रूप से कामकाज कर सकें। इससे राज्यों को नुकसान हो सकता है क्योंकि कच्चे माल पर उन्हें मिलने वाला कर इसमें शामिल हो जाएगा, वहीं उन्हें सेवाओं पर कर का लाभ भी मिलेगा।वर्तमान में केंद्रीय कर केवल 100 प्रकार की सेवाओं पर ही है। इस तरह से जब तक जीएसटी लागू नहीं हो जाता, तब तक घाटे या मुनाफे के बारे में केवल अनुमान ही लगाया जा सकता है, सही स्थिति की जानकारी नहीं हो पाएगी।जीएसटी लागू करने के पीछे लक्ष्य यह है कि एक ही कर हो, जिसमें उत्पाद शुल्क, केंद्रीय बिक्री कर और सेवा कर जैसे कर शामिल हों, जिससे करों की निगरानी और उसका भुगतान आसानी से हो सके।वर्तमान में कुछ कर ऐसे हैं, जो राज्य स्तर पर तैयार माल पर लगते हैं और कच्चे माल पर लगने वाले कर के साथ उनका तालमेल नहीं होता है। इसका करों पर परिवर्तनशील प्रभाव पड़ता है। जीएसटी की दरें तय करते समय कुछ खास अवधारणाओं का ध्यान रखा गया है। सूत्रों का कहना है कि परिर्तनशील प्रभाव खत्म करने में राज्यों को कितना नुकसान होता है और सेवा कर से कितनी अतिरिक्त आमदनी होती है, इसका सही सही आकलन करना बहुत कठिन होगा। हकीकत यह है कि जिस कर को सुविधापूर्वक जीएसटी में लाया जा सकता है, उसे लाया जाएगा। इसके अलावा इसके अन्य मानक इसे लागू होने के बाद तय किए जाएंगे। राज्य के वित्त मंत्रियों की अधिकार प्राप्त समिति ने यह अनुसंशा की है। जब अप्रैल 2005 में वैट पेश किया गया था तो केंद्र सरकार ने पहले साल राज्य को होने वाले 100 प्रतिशत नुकसान की भरपाई करने पर सहमति जताई थी। (BS Hindi)

ट्रांजेक्शन चार्ज बदलने की कोशिश नाकाम

मुंबई January 28, 2009
ट्रांजैक्शन चार्ज में बदलाव की एनसीडीईएक्स की कोशिश एक बार फिर नाकाम हो गई।
एनसीडीईएक्स ने आज से फिर एक बार इसमें बदलाव करते हुए शाम पांच बजे के बाद के सौदों में चार्ज घटा दिया था लेकिन एफएमसी ने बिना वक्त गवांए इस पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी। एफएमसी के चेयरमैन बीसी खटुआ के मुताबिक एनसीडीईएक्स ने इसके लिए र्कोई मंजूरी नहीं ली है। मालूम हो कि एनसीडीईएक्स ने पिछले एक महीने में दूसरी बार ट्रांजैक्शन चार्ज में बदलाव की कोशिश की है। एनसीडीईएक्स के नए सर्कुलर के अनुसार सुबह 10 बजे से लेकर 5 बजे तक हुए कारोबार में तीन रुपये प्रति लाख के हिसाब से ट्रांजैक्शन चार्ज देना था, जबकि 5 बजे के बाद कारोबार बंद होने तक 5 पैसे प्रति लाख के हिसाब से चार्ज देना था। पहले भी एनसीडीईएक्स ने ऐसा कदम उठाया था लेकिन दूसरे एक्सचेंजों के विरोध के बाद इसे वापस ले लिया गया था। हालांकि एनसीडीईएक्स के मुख्य वाणिज्य अधिकारी अनूप कौशिक ने कहा कि पिछले दिनों जिंस वायदा कारोबार नियामक वायदा बाजार आयोग (एफएमसी) के साथ हुई बैठक में समय को लेकर बात हुई थी, इसीलिए हमने 3.30 बजे की जगह अब 5 बजे से ट्रांजैक्शन चार्ज में कमी की है। एनसीडीईएक्स ने 30 दिसंबर से एनसीडीईएक्स के सर्कुलर के अनुसार 3.30 बजे के बाद टे्रडिंग बंद होने तक के कारोबार में 50 पैसा प्रति लाख रुपये वसूले जाने थे। (BS Hindi)

महंगाई में छूट का सहारा

मुंबई January 28, 2009
सोने की कीमतों में अचानक उछाल आने से मुंबई सर्राफा बाजार के कारोबारी, ग्राहकों को लुभाने के लिए 3 प्रतिशत की छूट दे रहे हैं। मंगलवार को सोने की कीमतों में 70 रुपये की कमी के साथ यह 14005 रुपये प्रति 10 ग्राम हो गया।
ऐसे में खुदरा कारोबारियों ने साल भर आने वाले अपने विश्वसनीय ग्राहकों को 13600 रुपये प्रति 10 ग्राम की दर से सोना खरीदने का ऑफर दिया। शनिवार को शुद्ध सोना 14160 रुपये प्रति 10 ग्राम की ऊंचाई तक पहुंचा था लेकिन इसके बाद इसमें 70 रुपये की कमी आई और यह 14070 रुपये प्रति 10 ग्राम हो गया। यह बेहद महत्वपूर्ण भी है क्योंकि खुदरा निवेशक बाजार से कीमतों में गिरावट की आशंका से दूर रहे। ऑल इंडिया जेम्स एंड ज्वेलरी ट्रेड फेडरेशन के अध्यक्ष अशोक मीनावाला का कहना है, 'यह बहुत सामान्य सी बात है कि जब अचानक कीमतों में तेजी आती है तो खुदरा निवेशक बाजार से दूर रहते हैं हालांकि वे इस तरह की प्रक्रिया के अभ्यस्त हो जाते हैं और दो-तीन दिन में ही वे वापस बाजार में आ भी जाते हैं।'विदेशी बाजारों के संकेतों के हिसाब से घरेलू बाजार भी चलता है। विदेशी बाजार में सोने का कारोबार 905 डॉलर प्रति औंस पर खुला और मुनाफावसूली से सुबह तक 894 डॉलर से नीचे तक आ गया। एक विश्लेषक ने बताया कि यह ऐसा स्तर है जहां स्टॉकिस्ट गहने बनाने वालों को सोना बेचते हैं। बी. एन. वैद्य ऐंड एसोसिएट्स में सर्राफा विशेषज्ञ भार्गव वैद्य ने हाजिर बाजार में दो प्रतिशत छूट के साथ बिक्री की पुष्टि की। उन्होंने कहा, छूट के ऐसे ऑफर तब दिए जाते हैं जब स्टॉकिस्ट कम कीमत पर खरीदते हैं और उनको नकदी की तंगी हो जाती है।विदेशी बाजारों में पिछले एक हफ्ते के दौरान कीमतों में बढ़ोतरी होने से ही खुदरा ज्वेलर्स ने भी कीमतों में 1000 रुपये का उछाल देखा है। विश्लेषकों का कहना है कि जिन कारोबारियों ने 19 जनवरी को 13195 रुपये प्रति 10 ग्राम के लिहाज से खरीदा था वे 3 फीसदी की छूट देकर भी प्रति 10 ग्राम पर 400 रुपये का मुनाफा कमाएंगे।सोमवार को न्यूयॉर्क बाजार में तेजी से घरेलू बाजार में भी इस पीली धातु में चमक बढ़ गई और स्टॉकिस्टों ने जमकर खरीदारी की। न्यूयॉर्क में सोने के वायदा भाव में भी तेजी का रुख रहा और यह 900 डॉलर प्रति औंस से ज्यादा हो गया जो पिछले चार महीने में सबसे ऊंचा है। डॉलर कमजोर होने से भी इसमें निवेश के लिए लोगों का आकर्षण बढ़ा।वहीं दिल्ली के बाजार में यह 40 रुपये की बढ़त के साथ 14,140 रुपये प्रति 10 ग्राम हो गया। दरअसल अमेरिकी डॉलर में कमजोरी के कारण वैश्विक रुझानों के मद्देनजर दिल्ली में स्टॉकिस्टों ने ज्यादा खरीदारी की । मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज में फरवरी में सोने की डिलीवरी के लिए कारोबार 14085 रुपये प्रति 10 ग्राम पर हुआ जबकि अप्रैल में डिलीवरी के अनुबंध के लिए शाम के कारोबार में 14053 रुपये प्रति 10 ग्राम के हिसाब से 0.06 फीसदी का फायदा हुआ। (BS Hindi)

जायफल की कीमतों में होगा इजाफा

कोच्चि January 28, 2009
घरेलू मांग बढ़ने और कमी की वजह से स्थानीय जायफल और जावित्री बाजार में काफी उत्साह की स्थिति बन गई है। बेहतरीन क्वालिटी की जावित्री तो 500 रुपये के स्तर को पार कर 520-560 प्रति किलोग्राम के स्तर पर पहुंच चुकी है।
इसी तरह बिना छिलके वाला जायफल 250-260 रुपये तक जा पहुंचा है वहीं छिलके सहित जायफल की कीमत 150-170 रुपये के स्तर पर पहुंच चुकी है। पिछले तीन हफ्तों के दौरान जायफल और जावित्री की प्रति किलोग्राम औसत कीमत में 30-50 रुपये तक की बढ़ोतरी हुई है। कोच्चि के नजदीक कालाडी बाजार के बड़े स्टॉकिस्टों के मुताबिक बाजार में कम से कम अगले 3-4 हफ्तों तक कीमतों में तेजी दिखेगी क्योंकि मसाले में तेजी से कमी आई है। पिछले साल जून-जुलाई की अवधि के दौरान जब जायफल की कटाई का मौसम होता है उस वक्त कीमतें 250-260 रुपये के स्तर तक जा पहुंची। जब इसका मौसम नहीं होगा (ऑफ सीजन)उस वक्त इसकी कीमतों में बढ़ोतरी की उम्मीद के साथ ही लोगों ने इसका ज्यादा भंडारण करने की सोची। हालांकि किसानों की आशंका के विपरीत बाजार ने दूसरी तरह से अपनी प्रतिक्रिया दिखाई। इसकी वजह घरेलू और विदेशी बाजारों में इसकी मांग में कमी रही। बिना छिलके वाले जायफल की कीमत अगस्त-नवंबर की अवधि में गिरकर 180-200 रुपये तक हो गई। इसकी वजह से ऑफ सीजन में बड़े पैमाने पर इसकी बिकवाली की गई। इसी वजह से दिसंबर में और इस मौजूदा महीने में भी बेहतरीन जायफल की जबरदस्त कमी हो गई। अगले मौसम की शुरुआती फसल बाजार में फरवरी के अंतिम सप्ताह या फिर मार्च के पहले हफ्ते तक ही आ पाएगी। ऐसे में स्टॉकिस्ट का मानना है कि इस कमी की वजह से फरवरी तक कीमतों के बढ़ने की संभावना है।इस वक्त जायफल और जावित्री की मांग में बढ़ोतरी आती ही रहेगी क्योंकि 3-4 हफ्ते तक आपूर्ति में कमी आएगी। बड़े स्टॉकिस्टों के मुताबिक जब फरवरी में शुरुआती फसल आएंगे तब बाजार की दूसरी तस्वीर बनेगी। बाजार सूत्रों का ऐसा अनुमान है कि अगले 2-3 हफ्ते तक बेहतरीन क्वालिटी के जावित्री की कीमत 600 रुपये तक हो सकती है। (BS Hindi)

