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27 अक्तूबर 2008

सबके दौड़ने पर ही दौड़ेगी कमोडिटी

यह लेख के लिखे जाने के समय तक सोना 713 डॉलर प्रति ट्राय औंस तक गिर चुका था और जोरदार साप्ताहिक गिरावट की ओर बढ़ रहा था। कच्चा तेल पहले ही 63 डॉलर प्रति बैरल तक आ चुका है जबकि इसी साल जुलाई में यह अपने चरम स्तर 147 डॉलर प्रति बैरल पर था। हाल के दिनों में बेस मेटल्स का प्रदर्शन बेहद खराब रहा है और इनकी कीमतें इस साल की शुरुआत से फिलहाल 40-50 फीसदी कम हो चुकी हैं। कई कमोडिटी की कीमतें वर्ष 2005 के स्तर तक आ चुकी हैं। इतने कम वक्त में कमोडिटी की कीमतों में इतनी अधिक गिरावट से इनके आगामी ढर्रे के बारे में तमाम सवाल उठने लगे हैं। 2005 से तेजी का दौर देख रहा कमोडिटी बाजार वैश्विक वित्तीय संकट और कर्ज की तंगी के असर से अछूता नहीं रह गया है। शेयर बाजारों में गिरावट का दौर जारी रहने के साथ कमोडिटी बाजारों में जोरदार बिकवाली सामने आई है। एक दूसरे से जुड़ी विभिन्न संपत्ति श्रेणियों में गिरावट का असर तमाम कमोडिटी पर भी पड़ा है। वित्तीय संपत्तियों में तेजी के पिछले दौर में शेयर सबसे आगे थे। यह दौर 2003-04 में शुरू हुआ था। ऊर्जा से लेकर कृषि कमोडिटी और आभूषण वाली धातुओं से लेकर औद्योगिक धातुओं तक, कोई ऐसा इलाका नहीं बचा जिस पर बाजार ने तेजड़ियों वाली निगाह न डाली हो। हरीकेन कैटरीना के बाद कच्चे तेल की ऊंची कीमतों, दुनिया के प्रमुख गेहूं उत्पादक क्षेत्रों में सूखे की स्थिति, विभिन्न क्षेत्रों में बाढ़ और सूखा लाने वाले अल निनो और ला निना प्रभाव ऐसे कारक थे जो कमोडिटी की कीमतें चढ़ा रहे थे। चीन ओलंपिक औद्योगिक उपयोग की कमोडिटी में तेजी की एक और बड़ी वजह साबित हुआ। चीन में जोरदार निर्माण गतिविधियों ने अधिकतर बेस मेटल्स के भाव चढ़ा दिए। लेकिन यह बात पुरानी पड़ चुकी है। सब-प्राइम संकट के बाद शेयर बाजारों के कमजोर पड़ते जाने से हालात नाटकीय ढंग से बदल गए जिसका असर कमोडिटी बाजारों पर भी पड़ा। सबसे पहला असर बेस मेटल्स और कृषि कमोडिटी पर आया। कच्चे तेल के प्रभाव वाली ऊर्जा मद और सोने की अगुवाई वाली आभूषण की धातुओं की मद ने तो यह झटका कुछ हद तक झेल लिया जबकि अन्य संपत्तियों की कीमतें ठंडी पड़नी शुरू हो गईं। वैश्विक शेयर बाजारों में मंदी हावी होने के बीच कच्चे तेल ने चरम स्तर छू लिया। इसकी एक वजह यह थी कि निवेश ने शेयरों का रास्ता छोड़ कर कच्चे तेल और सोने जैसी तरल कमोडिटी की राह चुन ली थी। हालांकि कच्चे तेल का बाजार निवेश को अधिक समय तक आकर्षित नहीं कर सका। दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के कर्ज के संकट में फंसते जाने और दिग्गज वित्तीय संस्थानों के इसका शिकार बनते जाने के साथ फंड मैनेजरों को तेल बाजार से रकम हटानी पड़ी। कमोडिटी बाजारों के लिए अक्टूबर का महीना बेहद निराशाजनक रहा। एसएंडपी गोल्डमैन सैक्श कमोडिटी इंडेक्स ने सितंबर 2008 में खत्म हुए नौ महीनों के दौरान 1 फीसदी बढ़त दर्ज की थी लेकिन अब यह 27 फीसदी नुकसान के साथ लाल दायरे में है। इंडेक्स की वैल्यू 5000 से कुछ अधिक है और यह अब 2005 के शुरुआती समय के स्तर पर है। तो क्या कमोडिटी में यह गिरावट लंबे समय चली आ रही तेजी में अपवाद का दौर है या तीन साल की तेजी का अंत है? अब निवेश की अतिरिक्त मात्रा बाहर निकल चुकी है और बाजारों के उचित फंडामेंटल वैल्यू के आसपास स्थिर होने की संभावना है। संभवत: शेयर बाजारों में उछाल से कमोडिटी बाजार में फिर दाखिल होने का संकेत मिल सकता है। लेकिन निवेशक निश्चित तौर पर अब और सतर्कता बरतेंगे। (ET Hindi)

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