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30 अगस्त 2008

Rice, oilseeds kharif coverage increases

Chennai, Aug. 29 With monsoon picking up momentum towards July-end and early this month, rice and oilseeds seem to have gained. However, pulses, cotton and sugarcane have not been able to make much from the late rains.
According to the Ministry of Agriculture, the area under rice has increased to 344.8 lakh hectares (lh) as on August 28 from 329.5 lh the corresponding period a year ago. The rise in acreage could see a record rice production but whether it will touch the magical figure of 100 million tonnes has to be seen.Record soya sowing
On the other hand, thanks to a record coverage of soyabean, the kharif oilseed crops hold promise. The area under soyabean is up eight lh this year to 95.2 lh. Sowing in groundnut is a tad lower at 50.3 lh against 51.5 lh.
Sowing of kharif coarse cereals have also been affected this year. The acreage shows a decline to 193 lh from 208 lh last year. Of this, the area under maize (corn) is down to 69.5 lh (73 lh).
The area under pulses has declined to 97.8 lh (116.9 lh) mainly on monsoon being delayed in the growing areas.
Delayed rains are also seen as the reason for the area under cotton decreasing, though trade and industry players expect better yield to make up for the 1.9 lh fall in coverage. Sowing in cotton is down to 89.1 lh this year from 91 lh last year.
Low prices and pending arrears from sugar mills have combined to ensure a lower coverage of sugarcane this year. The area under the crop is showing a drop to 44 lh (53 lh).
Meanwhile, the storage level in the 81 major reservoirs is eight percentage points lower than last year’s level. As on August 28, the water level in these reservoirs was 95.805 billion cubic metres against the full reservoirs level (FRL) of 151.768. That means it is 63 per cent of the FRL against last year’s 71 per cent. Still, it is higher than the 10-year average of 57 per cent.
However, a close analysis of the levels shows that the coverage of monsoon has not been uniform. For example, though Gujarat is supposed to have had a normal monsoon but the storage level in almost all its reservoirs is lower than last year.
Similarly in Maharashtra, the storage level is mixed reflecting the monsoon behaviour in the State, where the southern part has witnessed deficient rainfall.
Even on a river basin-wise basis, the effect of an erratic monsoon is evident. Only the Indus, Ganga and Mahanadi basins show a storage level better than last year. On the other hand, the level is down in Tapi, Mahi, Sabarmati, River of Kutch, Godavari, Krishna, Cauvery and west flowing rivers of South. ( The Hindu Business Line)

चीनी निर्यात पर छूट जल्द खत्म होगी : वित्त मंत्री

नई दिल्ली। केंद्रीय वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने कहा है कि चीनी के निर्यात पर मिल रही छूट जल्दी ही समाप्त हो जाएगी। घरलू उत्पादन में कमी की आशंका से इस छूट को आगे बढ़ाया नहीं जा सकता है। पिछले साल और चालू साल के दौरान चीनी का बंपर उत्पादन होने की वजह से सरकार मिलों को राहत देने के मकसद से चीनी के निर्यात पर सब्सिडी दे रही है। चिदंबरम ने कहा कि देश से बहुत ज्यादा चीनी का निर्यात हो चुका है। घरलू बाजार में सप्लाई सुनिश्चित करने के लिए इसके निर्यात पर मिलने वाली सब्सिडी को आगे जारी नहीं रखा जाना चाहिए। इस साल सितंबर के अंत तक करीब 45 लाख टन चीनी निर्यात होने के आसार हैं। मौजूदा समय में करीब 43 लाख टन चीनी का निर्यात हो चुका है। निर्यातकों को ढुलाई पर सरकार से मिल रही सब्सिडी की वजह से इस साल चीनी का रिकॉर्ड निर्यात हुआ है। आगामी सीजन के दौरान देश में चीनी के उत्पादन में कमी आने की संभावना जताई जा रही है। भारतीय चीनी मिल संघ के अनुमान के मुताबिक आगामी सीजन के दौरान करीब 2.2 करोड़ टन चीनी का उत्पादन हो सकता है जो चालू सीजन के मुकाबले कम है। इस दौरान दक्षिणी एशियाई देशों से रॉ चीन की सप्लाई में कमी हो सकती है। वहां पर चीनी के उत्पादन में कमी की आशंका से ही पिछले कुछ महीनों में घरलू बाजारों में चीनी की कीमतें करीब 17 फीसदी तक चढ़ चुकी हैं। (Business Bhaskar)

पाम तेल पर डयूटी घटाकर 37.5 फीसदी तय की जाए : मलेशिया

कुआलालंपुर। मलेशिया ने आसियान के तहत मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) में भारत से पाम तेल आयात पर 37.5 फीसदी अधिकतम डयूटी लगाने की मांग की है। मलेशियाई सरकार के एक अधिकारी ने कहा है कि कर प्रस्तावों के अनुसार क्रूड पाम तेल पर आयात शुल्क 37.5 फीसदी और रिफाइंड पाम तेल पर शुल्क 45 फीसदी तक लगाया जाना चाहिए।आसियान के सदस्य देशों में मलेशिया व इंडोनेशिया प्रमुख पाम तेल उत्पादक देश हैं। भारत और आसियान के बीच पिछले गुरुवार को समझौता हुआ था। समझौते के अनुसार डयूटी में कटौती अगले जनवरी से लागू होगी। समझौते को अंतिम मंजूरी इस साल के अंत में मिलने की संभावना है। डयूटी के मसले पर दोनों पक्षों के बीच बातचीत दिसंबर अंत तक पूरी हो जाने की उम्मीद है। दोनों पक्षों को इस समझौते पर पहुंचने में छह साल का समय लग गया। पाम तेल पर डयूटी दोनों पक्षों के बीच आने वाले प्रमुख मुद्दों में भी एक रहा है।भारत पाम तेल पर आयात शुल्क की उच्च सीमा तय करने की मांग करता रहा है ताकि घरलू तिलहन उत्पादक किसानों को बढ़ते आयात से सुरक्षा दी जा सके। जबकि इंडोनेशिया व मलेशिया डयूटी में कटौती की मांग कर रहे थे। इन दोनों देशों के लिए पाम तेल प्रमुख निर्यात वस्तु है और भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा तेय आयातक देश है। भारत में खाद्य तेल पर डयूटी की दर महत्वपूर्ण मसला है। डयूटी कम होने का सीधा अर्थ है कि भारत में पाम तेल सस्ता पड़ेगा। इससे घरलू तिलहन के भाव कम होंगे। बाजार में तिलहनों के भाव ज्यादा घटने से किसानों को नुकसान होने की संभावना रहती है। सही मूल्य न मिलने के कारण ही भारत में किसानों की तिलहन उपजाने में ज्यादा रुचि नहीं है। देश में तिलहन उत्पादन मांग से कम होने के कारण आयातित तेलों पर निर्भर काफी ज्याद है और इसे घटाने में शुल्क में कटौती बाधा पैदा कर सकती है। हालांकि भारत ने बातचीत के दौरान एकतरफा तौर पर डयूटी में भारी कटौती कर दी थी ताकि घरलू बाजार में खाद्य तेलों के मूल्य में हो रही तेजी को रोका जा सके। उसने डयटी क्रूड पाम तेल पर 80 फीसदी से घटाकर शून्य कर दी जबकि रिफाइंड पाम तेल पर 90 फीसदी से घटाकर 7.5 फीसदी कर दी। (Business Bhaskar)

दलहन के बुवाई क्षेत्रफल में 16 फीसदी की कमी

नई दिल्ली। इस साल दालों का उत्पादन कम होना तय हो गया है। जिसके चलते दालों के बढ़ते दामों में कमी की कोई संभावना फिलहाल नहीं है। खरीफ सीजन में दलहन के बुवाई क्षेत्रफल में 16 फीसदी की गिरावट हुई है। दूसरी ओर धान क ा बुवाई क्षेत्रफल 8 फीसदी तक बढ़ा है। साथ ही तिलहन का बुवाई क्षेत्रफल जो अगस्त के शुरूआत में पिछले साल से कम था। वह अब पिछले साल से ज्यादा हो गया है। कृषि मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार 29 अगस्त तक दलहन क ी बुवाई 97.7 लाख हैक्टेयर में हुई है जो पिछले साल की इसी अवधि में 116.8 लाख हैक्टेयर थी। अरहर का बुवाई क्षेत्रफल पिछले साल के 37.04 लाख हैक्टेयर से कम होकर 33.3 लाख हैक्टेयर रह गया है।मूंग का क्षेत्रफल 31.2 लाख हैक्टेयर से कम होकर 22.8 लाख हैक्टेयर रह गया है। इस सीजन में तिलहन का बुवाई क्षेत्रफल पिछले साल की इसी अवधि के मुकाबले करीब 2 फीसदी बढ़कर 172.94 लाख हैक्टेयर हो गया है। सोयाबीन के बुवाई क्षेत्रफल में इस बार आठ फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। पिछले साल इसी अवधि तक इसकी बुवाई 87.2 लाख हैक्टेयर में हुई थी जो इस साल बढ़कर 95.19 लाख हैक्टेयर में हुई है। चावल की अच्छी कीमतों के चलते किसानों का धान की ओर रुझान बढ़ा है। धान क ा बुवाई क्षेत्रफल पिछले साल की इसी अवधि में 344.76 लाख हैक्टेयर था। जो इस साल बढ़कर 391.17 लाख हैक्टेयर हो गया है। (Business Bhaskar)

कम स्टॉक से काली मिर्च में आएगी तेजी

भारत सहित दुनिया भर में काली मिर्च के स्टॉक में भारी कमी आने की वजह से आने वाले दिनों में इसकी घरलू कीमतों में तेजी देखी जा सकती है। पिछले एक महीने के दौरान इसके भाव में काफी गिरावट आ चुकी है। पेपर ट्रेड के मुताबिक दुनिया भर में काली मिर्च के स्टॉक में भारी कमी आई है। इस साल काली मिर्च का वैव्श्रिक उत्पादन करीब 2.71 लाख टन रहा है जो पिछले साल के मुकाबले 6.6 फीसदी कम है। जबकि इंटरनेशनल पिपर कम्युनटी की रिपोर्ट के मुताबिक चालू साल के दौरान अंतरराष्ट्रीय खपत में करीब 3.46 फीसदी का इजाफा हुआ है। इस दौरान वियतनाम के पास महज 10-12 हजार टन का स्टॉक बचा है। भारत में साल 2007-08 के दौरान भारत में 50 हजार टन काली मिर्च का उत्पादन हुआ है जो पिछले साल के बराबर है। आने वाले दिनों में घरलू स्टॉक कम पड़ने की वजह से यहां भाव बढ़ सकते हैं। मुंबई में काली मिर्च के कारोबारी योगेश मेहता के मुताबिक घरलू मांग बढ़ने और उपलब्धता कम रहने से सर्दियों में काली मिर्च की कीमतों में तगड़ी तेजी देखी जा सकती है। इंटरनेशनल पेपर कम्युनिटी के मुताबिक भारत से इस साल 25 हजार टन काली मिर्च निर्यात होने की संभावना है। जबकि यहां की घरलू खपत करीब 60 हजार टन रहने का अनुमान है।अखिल भारतीय काली मिर्च करोबार संघ के अध्यक्ष किशोर शाम ने बताया कि चालू साल के दौरान आयात मांग में कमी आई है। लेकिन आने वाले दिनों में वैव्श्रिक बाजारों में निर्यात मांग बढ़ सकती है। भारतीय मसाला बोर्ड के आंकड़ों के मुताबिक इस साल अप्रैल से जून के दौरान 7550 टन काली मिर्च का निर्यात हो चुका है। पिछले साल इस अवधि के दौरान करीब 8600 टन काली मिर्च का निर्यात हुआ था। पिछले एक महीने के दौरान घरलू बाजारों में काली मिर्च की कीमतों में करीब 400-600 रुपये `िंटल की गिरावट हो चुकी है। गुरुवार को कोच्चि में काली मिर्च अनगार्बल्ड 13,800 रुपये `िंटल और एमजी वन का भाव 14,400 रुपये `िंटल रहा। दिल्ली में काली मिर्च का औसत भाव 20,000 हजार रुपये `िंटल रहा। मौजूदा समय में भारतीय काली मिर्च का एफओबी भाव 3350 डॉलर प्रति टन है । (Business Bhakar)

