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30 अक्तूबर 2008

मंदी के बावजूद कपास, चीनी व तिल में उछाल

मुंबई October 29, 2008
चौतरफा आर्थिक संकट के बीच महंगे होने से निर्यात किए जाने वाले जिंसों का प्रदर्शन बेहतर रहा है।
डॉलर की तुलना में रुपये के कमजोर होने से कपास की संकर-6 किस्म की कीमत में 18.42, चीनी में 27.19 और तिल में 87.14 फीसदी की मजबूती हुई है। इस साल की शुरुआत में कपास ने 7,958 रुपये प्रति क्विंटल के स्तर को छू लिया था। देश में कपास के रकबे में 20 फीसदी की कमी और अमेरिका में भी इसके उत्पादन घटने के अनुमानों की वजह से यह तेजी हुई थी। तब शंकर-6 किस्म के कपास के बेंचमार्क भाव 6,327 रुपये प्रति क्विंटल तक चले गए थे। इसी प्रकार, गन्ने के रकबे में बड़े पैमाने पर हुई कमी से मौजूदा सीजन में एम-30 चीनी 1,847 रुपये तक चली गई। अप्रैल में तो चीनी की कीमतों ने रिकॉर्ड बनाया था जब एक क्विंटल चीनी की कीमत 2,014 रुपये हो गई थी। एक जानकार ने बताया कि बायोडीजल के लिए गन्ने की मांग बढ़ने से चीनी की कीमतों में वृद्धि हुई थी। हालांकि आर्थिक मंदी के चलते इसकी कीमतें कम हुई हैं। इसकी प्रमुख वजह कच्चे तेल की कीमतों में खासी कमी होना भी है। एक समय तो कच्चे तेल ने 147 डॉलर प्रति बैरल की सीमा छू ली थी। ऐसी स्थिति में ज्यादातर यूरोपीय देशों और ब्राजील ने एथेनॉल उत्पादन बढ़ाने पर अपना ध्यान केंद्रित किया था। भारत भी इस भेड़चाल में शामिल हो गया जब इसने पेट्रोल में 5 फीसदी एथेनॉल मिलाने की इजाजत दे दी। फिलहाल कच्चा तेल 63 डॉलर प्रति बैरल तक गिर चुका है। ऐसे में एक बार फिर एथेनॉल उत्पादन बढ़ाने की योजना अव्यावहारिक होने के चलते ठंडे बस्ते में जा चुकी है। जानकारों के मुताबिक, मौजूदा परिस्थितियों में चीनी तैयार करना ज्यादा उचित है क्योंकि चीनी की मांग काफी बढ़ चुकी है। इस साल अनाजों के भाव में खासी बढ़ोतरी होने के चलते किसानों ने गन्ने की बजाय अनाजों को पैदा करना ज्यादा मुनासिब समझा है। वैसे भी गन्ना साल में एक बार ही उपजता है जबकि अनाज की साल में कम से कम दो उपज तो मिल ही जाती है। कपास का रकबा भी इस साल 5 फीसदी घटा है। वैसे वैश्विक रुख का अनुसरण करते हुए देश में खाद्य तेलों की कीमत में कमी हुई है। दुनिया में पाम और सोया तेल के तीन सबसे बड़े उत्पादक देशों मलयेशिया, इंडोनेशिया और अर्जेंटीना में रकबा बढ़ने से इन तेलों की कीमतों पर फर्क पड़ा है। इनकी कीमतें नीचे की ओर लुढ़की हैं।हालांकि भारतीय मुद्रा के कमजोर होने से देश में इन तेलों की कीमतें थोड़ी ही सस्ती हुई हैं। फिलहाल एक डॉलर के बदले लगभग 50 रुपये मिल रहे हैं जबकि पिछले साल इस समय एक डॉलर की कीमत महज 39.33 रुपये थी। इराक में राजनीतिक अस्थिरता और परमाणु कार्यक्रम जारी रखने को लेकर ईरान के अक्खड़ रवैये के साथ ही अमेरिकी और यूरोपीय देशों पर आर्थिक संकट के असर ने कमोडिटी बाजार को नकारात्मक रूप से प्रभावित किया है। बहरहाल जानकारों का कहना है कि डॉलर की तुलना में रुपये में मजबूती हुई तो इसका लाभ निर्यातकों को ही मिलेगा क्योंकि सारे विदेशी अनुबंध डॉलर में ही किए जाते हैं।कीमत के लिहाज से आधारभूत और कीमती धातुओं के लिए पिछला एक साल काफी बुरा बीता। आधारभूत धातुओं की कीमतों में तो तेजी से गिरावट हुई है। साल भर पहले ज्यादातर औद्योगिक जिंसों की कीमत अपने सर्वोच्च स्तर पर चल रही थी। जानकारों के अनुसार, ऐसी हालत में कीमतों में हुई कमी कोई आश्चर्य नहीं बल्कि बहुत हद तक अनुमानित कहा जा सकता है। एक उदाहरण देखिए कि तांबे की उत्पादन लागत महज 3,000 डॉलर प्रति टन होती है पर साल भर पहले यह 7,000 डॉलर प्रति टन की दर से बिक रहा था। साल भर पहले की तुलना में अब इसमें 47 फीसदी की कमी हो गई है। फिलहाल बाजार में तांबा 3,720 डॉलर प्रति टन की दर से बिक रहा है। ठीक इसी प्रकार अल्युमीनियम की कीमत 27 फीसदी घटकर 1,876 डॉलर, जस्ता 61 फीसदी लुढ़ककर 1,062 डॉलर और सीसा 68 फीसदी कम होकर 1,140 डॉलर प्रति टन तक चली गई है। सबसे ज्यादा कमी तो निकल में हुई है जो साल भर में 73 फीसदी कम होकर 8,810 डॉलर प्रति टन तक चली गई है। हालांकि आयात पर निर्भर रहने वाले सोने की कीमत रुपये में साल भर में 14 फीसदी तेज हुई। (BS Hindi)

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