चीनी आयात में छूट पर आज विचार करेगी सरकार

देश में चीनी उत्पादन घटने की संभावना को देखते हुए सरकार आयातित शुल्क मुक्त चीनी (रॉ शुगर) घरेलू बाजार में बेचने के बारे में मिलों को बुधवार को अनुमति दे सकती है। एक सरकारी अधिकारी के अनुसार विदेश मंत्री प्रणव मुखर्जी की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की केबिनेट कमेटी (सीसीईए) बुधवार को होने वाली बैठक में इस मुद्दे पर विचार कर सकती है। इस अधिकारी ने बताया सीसीईए इस बैठक में रबी फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य पर भी विचार कर सकती है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की गैर मौजूदगी में होने वाली सीसीईए की यह पहली बैठक होगी। इस समय सरकार शुल्क मुक्त चीनी (रॉ शुगर) आयात की अनुमति इस शर्त के साथ देती है कि रिफाइनिंग के बाद इस चीनी को निर्यात किया जाए।यह निर्यात चीनी मिलों को आयात के दो साल के भीतर करना होता है। यह चीनी घरेलू बाजार में बेचने की अनुमति नहीं होती है। देश में चीनी का उत्पादन काफी घटने की आशंका के बाद आयात नियम में रियायत की संभावना व्यक्त जा रही हैं। नए नियम में टन-टू-टन की व्यवस्था होगा। इसका आशय है कि मिलें रॉ शुगर आयात करके घरेलूबाजार में बेच सकेंगी लेकिन बाद में उन्हें उतनी मात्रा में चीनी निर्यात करनी होगी। शरद पवार ने इससे पहले कहा था कि सरकार रॉ शुगर को रिफाइंड करने के बाद घरेलू बाजार में बेचने की अनुमति देने पर गंभीरता से विचार कर रही है।एक लाख टन रॉ शुगर आयात संभवमुंबई। चालू सीजन के दौरान महाराष्ट्र की मिलें करीब एक लाख टन रॉ शुगर का आयात कर सकती हैं। राज्य के चीनी उत्पादन में करीब 11 फीसदी की गिरावट आने की वजह से आयात की आशा जताई जा रही है। महाराष्ट्र स्टेट कोऑपरटिवशुगर फैक्ट्रीज फे डरशन लिमिटेड के प्रबंध निदेशक प्रकाश नायकनावर के मुताबिक इस साल 25 फरवरी तक करीब 32 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ जो पिछले साल की इसी अवधि के मुकाबले करीब 11 फीसदी कम है। नायकनावर ने कहा कि ऐसे में राज्य मिलों को करीब एक लाख टन रॉ शुगर का आयात करना पड़ सकता है। (Business Bhaskar)

निर्यातकों की मांग से आई इलायची की तेजी को ब्रेक

निर्यातकों के साथ घरेलू मांग बढ़ने से पिछले दस दिनों में इलायची के भावों में 40 से 50 रुपये प्रति किलो की तेजी बन गई थी लेकिन ऊंचे भावों में ग्राहकी ढीली पड़ गई। जिससे इलायची के भाव मंगलवार को थोड़े गिर गए। उत्पादक क्षेत्रों में इलायची की पांचवी तुड़ाई चल रही है। संभावना व्यक्त की जा रही है कि आगामी दिनों में बोल्ड किस्म सात एमएम और आठ एमएम के माल की आवक घट जाएगी। हालांकि इस साल देश में इलायची की पैदावार पिछले वर्ष के मुकाबले ज्यादा है।केरल की कुमली मंडी के इलायची व्यापारी अरुण अग्रवाल ने बिजनेस भास्कर को बताया कि पांचवी तुड़ाई के बाद बोल्ड किस्म सात एमएम और आठ एमएम के मालों की आवक घट जाती है। लेकिन उत्पादक राज्यों में मौसम फसल के अनुकूल होने से दो-तीन तुड़ाई और हो सकती है। लेकिन अगली तुड़ाई में हल्के माल की ही आवक ज्यादा रहेगी। चालू फसल सीजन में इलायची के प्रमुख उत्पादक क्षेत्रों का मौसम फसल के अनुकूल रहा है। इसलिए चालू वर्ष में देश में इलायची का उत्पादन बढ़कर 12,000 टन होने के आसार हैं जबकि पिछले वर्ष देश में इलायची का उत्पादन 9,470 टन का ही हुआ था। अग्रवाल ने बताया कि निर्यातकों के साथ-साथ घरेलू मांग बढ़ने से पिछले दस दिनों में इलायची के भाव 40 से 50 रुपये प्रति किलो बढ़कर 490 से 500 रुपये, 7 एमएम के भाव 530 से 540 रुपये और 8 एमएम के भाव 620 से 640 रुपये प्रति किलो हो गए थे। लेकिन ऊंचे भावों में मांग घटने से मंगलवार को दस रुपये प्रति किलो की गिरावट देखी गई।दिल्ली के इलायची व्यापारी सुमित अग्रवाल ने बताया कि उत्पादक क्षेत्रों में भावों में आई तेजी से दिल्ली बाजार में इसके भावों में 50 रुपये प्रति किलो की तेजी दर्ज की गई। दिल्ली बाजार में 6.5 एमएम क्वालिटी के भाव बढ़कर 510 से 520 रुपये, 7 एमएम के भाव 590 से 600 रुपये और 8 एमएम के भाव 635 से 655 रुपये प्रति किलो हो गए।मुंबई के इलायची निर्यातक मूलचंद रुबारल ने बताया कि इस समय अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय इलायची 6.5 एमएम के भाव 10.50 डॉलर, 7 एमएम के 11.50 डॉलर और 8 एमएम के भाव 13.50 डॉलर प्रति किलो चल रहे हैं। भारतीय इलायची की क्वालिटी ग्वाटेमाला के मुकाबले अच्छी होने के कारण खाड़ी देशों से अच्छी मांग बनी हुई है। ग्वाटेमाला में इस साल इलायची का उत्पादन पिछले साल के 22,000 टन के मुकाबले घटकर 18 से 19 हजार टन होने की उम्मीद है। भारतीय मसाला बोर्ड के सूत्रों के अनुसार चालू वित्त वर्ष के अप्रैल से दिसंबर तक इलायची का निर्यात बढ़कर 375 टन का हो चुका है। पिछले वर्ष की समान अवधि में इसका निर्यात 260 टन का ही हुआ था। (Business Bhaskar....R S Rana)

निर्यातकों की मांग से आई इलायची की तेजी को ब्रेक

निर्यातकों के साथ घरेलू मांग बढ़ने से पिछले दस दिनों में इलायची के भावों में 40 से 50 रुपये प्रति किलो की तेजी बन गई थी लेकिन ऊंचे भावों में ग्राहकी ढीली पड़ गई। जिससे इलायची के भाव मंगलवार को थोड़े गिर गए। उत्पादक क्षेत्रों में इलायची की पांचवी तुड़ाई चल रही है। संभावना व्यक्त की जा रही है कि आगामी दिनों में बोल्ड किस्म सात एमएम और आठ एमएम के माल की आवक घट जाएगी। हालांकि इस साल देश में इलायची की पैदावार पिछले वर्ष के मुकाबले ज्यादा है।केरल की कुमली मंडी के इलायची व्यापारी अरुण अग्रवाल ने बिजनेस भास्कर को बताया कि पांचवी तुड़ाई के बाद बोल्ड किस्म सात एमएम और आठ एमएम के मालों की आवक घट जाती है। लेकिन उत्पादक राज्यों में मौसम फसल के अनुकूल होने से दो-तीन तुड़ाई और हो सकती है। लेकिन अगली तुड़ाई में हल्के माल की ही आवक ज्यादा रहेगी। चालू फसल सीजन में इलायची के प्रमुख उत्पादक क्षेत्रों का मौसम फसल के अनुकूल रहा है। इसलिए चालू वर्ष में देश में इलायची का उत्पादन बढ़कर 12,000 टन होने के आसार हैं जबकि पिछले वर्ष देश में इलायची का उत्पादन 9,470 टन का ही हुआ था। अग्रवाल ने बताया कि निर्यातकों के साथ-साथ घरेलू मांग बढ़ने से पिछले दस दिनों में इलायची के भाव 40 से 50 रुपये प्रति किलो बढ़कर 490 से 500 रुपये, 7 एमएम के भाव 530 से 540 रुपये और 8 एमएम के भाव 620 से 640 रुपये प्रति किलो हो गए थे। लेकिन ऊंचे भावों में मांग घटने से मंगलवार को दस रुपये प्रति किलो की गिरावट देखी गई।दिल्ली के इलायची व्यापारी सुमित अग्रवाल ने बताया कि उत्पादक क्षेत्रों में भावों में आई तेजी से दिल्ली बाजार में इसके भावों में 50 रुपये प्रति किलो की तेजी दर्ज की गई। दिल्ली बाजार में 6.5 एमएम क्वालिटी के भाव बढ़कर 510 से 520 रुपये, 7 एमएम के भाव 590 से 600 रुपये और 8 एमएम के भाव 635 से 655 रुपये प्रति किलो हो गए।मुंबई के इलायची निर्यातक मूलचंद रुबारल ने बताया कि इस समय अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय इलायची 6.5 एमएम के भाव 10.50 डॉलर, 7 एमएम के 11.50 डॉलर और 8 एमएम के भाव 13.50 डॉलर प्रति किलो चल रहे हैं। भारतीय इलायची की क्वालिटी ग्वाटेमाला के मुकाबले अच्छी होने के कारण खाड़ी देशों से अच्छी मांग बनी हुई है। ग्वाटेमाला में इस साल इलायची का उत्पादन पिछले साल के 22,000 टन के मुकाबले घटकर 18 से 19 हजार टन होने की उम्मीद है। भारतीय मसाला बोर्ड के सूत्रों के अनुसार चालू वित्त वर्ष के अप्रैल से दिसंबर तक इलायची का निर्यात बढ़कर 375 टन का हो चुका है। पिछले वर्ष की समान अवधि में इसका निर्यात 260 टन का ही हुआ था। (Business Bhaskar....R S Rana)

सोने का भाव पहुंचा रिकॉर्ड ऊंचाई पर

अंतरराष्ट्रीय बाजार में गिरावट के बावजूद दिल्ली सराफा बाजार में सोने का भाव मंगलवार को 140 रुपये की तेजी के साथ 14,140 रुपये प्रति दस ग्राम के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया। उधर, अंतरराष्ट्रीय बाजार में मंगलवार को सोने का भाव 904 डॉलर प्रति औंस पर खुलने के बाद ग्राहकों का समर्थन न मिलने से 11 डॉलर की गिरावट के साथ 893 डॉलर प्रति औंस के स्तर पर आ गया।ऑल इंडिया सराफा एसोसिएशन के अध्यक्ष एस.सी.जैन ने बताया कि ब्याह-शादियों का सीजन नजदीक होने से आगामी दिनों में सोने में अच्छी मांग की संभावना है। हालांकि, उनका मानना है कि घरेलू बाजार में सोने के भाव ऊंचे होने के कारण निवेशक नया निवेश नहीं कर रहे हैं। वहीं, दूसरी ओर अंतरराष्ट्रीय बाजार में पिछले हफ्ते आई भारी तेजी का असर घरेलू बाजारों पर पड़ा है।मालूम हो कि गत 15 जनवरी को अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोने का भाव 820 डॉलर प्रति औंस था, लेकिन उसके बाद आई एकतरफा तेजी से 26 जनवरी को कीमतें 900 डॉलर प्रति औंस से भी ऊपर चली गई थीं। पौंड और यूरो के मुकाबले डॉलर के कमजोर होने से भी सोने में तेजी को बल मिला है। हालांकि, मंगलवार को विदेशी बाजार में सोना नरम रहा। कारोबारियों ने बताया कि स्टॉकिस्टों की लगातार खरीदारी से भी सोने में तेजी आई। एक सराफा कारोबारी ने बताया कि शादी-विवाह का सीजन शुरू होने से पहले ही आभूषण बनाने वालों की ओर से सोने की मांग बढ़ गई है। इससे भी बाजार में तेजी का रुख देखा जा रहा है। लगातार दो सत्रों से इसमें तेजी का रुख कायम है। जहां तक चांदी का सवाल है, मंगलवार को दिल्ली सराफा बाजार में इसका भाव 200 रुपये की और तेजी के साथ 19,200 रुपये प्रति किलो हो गया। (Business Bhaskar...R S Rana)