चीनी के ग्लोबल उत्पादन में 74 लाख टन की कमी

नई दिल्ली : चीनी के ग्लोबल उत्पादन में साल 2008-09 के दौरान 74 लाख टन की कमी आ सकती है। इंटरनेशनल शुगर ऑर्गेनाइजेशन आईएसओ से शुक्रवार को जारी किए गए आंकड़ो के मुताबिक साल 2008-09 के दौरान ग्लोबल लेवल पर कुल 16.16 करोड़ टन चीनी के उत्पादन की संभावना है, जो खपत से 39 लाख टन कम हो सकती है। आईएसओ के अनुसार चीनी का ग्लोबल स्टॉक फिलहाल 1.38 करोड़ टन का है। (ET Hindi)

डॉलर ने सोने में भरा दम

लंदन: डॉलर के कमजोर होने और कच्चे तेल में तेजी का रुख शुक्रवार को भी जारी रहा। जूलरी की मांग में बढ़ोतरी होने से सोना 2 सप्ताह के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया। गुरुवार को न्यू यॉर्क में सोना 931.45/831.65 डॉलर प्रति औंस पर बंद हुआ था, वहीं शुक्रवार को सोना हाजिर शाम को 836.75/837.75 डॉलर प्रति औंस पर कारोबार कर रहा था। कारोबार के दौरान एक बार यह 838.30 डॉलर के स्तर तक पहुंच गया था, 11 अगस्त के बाद पहली बार सोना इस स्तर पर पहुंचा है। यूबीएस के विश्लेषक जॉन रीड ने बताया, 'जूलरी की मांग में उछाल और तगड़े निवेश से सोने के भाव में तेजी दिख रही है। फिर यूरो की तुलना में डॉलर के फिर कमजोर पड़ने से भी इसे समर्थन मिल रहा है।' अमेरिकी आंकड़ों के मुताबिक, जुलाई में निजी आय में भारी गिरावट आई है। वहां महंगाई भी 17 सालों के उच्चतम स्तर पर है। उधर, ट्रॉपिकल तूफान गुस्ताव मैक्सिको की खाड़ी में प्रवेश करने वाला है और इससे कच्चा तेल 2 डॉलर की तेजी के साथ 117 डॉलर प्रति बैरल से ऊपर चला गया। आने वाले दिनों में गुस्ताव से कच्चे तेल को जबरदस्त समर्थन मिलेगा। मित्सुबिशी के विश्लेषक टॉम केंडल ने बताया, 'सोना को कच्चे तेल से समर्थन मिल रहा है। जैसे-जैसे गुस्ताव मेक्सिको की खाड़ी की तरफ बढ़ेगा, वैसे ही सोना 840 डॉलर को पार कर जाएगा।' अगले सप्ताह तक मेक्सिको की खाड़ी में तूफान प्रवेश कर जाएगा। इस बीच, अमेरिकी ऊर्जा विभाग ने कहा कि ट्रॉपिकल तूफान गुस्ताव से उत्पादन और आपूर्ति के प्रभावित होने पर वह रणनीतिक भंडार से तेल आवंटन कर सकता है। (E T Hindi)

चावल के रेकॉर्ड उत्पादन की संभावना


एजेंसियां / नई दिल्ली August 29, 2008
धान के रकबे में वृध्दि को देखते हुए भारत का चावल उत्पादन इस कृषि वर्ष में पिछले वर्ष के 9.64 करोड़ टन के रेकॉर्ड उत्पादन के स्तर को लांघ सकता है, जबकि कुछ उत्पादक क्षेत्रों में बाढ़ के कारण खरीफ फसल प्रभावित हुई है।
कृषि अनुसंधान विभाग (डीएआरई) में सचिव मंगला राय कहा - रकबे और फसल की स्थिति को देखते हुए लग रहा है कि चावल उत्पादन इस साल रेकॉर्ड स्तर को छू सकता है। ऐसा इस तथ्य के बावजूद होगा कि बाढ़ के कारण कुछ क्षेत्रों में फसल की स्थिति प्रभावित हुई है। यहां एक सम्मेलन के मौके पर उन्होंने कहा कि सितंबर में पर्याप्त बारिश तथा कीटों के खिलाफ निगरानी भी बम्पर फसल में अपना योगदान देगी। राय ने उत्पादन की मात्रा में बढ़ोतरी के बारे में कोई जानकारी नहीं दी। जिसके बारे में उन्होंने कहा कि ऐसा करना फिलहाल मुश्किल है। इस अवधि में चावल और सोयाबीन का क्षेत्रफल लगभग सात प्रतिशत बढ़ा है। हालांकि चालू खरीफ सत्र में 22 अगस्त तक मक्का, गन्ना, अरहर और कपास सहित दस महत्वपूर्ण फसलों का क्षेत्रफल लगभग 24 प्रतिशत तक घटा है। राय ने कहा कि बाढ़ के कारण बिहार में मक्का उत्पादन में कमी को भी पूरा किया जा सकता है बशर्ते कि किसान सिंगल क्रॉस हाइब्रिड (उच्च गुणवत्ता वाले) बीजों का बड़ी मात्रा में इस्तेमाल करें। इससे उत्पादकता में करीब 50 फीसदी की वृध्दि होगी। राय ने कहा, फसल की कुल स्थिति बेहतर दिखाई पड़ रही है बावजूद इसके कि देश के कुछ हिस्से में सूखे की स्थिति है तथा कुछ हिस्से में बाढ़ जैसी स्थिति है। उन्होंने कहा, इसके अलावा खाद्य तेलों की उपलब्धता प्रभावित नहीं होगी। हालांकि कुछ क्षेत्रों में फसल प्रभावित हुई हैं। भारत सालाना करीब 75 लाख टन खाद्य तेल का आयात करता है। (Business Standard)

एमएसपी में इजाफे से बढ़ेगी दलहन की पैदावार


मुंबई August 29, 2008
खरीफ सीजन में दाल के न्यूनतम समर्थन मूल्य में इजाफा करने की सरकारी फैसले को विशेषज्ञों ने सही करार दिया है।
विशेषज्ञों का कहना है कि इस कदम से न सिर्फ देश में दाल की पैदावार में बढ़ोतरी होगी बल्कि घरेलू बाजार में इस जिंस की उपलब्धता सुनिश्चित होगी। एक ओर दलहन से जुड़े संगठनों ने सरकारी कदम को सराहा है, वहीं दूसरी तरफ कमोडिटी विशेषज्ञों ने आगाह किया है कि इस कदम से दाल की कीमत में इजाफा होगा, जो वर्तमान में काफी मजबूत स्थिति में है। देश में सालाना 1.8 करोड़ टन दाल की जरूरत होती है जबकि घरेलू पैदावार 1.4 करोड़ टन के आसपास है। ऐसे में जरूरत का बाकी हिस्सा आयात से पूरा होता है। भारत सरकारी ट्रेडिंग एजेंसी और निजी आयातकों के जरिए 30-40 लाख टन दाल म्यांमार, तंजानिया, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और यूक्रेन से आयात करता है।अरहर, मूंग और उड़द खरीफ सीजन में पैदा होने वाली दालें हैं और सरकार ने इसका न्यूनतम समर्थन मूल्य 800 रुपये प्रति क्विंटल का इजाफा करने का फैसला किया है। इस बढ़ोतरी से साल 2008-09 में अरहर का एमएसपी 2 हजार रुपये प्रति क्विंटल हो जाएगा जो पिछले एमएसपी 1700 रुपये प्रति क्विंटल से 17.65 फीसदी ज्यादा होगा।इसी तरह उड़द और मूंग का एमएसपी 1700 रुपये प्रति क्विंटल से बढ़कर 2520 रुपये प्रति क्विंटल हो जाएगा। कुल मिलाकर इसमें 48.24 फीसदी की बढ़ोतरी होगी। पल्सेज इंपोर्ट असोसिएशन के प्रेजिडेंट के. सी. भरतिया ने कहा - हालांकि ये जरूरी कदम है क्योंकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में दाल की कीमतें काफी मजबूत स्थिति में है। हम लंबे समय से इसकी मांग कर रहे थे।सरकार के इस कदम से किसान ज्यादा दलहन उपजाने में दिलचस्पी लेंगे क्योंकि उन्हें अपनी पैदावार की अच्छी कीमत मिलने की उम्मीद बंधेगी। परिणामस्वरूप घरेलू बाजार में दाल की उपलब्धता सुनिश्चित हो जाएगी। दूसरे फसलों के मुकाबले दाल उगाना किसानों के लिए कम फायदे का सौदा है। इसी वजह से किसान दूसरी फसलों मसलन सोयाबीन और कपास की तरफ मुड़ने लगे हैं।किसानों की इस रवैये से देश में दलहन की पैदावार स्थिर हो गई है। पिछले दो सालों में दाल की कीमत सातवें आसमान पर पहुंच गई है। दाल की कीमत में उछाल के लिए कमोडिटी वायदा को जिम्मेदार मानते हुए सरकार ने इसके वायदा कारोबार पर पाबंदी लगा दी है।मध्य प्रदेश दाल उद्योग महासंघ के चेयरमैन सुरेश अग्रवाल ने कहा - एमएसपी में इजाफेका कदम देर से उठाया गया। उन्होंने कहा कि इस वजह से किसान दाल उत्पादन में रुचि लेंगे और काफी हद तक सोयाबीन और कपास की तरफ दलहन उगाने वाले किसानों के जाने पर रोक लगेगी। अगर सरकार ने यह कदम पहले उठाया होता तो दलहन के संकट से बचा जा सकता था।उधर, कमोडिटी विशेषज्ञों ने कहा है कि एमएसपी में इजाफा करना सकारात्मक कदम है, लेकिन उन्होंने आगाह किया है कि इस वजह से बाजार में दलहन की कीमत में बढ़ोतरी हो सकती है और बाजार कीमत एमएसपी को लांघ सकती है। एग्रीवॉच के सीनियर रिसर्च एनलिस्ट तन्मय कुमार ने बताया कि वर्तमान सीजन में दलहन का रकबा घटा है।ऐसे में एमएसपी में इजाफे के बावजूद हम बाजार में इसकी कीमत में उफान से इनकार नहीं कर सकते। साथ ही महंगाई रोकने के सरकारी इंतजाम पर भी पलीता लग सकता है। मूंग की नई फसल के बाजार पहुंचने का समय अगस्त-सितंबर होता है जबकि उड़द सितंबर और अक्टूबर में तैयार होता है। बाजार में अरहर की नई फसल का आगमन दिसंबर में शुरू होता है। (Business Standard)

