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23 सितंबर 2008

रुपये की कमजोरी से बेअसर हुई महंगाई थामने की कोशिशें

नई दिल्ली September 22, 2008
महंगाई पर अंकुश लगाने के लिए उठाए गए सरकारी उपायों से निर्यातकों को जो नुकसान हुआ था, उसकी काफी हद तक भरपाई पिछले कुछ हफ्तों के दौरान रुपये में आयी कमजोरी से हो गई है। उल्लेखनीय है कि महंगाई पर अंकुश लगाने के लिए सरकार ने बासमती और लौह अयस्क सहित कई अन्य जिंसों के निर्यात पर या तो पाबंदी लगा दी या निर्यात शुल्क बढ़ा दिया था। इससे अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय उत्पाद महंगे हो जाने से निर्यात में कमी हो गई और इनकी घरेलू आपूर्ति बढ़ गई।बासमती का ही उदाहरण लिया जाए तो बीते 29 अप्रैल को सरकार ने इस पर प्रति टन 8 हजार रुपये का निर्यात शुल्क थोप दिया था। हालांकि तब से अब तक रुपये में 13 फीसदी की गिरावट हो चुकी है। इस चलते निर्यात शुल्क लगाए जाने से निर्यातकों को हुए नुकसान के अधिकांश की भरपाई हो गई है। इस साल के शुरू में बासमती का निर्यात मूल्य 1,500 से 1,800 डॉलर प्रति टन था। रुपये में देखें तो प्रति टन चावल की कीमत लगभग 60,720 से 72,864 रुपये के आसपास बैठ रही थी। रुपये के कमजोर होने के बाद अब इसी एक टन बासमती चावल के लिए 69,000 से 82,800 रुपये तक अदा करना पड़ रहा है। जानकारों के अनुसार, रुपये में देखें तो डॉलर की तुलना में रुपये की कमजोरी के चलते चावल के निर्यात मूल्य में 9,000 से 10,000 रुपये प्रति टन तक की वृद्धि हो चुकी है। इससे निर्यात शुल्क का असर अब फीका पड़ चुका है। निर्यातकों ने बताया कि नवंबर से जब नए अनुबंध की शुरुआत होगी तब उन्हें रुपये में आई इस कमजोरी का खूब फायदा मिलेगा। बासमती चावल की ही तरह, लौह अयस्क के निर्यात पर भी 15 फीसदी की एड वैलोरेम डयूटी 13 जून को लगा दी गई। तब से अब तक डॉलर की तुलना में रुपया 7 फीसदी से ज्यादा कमजोर हो चुका है। जानकारों के अनुसार, सरकार के इस कदम से निर्यातक इस नए लगाए गए शुल्क के लगभग आधे असर से बच गए हैं।इससे पहले, 62 फीसदी से कम लौह अंश वाले अयस्क पर 50 रुपये प्रति टन और 62 फीसदी से अधिक अंश वाले अयस्क पर 300 रुपये प्रति टन का शुल्क लगाया गया था। इसी दिन सरकार ने लौंग स्टील प्रॉडक्ट्स पर 15 फीसदी का निर्यात शुल्क लगाया था। लौह अयस्क और इस्पात उत्पादकों के मुनाफे में हुई कमी के बावजूद उन्हें नहीं बख्शा गया। ओलंपिक खेलों के समय चीन से मांग में हुई कमी की वजह से इन इकाइयों को हुए नुकसान की क्षतिपूर्ति अब तक नहीं हो सकी है। देश के तीसरे सबसे बड़े इस्पात उत्पादक जेएसडब्ल्यू के बिक्री ओर विपणन प्रमुख जयंत आचार्य ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि मांग गिरने से अंतरराष्ट्रीय बाजार में इस्पात की कीमतों में हुई कमी के चलते रुपये की कमजोरी से होने वाला फायदा बेअसर हो चुका है। (BS Hindi)

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