रॉक फॉस्फेट के लिए इफ्को-कजाकिस्तानी कंपनी डील

नई दिल्ली : कीमतों में भारी उतार - चढ़ाव के चलते फर्टिलाइजर इंडस्ट्री को कच्चे माल के लिए लॉन्ग टर्म कॉन्ट्रैक्ट करने में दिक्कतें आ रही हैं। कजाकिस्तान की प्रमुख केमिकल और फर्टिलाइजर कंपनी काजफॉस्फेट आईआईसी के साथ रॉक फॉस्फेट के लिए इफ्को ने समझौता तो कर लिया है , लेकिन अभी तक कीमतों को लेकर बात नहीं बन पाई है। इफ्को के एक अधिकारी का कहना है कि अभी तक कीमत तय करने का कोई फॉर्मूला तय नहीं हो पाया है , लेकिन कंपनी 100-150 डॉलर प्रति टन के बीच समझौते की कोशिश कर रही है। एक टन डीएपी के लिए मोटे तौर पर 460 किलो फॉस्फोरिक एसिड और 220 किलो अमोनिया की जरूरत होती है। अधिकारी ने ईटी को बताया , ' अभी कच्चे माल की सप्लाई के लिए लॉन्ग टर्म कॉन्ट्रैक्ट 10 साल का होता है। कच्चे माल की ऊंची कीमतों को देखते हुए फिक्स्ड प्राइस कॉन्ट्रैक्ट सही नहीं लग रहा। सप्लाई करने वाली कंपनियां भी फिक्स्ड प्राइस फॉर्मूले से बच रही हैं। ' हालांकि कजाकिस्तान की कंपनी के पास रॉक फॉस्फेट का करीब चार अरब डॉलर का भंडार है। वहीं , भारत दुनिया भर में फॉस्फेट का सबसे बड़ा खरीदार है। 2007-08 में भारतीय फर्टिलाइजर फर्मों ने रॉक फॉस्फेट के लिए 60-70 डॉलर प्रति टन की कीमत अदा की थी। इफ्को और कजाकिस्तान की कंपनी की डील से रॉक फॉस्फेट की अंतरराष्ट्रीय गोलबंदी को तोड़ने में मदद मिलेगी। इससे जॉर्डन और मोरक्को की बड़ी अंतरराष्ट्रीय कंपनियों की गोलबंदी तोड़ने में मदद मिलेगी। 2008 में दुनिया भर के बाजारों में अनिश्चितता और कमोडिटी कीमतों के उच्चतम स्तर पर जाने के बाद भारत ने जॉर्डन को रॉक फॉस्फेट के आयात के लिए रिकॉर्ड कीमतें अदा की थीं। भारतीय कंपनियों ने रॉक फॉस्फेट के लिए 350 डॉलर प्रति टन की कीमत चुकाई थी। अंतरराष्ट्रीय बाजार में अभी भी जॉर्डन और मोरक्को के रॉक फॉस्फेट की कीमत 250 डॉलर प्रति टन चल रही है। इफ्को के अधिकारी का कहना है , ' हमें यह कीमत मंजूर नहीं है। काजफॉस्फेट के साथ डील होने से गोलबंदी करने वाली परंपरागत कंपनियों के ऊपर कीमत को कम करने का दबाव बढ़ेगा। ' (ET Hindi)

गोल्ड पार कर सकता है 15000/10 ग्राम का लेवल

मुंबई: पीला मेटल यानी गोल्ड आपकी पहुंच से बाहर हो सकता है, लेकिन निवेश के लिहाज अगले कुछ दिनों में सबसे बेहतर ऑप्शन के रूप में सामने आएगा। एनालिस्ट्स का मानना है कि इसी हफ्ते फ्यूचर्स 15,000 रुपये प्रति दस ग्राम के भी पार जा सकता है। एनालिस्ट का मानना है कि इसके पीछे ग्लोबल करेंसी मार्केट वॉलैटिलिटी का फैक्टर सबसे अहम है। रिचकॉम ग्लोबल सर्विसेस के सीनियर एनालिस्ट प्रदीप उन्नी के मुताबिक, कमज़ोर रुपया और ग्लोबल मार्केट्स में बुलिश ट्रेंड होने की वजह से गोल्ड में तेजी आती दिखाई दे रही है। उन्होंने कहा कि इंडिया गोल्ड के दाम 15,000 रुपये प्रति दस ग्राम के स्तर को पार कर सकते हैं। एनालिस्ट्स का कहना है कि इंडिया में गोल्ड को सबसे ज्यादा फायदा इनवेस्टमेंट डिमांड से मिला है। वहीं, ऊंचे दाम और कमज़ोर रुपये ने गोल्ड डिमांड पर नेगेटिव असर डाला है। इंडिया वर्ल्ड का सबसे बड़ा गोल्ड इम्पोर्टर है। लेकिन, 2008 में गोल्ड इम्पोर्ट 47 परसेंट घटकर लगभग आधा रह गया। HSBC के कमोडिटी एनालिस्ट का मानना है कि अगर गोल्ड के दाम 900 डॉलर प्रति औंस के पार जाते हैं तो गोल्ड के भारतीय रीटेल ग्राहक तेज़ी से खत्म होंगे। दोपहर 2 बजकर 12 मिनट पर एमसीएक्स पर गोल्ड 14,073 रुपये प्रति 10 ग्राम के स्तर पर कारोबार करता देखा गया। हालांकि, गोल्ड अब तक के हाइएस्ट लेवल यानी 14,320 रुपये प्रति 10 ग्राम के स्तर से काफी नीचे है। बीते साल गोल्ड में 29.2 परसेंट की तेज़ी दर्ज की गई। गोल्ड (ET Hindi)

ग्लोबल डिमांड बढ़ी तो सोना पहुंचा रेकॉर्ड लेवल पर

नई दिल्ली : राजधानी में सोने की कीमत में मंगलवार को 40 रुपये की बढ़ोतरी दर्ज की गई और यह 14,140 रुपये प्रति 10 ग्राम के रेकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया। सोने को ग्लोबल ट्रेंड और डॉलर में गिरावट का फायदा मिला। चांदी में भी तेजी का ट्रेंड जारी रहा और यह 200 रुपये प्रति किलो बढ़कर 19,200 रुपये प्रति किलो के स्तर पर पहुंच गई। बाजार विश्लेषकों का कहना है कि ग्लोबल मार्केट्स में बढ़ोतरी के ट्रेंड का असर घरेलू बाजारों में भी देखने को मिल रहा है। . उनका कहना है कि पाउंड और यूरो के मुकाबले डॉलर में हुई गिरावट ने भी सोने की कीमतों मे बढ़ोतरी के ट्रेंड को सहारा दिया है। राजधानी के एक जूलरी बिजनेसमन राकेश आनंद का कहना है कि ग्लोबल ट्रेंड के अलावा शादियों का सीजन नजदीक होने के कारण जूलरी कारोबारियों को काफी ऑर्डर भी मिल रहे हैं। स्टैंडर्ड गोल्ड और जेवर दोनों के रेट में 40 रुपये की बढ़ोतरी दर्ज की गई और ये क्रमश : 14,140 और 13,990 रुपये प्रति 10 ग्राम पर बंद हुए। इसी बीच एशियन कारोबार में सोने में 0.3 परसेंट की बढ़ोतरी दर्ज की गई और यह 905.98 डॉलर प्रति आउंस पर चला गया। चांदी 200 रुपये ऊपर बंद हुई और यह 19,200 रुपये प्रति किलो पर बंद हुआ। हालांकि चांदी के सिक्कों में कोई बदलाव नहीं नजर आया। खरीदारी के लिए इसका भाव प्रति 100 पीस 27,500 रुपये और बिक्री के लिए 27,600 रुपये प्रति 100 पीस रहा। (ET Hindi)

मांग घटने के बावजूद आसमान छू रहा है मक्के का भाव

बंगलुरु: पोल्ट्री इंडस्ट्री की ओर से मांग कमजोर रहने की आशंका के बीच मक्के की कीमतों में लगातार बढ़ोतरी से कारोबारी और विश्लेषक हैरान हैं। मौजूदा वित्त वर्ष में पोल्ट्री इंडस्ट्री में ब्रायलर आउटपुट में 15 से 20 फीसदी की कमी आने की आशंका जताई जा रही है। गौरतलब है कि देश में होने वाले कुल मक्का उत्पादन का करीब 80 फीसदी हिस्सा जानवरों के खाने और औद्योगिक कार्यों में इस्तेमाल होता है। मक्के का उत्पादन न करने वाले लेकिन इसकी ज्यादा खपत वाले उत्तरांचल जैसे अधिकतर राज्यों में इसकी कीमत करीब 10,700 रुपए प्रति टन पर है। इसमें साल-दर-साल आधार पर करीब 13.3 फीसदी की तेजी आई है। इसी तरह प्रमुख कमोडिटी एक्सचेंज एनसीडीईएक्स पर मक्के के फरवरी कॉन्ट्रैक्ट की कीमत दिसंबर 2008 के 750-770 रुपए प्रति क्विंटल से बढ़कर इस साल जनवरी में 857-860 रुपए प्रति क्विंटल हो गई है। केंद सरकार ने खरीफ साल 2008 के लिए मक्के का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 8,400 रुपए प्रति टन तय किया था जबकि खरीफ साल 2007 के लिए सरकार ने मक्के की एमएसपी 6,200 रुपए प्रति टन तय की थी। इसे देखते हुए मक्के की कीमतों में बढ़ोतरी की एकमात्र तार्किक वजह यही दिख रही है कि बेहतर कीमतों की आस में किसान अपने भंडार को बाजार में नहीं उतार रहे हैं। भारत में खरीफ साल 2008 में मक्के की पैदावार 1.3 करोड़ टन से कुछ ज्यादा रही है जबकि इससे पिछले साल इसकी पैदावार करीब 1.51 करोड़ टन रही थी। दुनिया भर में चल रही खराब आर्थिक स्थितियों के चलते विश्लेषक मान रहे हैं कि मक्के का निर्यात इस साल 2.5 लाख टन से भी कम ही रहेगा। इस इंडस्ट्री के एक जानकार के मुताबिक, 'मार्च में आने वाली रबी फसल को देखते हुए कीमतों में गिरावट आ सकती है। मक्के की ऊंची कीमतों के स्थिर बने रहने की कोई वजह नहीं है। पोल्ट्री इंडस्ट्री में उत्पादन में सालाना 15 से 20 फीसदी की कमी आती दिख रही है। मक्के की कीमतों में आई 14 फीसदी की तेजी से पोल्ट्री इंडस्ट्री पर असर पड़ा है। ग्राहकों के बीच पोल्ट्री मांग की कमी चल रही है। ऐसे में पोल्ट्री इंडस्ट्री के लिए मक्के की कीमतों में आई तेजी को ग्राहकों पर डालना मुश्किल पड़ रहा है।' (ET Hindi)