जुर्माना नहीं बढ़ाएगा एफएमसी


एजेंसियां / नई दिल्ली August 29, 2008
जिंस बाजार नियामक वायदा बाजार आयोग (एफएमसी) ने आपूर्ति चूक जुर्माने में बढ़ोतरी की कारोबारियों एवं निर्यातकों की मांग खारिज कर दी है। आयोग का कहना है कि वह अन्य विकल्पों पर विचार कर रहा है।
आयोग के अध्यक्ष बी सी खटुआ ने कहा, 'भारी जुर्माना लगाना ही एकमात्र समाधान नहीं है। हाल ही में इसे आठ प्रतिशत से घटाकर 2.5 प्रतिशत किया गया था .. और हम इसे अब नहीं बढ़ा सकते।' ऊंझा, गुजरात की कृषि उत्पाद विपणन समिति ने आयोग से आग्रह किया था कि विक्रेताओं पर जुर्माना राशि को बढ़ाकर 25 प्रतिशत किया जाए या जिंस की 100 प्रतिशत आपूर्ति सुनिश्चित की जाए।जीरा निर्यातकों ने भी आपूर्ति चूक की शिकायत की थी क्योंकि विक्रेता कारोबारी अनुबंध की राशि का 2.5 प्रतिशत जुर्माने के रूप में चुकाकर बाजार से हट सकते हैं। खटुआ ने कहा, 'जुर्माना प्रावधानों से इतर, हम चूककर्ताओं को दंडित करने के अन्य विकल्पों पर विचार कर रहे हैं।'एफएमसी जिन विकल्पों पर फिलहाल विचार कर रहा है उनमें एक यह भी है कि एक्सचेंज खरीदारी करते हुए विपक्षी पार्टी को आपूर्ति सुनिश्चित करे तथा वायदा एवं हाजिर भाव के अंतर की वसूली चूककर्ता से की जाए। वायदा बाजार में अनेक कृषि जिंसों में आपूर्ति को अनिवार्य कर दिया गया है और नियमाक को इस बात की काफी शिकायतें मिल रही हैं कि जुर्माना राशि कम होने के कारण चूककर्ताओं की संख्या बढ़ रही है।खटुआ ने कहा कि कई मामलों में डीफॉल्ट उतने बड़े नहीं रहे हैं लेकिन 'बेहतर कारोबारी प्रक्रिया सुनिश्चित करने के लिए हम और तंत्र को और सुदृढ़ कर रहे हैं।' दूसरी तरफ एनसीडीईएक्स ने डिलीवरी से संबंधित किसी डीफॉल्ट से साफ इनकार कर दिया।एनसीडीईएक्स के मुख्य व्यावसायिक अधिकारी उनोपम कौशिक ने कहा, 'हमारे यहां डीफॉल्ट का कोई मामला नहीं है क्योंकि सभी सौदों का निपटान अनुबंध की शर्तों के अनुसार किया गया है।' कारोबारी और निर्यातकों द्वारा एनसीडीईएक्स पर जीरे के सौदों में अधिकतम डिलीवरी डीफॉल्ट संबंधी आरोपों को उन्होंने बेबुनियाद बताया। (Business Standard)

कपास की खेती के मामले में चीन को पछाड़ सकता है भारत


नई दिल्ली August 29, 2008
महाराष्ट्र व मध्य प्रदेश में कपास की उत्पादकता गुजरात के स्तर पर आ जाए तो भारत कपास उत्पादन के क्षेत्र में चीन को भी पछाड़ सकता है। ऐसा कहना है कि कपास से जुड़े कृषि वैज्ञानिकों का।
वे कहते हैं कि चीन के मुकाबले भारत में कपास की खेती का रकबा काफी अधिक है। लेकिन महाराष्ट्र व मध्य प्रदेश में सिंचाई की सुविधा उपलब्ध नहीं होने के कारण यहां की उत्पादकता अन्य कपास उत्पादक राज्यों के मुकाबले आधी है। यहां तक कि पाकिस्तान की औसत उत्पादकता भी भारत से अधिक है। वैज्ञानिकों के मुताबिक गुजरात की कपास उत्पादकता 743 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है। वही आंध्र प्रदेश की 667 किलोग्राम, तमिलनाडु की 691 किलोग्राम तो पंजाब की 630 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है। जबकि मध्य प्रदेश की उत्पादकता 539 किलोग्राम तो महाराष्ट्र की मात्र 320 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है।भारत में वर्ष 2007 के दौरान करीब 95 लाख हेक्टेयर जमीन पर कपास की खेती की गयी और इनमें से महाराष्ट्र का योगदान 31.91 लाख हेक्टेयर रहा। यानी कि एक तिहाई हिस्सेदारी महाराष्ट्र की रही। जबकि महाराष्ट्र की उत्पादकता भारत की औसत उत्पादकता 553 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर से 233 किलोग्राम कम है। मुंबई के माटुंगा स्थित केंद्रीय कपास प्रौद्योगिकी अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिक (वरिष्ठ श्रेणी) चित्रनायक सिन्हा कहते हैं, 'महाराष्ट्र में 60 फीसदी से अधिक क्षेत्र बरसात पर निर्भर है। पानी की कमी से कपास के उत्पादन में गिरावट के साथ उसकी गुणवत्ता भी प्रभावित होती है।वहां के किसानों को अन्य राज्यों के किसानों के मुकाबले काफी कम कीमत पर कपास की बिक्री करनी पड़ती है। इस साल सिर्फ पानी की कमी के कारण कपास उगाने वाले 20 फीसदी किसान सोयाबीन की खेती की ओर मुखातिब हो गए क्योंकि इसकी खेती के लिए अपेक्षाकृत कम पानी की जरूरत होती है।' (Business Standard)

Ban on export of rice to affect agri, processed food exports

The country’s exports of agricultural and processed products might be significantly affected if the government continues with the policy of a ban on the export of non-basmati rice. Exports of agricultural and processed or value- added products which have been rising sharply during the last few years, might lose momentum due to the government imposing a ban on export non-basmati rice since April. The ban was imposed to contain rising prices of rice in the international market and shore up local availability to curb domestic prices.
According to the Agricultural and Processed Food Products Export Development Authority (APEDA), exports of agri food products during 2007-8 went to up to Rs 28,906 crore against Rs 20,986 crore achieved during the previous year, a sharp rise of more than 37%.
Official sources told FE that although the exports basket of fruits, vegetables, meat, poultry, dairy, flowers have been rising sharply over the last five years, the government’s decision to ban non-basmati exports to contain inflation, would drastically reduce the volume of exports during 2008-09. Sources said that if the export ban policy continued, India might lose an export-revenue of more than Rs 5000 crore during 2008-09. During 2007-8, the country exported non-basmati rice worth of Rs 7,396 crore against exports of Rs 4,243 crore during the previous fiscal, a rise of more than 74%.
Besides non-basmati rice, the ban on export of pulses would also hava an adverse impact . The government has extended the ban on pulses till March 31, 2009. Exports of pulses have fallen from Rs 773 crore in 2006-7 to Rs 526 crore in 2007-8 mainly due to lifting of a ban on export of chickpeas. (The Financial Express)

Hike in pulses MSPs will ensure better output

Mumbai August 29, 2008,
Analysts see a rise in production, but also warn of a price rally.
The government’s decision to raise the minimum support price (MSP) of pulses in 2008-09 will result in better production, say experts. According to them, the step will ensure availability of the commodity in the domestic market.
The Cabinet has decided to raise the MSP of various kharif crops such as maize, jowar, bajra, and some pulses. However, there has been no official announcement to this effect yet.
Even as pulses associations have appreciated the government measure, commodity analysts have cautioned that it may lead to a rise in the prices of pulses, which are already ruling firm.
The country’s annual requirement of pulses is 18 million tonnes, whereas the domestic production has never crossed 14 million tonnes. To cover the remaining requirement, the country imports from countries such as Myanmar, Tanzania, Australia, Canada and Ukraine. The government has decided to raise the MSP of arhar, moong and urad among pulses, by as much as Rs 800 a quintal.
K C Bhartiya, president of the Pulses Import Association, said, “It was a necessary move, as globally, the prices were ruling firm. We have been asking for an MSP hike for a long time. With this, farmers will go for more production on the assurance of better prices. This, in turn, will assure availability of pulses in the domestic market.”
Pulses have been less remunerative for farmers compared to other crops in the past few seasons. Consequently, they had started diverting to crops such as soybean and cotton, causing a stagnation in pulses production. Over the last two years, the prices of pulses have touched historical highs. Holding the futures trade responsible for the menace, the government banned forward trading in some pulses.
Suresh Agarwal, chairman of Madhya Pradesh Dal Udyog Mahasangh, said, “Hike in the MSP is too late. However, now that the government has taken note of it, I believe farmers will be encouraged to grow more pulses and the diversion to soybean and cotton will be checked, at least to some extent.”
Though commodity analysts admit that the MSP hike will have a positive impact on the production side, they expressed apprehension that the prices may see a rally as market rates will be higher than the support prices.
Tanmay Kumar, senior research analyst at Agriwatch Commodities, said, “For this season, acreage under pulses has seen a decline. With the price hike, we cannot rule out a rally in the pulses market.” Steps taken for controlling inflation may go haywire, he added.
The latest statistics suggest that acreage under pulses have reduced by over 17 per cent as August 22 compared with the same period last year.
Urad is the worst hit in terms of acreage for the current kharif season. The crop did not get adequate rains in May (the sowing period). As on August 20, urad has seen a dip of 22.62 per cent in its acreage compared to last year. Moong and Tur have seen a decline of 22.07 per cent and 13.63 per cent. (Business Standard)

29 अगस्त 2008

उत्‍तर प्रदेश व हरियाणा में गेहूं के भाव समर्थन मूल्‍य से नीचे

नई दिल्‍ली, 28 अगस्‍त। दिल्‍ली बाजार में आज गेहूं की आवक लगभग 18 हजार बोरियों की हुई जबकि फ्लोर मिलों की मांग कमजोर होने से इसके भाव घटकर 1060 से 1065 रूपये प्रति क्विंटल रह गये। व्‍यापारिक सूत्रों के अनुसार केन्‍द्र सरकार ने जब से खुले बाजार में गेहूं देने की घोषणा की है तब से स्‍टॉकिस्‍टों के साथ ही किसानों की बिकवाली बढ़ गई है। इसी के परिणामस्‍वरूप उत्‍तर प्रदेश व हरियाणा की मंडियों में गेहूं के भाव न्‍यूनतम समर्थन मूल्‍य से नीचे चले गये हैं।
ज्ञात हो कि चालू खरीद सीजन में भारतीय खाद्य निगम ने न्‍यूनतम समर्थन मूल्‍य 1000 रूपये प्रति क्विंटल की दर से 225 लाख टन गेहूं की रिकार्ड खरीद की थी जबकि सरकार को पूरे साल में एपीएल व बीपीएल के अलावा अन्‍य स्‍कीमों में देने हेतु करीब 108-109 लाख टन गेहूं की आवश्‍यकता होती है। अत: चालू वर्ष में केन्‍द्र सरकार के पास खुले बाजार में देने के लिए गेहूं का भरपूर स्‍टॉक मौजूद है। भारी भरकम स्‍टॉक के दबाव के चलते ही वर्तमान में स्‍टॉकिस्‍टों की घबराहटपूर्ण बिकवाली से गेहूं के भाव उत्‍पादक राज्‍यों की मंडियों में न्‍यूनतम समर्थन से नीचे चले गये हैं। ऐसे में गेहूं स्‍टॉकिस्‍टों को भारी उठाना पड़ रहा है।
उघर दक्षिण भारत में भी मिलों की मांग कमजोर होने व स्‍टॉकिस्‍टों की बिकवाली बढ़ने से पिछले दस दिनों में गेहूं के भावों में 15 से 20 रूपये प्रति क्विंटल की गिरावट आ चुकी है। उत्‍तर प्रदेश की कानपुर, शांहजानपुर व एटा लाईन से दक्षणि भारत के लिए हर सप्‍ताह करीब आठ से दस रैकों (एक रैक 24 हजार बोरी) की लोडिंग हो रही है। जानकारों के अनुसार कानपुर व शंहजानपुर स्‍टेशन पर गेहूं के भाव रैक रोड 1050 रूपये प्रति क्विंटल बोले जा रहे हैं जबकि कानपुर से बैंगलौर का भाड़ा 153 लग रहा है।
दिल्‍ली में वर्तमान में गेहूं की आवक उत्‍तर प्रदेश की कोसी, संभल, मथूरा, जट्टारी, अलीगढ़, रामपूर तथा हरियाणा की हांसी, हिसार व रोहतक लाईनों से हो रही है। सूत्रों के अनुसार उत्‍तर प्रदेश की करावली मण्‍डी में आज गेहूं के भाव घटकर 980 रूपये प्रति क्विंटल, अचनेरा मण्‍डी में 985 रूपये प्रति क्विंटल व कोसी मण्‍डी में 995 रूपये प्रति क्विंटल रह गये। उधर हरियाणा की होडल मण्‍डी में आज गेहूं के भाव 985 रूपये प्रति क्विंटल व पलवल मण्‍डी में 990 रूपये प्रति क्विंटल बोले गये।
दिल्‍ली बाजार मे आज गेहूं उत्‍पादों में मांग कमजोर रही। यहां आटे के भाव 1005 से 1020 रूपये, मैदा के भाव 1155 से 1200 रूपये प्रति 90 किलोग्राम बोले गये। (R S Rana)

डिलीवरी डिफाल्टरों पर ज्यादा जुर्माना लगाने की मांग

नई दिल्ली। कारोबारियों ने वायदा बाजार आयोग से डिलीवरी डिफाल्टरों पर नकेल लगाने की मांग की है। कारोबारियों का कहना है कि डिफाल्टरों की मनमानी रोकने के लिए आयोग को ऐसे लोगों पर ज्यादा जुर्माना लगाना चाहिए। मौजूदा समय में वायदा बाजार आयोग ऐसे डिफाल्टरों से 2.5 फीसदी का जुर्माना वसूलता है। कारोबारियों का मानना है कि यह राशि बेहद कम होने की वजह से आमतौर पर डिफाल्टर इसे गंभीरता से नहीं लेते है बार-बार वचनबद्धता से मुकर जाते हैं। जिसका खमियाजा स्टॉक लेने वाले कारोबारी को उठाना पड़ता है। इस क्रम में ऊंझा एपीएमसी मंडी के अध्यक्ष एल. पटेल ने वायदा बाजार आयोग को ऐसे लोगों से सख्ती से निपटने की मांग किया है। पटेल के मुताबिक वायदा कटने के बाद हाजिर में कमोडिटी की पूरी डिलीवरी नहीं होने पर डिफाल्टरों से आयोग को कम से कम 25 फीसदी जुर्माना वसूलना चाहिए। उन्होंने बताया कि 2.5 फीसदी राशि जूर्माना बेहद कम है और डिफाल्टरा कारोबारी इसे आसानी से चुकाकर अपनी मनमानी कर लेते हैं। जबकि डिलीवरी लेने वाले को भारी नुकसान उठाना पड़ता है। उल्लेखनीय है कि वायदा बाजार आयोग ने पिछले साल अक्टूबर में डिलीवरी डिफाल्टरों पर लगने वाला जुर्माना आठ फीसदी से घटाकर 2.5 फीसदी कर दिया था। जिसमें से 0.5 फीसदी प्रभावित पार्टी को जाता है और दो फीसदी एक्सचेंज के इन्वेस्टर प्रोटेक्शन फंड में चला जाता है। एनसीडीईएक्स में करीब 12 हजार टन जीर में रोजाना कारोबार होता है। इस समय एक्सचेंज में जीर के कारोबार में करीब 50 फीसदी की गिरावट आ चुकी है। इस साल जून के दौरान एनसीडीईएक्स में करीब चार लाख टन जीर का कारोबार हुआ। जबकि पिछले साल इस अवधि के दौरान करीब आठ लाख टन का कारोबार हुआ था। डिलीवरी डिफाल्टरों पर मौजूदा समय में लगने वाला जुर्माना कम होने की वजह से सबसे ज्यादा नुकसान निर्यातकों को हो रहा है। ऐसे में एक्सचेंज में हैंजिंग करने वाले निर्यातकों की संख्या घटती जा रही है। (Business Bhaskar)

बाढ़ से बिहार, पंजाब में मक्का, कपास की फसल प्रभावित

मुंबई। देश के कई राज्यों में बाढ़ आने के कारण पिछले कुछ सप्ताहों के दौरान मक्का, धान और कपास की फसल पर प्रभाव पड़ सकता है। अधिकारियों का कहना है कि बाढ़ से फसलों पर असर सीमित ही रहेगा। बाढ़ से जो राज्य प्रभावित हुए हैं, उनमें पंजाब, बिहार, उत्तर प्रदेश व आंध्र प्रदेश प्रमुख हैं।पंजाब की राज्य सरकार की शुरूआती रिपोर्ट के अनुसार बाढ़ के कारण करीब 41 हजार हैक्टेयर की कपास, धान और मक्का की फसल प्रभावित हुई है। हालांकि राज्य में कुल 39 लाख हैक्टेयर के कुल बुवाई क्षेत्र में प्रभावित क्षेत्र बहुत छोटा है। बिहार में 24 से 28 हजार हैक्टेयर खेतिहर भूमि बाढ़ से प्रभावित हुई है जिसमें धान व मक्का की फसल बोई गई है। लेकिन फसल को वास्तविक नुकसान का पता अभी नहीं ल पाया है। बिहार के कृषि विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि खेतों में दुबारा बुवाई होने की कोई गुंजाइश नहीं है क्योंकि अभी भी खेतों में पानी भरा है। कुछ समय बाद पानी उतरने के बाद किसान रबी की दालों की फसल बोने में दिलचस्पी ले सकते हैं।दक्षिण में आंध्र प्रदेश में 4.13 लाख हैक्टेयर की फसल बाढ़ से प्रभावित हुई है। इनमें धान, मक्का और मूंगफली की फसल बोई गई है। इन क्षेत्रों के कुछ किसानों ने सरकार से दुबारा बुवाई के लिए रियायती बीज सुलभ कराने की मांग की है। ऑल इंडिया राइस एक्सपोर्टर्स के अध्यक्ष विजय सेतिया के अनुसार धान की कुल फसल में बाढ़ प्रभावित एरिया बहुत छोटा है। ऐसे में उत्पादन पर फसल होने की संभावना बहुत कम है। (Business Bhaskar)

DAILY COTTON MARKET REPORT DT. 29/08/2008

NORTH
Weather remained quite clear with bright sun shine. Market remained firm with good demand both in ready as well as in forward. In forward Haryana J-34 RG is quoted for Sept. and October delivery @ Rs. 2715/- and 2610/- respectively. Y/day arrival was around 150 maund or 12 bales mainly in the area of Punjab.
GUJARAT
Weather remained mostly clear through out Gujarat. Market remained strong with some good buying from Southern and Northern mills. Vardhman Polycot today made some Muhurat business at 26750/- per candy. Around 600 Maund of Kapas has arrived in the Rajkot area. Kapas prices was 550/- per 20 Kgs.
MAHARASHTRA
Weather remained quite clear and dry without any rain where rain is required badly. Market remained strong without much of activity.
SNIPPETS :
1. Strike of Power loom owner has been called off in Coimbatore Districts.

2. According to Circles close to the Karachi Cotton Association chances of reaping a whole some cotton crop (2008-09) have become very promising so that out put during the current season may be as high as 13 million or even 14 million domestic size bales.

3. Inflation for weak ended on August 16th, is 12.40% lower as compared with 12,62% from previous week.

4. US Weekly Export Sales 268000 bales (Last week 183600) bales. Major buyer China (76700), Indonesia (34700), Turkey (28200), Vietnam (23800), Bangladesh (17700) bales.

5. Cotton Export shipments out of the port of Abidijan, Ivory coast accerlated in July with shipments reaching 27184 ton up from only 19541 tons shipped in June and Year ago shipments of 16210 tons.

6. The largest cotton producing province in Argentina, Chaco is suffering from the worst drought in over 40 years. Rainfall in way was only 25% of normal and June rainfall was 50% of normal with little to no rain in July, August has also been dry.
7. Egypt sold an additional 146.5 tons of cotton during week ending August 23, Pushing total sales to 135381.28 tons. The latest sales included 121 tons of Giza 70, 25 tons of Giza 88 and one half ton of Giza 87. Egypt’s ending stock are rapidly tightening. (K.C.T & ASSOCIATES)

Inflation declines to 12.40%

NEW Delhi: Inflation declined marginally to 12.40 per cent for the week ended August 16 following a dip in prices of vegetables, meat and cement, which the Finance Ministry described as “early signs of moderation” in prices.
The 0.23 per cent dip from 12.63 per cent in the previous week is the first time that inflation has fallen in a month. It was 3.99 per cent during the corresponding week a year ago.
“There are some early signs of moderation of inflation,” the Finance Ministry said in a statement, adding that in the primary articles group 21 out of total 98 articles have shown decline in prices and there was no increase in prices of another 48 articl es.
The last time inflation fell was when it dipped from 11.91 per cent to 11.89 per cent in the week ended July 12. In addition to vegetables, meat, egg and fish, the index of fuel and power items too declined by 1 per cent.
Prices of certain essential commodities like pulses, fruits, spices and iron and steel, however, continued to move up during the week. The increase was due to higher prices of sugar, pulses (moong, massor, urad and gram and dry chillies), the Finance Min istry statement said.
The annual rate of inflation for the week ended June 21, a fortnight after the government increased the prices of petrol, diesel and cooking gas, was revised from 11.89 per cent to 11.91 per cent. - PTI

ANALYSIS-Indian corn export ban may end, swift action needed

SINGAPORE/NEW DELHI, Aug 28 (Reuters) - India is unlikely to extend a ban on corn exports beyond mid-October given an upcoming bumper harvest and soft local prices, but New Delhi should relent even sooner to prevent rivals from grabbing market share.
Although traders see little hope of the government easing export curbs on rice and wheat as the fragile federal coalition faces polls next year at a time of double-digit inflation, they say corn is an entirely different story.
But unless the ban is lifted sooner than the current Oct. 15 expiry, Indian suppliers could lose business in the Southeast Asian markets they have worked hard to crack.
"Earlier Indian corn was not very acceptable in Southeast Asia. We shouldn't lose that market," ," said Atul Chaturvedi, head of the agricultural arm of Adani Enterprises Ltd (ADEL.BO: Quote, Profile, Research), a commodities player in India.
"And why should we deny our farmers the opportunity of getting better prices in the export market?"
Though India's corn exports make up just 3 percent of global trade of over 100 million tonnes, it has become an important supplier to countries such as Malaysia, Vietnam and Indonesia, offering last-minute supplies when there are wild swings in prices.
India has also benefited from China's absence from the market due to its own export curbs, and with corn stocks in the United States, the world biggest exporter, likely next year to dwindle to their lowest level in 13 years.
But with surging global food prices, New Delhi's recent ban on corn exports runs the risk of it losing market share to its more traditional rivals in Latin America and the United States.
On July 3, New Delhi stopped exports of corn until Oct. 15 after corn-consuming industries, such as food, starch and poultry, urged the government to curb exports to check prices and ensure stable local supplies.
"With elections coming closer, easing of exports curbs on essentials like rice and wheat are not likely to happen," said Amit Sachdev, a representative of the U.S. Grains Council in New Delhi.
But allowing domestic corn prices to slide further may be hard to justify to farmers already suffering from surging agriculture-input costs.
U.S. corn Cc1, the global benchmark, has lost around quarter of its value since hitting an historic high of $7.65 a bushel at the end of June.
In sympathy with global prices, Indian corn prices have fallen around 6 percent in past month to around 9,400 rupees ($215) per tonne -- but robust exports to Southeast Asia this year have cushioned losses.
For a chart of Indian corn versus global prices please click: here
NEED TO MOVE FAST
India's corn output from upcoming harvest that starts in September is estimated to be only marginally lower at 18.5 million tonnes, compared with last year's record 19.3 million tonnes, data from the International Grain Council (IGC) showed.
"With the production numbers that we are going to see, there is no reason why it should not be exported," said Nathan Kemp, an analyst with London-based IGC. "We are estimating exports of up to 2 million tonnes in the next marketing year."
India is expected to export 3 million tonnes of corn this year, a more-than-seven-fold increase on last year, with Southeast Asian nations snapping up cargoes to capitalise on lower freight costs compared with top suppliers, such as the United States and Latin America.
A slowdown in domestic feed consumption, coupled with a near-record harvest, is likely leave India with a surplus of at least 3 million tonnes in the coming year that it will have to clear.
Domestic feed prices have risen by 60 percent in past two years, forcing some poultry companies to shut, said B. Soundarajan, managing director of Suguna Poultry Farm Ltd.
Even though India's corn exports are still attractive to its Southeast Asian neighbours -- at a landed cost of $300 a tonne or less while U.S. exports cost about $330 due to higher freight -- India can ill afford to be complacent in pushing out exports.
India needs to move faster, traders say, as uncertainty over shipments after Oct. 15 has forced its key customers to target cargoes from rival suppliers in Latin American and Pakistan.
Already, Pakistan has sold around 50,000 tonnes of corn to Malaysia, one of India's top clients since the ban, while Thailand this week inked a deal to supply 30,000 tonnes of corn to Indonesia for prompt shipments, traders said.
"It becomes a much more difficult marketing effort when their (importers') bellies are half full or three-quarters full," said the head of grains trading at a Singapore-based trading company. "Certainty from the government's side would help farmers to get better prices." ($1=43.755 Indian rupees)