वैश्विक मंदी से बेहाल हुई रबर इंडस्ट्री

कोट्टयम : वैश्विक मंदी से भारतीय रबर उद्योग की हालत खराब हो सकती है। ऑटो सेक्टर मंदी की गिरफ्त में है। ऐसे में रबर की घरेलू मांग में काफी कमी आई है। इसका असर रबर की कीमतों पर भी पड़ा है। रबर बोर्ड का कहना है कि इस साल रबर उद्योग पर यह संकट बना रह सकता है। रबर बोर्ड के चेयरमैन साजन पीटर ने बताया, 'मौजूदा हालात में बोर्ड को प्राकृतिक रबर की कीमतों में किसी बढ़ोतरी के आसार नहीं दिख रहे हैं। हमारे अनुमान के मुताबिक, इस साल के आखिर तक हालात में सुधार आएगा।' उन्होंने कहा कि रबर की कीमतें पूरी तरह से मांग और आपूर्ति पर निर्भर करती हैं। इसके अलावा कच्चे तेल की कीमतों का भी इस पर असर पड़ता है। पीटर ने कहा कि आर्थिक संकट ने सभी सेक्टरों के कारोबार पर असर डाला है। ऑटोमोबाइल सेक्टर भी इससे अछूता नहीं है। इसी वजह से टायर और रबर के कारोबार में कमी आई है। सीआईआई के आंकड़ों के मुताबिक, भारतीय रबर उद्योग में छोटी, मझोली और बड़ी मिलाकर कुल 6,000 इकाइयां हैं। इस सेक्टर की भारतीय अर्थव्यवस्था में अहम भूमिका है। जहां एक ओर इस सेक्टर का कारोबार 200 अरब रुपए का है, वहीं टैक्स और अतिरिक्त करों के जरिए सरकारी खजाने को 40 अरब रुपए मिलते हैं। पीटर ने कहा है कि इंटरनेशनल रबर रिसर्च इंस्टिट्यूट का अनुमान है कि वर्ष 2009 में रबर की खपत में 0.83 फीसदी की कमी आएगी। वर्ष 2008 में रबर की खपत में 1.5 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। हालांकि, रबर मर्चेंट एसोसिएशन का कहना है कि वर्ष 2009 में वैश्विक स्तर पर रबर की खपत में करीब 15 फीसदी की कमी आएगी। (ET Hindi)

बारिश से बढ़ेंगी फसलों की उपज

नई दिल्ली : देश के उत्तरी, उत्तर-पश्चिमी और गेहूं उपज वाले क्षेत्रों में अगले पांच दिनों में बारिश होने के अनुमान से रबी की प्रमुख फसलों, ऑयलसीड और दालों की उपज को बल मिलने की उम्मीद है। नेशनल सेंटर फॉर मीडियम रेंज वेदर फोरकास्ट (एनसीएमआरडब्ल्यूएफ) का पूर्वानुमान है कि अगले 24 घंटे तक हिमाचल प्रदेश और जम्मू और कश्मीर के ज्यादातर इलाकों में बर्फबारी और बारिश होगी। इसके अलावा देश के उत्तर पश्चिमी इलाकों में भी हल्की बारिश और फुहारों का अनुमान केंद्र ने जताया है। सेंटर के पूर्वानुमान में कहा गया है कि पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिमी बंगाल, उड़ीसा और उत्तर पूर्व के राज्यों में भी बारिश होने के आसार हैं। पिछले साल 1 अक्टूबर से लेकर 31 दिसंबर के बीच उत्तर पूर्वी मानसून के कारण होने वाली बारिश की कमी इस बारिश से पूरी हो सकती है। गौरतलब है कि इस दौरान होने वाली बारिश सामान्य से करीब 31 फीसदी कम रही है। 1 अक्टूबर से 31 दिसंबर के बीच होने वाली बारिश की कमी कुल 36 सब डिवीजन में से 30 सब डिवीजन में रही है जबकि पिछले साल यह कमी 27 सब डिवीजन में रही थी। बारिश की कमी के चलते फसलों पर बुरा असर पड़ने की आशंका जताई जा रही थी। खासतौर पर कम बारिश वाले इलाकों में इस वजह से फसलों पर ज्यादा नुकसान होता दिख रहा था। देश के ज्यादातर इलाकों में इस सीजन में हुई कम बारिश ने रबी फसल के उत्पादन पर असर की आशंका पैदा की है। सरकार ने इस साल गेहूं के 7.8 से 7.9 करोड़ टन के रिकॉर्ड उत्पादन की उम्मीद जताई है। लेकिन कम बारिश सरकार के अनुमान को कमजोर कर सकती है। इसके अलावा कम बारिश की वजह से कुल पानी के संचयन पर भी खराब असर दिखाई देगा। 15 जनवरी को यह फुल रिजर्वर लेवल (एफआरएल) का केवल 49 फीसदी है जबकि इससे पिछले साल यह 56 फीसदी पर था। कुल मिलाकर ताजा बारिश के पूर्वानुमान से बारिश की मौजूदा कमी की भरपाई होने की उम्मीद जगी है। हालांकि जनवरी के शुरुआती दिनों में तापमान पाला मुक्त रहा है। गौरतलब है कि पाले को फसलों के लिए नुकसानदायक माना जाता है। खासतौर पर गेहूं की फसल को इससे काफी नुकसान होता है। उत्तर भारत के ज्यादातर गेहूं उपजाऊ इलाकों में इन सर्दियों में पानी की कमी का इसकी वृद्धि पर नकारात्मक असर दिखाई दिया है। (ET Hindi)

बरकरार रहेगी सोने में तेजी

मुंबई January 25, 2009
निवेशकों की ओर से सोने की मांग लगातार बढ़ रही है। संभव है कि इस सप्ताह भी सोने की कीमतों में उछाल का दौर जारी रहेगा, क्योंकि निवेश के सभी विकल्पों में सोना ही खरा माना जा रहा है।
वैश्विक अर्थव्यवस्था की हलचल को देखते हुए अन्य चीजों में निवेश को निवेशक जोखिम भरा मान रहे हैं। एंजल ब्रोकिंग की हालिया रिपोर्ट के भविष्य के बारे में अनुमानों के मुताबिक इस धातु को निवेशकों का तगड़ा समर्थन मिलेगा और इसका समर्थन स्तर 13,980-13,950 रुपये प्रति दस ग्राम के बीच रहेगा और कम से कम 13,800-13770 रुपये प्रति दस ग्राम पर तो मजबूत समर्थन हासिल रहेगा। पहले के 13,670 रुपये प्रति दस ग्राम और उसके बाद के 13,400 रुपये प्रति दस ग्राम की तुलना में इसकी न्यूनतम समर्थन दर 13,770 रुपये प्रति 10 ग्राम होगा। बहरहाल ब्रोकिंग फर्म के मुताबिक 14,290-14,310 रुपये प्रति 10 ग्राम के बीच सोना बना रहेगा और 14,430-14,450 रुपये प्रति 10 ग्राम पर मजबूत समर्थन होने पर जा सकता है। अगर ऊपरी खरीद स्तर की बात करें तो 10 ग्राम सोने का मूल्य 14,450 रुपये हो सकता है, जो हाल ही में 14,600 के उच्च स्तर पर गया था। डॉलर के लिहाज से देखें तो इस पीली धातु में बढ़त बनी रहेगी और यह 940 डॉलर प्रति औंस तक जाएगा, क्योंकि डॉलर की कीमतें अस्थिर हैं और इस कीमती धातु को एक्सचेंज ट्रेडेड फंड (ईटीएफ) का माध्यम से मजबूत समर्थन मिल रहा है। उदाहरण के लिए, एसपीडीआर गोल्ड ट्रस्ट इस समय सोने को रोक रहा है, जो दुनिया का सबसे बड़ा सोने का ईटीएफ है- इसमें पिछले शुक्रवार को 1.6 प्रतिशत की बढ़त हुई और 819.11 टन पर पहुंच गया। यह चार महीने की वैश्विक खदान से हुए उत्पादन के बराबर है।एक अग्रणी शोध संस्थान के विश्लेषक के मुताबिक, 'ईटीएफ के माध्यम से सोने में निवेश ही सोने की वास्तविक खरीद की दरें अगले हफ्तों में तय करेगा।' बहरहाल, शुक्रवार को लंदन में सोने की तात्कालिक डिलिवरी 5.1 प्रतिशत ज्यादा रही और यह तीन महीने के उच्चतम स्तर के आंकड़े को पार करता हुआ 900.55 डॉलर प्रति औंस पर पहुंच गया लेकिन बंदी के समय तक लाभ कमाने के रुख के चलते 896.14 डॉलर प्रति औंस पर पहुंच गया। मुंबई में इस कीमती धातु की कीमत बाजार में 14,000 रुपये प्रति 10 ग्राम पर पहुंच गई। सोने का वायदा भावदिनांक खुला बंद20.01.2009 13,400 13,58321.01.2009 13,676 13,68022.01.2009 13,585 13,56923.01.2009 13,750 14,00124.01.2009 14,150 14,160
*एमसीएक्स में 5 अगस्त 2009 के लिए कारोबार (रु. प्रति 10 ग्राम) (BS Hindi)