India's premium rice production up, farmers eye exports

CHANDIGARH, India, Aug 28 (Reuters)- Farmers in India's bread-basket state of Punjab have increased output of premium grades of rice by more than half, and traders say they expect authorites to ease export curbs after a bumper harvest.
India, the world's second-largest rice producer, banned most rice shipments in March, triggering a wave of panic buying of Asia's staple food Rice and a surge in prices.
"The area under premium rice varieties is much higher than in previous years. Earlier, we had about 5-6 per cent under basmati and other superior strains...in Punjab. This year it is more than 10 per cent," Gurdial Singh, joint director of agriculture, told Reuters.
Officials say India is set to buy record quantities of rice from farmers this year. [ID:nDEL231504].
The premium varieties include PUSA 1121, sharbati and sugandha.
"The government may notify PUSA as Basmati. Farmers are waiting for it. There is still two months time," Ashok Sethi, secretary of Punjab Rice Exporters Association.
However some traders expect export curbs to continue.
India will review its ban on non-basmati exports in November, and the possible return of the world's second-biggest rice exporter last year will add further pressure to prices that have slid around a third from their May record high.
Randeep Singh Sandhu, who cultivates basmati and PUSA 1121 in 70 acres (28 hectares) of farmland at Sarhali Kalan in the Taran Taran district of the state said he expected export controls to be easead.
"We are expecting the government to announce that PUSA 1121 would be notified as basmati after the government takes stock of arrival of common variety of paddy," Sandhu said.
Government officials said in June that the farm ministry was considering broadening the definition of basmati, a move that will exempt 400,000 tonnes of long aromatic grain from an export ban and help farmers get a better price. [ID:nDEL332797]
Area under basmati and other premium grades has risen to 350,000 hectares (864,000 acres) this year, up 55 percent from 225,000 hectares a year ago, Gurdial Singh said.
The total area under paddy in the state has also risen slightly to around 2.67 million hectares from 2.61 million hectares a year ago.
Industry officials say farmers in Punjab were encouraged by high prices for premium grades.
"Farmers earned in excess of 3,000 rupees ($68.5) per 100 kg for basmati while PUSA 1121 and other varieties were sold between 1,600 and 2,400 rupees per 100 kg in 2007," said H S Bains, senior manager at Markfed, the apex co-operative marketing federation of Punjab.
Farmers were rapidly increasing the area under PUSA 1121 as this variety also gave a higher yield, P.S. Rangi, marketing consultant, Punjab State Farmers Commission (PSFC), said.

28 अगस्त 2008

महाराष्‍ट्र व कर्नाटक में नई मूंग की आवकों का श्रीगणेश

नई दिल्‍ली, 27 अगस्‍त। महाराष्‍ट्र व कर्नाटक में मूंग की नई फसल की आवकें शुरू हो गई हैं तथा उम्‍मीद की जा रही है सितम्‍बर माह के मध्‍य तक महाराष्‍ट्र, कर्नाटक में तो आवकों का दबाव बनेगा ही साथ ही अन्‍य प्रमुख उत्‍पादक राज्‍यों राजस्‍थान, आंध्रप्रदेश, गुजरात व उत्‍तर प्रदेश में भी नई फसल की आवकें शुरू हो जायेंगी। व्‍यापारिक सूत्रों के अनुसार महाराष्‍ट्र, कर्नाटक व आध्रप्रदेश में चालू फसल सीजन में इसके बिजाई क्षेत्रफल में कमी आई है जबकि राजस्‍थान व मध्‍यप्रदेश में बिजाई क्षेत्रफल में बढ़ोत्‍तरी हुई है। इसके परिणामस्‍वरूप आगामी दिनों में आवकों का दबाव बनने पर मूंग के मौजूदा भावों में 250 से 300 रूपये प्रति क्विंटल की गिरावट आ सकती है।
अधिकारिक सूत्रों के अनुसार महाराष्‍ट्र में मूंग का उत्‍पादन गत वर्ष 3 लाख टन का हुआ था जबकि बीते वर्ष यहां इसकी बिजाई 6.93 लाख हैक्‍टेयर में हुई थी। चालू फसल सीजन में महाराष्‍ट्र में इसकी बिजाई 4.06 लाख हैक्‍टेयर में ही हुई है इसलिए यहां उत्‍पादन में कमी आयेगी। कर्नाटक में गत वर्ष मूंग की बिजाई 4.75 लाख हैक्‍टेयर में हुई थी जबकि चालू बिजाई सीजन में यहां इसकी बिजाई घटकर 2.00 लाख हैक्‍टेयर में हुई है। इसी तरह से आंध्रप्रदेश में इसकी बिजाई 2.49 लाख हैक्‍टेयर में ही हो पाई है जबकि गत वर्ष यहां इसकी बिजाई 3.07 लाख हैक्‍टेयर में हुई थी।
ज्ञात हो कि खरीफ सीजन में देश में मूंग का उत्‍पादन 12 से 12.5 लाख टन का होता है। चालू खरीफ सीजन में देश में अभी तक इसकी बिजाई 22.91 लाख हैक्‍टेयर में ही हो पाई है जबकि गत वर्ष की समान अवधि में इसकी बिजाई 30.30 लाख हैक्‍टेयर में हुई थी। सामान्‍यत: खरीफ सीजन में देश में मूंग की बिजाई 26.16 लाख हैक्‍टेयर में होती है। राजस्‍थान जोकि मूंग उत्‍पादन में देश का अग्रणी राज्‍य है यहां बिजाई क्षेत्रफल तो बढ़ा ही है साथ ही मौसम भी फसल के अनुकूल रहा है। अत: राजस्‍थान में चालू सीजन में इसका उत्‍पादन बढ़कर 5.5 से 6 लाख टन हो सकता है।
कर्नाटक की उत्‍पादक मंडियों में नई मूंग की दैनिक आवकें 2000 से 2500 बोरियों की हो रही है जबकि यहां इसके भाव 3200 से 3700 रूपये प्रति क्विंटल चल रहे हैं। उधर महाराष्‍ट्र की उत्‍पादक मंडियों में इसकी दैनिक आवकें 1000 से 1500 बोरियों की हो रही हैं तथा यहां इसके भाव 3000 से 3600 रूपये प्रति क्विंटल क्‍वालिटीअनुसार चल रहे हैं। केन्‍द्र सरकार ने हाल ही में नई फसल का न्‍यूनतम समर्थन मूल्‍य (एमएसपी) 2520 रूपये प्रति क्विंटल तय किया है। उत्‍पादन में गत वर्ष के मुकाबले कुछ कमी आ सकती है जबकि इस समय भारत में मूंग का करीब एक लाख क्विंटल का बकाया स्‍टॉक बताया जा रहा है। व्‍यापारिक सूत्रों के अनुसार आयातित मूंग के भाव ऊंचे होने से नई फसल की आवकों का दबाव बनने के बावजूद भी इसके भाव एमएसपी से नीचे जाने के आसार नहीं हैं।
आयातित मूंग के भावों में पिछले चार-पांच माह में करीब 7 से 8 फीसदी की बढ़ोत्‍तरी हो चुकी है। इस समय भारत जहां दलहन का डयूटी फ्री आयात कर रहा है वहीं निर्यात को मार्च 2009 तक बंद रखा है। मूंग का आयात मुख्‍यत: मयंमार से किया जाता हैं तथा वर्तमान में बर्मा पेडीशेवा वैरायटी के भाव 3100 रूपये व बर्मा अन्‍नासेवा वैरायटी के भाव 2800 से 2900 रूपये प्रति क्विंटल मुंम्‍बई पहुंच चल रहे हैं।
मयंमार में इस साल मूंग का उत्‍पादन 2.5 से 3.00 लाख टन होने की उम्‍मीद है जबकि वहां करीब एक लाख टन का बकाया स्‍टॉक बताया जा रहा है। भारत द्वारा दाल निर्यात पर प्रतिबंध लगाने के बाद अमरीका व यूरोप आदि की मांग मयंमार से ही निकलेगी जिसे देखते हुए भविष्‍य में आयातित मूंग का भाव ऊंचा ही रह सकता है। (R S Rana)
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आसियान समझौते से भारत को पाम निर्यात बढ़ेगा : इंडोनेशिया

सिंगापुर। आसियान (एसोसिएशन ऑफ साउथ ईस्ट एशियान नेशंस) और भारत के बीच मुक्त व्यापार समझौता होने के बाद दीर्घ अवधि में इंडोनेशिया से भारत को क्रूड पाम तेल का निर्यात बढ़ेगा। यह उम्मीद इंडोनेशिया की व्यापार मंत्री मारी पांगेस्तु ने जाहिर की। मु्क्त व्यापार समझौते को इस साल के अंत तक मंजूरी मिल सकती है।पांगेस्तु ने कहा कि निर्यातकों के लिए समझौते के बाद ज्यादा निश्चित माहौल होगा। आयात शुल्क कम होगा। 60 फीसदी आयात शुल्क जैसी स्थिति वापस नहीं आएगी। इंडोनेशिया दस सदस्यों वाले आसियान का सदस्य है। वह पाम तेल का सबसे बड़ा उत्पादक है। इंडोनेशिया को कुल निर्यात करीब दस फीसदी (लगभग 50 करोड़ टन) पाम तेल भारत को निर्यात करता है। वह पाकिस्तान, चीन और अमेरिका को भी पाम तेल निर्यात करता है।मुक्त व्यापार समझौते के तहत भारत अगले दस सालों में आशियान देशों के लिए 96 प्रतिशत वस्तुओं का बाजार खोल देगा। लेकिन भारत 480 वस्तुओं को डयूटी के लिहाज से सुरक्षित रखेगा। इनमें संवेदनशील कृषि वस्तुएं और आटो कंपोनेंट जैसी औद्योगिक वस्तुएं शामिल हैं। अगले दिसंबर में बैंकाक में होने वाली भारत-आसियान बैठक में समझौते को मंजूरी मिलेगा। इसमें प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भाग लेंगे।गौरतलब है कि इंडोनेशिया पाम तेल के भारत में ज्यादा निर्यात के लिए डयूटी में कटौती चाहता है। भारत ने 2018 तक पाम तेल पर डयूटी 90 से घटाकर 60 फीसदी और क्रूड पाम तेल पर 80 फीसदी से घटाकर 50 फीसदी करने पर सहमति दी थी। इंडोनेशिया डयूटी घटाकर इन दोनों वस्तुओं पर क्रमश: 40 व 30 फीसदी तय करने की मांग कर रहा है। उसे उम्मीद है कि आसियान के साथ समझौते के बात यह मुद्दा सुलझ जाएगा। भारत में पाम तेल पर डयूटी 400 डॉलर प्रति टन से भी कम निर्धारित दर पर ही लग रही है। ऐसे में दस फीसदी डयूटी भी मौजूदा करीब 800 डालर प्रति टन के भाव पर बहुत कम बैठती है। (Business Bhaskar)

राज्यों को पांच लाख टन गेहूं जल्द मिलेगा केंद्र से

नई दिल्ली। महंगाई के खिलाफ जारी जंग की कवायद के तहत केंद्र सरकार जल्दी ही राज्यों के लिए गेहूं जारी कर सकता है। खुले बाजार में बिक्री योजना के तहत आने वाले दो सप्ताह में करीब 4-5 लाख टन गेहूं जारी होने की उम्मीद है। हालांकि फ्लोर मिलों को सरकारी गेहूं हासिल करने के लिए थोड़ा और इंतजार करना पड़ सकता है। सरकारी सूत्रों के मुताबिक खुले बाजार में बिक्री योजना के लिए सरकार चार से पांच लाख टन गेहूं राज्यों को जारी करने पर विचार कर रही है। अगले दो सप्ताहों में कुछ चुनिंदा राज्यों में गेहूं का स्टॉक पहुंच जाएगा। हालांकि सूत्रों का कहना है कि इस पूरी योजना के क्रियान्वयन में राज्य सरकारों की भूमिका काफी महत्वपूर्ण है। राज्य सरकारों के सहयोग से ही संबधित राज्यों में केंद्र गेहूं बेच सकेगा। हालांकि अभी फ्लोर मिलों को सरकारी गेहूं के लिए और इंतजार करना पड़ा सकता है। खुले बाजार की तरह केंद्र ने फ्लोर मिलों को भी गेहूं बेचने की घोषणा की है। इसके तहत एफसीआई द्वारा फ्लोर मिलों को सस्ते में गेहूं उपलब्ध कराएगा। मौजूदा समय में गेहूं की कीमतों में स्थिरता बनी हुई है। लिहाजा सरकार फ्लोर मिलों को गेहूं देने में कुछ देरी कर सकती है। सूत्रों का मानना है कि इसके बावजूद केंद्र सरकार कीमतों पर बराबर नजर रखे हुए है। किसी भी स्थिति से निपटने के लिए सरकार के पास गेहूं का पर्याप्त स्टॉक मौजूद है। गौरतलब है कि केंद्रीय मंत्रिमंडल ने पिछले सप्ताह खुले बाजार में गेहूं बेचने की योजना को हरी झंडी दे दी थी। इस योजना के तहत राशन की दुकानों के जरिए खुदरा में गेहूं बेचा जाएगा। एफसीआई बोली के जरिए गेहूं बेचेगा। सरकारी सूत्रों के मुताबिक केंद्र सरकार इस योजना की शुरूआत दक्षिण भारतीय राज्यों से कर सकती है। केंद्र ने इन राज्यों में कीमतों को लेकर सर्वे किया था। माना यह जा रहा है कि उत्पादक क्षेत्रों से बाहर के राज्यों में गेहूं की कीमतें तेजी से बढ़ सकती हैं। मौजूदा समय में सचिवों की एक समिति गेहूं की कीमतों की निगरानी कर रही है। इस योजना के शुरू हो जाने के बाद भी कीमतों पर निगरानी जारी रहेगी। देश के विभिन्न हिस्सों में गेहूं की कीमतों और योजना को लेकर बुधवार को समिति की बैठक होने वाली है। जिसमें योजना के शुरू होने की तारीख भी तय होने की उम्मीद है। (Business Bhaskar)

DAILY COTTON MARKET REPORT DT. 28/08/2008

NORTH
Weather remained quite clear and humid. Market remained strong with some very good buying in ready as well as in forward. Offering in Sept. delivery particularly in Punjab is very poor as ginners has committed not to make any sale. In forward Haryana J-34 RG is quoted for Sept. and October delivery @ Rs. 2705/- and 2600/- respectively. Y/day arrival was around 150 maund or 12 bales mainly in the area of Punjab.
GUJARAT
Weather remained mostly clear with some passing clouds and light showers in North Gujarat area. Market advanced further as few lots of Shanker in Saurastra area has changed their hands at 28800/- per candy whereas October delivery sold @ 26750/- per candy.
MAHARASHTRA
Weather remained mostly clear during the day hours but again it was cloudy in the evening with some light showers in Marathwada area. Market remained strong with some buying from Southern and local Cooperative mills.
SNIPPETS :
1. Egypt planted 316234 feddan to cotton 2008-09. Decline of 44% from previous year 60095 feddans . A Feddan is equal to 1.038 acres or .42 hectares.

2. In USA one in six plants across the cotton belt has bolls already opened, a few days behind the five year average of 19% for the same weak. The progress from last week slowed from trend, in part owing to deluge of rains from tropical storm Fay and slow advancement in Texas,.

3. The Chinese Govt. through the Gen Administration of quality Supervision, Inspection and Quarantine has announced a new registration procedure for cotton exporters to China. Stating on Sept. 15 the AQSID will develop a ranking system of suppliers iIn meeting the quality of cotton delivery.

4. The ABRAPA (Brazilian Cotton Produce Association) has forcast that 2009 planted cotton acreage will decline by 10% from 2008. (K.C.T & ASSOCIATES)

कपास उत्पादन में इजाफे की उम्मीद

ब्लूमबर्ग / August 27, 2008
विश्व के दूसरे सबसे बड़े कपास उत्पादक भारत में कपास का उत्पादन अनुमान से कहीं ज्यादा रहने की उम्मीद है। ऐसा कपास उत्पादन के मुख्य गढ़ में हाल ही में हुई बारिश से हुआ है।
इससे कपास का उत्पादन सुधरने की उम्मीद तो है ही कपास की वैश्विक कीमतें भी कम होने की गुजांइश है। देश में कपास के रेशे का सबसे बड़ा खरीदार कॉटन कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया ने जुलाई में कहा कि जून में घोषित कपास के उत्पादन अनुमान 3.5 करोड़ बेल (1 बेल = 170 किलोग्राम) से 10 फीसदी कम यानी 3.15 करोड़ बेल्स उत्पादन होगा।ऐसा इसलिए कि जारी सीजन में कम बारिश की वजह से किसानों ने कम कपास बोये हैं। लेकिन अब कहा जा रहा है कि कपास का उत्पादन जुलाई में घोषित अनुमान से कहीं ज्यादा होगा। ग्रोवर ने अनुमान जताया कि इस साल कपास का उत्पादन अनुमान से तकरीबन 60 लाख बेल अधिक रहेगा।अच्छी बारिश के चलते जुलाई महीने में घोषित कपास के वैश्विक उत्पादन अनुमान से भी 78 हजार टन ज्यादा कपास पैदा किए जाने की उम्मीद अब जतायी जा रही है। कार्वी कॉमट्रेड के जी. हरीश ने बताया कि हमलोग सोच रहे थे कि सूखे मौसम के चलते कपास का उत्पादन पिछले साल की तुलना में कम रहेगा। पर अब मौसम में सुधार हुआ है।उनके मुताबिक अनुमान है कि बेहतर मौसम होने से उत्पादन में बढ़ोतरी होगी। मौसम विभाग के अनुसार, कपास के मुख्य उत्पादन राज्यों जैसे गुजरात, महाराष्ट्र में 24 जुलाई से 13 अगस्त के बीच औसत या औसत से अधिक बारिश हुई। गुजरात के कृषि निदेशक एस. आर. चौधरी ने बताया कि उनके राज्य में कपास की स्थिति काफी बेहतर है।पिछले साल की तुलना में केवल उत्पादन ही नहीं बल्कि उत्पादकता भी सुधरने की उम्मीद है। अमेरिका के बाद दुनिया के दूसरे सबसे बड़े कपास निर्यातक देश के बारे में कृषि मंत्रालय का अनुमान है कि इस महीने की 22 तारीख तक किसानों ने लगभग 86 लाख हेक्टेयर भूमि में कपास लगाया है। हालांकि पिछले साल की समान अवधि की तुलना में इस बार लगभग 5 फीसदी कम रकबे में कपास बोया गया है। ग्रोवर ने कहा कि भले ही पिछले साल की तुलना में रकबे में थोड़ी कमी हुई है पर किसानों ने इस बार काफी अच्छे बीज लगाए हैं। लिहाजा उत्पादकता पिछले साल की तुलना में सुधरने की उम्मीद जतायी जा रही है। उनके मुताबिक, बेहतर उत्पादकता रकबे में गिरावट से होने वाले नुकसान को पाट देगी।साथ ही उन्होंने दुनिया के सबसे बड़े कपास उपभोक्ता चीन में कपास की मांग में अगले साल कमी होने की उम्मीद जतायी। वैसे अमेरिकी कृषि विभाग के मुताबिक, 1 अगस्त से शुरू हुए नए सीजन के दौरान चीन में कपास उत्पादन 3.55 करोड़ बेल रहेगा। इस तरह, अभी बीते सीजन की तुलना में उत्पादन में 3 लाख बेल की कमी होने का अनुमान है। (BS Hindi)

चीनी उत्पादन में बड़ी गिरावट की संभावना

मुंबई August 27, 2008
महाराष्ट्र स्टेट शुगर कोऑपरेटिव फेडरेशन लिमिटेड (एमएसएससीएफएल) के प्रबंध निदेशक प्रकाश नाइकनवारे ने कहा है कि गन्ने की पेराई के अगले सीजन में लगभग 28 से 30 प्रतिशत गन्ना पेराई के लिए उपलब्ध होगा।
इस कारण अक्टूबर से शुरू होने वाले चीनी के उत्पादन में महत्वपूर्ण गिरावट आएगी। एक संवाददाता सम्मेलन में नाइकनवारे ने कहा कि लगभग 761 लाख टन गन्ने की पेराई हुई थी और 91 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ था। हालांकि, इस साल गन्ने की उपलब्धता लगभग 500 लाख टन होने वाली है और चीनी का उत्पादन लगभग 76 लाख टन होने की उम्मीद है। इससे पहले दिन में एमएसएसएफसीएल की मंत्रियों के साथ चीनी के मुद्दे पर एक बैठक हुई थी जिसकी अध्यक्षतता मुख्य मंत्री विलास राव देशमुख ने की। नाइकनवारे ने कहा कि एमएसएसएफसीएल इस बात पर सहमत हुई कि वह किसानों को पहली किश्त पर के तौर पर वैधानिक न्यूनतम मूल्य देगी और अगर शुगर कॉपरेटिव की वित्तीय स्थिति ठीक रहती है तो यह उससे अधिक कीमत भी दे सकती है। (BS Hindi)

कच्चा तेल 117 डॉलर प्रति बैरल के पार


एजेंसी / सिंगापुर August 27, 2008
एशियाई बाजार में आज कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में तेजी का रुख दर्ज किया गया। डीलरों ने कहा कि गुस्ताव तूफान के मेक्सिको की खाड़ी की ओर बढ़ने से तेल की आपूर्ति बाधित होने की आशंका पैदा हो गई है।
उन्होंने कहा कि इसके अलावा रूस द्वारा जॉर्जिया के विद्रोही क्षेत्र साउथ ओसीतिया और अबखाजिया को स्वतंत्र दर्जा दिए जाने से रूस और पश्चिमी देशों के बीच तनाव बढ़ गया है जिससे तेल समृध्द क्षेत्र में संकट की स्थिति पैदा हो गई है।सिंगापुर स्थित न्यूयार्क मर्केंटाइल एक्सचेंज में दोपहर मध्य तक अक्टूबर डिलीवरी के लिए लाइट स्वीट क्रूड का भाव 90 सेंट बढ़कर 117.17 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गया। कॉमनवेल्थ बैंक ऑफ ऑस्ट्रेलिया के कमोडिटी विश्लेषक डेविड मूर ने कहा, 'तेल बाजार गुस्ताव तूफान पर पैनी नजर रखे हुए है और अनुमान जताया जा रहा है कि यह मेक्सिको की खाड़ी की ओर बढ़ सकता है।'उन्होंने कहा 'इसके साथ ही रूस द्वारा साउथ ओसीतिया और अबखाजिया को स्वतंत्र राष्ट्र का दर्जा दिए जाने से राजनीतिक टकराव बढ़ गया है जिससे यह आशंका पैदा हो गई है कि कैस्पियन सागर से अजरबेजानी कच्चे तेल का तुर्की बंदरगाह सीहान को तेल का प्रवाह बाधित हो सकता है।' (BS Hindi)