चीनी उत्पादन में भारी कमी की आशंका से बढ़ती ही जा रही हैं कीमतें

नई दिल्ली January 27, 2009
चीनी उत्पादन में 1 करोड़ टन की भारी कमी के आशंका के मद्देनजर हाजिर बाजार में इसकी कीमत हर सप्ताह बढ़ रही है। मंगलवार को दिल्ली की मंडी में चीनी की कीमत 2250 रुपये प्रति क्विंटल के स्तर पर पहुंच गयी।
पिछले सप्ताह इसके भाव 2200 रुपये प्रति क्विंटल थे। पंद्रह दिन पहले थोक बाजार में चीनी 2100 रुपये प्रति क्विंटल के स्तर पर थी। दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश की चीनी मिलों का कहना है कि गन्ने की पेराई क्षमता के मुकाबले एक तिहाई से भी कम हो गयी है।इसलिए चीनी का उत्पादन इस साल देश भर में 160 लाख टन से अधिक होने की संभावना नजर नहीं आ रही है। पिछले सीजन में चीनी का उत्पादन 265 लाख टन हुआ था। हालांकि सरकारी दावों के मुताबिक देश भर में 190 लाख टन चीनी उत्पादन का अनुमान है।क्या कहते हैं कारोबारीचीनी के थोक कारोबारियों के मुताबिक अगले एक-दो दिनों में चीनी की कीमत 2300 रुपये प्रति क्विंटल के स्तर पर जा सकती है। शीतल पेयजल बनाने वाली कंपनियां उत्पादन में भारी कमी की आशंका को देखते हुए बड़े पैमाने पर खरीदारी कर रही है। रोबारियों का कहना है कि कीमत में बढ़ोतरी पर अंकुश के लिए सरकार को तत्काल रूप से इसके स्टॉक की सीमा तय करनी चाहिए। ऐसा नहीं होने पर फरवरी माह के मध्य तक चीनी 27 रुपये प्रति किलोग्राम के स्तर को भी पार कर सकती है। फिलहाल चीनी के स्टॉक की कोई सीमा तय नहीं है। उनका यह भी कहना है कि सरकार चीनी की उपलब्धता बढ़ाने के लिए कच्ची चीनी का आयात करने की कवायद तो कर रही है, लेकिन इसमें देर होने पर चीनी के दाम तब तक काफी बढ़ सकते हैं। देश भर में चीनी की कुल खपत लगभग 230 लाख टन है।कहते हैं मिल मालिक पेराई के लिए गन्ना उपलब्ध नहीं होने के कारण उत्तर प्रदेश में 20 फरवरी तक सभी चीनी मिलों का काम बंद हो जाएगा। छोटी मिलों में तो फरवरी के पहले सप्ताह में ही पेराई समाप्त होने की संभावना जताई जा रही है। गन्ने की सामान्य आपूर्ति होने पर इन मिलों में मार्च के आखिरी या फिर अप्रैल के पहले सप्ताह तक पेराई का काम चलता है। मध्य प्रदेश की कई मिलों में तो पेराई का काम खत्म भी हो चुका है।गन्ने की कमी के कारण उत्तर प्रदेश की मिलों को सरकारी मूल्य के अतिरिक्त खाद व बीज के नाम पर 20 रुपये प्रति क्विंटल का भुगतान करना पड़ रहा है। इस बार क्षमता से एक तिहाई कम पेराई हो रही है। जिन मिलों की पेराई क्षमता रोजाना 55,000 क्विंटल है वहां मात्र 15,000 क्विंटल गन्ने की पेराई हो रही है। वैसे ही रोजाना 1.50 लाख क्विंटल की पेराई क्षमता रखने वाली मिलें 50 हजार क्विंटल के स्तर पर पहुंच गयी है। सरकार की तरफ से गन्ने का मूल्य 140-145 रुपये प्रति क्विंटल तय किया गया है। मिल मालिकों का कहना है कि इससे उनकी लागत में 150-200 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी हो रही है। जबकि सरकार को उन्हें लेवी की चीनी के रूप में मात्र 1300 रुपये प्रति क्विंटल की दर चीनी देना पड़ता है।रोजाना होने वाली पेराईचीनी मिल क्षमता (रोजाना) वर्तमान में होने वाली पेराईधामपुर 1.50 लाख क्विंटल 50700 क्विंटलइकबालपुर 55,000 क्विंटल 15,500 क्विंटलमोदीनगर 70,000 क्विंटल 8,900 क्विंटलदया शुगर 50,000 क्विंटल 15,000 क्विंटल
(BS Hindi)

गिरावट के बाद लौटी नारियल तेल में तेजी

कोच्चि January 27, 2009
नारियल तेल ने इस सप्ताह की शुरुआत धमाकेदार तरीके से की और 57,00 रुपये प्रति क्विंटल पर खुला।
पिछले हफ्ते नारियल तेल की कीमतें जमीन पर आ गई थी, और आवक में बढ़ोतरी की वजह से इसकी कीमत 56,00 रुपये प्रति क्विंटल पर पहुंच गई। केरल में खोपरा उत्पादन का मौसम शुरू हो गया है, लेकिन अन्य केंद्रों पर उत्पादन अभी जोर नहीं पकड़ पाया है। कीमतों को देखते हुए इस समय तेल और खोपरा दोनों ही के कारोबारियों पर इस समय बिकवाली का दबाव है। उत्पादकों के मुताबिक फरवरी के मध्य तक पूरे केरल में उत्पादन शबाब पर होगा। इसलिए अभी कीमतें कुछ समय तक 5,600 रुपये प्रति क्विंटल के नीचे जाने की कोई उम्मीद नहीं है।राज्य के तटीय इलाकों में कोपरा का उत्पादन होता है, लेकिन नारियल की कमी की वजह से इसके उत्पादन पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा है। केरल में नारियल की भारी मांग है और कर्नाटक जैसे पड़ोसी राज्यों से भी भारी मांग है। इसलिए उत्पादक 6-7 रुपये प्रति नग के हिसाब से नारियल बेचना ज्यादा मुफीद समझ रहे हैं। इसकी वजह से कोपरा का उत्पादन प्रभावित हो रहा है। नारियल तेल के डीलरों ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा कि कीमतों में इसलिए कमी आई है, क्योंकि तमिलनाडु से कम कीमतों पर नारियल की आवक हो रही है। तमिलनाडु से 5,500 रुपये प्रति क्विंटल की दर से नारियल तेल आ रहा है। इस महीने की 8 तारीख को कोच्चि के बाजार में नारियल तेल की कीमतें 59,00 रुपये प्रति क्विंटल पर पहुंच गई थीं, लेकिन इसकी कीमतें 5,600 रुपये प्रति क्विंटल के न्यूनतम स्तर पर भी आईं। दिसंबर 08 के दौरान कीमतें 6,000 रुपये प्रति क्विंटल के आंकड़े को भी पार कर गई थीं। कीमतों में आ रही कमी की वजह से पाम आयल के बाजार को गंभीर खतरा है। थोक बाजार में पाम आयल की कीमतें 3,400 रुपये प्रति क्विंटल है। अगर नारियल तेल की आपूर्ति में बढ़ोतरी होती है तो पाम आयल की कीमतें अपने आप जमीन पर आ जाएंगी। (BS HIndi)

सीमेंट कंपनियों का मुनाफा बढ़ा

नई दिल्ली January 27, 2009
घरेलू सीमेंट उद्योग में अक्टूबर-दिसंबर तिमाही के दौरान भारी मात्रा में लदान हुआ। इस दौरान तेल की कीमतें और पैकेजिंग खर्च कम रहा।
हालांकि अभी बहुत कम कंपनियों ने तीसरी तिमाही का आंकड़ा पेश किया है, लेकिन अब तक के रुझानों से अनुमान लगाया जा रहा है कि दूसरी तिमाही की तुलना में उनका प्रदर्शन बहुत बढ़िया रहेगा। दरअसल जुलाई सितंबर ( दूसरी तिमाही) में सीमेंट कंपनियों का प्रदर्शन बेहद खराब रहा था।जेके लक्ष्मी सीमेंट के निदेशक शैलेंद्र चौकसे ने कहा, 'बेहतर प्रदर्शन का पहला कारण देखा जाए तो यह है कि तीसरी तिमाही के दौरान तेल की कीमतें कम रहीं और इसके साथ ही लदान भी भारी मात्रा में हुई। इसके साथ कंपनी ने अपने बिक्री के विभिन्न इलाकों में भी बदलाव करके खर्च कम करने की कोशिश की है। चौथी तिमाही में भी तेल की कीमतें कम रहेंगी और हमें अनुमान है कि प्रदर्शन बेहतर रहेगा।' इस कंपनी की कुल बिक्री में दूसरी तिमाही की तुलना में बहुत ज्यादा इजाफा तो नहीं हुआ है, लेकिन शुध्द लाभ में 108 प्रतिशत बढ़ोतरी दर्ज की गई है।तीसरी तिमाही में पैकेजिंग के खर्च में भी दूसरी तिमाही की तुलना में 21 प्रतिशत से ज्यादा की कमी आई है। पॉलीप्रॉपलीन की बोरियां, जो सीमेंट की पैकेजिंग में उपयोग में आती हैं, इनकी कीमतें 7 रुपये से घटकर 5.5 रुपये पर आ गई हैं। इस दौरान आयातित कोयले की कीमत भी 52,00 रुपये प्रति टन रहीं, जिसमें दूसरी तिमाही की तुलना में 27 प्रतिशत से ज्यादा की गिरावट दर्ज की गई है। आदित्य बिड़ला समूह की कंपनी अल्ट्राटेक सीमेंट की कुल बिक्री में इस दौरान 15 प्रतिशत से ज्यादा का इजाफा हुआ है, जबकि दूसरी तिमाही की तुलना में शुध्द लाभ में 45 प्रतिशत से ज्यादा की बढ़ोतरी हुई है। हालांकि अगर पिछले साल की समान अवधि से तुलना की जाए तो यह लाभ अभी भी बहुत कम है। ऐसा इसलिए हुआ है कि पिछले साल की तुलना में सीमेंट उद्योग में प्रयोग में आने वाले कच्चे माल की कीमतों में जोरदार बढ़ोतरी दर्ज की गई है।नवंबर 2008 के बाद से तेल की कीमतों में कमी आनी शुरू हो गई। वास्तव में इसका प्रभाव चौथी तिमाही में पूरी तरह से नजर आएगा। इसकी प्रमुख वजह यह है कि कंपनियों द्वारा प्रयोग में लाए जाने वाले तेल के नए ऑर्डर इसी तिमाही में लागू होने हैं। अल्ट्रॉटेक के मुताबिक, इसकी कीमतों में अन्तर 35 प्रतिशत के करीब है।सीमेंट उत्पादक संघ के अध्यक्ष और श्री सीमेंट के प्रबंध निदेशक एचएम बांगुर ने कहा, 'मानसून के बाद बढ़ी मांग की वजह से तीसरी तिमाही में प्रदर्शन बेहतर रहा। बहरहाल यह मांग उतनी ही बनी रहने का अनुमान है।' पूरे भारत में तीसरी तिमाही में सीमेंट बिक्री को देखें तो यह 447.4 लाख टन रही जो दूसरी तिमाही के 415.3 लाख टन से 7.72 प्रतिशत ज्यादा है।लागत घटने और तेल की कीमतों में गिरावट से फायदा
कंपनी कुल लाभ (करोड़ रुपये) प्रतिशत बदलाव दूसरी तिमाही तीसरी तिमाहीअल्ट्राटेक 164.19 238.38 45.17जेके लक्ष्मी 26.88 56.4 108.48प्रिज्म 15.01 31.03 106.72 (BS HIndi)