Sugar trade asks FMC to ban futures trading

MUMBAI: The Bombay Sugar Merchants Association, has urged the Forward Markets Commission (FMC) to impose a ban on sugar futures following what it termed speculative activity on commexes leading to a jump in sugar prices by Rs 400 per quintal. At a meeting of the FMC on Wednesday at Bangalore, the association submitted a memorandum on the issue. Presently, three major exchanges, the National Commodity and Derivatives Exchange (NCDEX), Multi-Commodity Exchange of India (MCX) and National Multi-Commodity Exchange (NMCE) are conducting substantial futures trading in sugar. The association said that none of the objectives such as price discovery, hedge and arbitrage facilities and farmers guidance were being fulfilled by these operations. “Let us accept the fact that no sugarcane farmer anywhere in India has ever understood the goings-on in these exchanges leave alone trying to plan his strategy for sugarcane plantations on the basis of prices prevalent on these exchanges,” association chairman, Mohan Gurnani, said in a statement here. On the contrary, futures exchanges have become a den for speculators, who have entered this business for making a fast buck, he said. The recent price hike of Rs 400 per quintal (nearly 30% of total value) in the spot market price of sugar during the last 30 days is a classic example of how consumer interest is hurt by activities of speculators in sugar futures exchanges, Mr Gurnani said. Sugar prices, which were ranging around Rs 1,500 per quintal in the wholesale market at Mumbai have gone up to Rs 1,900-1,950 within a short period of 30 days. Mr Gurnani pointed out that the price hike has occurred although there is no short supply or any exceptional demand for sugar in the physical market. “We have sufficient stock in the country than can carry us up to June 2009. Moreover, the new sugar season will be starting from October,” he said. In spite of this comfortable position prices have gone up in an unprecedented manner and upset the government’s plan to contain the inflationary trends in the economy, he said. (The Economic Times)

Extended cultivation of beans, pulses called for in Myanmar

YANGON (Xinhua): Myanmar official media Wednesday called for extending cultivation of marketable beans and pulses as a continued effort to maintain the status that such Myanmar crops have earned a good reputation for its quality in local and international markets.
"Myanmar beans and pulses have had a foothold in the international market. So, it is to take measures not only for boosting export of the crops but also for fetching handsome prices through extensive cultivation of quality strains of crops, and use of fertilizers and pesticide," the New Light of Myanmar stressed in its editorial.
Myanmar's five divisions and states of Ayeyawaddy, Bago, Sagaing, Mandalay and Magway are extensively growing beans an pulses that are marketable at home and abroad with the latter three divisions growing the crops on a commercial scale, the editorial said.
In addition, large-scale cultivation of soya bean is also being introduced as it is found in demand in the foreign markets, it added.
Merchants trading agricultural crops in Myanmar are planning to set up special beans, pulses and sesame cultivation zones across the country to develop such crops production and boost export.
Using high quality strains, the Myanmar Beans and Pulses and Sesame Merchants Association is also striving for the country to become the highest exporter of such crops in the world.
Beans and pulses are among the 10 major items of agricultural crops that Myanmar grow. Among them, gram, lablab bean, pigeon pea, butter bean and soya bean are cultivated most in the country.
Myanmar has become the second largest beans and pulses exporter in the world after Canada and topped beans exporter in Asia with India standing as Myanmar's largest buyer of the crops which accounted for 72 percent of Myanmar's total beans export. The country's beans and pulses gained the Japanese market most in the past but are weak in competitiveness in winning the European market for its quality.
According to figures of the Central Statistical Organization, in 2007-08, Myanmar exported 1.177 million tons of various items of beans and pulses including Matpe, Pedesein, Pesingon, Gram, Sesamum seeds and Niger seeds, earning a total of 670 million U.S. dollars.
Since 1988-89, the cultivated area of beans and pulses has gradually grown year by year, reaching over 3 million hectares so far.
Beans and pulses, like other agricultural crops such as rice, stand as one of the mainstay of the country's economy. (The Hindu)

Consumers may get pulses at Rs 17-18/kg through ration shops

NEW DELHI : After cooking oil, the government has approved a scheme to sell subsidised pulses through ration shops in order to give relief to the common man reeling under rising prices. "We have finalised the scheme to sell four lakh tons of pulses at a subsidy of Rs 10 per kg through ration shops," a top official of Consumer Affairs Ministry said. "Out of the total quantity of four lakh tons, 50 per cent would be yellow peas (white matar), while the remaining would be a mix of other pulses," the official said. While yellow peas would be offered at Rs 17-18 per kg in the ration shops, other pulses would cost Rs 25 or more per kg, he said. In the domestic market, the pulses are available in the range of Rs 40-60 per kg. The official said the programme is expected to start from October as state governments have been asked to inform the Centre about their requirement. The government has sufficient stocks in hand for rolling out the scheme even now if demand from states come, he said. The Centre is importing pulses through public sector trading firms STC, PEC, MMTC and Nafed from last year. Sources said, about 2 lakh tons of imported pulses are lying in government stocks, majority of which are yellow peas. STC, MMTC, PEC and Nafed were asked to import 15 lakh tons of pulses in 2007-08 fiscal, but they managed to import about 12-13 lakh tons. These agencies have been asked to import 15 lakh tons of pulses in the current fiscal also. India imports about 30 lakh tons of pulses every year, both on government and private account, as demand outstrips production. Output is seen at record 15.11 mn tons in 2007-08 against an annual demand of 17-18 mn tons. Battling with high inflation, the government last month started supplying edible oil at cheaper rates through ration shops. (The Economic Times)

27 अगस्त 2008

गुजरात में बढ़ सकता है अरंडी का रकबा

अहमदाबाद August 26, 2008
बारिश में विलंब और अरंडी पर पिछले साल मिला बेहतर प्रतिफल से इस साल गुजरात में इसकी खेती के क्षेत्र में इजाफा हो सकता है।
राज्य के कृषि विभाग का अनुमान है कि अरंडी की खेती का क्षेत्र चालू खरीब सीजन के दौरान बढ़ कर 3.5 लाख हेक्टेयर हो जाएगा जबकि उद्योग और कारोबारियों का मानना है कि अरंडी के खेती का रकबा 3.5 लाख हेक्टेयर से अधिक होगा जो साल 2007-08 के 3.14 लाख हेक्टेयर से अधिक होगा।जून और जुलाई महीने में गुजरात में अनियमित बारिश हुई थी, यही वह समय होता है जब खरीफ फसल की बुआई की जाती है। आमतौर पर अरंडी की बुआई अगस्त महीने से शुरू होती है और मॉनसून के एक बार फिर जोर पकड़ने से इस महीने अच्छी बारिश हुई है। गुजरात सरकार के कृषि निदेशक एस आर चौधरी ने कहा, 'इस महीने हुई पर्याप्त वर्षा ने राज्य में अरंडी की बुआई और उत्पादन का भविष्य प्रशस्त किया है।' साल 2007-08 में 3.14 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में अरंडी की खेती की गई थी। इस साल अभी तक 2.78 लाख क्षेत्र में अरंडी की बुआई हो चुकी है।अरंडी की बुआई अभी भी चल रही है और उत्तरी गुजरात में एक बड़े क्षेत्र में अभी अरंडी की बुआई होनी है। चौधरी ने कहा कि सरकार का अनुमान के अनुसार वर्ष 2008-09 में अरंडी की खेती का रकबा 3.50 लाख हेक्टेयर तक पहुंच जाएगा। इस साल अरंडी की कीमत 680 रुपये प्रति 20 किलो के रेकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई थी। बेहतर प्रतिफल के कारण इस साल बहुत सारे किसान अरंडी की खेती के लिए आकर्षित हो सकते हैं। इसके अतिरिक्त विलंबित बारिश किसानों के वरदान साबित हुई हैं क्योंकि जब बारिश में देरी होती है तो किसान अरंडी की खेती का रुख करते हैं। अहमदाबाद कमोडिटी एक्सचेंज के प्रेसिडेंट प्रवीण ठक्कर ने कहा, 'गुजरात में अरंडी की खेती के क्षेत्र में इस साल 20 प्रतिशत की बढ़ोतरी हो सकती है।'उद्योग से जुड़े लोग और अरंडी के बीज के कारोबारियों का अनुमान है कि अरंडी गुजरात में इस साल अरंडी की खेती के क्षेत्र में लगभग 20 प्रतिशत का इजाफा होगा। सॉल्वेंट एक्स्ट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एसईए) से उपलब्ध आंकड़ो के अनुसार वर्ष 2007-08 में लगभग 3.54 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में अरंडी की खेती की गई थी और अरंडी के बीजों का कुल उत्पादन 6.51 लाख टन का था, इसमें पिछले वर्ष के मुकाबले 32 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई थी।एसईए के कार्यकारी निदेशक बी वी मेहता ने कहा, 'देश भर में अभी तक अरंडी की बुआई अपेक्षाकृत कम रही है लेकिन अगस्त में हुई पर्याप्त वर्षा से इसमें तेजी आने के आसार हैं।' एसईए के अरंडी की फसल के सर्वेक्षण के अनुसार वर्ष 2007-08 में भारत में कुल 7.48 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में अरंडी की खेती की गई थी और कुल उत्पादन 9.10 लाख टन हुआ था। इस साल उद्योग का अनुमान है कि उत्पादन 10.50 लाख टन हो सकता है। (BS Hindi)

बीकानेर एक्सचेंज में सरसों के कारोबार पर रोक

एजेंसियां / नई दिल्ली August 26, 2008
अपर्याप्त आधारभूत सुविधाओं और समर्थन के अभाव में वायदा बाजार आयोग (एफएमसी) ने बीकानेर कमोडिटी एक्सचेंज में सरसों बीज, तेल और खली के वायदा कारोबार पर रोक लगा दी है।
वायदा बाजार को नियंत्रित करने वाले इस संस्थान के अध्यक्ष बी. सी. खटुआ के मुताबिक, 31 जुलाई के बाद बीकानेर कमोडिटी एक्सचेंज में सरसों बीज, तेल और खली के कारोबार को जारी रखने से रोक दिया गया है। खटुआ ने बताया कि बीकानेर एक्सचेंज के पास इसका पर्याप्त भंडार नहीं है। इसके कारोबार के लिए जरूरी आधारभूत सुविधाएं और समर्थन भी एक्सचेंज के पास नहीं है। मालूम हो कि आज से लगभग 5 साल पहले इस एक्सचेंज की शुरुआत की गई थी। उधर इस फैसले पर हैरानी जताते हुए बीकानेर कमोडिटी एक्सचेंज के निदेशक आनंद कुमार गोयल ने बताया कि न जाने किस आधार पर एफएमसी ने यह फैसला कर लिया।हालांकि गोयल ने स्वीकार किया कि पिछले दो सालों से एक्सचेंज में सरसों का कारोबार स्थिर पड़ा है। इसकी वजह नैशनल एक्सचेंजों की ओर सरसों के कारोबार का जाना है। उन्होंने कहा कि इस संबंध में हमने एफएमसी को लिखा है कि वो इस मामले पर दोबारा विचार करे। साथ ही गोयल ने कहा कि एक्सचेंज के पास पर्याप्त बुनियादी सुविधाएं हैं। तभी तो यहां ग्वार का कारोबार काफी सक्रियता से किया जा रहा है। यहां अगस्त के पहले पखवाड़े में 20.90 करोड़ रुपये से अधिक राशि का 12,160 करोड़ रुपये का ग्वार खरीदा-बेचा गया है। (BS Hindi)