मिलेगा हाइब्रिड चावल की खेती को प्रोत्साहन

नई दिल्ली January 27, 2009
सरकार अब हाइब्रिड चावल के उत्पादन को बढ़ावा देने का मन बना रही है। जिन इलाकों में धान की रोपाई व्यापक पैमाने पर होती है, वहां हाइब्रिड चावल के उत्पादन को प्रोत्साहित करने के लिए बड़े पैमाने पर सब्सिडी दी जाएगी।
इससे चावल के उत्पादन और उत्पादकता बढ़ाने में मदद मिलेगी। पिछले साल खरीफ सीजन में 832.5 लाख टन चावल का उत्पादन हुआ था, अब सरकार इस रिकॉर्ड को तोड़ने के लिए बेताब है।भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के महानिदेशक मंगला राय के मुताबिक, वर्तमान में जिस चावल का उत्पादन किया जाता है, उसकी तुलना में हाइब्रिड चावल का उत्पादन करने वाले एक हेक्टेयर खेत में 1 से 1.5 टन ज्यादा उत्पादन कर सकते हैं।वर्तमान में अगर हम चावल के उत्पादन की स्थिति पर गौर करें तो भारत में औसत प्रति हेक्टेयर उत्पादन केवल करीब 2.12 टन है, जो पंजाब में 4 टन प्रति हेक्टेयर है और आंध्र प्रदेश में 3 टन प्रति हेक्टेयर है। चीन में चावल क्रांति दरअसल संकरित चावल की वजह से ही आई। इसका विकास वहां पर 1970 की शुरुआत में किया गया था। चीन में 1990 तक पूरे देश के आधे धान उत्पादक क्षेत्र में हाइब्रिड चावल की खेती की जाने लगी, जिसके चलते चीन दुनिया का सबसे बड़ा चावल उत्पादक बनकर उभरा।भारत ने भी इस दिशा में कोशिशें शुरू की थीं। लेकिन 1970 में शुरू हुई हाइब्रिड चावल तकनीक के शोध कार्यो में असली उपलब्धि 1990 के आसपास ही मिल सकी। आईसीएआर के रिसर्च नेटवर्क के माध्यम से तमाम नई हाइब्रिड किस्मों का विकास किया गया।इसमें निजी क्षेत्र की कंपनियों ने भी भरपूर साथ दिया। इससे देश भर के विभिन्न इलाकों में व्यावसायिक खेती शुरू हुई। भारत में हाइब्रिड बीज के प्रसार न होने के पीछे प्रमुख वजह यह है कि हाइब्रिड बीज बहुत महंगे होते हैं। महंगे होने की वजह यह है कि इसके उत्पादन में बहुत जटिल तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है। इस बीज को किसानों को हर साल खरीदना पड़ता है।अब तक देश भर में धान की 5 प्रतिशत खेती में ही हाइब्रिड बीजों का इस्तेमाल होता है, जबकि 4 करोड़ हेक्टेयर जमीन में धान की फसल रोपी जाती है। इस लिहाज से देखें तो धान रोपाई के 30 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में उत्पादन के लिए 450,000 क्विंटन हाइब्रिड बीज की जरूरत पड़ेगी।किसानों के लिए हाइब्रिड बीज सुगम बनाने के लिए एनएफएसएम सामने आया है। इसके सहयोग से बीज के उत्पादन के साथ साथ बिक्री के दौरान भी सब्सिडी दी जाएगी। सरकारी सूत्रों के मुताबिक निजी और सरकारी बीज उत्पादकों को 1000 रुपये प्रति क्विंटल की सब्सिडी दी जाएगी। निजी कंपनियों को भी इसमें छूट दी जाएगी, अगर वे राज्य स्तर की एजेंसियों से जुड़ी हैं और उन्हें राज्य खाद्य सुरक्षा मिशन से स्वीकृति मिली हुई है। इसके अलावा बीज के मूल्य का 50 प्रतिशत (2000 रुपये प्रति क्विंटल से ज्यादा नहीं) अतिरिक्त सब्सिडी बीज वितरकों को दी जाएगी, जिससे कम दाम पर किसानों को बीज उपलब्ध हो सके। एनएफएसएम ने यह भी प्रस्ताव रखा है कि विभिन्न एजेंसियों को हाइब्रिड चावल की खेती के लिए किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए लगाया जाएगा, जिससे किसानों को इसके लाभ के बारे में पता चल सके। इसमें किसानों को शिक्षित करने के लिए प्रति डिमांस्ट्रेशन 3,000 रुपये की सब्सिडी दी जाएगी। इस तरह के डिमांस्ट्रेशन उन इलाकों में ही दिए जाएंगे, जहां पहले ही उच्च गुणवत्ता वाले धान की रोपाई होती है। इन इलाकों में उत्पादन स्थिर सा हो गया है, क्योंकि किसानों के लिए उपज बढ़ाने का कोई नया तरीका नहीं मिल रहा है। हाइब्रिड चावल की खेती से उत्पादन में 15-20 प्रतिशत की बढ़ोतरी हो सकती है। (BS Hindi)

आंध्र की काजू इकाइयां कसेंगी प्रदूषण पर लगाम

विशाखापत्तनम January 27, 2009
आंध्रप्रदेश के सबसे बड़े काजू बाजार पालसा के काजू निर्माताओं ने परंपरागत ड्रम रोस्टिंग सिस्टम की बजाय धीरे-धीरे ब्वॉयलर कुकिंग पर अपना हाथ आजमाना शुरू कर दिया है।
श्रीकाकुलम के पालसा जिले में चलने वाली लगभग 200 काजू निर्माण इकाइयों की क्षमता 400,000-450,000 टन तक पहुंच रही है। ये इकाइयां ड्रम रोस्टिंग सिस्टम के तहत काम करती थीं, जिससे वायु प्रदूषण होता है। पिछले तीन-चार सालों से प्रदूषण नियंत्रण अधिकारी, प्रसंस्करण करने वालों को रोस्टिंग करने से रोकने के लिए नोटिस भी भेज रहे थे। उनका कहना था कि इसकी बजाय उन्हें काजू को उबालना ही चाहिए। अधिकारियों ने पिछले कुछ महीने से 124 इकाइयों को बंद करने का निर्देश भी दिया था। पालसा काजू निर्माता संघ के पूर्व अध्यक्ष मल्ला नुका राजू के मुताबिक संचालक पहले तो ब्वॉयलर कुकिंग का इस्तेमाल नहीं करना चाहते थे, क्योंकि इसमें काफी निवेश करना पड़ता है। कुछ संचालकों ने तो पालसा से 40 किलोमीटर दूर उड़ीसा में ही जाने को सोच लिया था। राजू ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि अब ये संचालक ब्वॉयलर सिस्टम को ही अपनाने में अपनी दिलचस्पी दिखा रहे हैं। हर इकाई के लिए इस प्रसंस्करण के तरीके में बदलाव के लिए 10 लाख रुपये की जरूरत होगी। उनका कहना है, 'केंद्र सरकार ने हाल ही में इसके लिए एक सब्सिडी स्कीम की घोषणा की है जिसके तहत हर एक इकाई को 10 लाख रुपये दिए जाएंगे। इसमें से सब्सिडी का हिस्सा 2.5 लाख रुपये है जबकि 7.5 लाख रुपये के टैक्स में छूट दी जाएगी।'लगभग 10 इकाइयों के संचालकों को सरकारी वित्तीय सहायता मिली है। इसी वजह से उन्होंने पिछले एक डेढ़ महीने में प्रसंस्क रण के सिस्टम में बदलाव किया है। (BS Hindi)

28 जनवरी 2009

तंबाकू कारोबार से लौटी खुशियां

गुंटूर January 27, 2009
कर्नाटक में तंबाकू के बेहतर कारोबार से किसानों के चेहरों पर खुशियां लौट आई हैं।
इस साल वर्जीनिया किस्म के तंबाकू की औसत कीमत 109.80 रुपये प्रति किलो रही हैं, जबकि पिछले साल इसकी कीमत पूरे मौसम में 59.25 प्रतिशत रही थी। कर्नाटक में तम्बाकू की 98 दिनों की बोली के दौरान किसानों ने 831.5 लाख किलोग्राम तंबाकू की बिक्री की। इतना कारोबार निर्यात किए जाने वाले वर्जीनिया किस्म के तंबाकू का रहा। इस मौसम में किसानों ने 1037.6 लाख किलोग्राम तंबाकू का उत्पादन किया, जबकि कुल अधिकृत फसल 965.2 लाख किलोग्राम का ही है। तंबाकू बोर्ड के चेयरमैन जे सुरेश राजू ने कहा कि कर्नाटक के किसानों को इस साल बेहतर मुनाफा मिल रहा है। इस साल की तुलना में पिछले साल कम कीमतें मिली थीं। औसतन प्रतिदिन 12-15 पैसे प्रति किलो के हिसाब से इस साल बोली में बढ़ोतरी हुई।पिछले साल तंबाकू की सर्वाधिक कीमत 70 रुपये प्रति किलो रही थी, जबकि इस साल तंबाकू की अधिकतम कीमत शानदार रूप से 155.60 रुपये प्रति किलोग्राम रही। इस साल ब्राइट ग्रेड तंबाकू का किसानों ने 266.9 लाख किलोग्राम पैदावार की, जो कुल फसल का 32.10 प्रतिशत था। मीडियम ग्रेड तंबाकू का उत्पादन 382.5 लाख किलोग्राम रहा, जो कुल फसल का 46 प्रतिशत और लो ग्रेड के तंबाकू का 219.0 लाख किलोग्राम रहा। ब्राइट ग्रेड तंबाकू की कीमतें 126.71 रुपये प्रति किलो (पिछले साल 67.30 रुपये प्रति किलो) बिकी, जबकि मीडियम ग्रेड तंबाकू 113.46 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बिका। लो ग्रेड तंबाकू 77.30 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बिका, जबकि पिछले साल इसकी कीमत 44.81 रुपये प्रति किलो ही रही थी।हुंसुर-2 के किसान, जिन्होंने 94.5 लाख किलोग्राम फसल उगाई है और 63 लाख किलोग्राम फसल की बिक्री की है उन्हें सबसे ज्यादा कमाई हुई है। उन्हें अधिकतम औसत मूल्य मिला है, जो 113.39 रुपये प्रति किलो है। हुंसुर-1 के किसान दूसरे स्थान पर रहे जिन्हें 112.49 रुपये प्रति किलो के औसत से कीमत मिली। उन्होंने 90 लाख किलोग्राम तंबाकू की बिक्री की। उन्होंने 105.7 लाख किलोग्राम तंबाकूका उत्पादन किया था। (BS Hindi)

27 जनवरी 2009

केंद्र ने राज्यों को दिया 2.2 लाख टन ज्यादा गेहूं

नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने खुले बाजार बिक्री योजना (ओएमएसएस) के तहत गेहूं आवंटन का कोटा 2.22 लाख टन बढ़ा दिया है। राज्य सरकार के जरिये फ्लोर मिल व दूसरे बड़े उपभोक्ताओं को थोक में खुली निविदा के तहत बिक्री अब 10 लाख टन गेहूं सुलभ होगा। फरवरी तक के लिए दिल्ली, असम, पुडूचेरी, कर्नाटक, तमिलनाडु, चंडीगढ़, गोवा, हरियाणा, पंजाब, उड़ीसा और छत्तीसगढ़ को कुल 10 लाख टन गेहूं सुलभ होगा। एक अप्रैल को देश में गेहूं का बफर स्टॉक 98.97 लाख टन होगा। नियमरों के मुताबिक 40 लाख टन होना अनिवार्य है। वर्ष 2008-09 खरीफ सीजन में अक्टूबर से 21 जनवरी तक 188.30 लाख टन चावल की सरकारी खरीद हुई है। पिछले वर्ष की समान अवधि में 160.67 लाख टन चावल की खरीद हुई थी।चावल का बफर स्टॉक एक अक्टूबर को 52 लाख टन से बढ़कर 65.94 लाख टन होने का अनुमान है। वर्ष 2008-09 में 14 जनवरी तक बासमती चावल का निर्यात घटकर 7.61 लाख टन और गैर बासमती चावल का निर्यात 7.44 लाख का रहा। (Business Bhaskar)

जारी रह सकती है पीतल में गिरावट

विश्व में छाई मंदी के चलते घरलू बाजारों में बेस मेटल की कीमतों में लगातार गिरावट बनी हुई है। ऐसे में पीतल के भाव भी अगले छह महीने तक सुधरने की संभावना कम है, क्योंकि पीतल खान से निकलने वाली धातु नहीं है। पीतल के मुख्य घटक तांबा व जस्ता होने से इसके भाव तांबा व जस्ता के भावों के साथ पीतल स्क्रेप पर निर्भर करते हैं। यह ही वजह है कि पिछले एक सप्ताह के दौरान घरलू बाजार में पीतल के भावों में विशेष उतार-चढ़ाव नहीं हुआ। मसलन मुम्बई में एक सप्ताह पहले पीतल चादर के भाव 169 रुपए किलो थे, जबकि 24 जनवरी को मुम्बई में पीतल चादर के भाव तीन रुपए किलो की मामूली गिरावट के साथ166 रुपए किलो रह गए। इसी तरह काफी समय से जयपुर में पीतल स्क्रेप के भाव 125 रुपये किलो के आसपास बने हुए हैं। लेकिन पिछले तीन महीने में पीतल में तीस से चालीस फीसदी की गिरावट आ चुकी है। विशेषज्ञों के मुताबिक मंदी का यह दौर जल्दी समाप्त होने वाला नहीं है। इस लिहाज से भी देखें तो अगले छह महीने तक पीतल के भावों में सुधार की गुजांइश कम ही दिखती है। वैसे भी पीतल में 70 फीसदी तांबा और 30 फीसदी जस्ता होने से जब तक इन दोनों धातुओं के भावों में सुधार नहीं होता, तब तक पीतल के भावों में सुधार की उम्मीद करना बेमानी होगा। विशेषज्ञों का मानना है कि वर्ष 2008 की दूसरी छमाही की तरह अंतरराष्ट्रीय बाजार में वर्ष 2009 के दौरान बेस मेटल की कीमतों में 25 से 30 फीसदी गिरावट की संभावना है। यह ट्रेंड चालू कलैंडर वर्ष की पहली छमाही में बदलने के आसार फिलहाल दिखाई नहीं दे रहे हैं, क्योंकि दुनियाभर में रियल्टी व ऑटों समेत सभी क्षेत्रों की विकास दर धीमी है। भारत के संदर्भ में देखें तो पहले पीतल का उपयोग बर्तन और हैंडीक्राफ्ट में ही ज्यादा होता था लेकिन अब इसका उपयोग फर्नीचर, दरवाजों के है¨डल, सजावटी समान में भी बढ़ गया है। लेकिन आर्थिक मंदी के कारण रियल्टी क्षेत्र तो प्रभावित हुआ ही है, विदेशी बाजारों से हैंडीक्राफ्ट उत्पादों की मांग में भी कमी आई है। वहीं स्टील की तुलना में महंगा पड़ने से बर्तन बनाने में पीतल का उपयोग लगातार घटता जा रहा है।हालांकि केंद्र सरकार ने पीतल उत्पादों से जुड़े उद्योगों को राहत देने के लिए पीतल स्क्रेप आयात शुल्क में कमी की है। लेकिन इस कमी के बावजूद जब तक औद्योगिक मांग में सुधार नहीं होता तब तक पीतल के भावों में सुधार की संभावना कम है। इसको ऐसे भी समझा जा सकता है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में पिछले दिनों मांग में कमी के चलते पीतल स्क्रेप के भाव भारी गिरावट के साथ 1700 से 1800 डॉलर प्रति टन रह गए थे। देश में पीतल की मांग सबसे ज्यादा गुजरात, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश राज्यों की होती है, क्योंकि पीतल उत्पाद बनाने वाली ज्यादात्तर इकाइयां इन्हीं प्रदेशों में है। वैसे भी पीतल उत्पाद बनाने वाली ज्यादातर इकाइयां लघु क्षेत्र में आती है, जो पीतल उत्पादों की मांग में कमी और आयातित स्क्रेप की लागत ज्यादा होने से कामकाज ठीक ढंग से नहीं कर पा रही है। यह देखते हुए पीतल के भावों में फिलहाल सुधार की संभावना कम है। (Business Bhaskar)

खाद्य तेल पर नहीं लगेगी इंपोर्ट ड्यूटी

नई दिल्ली: सरकार का खाद्य तेल पर आयात शुल्क लगाने का इरादा नहीं है। कीमतों के लिए अधिकार प्राप्त मंत्रियों के समूह (ईजीओएम) ने चुनाव होने तक खाद्य तेल की ड्यूटी संरचना में किसी भी बदलाव की संभावना से इनकार किया है। ईजीओएम की अध्यक्षता रक्षा मंत्री प्रणब मुखर्जी के पास है। एक ईजीओएम को खास मुद्दों पर मामले को कैबिनेट जैसी किसी उच्च जगह पर जे लाए बगैर निर्णय लेने का अधिकार होता है। ईजीओएम में संबंधित मंत्रालयों और विभागों के कैबिनेट मंत्री शामिल होते हैं। कीमतों के लिए बनी बनी ईजीओएम की इस सप्ताह बैठक हुई थी। पिछले साल अप्रैल में महंगाई को नियंत्रित करने और कीमतों पर नियंत्रण बनाए रखने के लिए सभी कच्चे खाद्य तेलों से शुल्क को हटा लिया था, लेकिन बाद में नवंबर में दुनिया भर में खाद्य तेल की कीमतों में भारी गिरावट को देखते हुए सोया ऑयल पर 20 फीसदी की इंपोर्ट ड्यूटी लगा दी गई थी। उसके बाद से घरेलू तेल उत्पादक संगठन सरकार से सभी कच्चे खाद्य तेलों पर इंपोर्ट ड्यूटी लगाने की मांग कर रहे हैं। एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने ईटी को बताया, 'ईजीओएम का मत है कि महंगाई दर में आ रही लगातार गिरावट के बाद भी सरकार को ऐसा कुछ नहीं करना चाहिए, जिससे कीमतों में फिर से तेज बढ़ोतरी हो। कच्चे खाद्य तेल पर इंपोर्ट ड्यूटी लगाने समेत अधिकतर निर्णय इसी बात को ध्यान में रखते हुए चुनाव तक टाल दिए गए हैं।' हालांकि ईजीओएम ने बासमती चावल के निर्यात पर लगे 8,000 रुपए प्रति टन के निर्यात शुल्क को हटा लिया है। बासमती पर निर्यात शुल्क पिछले साल मई में लगाया गया था। मंत्रियों का समूह इस मामले को लेकर सतर्क है। उसने बासमती के लिए न्यूनतम निर्यात मूल्य (एमईपी) को 1,200 डॉलर प्रति टन से घटाकर 1,100 डॉलर प्रति टन कर दिया। वाणिज्य मंत्रालय मांग करता रहा है कि न्यूनतम निर्यात मूल्य को घटाकर 800 डॉलर प्रति टन किया जाए, जिससे भारतीय निर्यातक पाकिस्तानी बासमती निर्यातकों का मुकाबला कर सकें। सरकारी अधिकारी का कहना है, 'हालांकि महंगाई दर गिरकर छह फीसदी के आसपास आ चुकी है, लेकिन सरकार ऐसा कोई फैसला नहीं लेना चाहती है जिससे चुनाव से ठीक पहले कीमतों को फिर बढ़ने का मौका मिले।' (ET Hindi)

अब तक का सबसे महंगा सोना, 14,110 रु/10 ग्राम

मुंबई: शनिवार के शुरुआती कारोबार में सोना अब तक के सबसे ऊंचे लेबल 14,110 रुपए प्रति 10 ग्राम पर पहुंच गया। ग्लोबल मार्केट में ऊंची होती कीमत की वजह से भारत में भी स्टॉकिस्ट जमकर सोना खरीद रहे हैं। इंटरनेशनल मार्केट में कीमत बढ़ने की खबरों के बीच इंडस्ट्रियल डिमांड बढ़ने से चांदी की कीमतों में भी उछाल देखा जा रहा है। स्टैंडर्ड गोल्ड (99.5 प्यूरिटी) सुबह 345 रुपए प्रति 10 ग्राम की बढ़त के साथ 14,110 रुपए के भाव पर खुला। कल का बंद भाव 13,765 रुपए प्रति 10 ग्राम था। इससे पहले 10 अक्टूबर को सोना 14,105 रुपए पर पहुंचा था, जो अब तक की सबसे उंची कीमत थी। प्योर गोल्ड (99.9 प्यूरिटी) में भी प्रति 10 ग्राम 230 रुपए की बढ़त देखी गई और ये 14,170 रुपए पर पहुंच गया। कल का बंद भाव 13,820 रुपए था। चांदी हाजिर (.999) में प्रति किलो 425 रुपए की बढ़त रही और ये 19,480 रुपए पर पहुंचा। कल का चांदी का बंद भाव 19,055 रुपए प्रति किलो था। विदेशी बाजार की बात करें तो सोना तीन महीने के सबसे ऊंचे लेवल पर है। न्यूयॉर्क और लंदन दोनों मांर्केट में सोना अक्टूबर 2008 के बाद एक बार फिर 900 डॉलर प्रति औंस के भाव पर पहुंचा। ऐसा माना जा रहा है कि दुनिया भर के शेयर बाजार इस समय ढलान पर हैं और निवेशक सुरक्षित निवेश के लिए गोल्ड खरीद रहे हैं। नायमैक्स के कमोडिटी डिविजन कॉमेक्स पर गोल्ड का फरवरी डिलिवरी भाव 37 डॉलर यानी 4.3 परसेंट चढ़कर 895.80 डॉलर प्रति औंस हो गया है। पिछले साल 10 दिसंबर के बाद का ये सबसे बड़ा उछाल है। सिल्वर फ्यूचर मार्च डिलिवरी भी 57.5 सेंट चढ़कर 11.94 डॉलर प्रति औंस पर पहुंच गया है। (ET Hindi)

रॉक फॉस्फेट के लिए इफ्को-कजाकिस्तानी कंपनी डील

नई दिल्ली : कीमतों में भारी उतार - चढ़ाव के चलते फर्टिलाइजर इंडस्ट्री को कच्चे माल के लिए लॉन्ग टर्म कॉन्ट्रैक्ट करने में दिक्कतें आ रही हैं। कजाकिस्तान की प्रमुख केमिकल और फर्टिलाइजर कंपनी काजफॉस्फेट आईआईसी के साथ रॉक फॉस्फेट के लिए इफ्को ने समझौता तो कर लिया है , लेकिन अभी तक कीमतों को लेकर बात नहीं बन पाई है। इफ्को के एक अधिकारी का कहना है कि अभी तक कीमत तय करने का कोई फॉर्मूला तय नहीं हो पाया है , लेकिन कंपनी 100-150 डॉलर प्रति टन के बीच समझौते की कोशिश कर रही है। एक टन डीएपी के लिए मोटे तौर पर 460 किलो फॉस्फोरिक एसिड और 220 किलो अमोनिया की जरूरत होती है। अधिकारी ने ईटी को बताया , ' अभी कच्चे माल की सप्लाई के लिए लॉन्ग टर्म कॉन्ट्रैक्ट 10 साल का होता है। कच्चे माल की ऊंची कीमतों को देखते हुए फिक्स्ड प्राइस कॉन्ट्रैक्ट सही नहीं लग रहा। सप्लाई करने वाली कंपनियां भी फिक्स्ड प्राइस फॉर्मूले से बच रही हैं। ' हालांकि कजाकिस्तान की कंपनी के पास रॉक फॉस्फेट का करीब चार अरब डॉलर का भंडार है। वहीं , भारत दुनिया भर में फॉस्फेट का सबसे बड़ा खरीदार है। 2007-08 में भारतीय फर्टिलाइजर फर्मों ने रॉक फॉस्फेट के लिए 60-70 डॉलर प्रति टन की कीमत अदा की थी। इफ्को और कजाकिस्तान की कंपनी की डील से रॉक फॉस्फेट की अंतरराष्ट्रीय गोलबंदी को तोड़ने में मदद मिलेगी। इससे जॉर्डन और मोरक्को की बड़ी अंतरराष्ट्रीय कंपनियों की गोलबंदी तोड़ने में मदद मिलेगी। 2008 में दुनिया भर के बाजारों में अनिश्चितता और कमोडिटी कीमतों के उच्चतम स्तर पर जाने के बाद भारत ने जॉर्डन को रॉक फॉस्फेट के आयात के लिए रिकॉर्ड कीमतें अदा की थीं। भारतीय कंपनियों ने रॉक फॉस्फेट के लिए 350 डॉलर प्रति टन की कीमत चुकाई थी। अंतरराष्ट्रीय बाजार में अभी भी जॉर्डन और मोरक्को के रॉक फॉस्फेट की कीमत 250 डॉलर प्रति टन चल रही है। इफ्को के अधिकारी का कहना है , ' हमें यह कीमत मंजूर नहीं है। काजफॉस्फेट के साथ डील होने से गोलबंदी करने वाली परंपरागत कंपनियों के ऊपर कीमत को कम करने का दबाव बढ़ेगा। ' (BS Hindi)

बढ़ती लागत से हलकान हुए किसान कारोबारियों का धंधा भी हुआ मंदा

नई दिल्ली January 25, 2009
लागत में हो रही लगातार बढ़ोतरी आलू, टमाटर और प्याज जैसी फसलों की खेती करने वाले सब्जी किसानों के लिए शाप बनती जा रही है।
इन फसलों की खेती करने वाले किसानों के अनुसार पिछले एक साल के दौरान लागत में कुल 40 फीसदी तक की बढ़ोतरी हो गई है।बाजार में अच्छी मांग न होने से किसानों को अपनी फसल बेचने के लाले तो पड़े ही हुए है, साथ में लागत बढ़ जाने से 5 से 10 फीसदी का मुनाफा पाना भी टेढ़ी खीर हो गया है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश और हरियाणा के सब्जी किसानों ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि पिछले साल से अब तक कीटनाशक की कीमतों में 35 से 40 फीसदी, हाइब्रिड बीज की कीमतों में 5 से 10 फीसदी, उर्वरकों की कीमतों में 20 फीसदी, कृषि यंत्रों में 30 फीसदी की बढ़ोतरी हो गई है। आगरा में आलू की खेती करने वाले हरेन्द्र सिंह बताते है कि लागत में हुई बढ़ोतरी ने किसानों की कमर तोड़ दी है। कारोबारी बढ़ी हुई कीमतों को सीधे किसानों पर थोप रहे है। मांग न होने के चलते बाजार में फसलों की खरीद लागत भाव से भी कम में हो रही है।220 से 250 रुपये की दर पर प्रति क्विंटल आलू की पैदावार हो रही है। जबकि बाजार में इसकी कीमत किसानों को 150 रुपये प्रति क्विंटल भी नहीं मिल रही है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसानों को बीज और कीटनाशकों का विक्रय करने वाले हेमंत मौर्य का कहना है एडुसल्फास, मोनोक्रोटोफॉस, क्लोरो पाइरीफॉस, साइपरमेथ्रीन जैसे प्रमुख कीटनाशकों की कीमतों में 35 फीसदी और सल्फर व मेन्कोजेव जैसे प्रमुख फफूंद नाशकों की कीमतों में 20 से 25 फीसदी की बढ़ोतरी होने से किसान इनकी खरीद नहीं कर पा रहे है। कारोबारी अश्विनी जैन का कहना है कि एक साल में कृषि यंत्रों की कीमतों में भी 20 फीसदी तक की बढ़ोतरी हो गई है। (BS Hindi)

बरकरार रहेगी सोने में तेजी

मुंबई January 25, 2009
निवेशकों की ओर से सोने की मांग लगातार बढ़ रही है। संभव है कि इस सप्ताह भी सोने की कीमतों में उछाल का दौर जारी रहेगा, क्योंकि निवेश के सभी विकल्पों में सोना ही खरा माना जा रहा है।
वैश्विक अर्थव्यवस्था की हलचल को देखते हुए अन्य चीजों में निवेश को निवेशक जोखिम भरा मान रहे हैं। एंजल ब्रोकिंग की हालिया रिपोर्ट के भविष्य के बारे में अनुमानों के मुताबिक इस धातु को निवेशकों का तगड़ा समर्थन मिलेगा और इसका समर्थन स्तर 13,980-13,950 रुपये प्रति दस ग्राम के बीच रहेगा और कम से कम 13,800-13770 रुपये प्रति दस ग्राम पर तो मजबूत समर्थन हासिल रहेगा। पहले के 13,670 रुपये प्रति दस ग्राम और उसके बाद के 13,400 रुपये प्रति दस ग्राम की तुलना में इसकी न्यूनतम समर्थन दर 13,770 रुपये प्रति 10 ग्राम होगा। बहरहाल ब्रोकिंग फर्म के मुताबिक 14,290-14,310 रुपये प्रति 10 ग्राम के बीच सोना बना रहेगा और 14,430-14,450 रुपये प्रति 10 ग्राम पर मजबूत समर्थन होने पर जा सकता है। अगर ऊपरी खरीद स्तर की बात करें तो 10 ग्राम सोने का मूल्य 14,450 रुपये हो सकता है, जो हाल ही में 14,600 के उच्च स्तर पर गया था। डॉलर के लिहाज से देखें तो इस पीली धातु में बढ़त बनी रहेगी और यह 940 डॉलर प्रति औंस तक जाएगा, क्योंकि डॉलर की कीमतें अस्थिर हैं और इस कीमती धातु को एक्सचेंज ट्रेडेड फंड (ईटीएफ) का माध्यम से मजबूत समर्थन मिल रहा है। उदाहरण के लिए, एसपीडीआर गोल्ड ट्रस्ट इस समय सोने को रोक रहा है, जो दुनिया का सबसे बड़ा सोने का ईटीएफ है- इसमें पिछले शुक्रवार को 1.6 प्रतिशत की बढ़त हुई और 819.11 टन पर पहुंच गया। यह चार महीने की वैश्विक खदान से हुए उत्पादन के बराबर है।एक अग्रणी शोध संस्थान के विश्लेषक के मुताबिक, 'ईटीएफ के माध्यम से सोने में निवेश ही सोने की वास्तविक खरीद की दरें अगले हफ्तों में तय करेगा।' बहरहाल, शुक्रवार को लंदन में सोने की तात्कालिक डिलिवरी 5.1 प्रतिशत ज्यादा रही और यह तीन महीने के उच्चतम स्तर के आंकड़े को पार करता हुआ 900.55 डॉलर प्रति औंस पर पहुंच गया लेकिन बंदी के समय तक लाभ कमाने के रुख के चलते 896.14 डॉलर प्रति औंस पर पहुंच गया। मुंबई में इस कीमती धातु की कीमत बाजार में 14,000 रुपये प्रति 10 ग्राम पर पहुंच गई। सोने का वायदा भावदिनांक खुला बंद20.01.2009 13,400 13,58321.01.2009 13,676 13,68022.01.2009 13,585 13,56923.01.2009 13,750 14,00124.01.2009 14,150 14,160
*एमसीएक्स में 5 अगस्त 2009 के लिए कारोबार (रु. प्रति 10 ग्राम)
(BS Hindi)

24 जनवरी 2009

बरकरार रहेगी सीमेंट की जोरदार मांग

मुंबई January 22, 2009
घरेलू सीमेंट उद्योग ने मंदी के दौर में दिसंबर माह में उच्च विकास दर दिखाकर बाजार को अचंभित कर दिया था। मंदी के दौर में बेहतर प्रदर्शन का यह सिलसिला जनवरी महीने में भी बरकरार रहने की उम्मीद है।
इस उद्योग से जुड़े लोग और विश्लेषकों का कहना है कि यह महीना सीमेंट की मांग के लिहाज से बहुत बढ़िया होता है। दिसंबर महीने में इस उद्योग ने पिछले साल की समान अवधि की तुलना में 12.11 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की। इस माह में सीमेंट लदान 160.1 लाख टन रहा जो पिछले साल की समान अवधि में 142.8 लाख टन था। अक्टूबर तक विकास दर 7-8 प्रतिशत के करीब थी। जनवरी माह में सीमेंट की बिक्री के आंकड़े सीमेंट मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (सीएमए) से अगले महीने के पहले सप्ताह में मिलेंगे।सीएमए के अध्यक्ष एचएम बांगुर ने कहा, 'बहरहाल इस महीने मांग बहुत बढ़िया है। मेरा मानना है कि कमोवेश सीमेंट की कुल बिक्री में बढत की दर पिछले महीने के बराबर ही रहेगी।' बांगुर उत्तर भारत की बड़ी कंपनी श्री सीमेंट के चेयरमैन और प्रबंध निदेशक भी हैं।अगर सीमेंट की लदान में विकास दर चालू माह में भी 10 प्रतिशत से ज्यादा बनी रहती है तो तीन साल के अंतराल के बाद पहली बार ऐसा होगा कि उद्योग जगत में लदान की दर लगातार 10 प्रतिशत होगी। इसके पहले जनवरी 2006 में ऐसा हुआ था, जब इस उद्योग में लदान की दर रिकार्ड 14.34 प्रतिशत दर्ज की गई थी।बेहतरीन विकास दर की प्रमुख वजह मुख्य तौर पर व्यक्तिगत गृह निर्माण और इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजनाएं हैं। बांगुर के मुताबिक, रियल एस्टेट की ओर से अभी भी सीमेंट की मांग बहुत कम आ रही है।देश की सबसे बड़ी सीमेंट कंपनी एसीसी सीमेंट के प्रबंध निदेशक सुमित बनर्जी ने बिजनेस स्टैंटर्ड से कहा कि अभी तक के आंकड़ों के मुताबिक घरेलू बाजार में दिसंबर के अंत और जनवरी महीने में सीमेंट की मांग ज्यादा रही है। देश भर में अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुकी एसीसी सीमेंट को मांग की कमी के चलते 25 लाख टन की क्षमता वाली अपनी हिमांचल प्रदेश की फैक्टरी बंद करनी पड़ी थी।जेके लक्ष्मी सीमेंट के मुख्य वित्त अधिकारी शैलेंद्र चौकसे ने कहा, 'दिसंबर महीने में हमारी कंपनी ने 12 प्रतिशत की बढ़त दर्ज की है और हमारा अनुमान है कि जनवरी महीने में भी यह बढ़त बरकरार रहेगी, क्योंकि अभी भी बेहतर मांग बनी हुई है।'घरेलू सीमेंट उद्योग की कुल क्षमता 31 दिसंबर को 20.70 करोड़ टन रहा। अप्रैल-दिसंबर 2008 के दौरान उत्पादन 10.178 करोड़ टन रहा, जबकि पिछले साल की समान अवधि में सीमेंट का उत्पादन 9.581 करोड़ टन था।आदित्य बिड़ला समूह के अल्ट्राटेक सीमेंट के मुख्य वित्त अधिकारी केसी बिड़ला के मुताबिक, 'दक्षिण, पूर्व और उत्तर भारत के बाजारों से मांग बेहतरीन बनी रहेगी। यह मांग रियल एस्टेट क्षेत्र से नहीं है, बल्कि व्यक्तिगत गृह निर्माण और इन्फ्रास्ट्रक्चर क्षेत्र की ओर से मांग आ रही है, जिसके चलते बढ़ोतरी दर्ज की जा रही है।'पाकिस्तान से आने वाले सीमेंट पर काउंटर वेलिंग डयूटी और स्पेशल एडीशनल डयूटी फिर से लगाए जाने से घरेलू सीमेंट उद्योग को, खासकर उत्तर भारत के बाजार में कुछ राहत मिली है। इसके साथ ही सरकार द्वारा दो राहत पैकेज दिए जाने को भी सीमेंट उद्योग आशा की नजर से देख रहा है। विश्लेषकों का कहना है कि वर्तमान हालात में अभी सीमेंट उद्योग कुछ और समय तक खुशियां महसूस करेगा।पिछले 6 साल में जनवरी में सीमेंट की मांग
वर्ष खपत सालाना बढ़त (मिलियन टन) (प्रतिशत)2007-08 14.90 5.152006-07 14.17 8.332005-06 13.08 14.342004-05 11.44 11.942003-04 10.22 6.022002-03 9.64 9.92स्रोत : सीमेंट मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन

(BS Hindi)