भारत पर भी पड़ा पाम तेल बाजार में गिरावट का असर

मुंबई August 26, 2008
मलयेशिया और इंडोनेशिया सहित अन्य प्रमुख पाम तेल उत्पादक देशों में कच्चे पाम तेल की कीमतों में आयी गिरावट का असर यहां भी देखने को मिला है।
देश के दो प्रमुख वायदा बाजार मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज और एनसीडीईएक्स में मंगलवार को कच्चे पाम तेल की कीमतों में 4 फीसदी से ज्यादा की कमी देखने को मिली है। एमसीएक्स में अक्टूबर में डिलिवर होने वाले पाम तेल की कीमत घटकर 362.10 रुपये प्रति 10 किलोग्राम तक पहुंच गयी।वहीं सितंबर अनुबंध में लगभग 4 फीसदी की गिरावट आयी और इसका भाव 363.40 रुपये प्रति 10 किलोग्राम रह गया। आर्श्चय की बात है कि एनसीडीईएक्स के सितंबर अनुबंध का भाव कारोबार ठप्प रहने के चलते 400.35 रुपये प्रति 10 किलोग्राम रहा। हालांकि हाजिर अनुबंध 391.90 रुपये प्रति 10 किलोग्राम तक चला गया। उल्लेखनीय है कि मलयेशिया में पाम तेल में 7.3 फीसदी की जोरदार कमी आयी। कारोबार की समाप्ति तक इसमें 191 रिंगिट की गिरावट आ चुकी थी और इसका भाव 2409 रिंगिट तक जा पहुंचा था। मलयेशियाई बाजारों में गिरावट की मुख्य वजह चीनी कारोबारियों की ओर से डिफॉल्ट होने का भय रहा। कारोबारियों के मुताबिक, इस आशंका के बावजूद चीन के कारोबारियों ने 1.5 लाख टन कच्चे पाम तेल की खरीदारी की। इस तरह मार्च से अब तक महज 5 महीने में ही पाम तेल में 45 फीसदी की कमी आ चुकी है। हालांकि सोमवार को मलयेशिया के एक सेमिनार में गोदरेज इंटरनेशनल के दोराब मिस्त्री ने अनुमान व्यक्त किया था कि कच्चे पाम तेल की कीमतें 2200 रिंगिट तक लुढ़क सकती है। (BS Hindi)

प्रतिबंधित जिंसों में सितंबर से कारोबार शुरू होने की उम्मीद

एजेंसियां / नई दिल्ली August 26, 2008
जिंस बाजार में बढ़ते व्यवसाय के बीच वायदा बाजार आयोग (एफएमसी) को उम्मीद है कि रबर, सोया तेल, आलू और चना का वायदा कारोबार अगले महीने से शुरू हो जाएगा।
इन चार जिंसों के वायदा कारोबार पर सरकार ने चार महीने की रोक लगाई थी। मई से लागू पाबंदी की अवधि छह सितंबर को समाप्त हो रही है। एफएमसी के अध्यक्ष बी सी खटुआ ने कहा - मुझे उम्मीद है कि चार जिंसों के रोक की समय सीमा का विस्तार नहीं होगा। हमने पहले ही स्थिति का विवरण देते हुए एक विस्तृत रिपोर्ट सरकार को भेजी है। विशेषज्ञ ने कहा कि चूंकि वामपंथी दलों ने यूपीए गठबंधन से समर्थन वापस ले लिया है, ऐसे में अगर रबर, सोया तेल, आलू और चना के वायदा कारोबार को शुरू करने की अनुमति दी जाती है तो सरकार को कोई विरोध नहीं झेलना होगा। उन्होंने बताया कि तात्कालिक प्रतिबंध को इसलिए लागू किया गया क्योंकि वामपंथी दल सभी आवश्यक वस्तुओं के वायदा कारोबार के विरोध में थे।सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने पहले कहा था कि हम इस माह के उत्तरार्ध में वायदा कारोबार पर लगे प्रतिबंध की समीक्षा करेंगे। हम खरीफ सत्र के फसल स्थिति के बारे में तथा अगले कुछ महीनों में कीमतों के संभावित रुख के बारे में ध्यान देंगे।वायदा कारोबार और कीमत वृध्दि के बीच संबंध की जांच के लिए गठित अभिजित सेन समिति ने अपनी रिपोर्ट में अपर्याप्त साक्ष्य के अभाव में जिंस वायदा पर प्रतिबंध की सिफारिश नहीं की। गेहूं, चावल, उड़द और अरहर में वायदा कारोबार पाबंदी लगाए जाने केबाद पिछले वर्ष सेन समिति का गठन किया गया था। (BS Hindi)

Centre may release 4-5 Lakh tonnes wheat for states soon

Press Trust Of India / New Delhi August 26, 2008,
Government is likely to release 4-5 lakh tonnes of wheat for the states in the next two weeks under the open market sale scheme (OMSS) but flour mills may have to wait longer. "We are considering release of 4-5 lakh tonnes to States under OMSS," a senior government official said.
He said, the stock would reach identified states within next two weeks but noted that it all depends on response from the state governments.
The official ruled out immediate release of wheat to flour mills through tender saying "there is no such need as of now as prices are stable".
The Cabinet Committee on Economic Affairs on August 21 had approved the OMSS for both wheat and rice in order to stabilise domestic prices.
Under the scheme, Centre will allocate food grains to states and Union Territories for distribution to retail consumers, however, for bulk buyers, the Food Corporation of India (FCI) would sell the stock through bids.
Food and Agriculture Minister Sharad Pawar had last week indicated that government could release up to six million tons of wheat under the scheme.
"We will study location-wise wheat prices. Essentially in south India, there are many places where there seems to be an upward trend in prices," he had said.
The Committee of Secretaries (CoS) would assess the price situation every week and provide recommendations to the Food Ministry of the location where stock is to be sold. Sources said that the CoS is likely to meet tomorrow where this issue would be discussed. According to the FCI, the nodal agency for procurement and distribution of foodgrains, wheat stock stood at 241.46 lakh tonnes as on August 8 as it has procured a record 225 lakh tonnes this year.

Haryana's Hafed enters South market

Chandigarh August 26, 2008, 18:35 IST
Haryana State Cooperative Supply and Marketing Federation has ventured into the markets of southern states of the country and appointed a distributor for marketing its popular consumer brand of products in Bangalore. An official spokesman said here today that the first consignments of consumer products had already been dispatched.
Hafed's basmati rice, non basmati rice, Kachchi Ghani Mustard Oil, Refined Soyabean oil, refined cottonseed oil, branded sugar, desi wheat, organic wheat and organic desi wheat atta were already quite popular in the existing markets of Haryana, Punjab, Himachal Pradesh, Chandigarh, Delhi, West Bengal, Orissa and Jammu and Kashmir.
With the introduction of its products in Bangalore, Hafed had started implementing its plans to cover the potential South Indian Market for marketing its products, especially basmati rice, he said.

26 अगस्त 2008

स्‍टॉकिस्‍टों की सक्रियता से ग्‍वार में भारी उठा-पटक

नई दिल्‍ली, 25 अगस्‍त। वर्तमान में स्‍टॉकिस्‍टों की स‍क्रियता से ग्‍वार व गम के भावों में भारी उठा-पटक चल रही है। व्‍यापारिक सूत्रों के अनुसार ग्‍वार के प्रमुख उत्‍पादक राज्‍यों राजस्‍थान व हरियाणा में इस समय मौसम फसल के अनुकूल बना हुआ है तथा अगर आगामी दिनों में नई फसल से पहले उत्‍पादक राज्‍यों में एक-दो वर्षा हो जाती है तो ग्‍वार का बम्‍पर उत्‍पादन होने के आसार हैं। स्‍टॉकिस्‍टों व मिलों के पास इस समय ग्‍वार का गम का करीब 40 से 45 लाख बोरियों का स्‍टॉक बचा हुआ है तथा नई फसल की आवकों में अब एक से डेढ़ माह का समय ही शेष है इसलिए स्‍टॉकिस्‍ट कृत्रिम तेजी लाकर भाव तेज तो कर देते हैं लेकिन ग्राहकी का समर्थन न मिलने से तेजी टिक नहीं पा रही है।
ग्‍वार गम का अप्रैल से अभी तक करीब 1.40 लाख टन का निर्यात हो चुका है जबकि वर्तमान में यूरोप में छुटिटयॉ चल रही हैं, उघर चीन में ओलंपिक खेलों का समापन हो गया है, आगामी दिनों में चीन की मांग में तो इजाफा होगा ही, साथ ही सितम्‍बर में यूरोप की मांग भी बढ़ेगी। आगामी दिनों में निर्यात मांग में तो बढोत्‍तरी होगी लेकिन अनुकूल मौसम से आने वाली फसल के उत्‍पादन में बढ़ोत्‍तरी के आसार है। इन हालातों में आगामी दिनों में ग्‍वार की तेजी-मंदी मौसम पर ही निर्भर करेगी।
ग्‍वार गम के एक प्रमुख निर्यातक के अनुसार गत वर्ष ग्‍वार गम का करीब 2.10 लाख टन का निर्यात हुआ था जबकि उससे पिछले वर्ष इसका निर्यात करीब एक लाख छ:यासी हजार टन का हुआ था। निर्यात मांग तो हर साल बढ़ ही रही है साथ ही घरेलू मांग भी बढ़कर इस साल 60 हजार टन होने का अनुमान है। अत: निर्यात व घरेलू मांग को मिलाकर देखें तो नई फसल की खपत ही करीब एक करोड़ बोरियों की बैठेगी। इसके परिणामस्‍वरूप जैसा कि उम्‍मीद है अगर आगामी दिनों में उत्‍पादक क्षेत्रों में एकाध वर्षा हो जाती है तो नई फसल का उत्‍पादन सवा करोड़ बोरियों से ऊपर हो सकता है लेकिन अगर वर्षा नहीं होती है तो उत्‍पादन घटकर 85 से 90 लाख बोरियों का रह सकता है।
ग्‍वारी की नई फसल की आवकें जहां सितम्‍बर माह के दूसरे पखवाड़े में शुरू होंगी वहीं ग्‍वार की नई फसल की आवकें अक्‍टूबर माह के अंतिम पखवाड़े में बनेगी। अनुकूल मौसम से जहां हरियाणा में इसके बिजाई क्षेत्रफल में बढ़ोत्‍तरी हुई है वहीं प्रति हैक्‍टेयर उत्‍पादन भी बढ़ने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। जानकारों का मानना है कि अगर नई फसल से पहले एक-दो वर्षा हो जाती हैं तो हरियाणा व पंजाब में चालू फसल सीजन में ग्‍वार का उत्‍पादन बढ़कर 38 से 40 लाख बोरियों का हो सकता है।
जुलाई के आखिर व अगस्‍त के शुरू में हुई वर्षा से राजस्‍थान में भी चालू सीजन में इसका बिजाई क्षेत्रफल बढ़ा है, अभी तक के मौसम को देखते हुए फसल अच्‍छी स्थिति में है तथा अगले एक-सवा माह में यहां भी एक-दो अच्‍छी वर्षा हो जाती है तो व्‍यापारियों का मानना है कि नई फसल का उत्‍पादन बढ्कर राजस्‍थान में 75 से 80 लाख बोरियों का हो सकता है। गुजरात में इस साल उत्‍पादन घटकर ढ़ाई से तीन लाख बोरियों का रह सकता है जबकि सामान्‍यत: यहां उत्‍पादन पांच लाख बोरियों का होता है।
वर्तमान में ग्‍वार के भावों में जहां 100 से 125 रूपये प्रति क्विंटल की उठा-पटक देखी जा रही है वहीं ग्‍वार गम के भावों में 200 से 250 रूपये प्रति क्विंटल की घटबढ़ चल रही है। जोघपुर में आज प्‍लांट डिलीवरी ग्‍वार के भाव 1840 रूपये प्रति क्विंटल व ग्‍वार गम के भाव 4400 रूपये प्रति क्विंटल बोले गये।
उघर पाकिस्‍तान में चालू फसल सीजन में ग्‍वार का उत्‍पादन 12 से 15 लाख बोरियों का होने के अनुमान है जबकि बकाया स्‍टॉक इस समय मात्र एक से डेढ़ लाख बोरियों का ही बचा हुआ है। (R S Rana)

मलेशिया का अगस्त में पाम तेल निर्यात बढ़कर 11 लाख टन

सिंगापुर। चालू अगस्त माह में अब तक मलेशिया का पाम तेल निर्यात 1.9 फीसदी बढ़कर 11.4 लाख टन हो गया है। अनुमान है कि मलेशिया से यूरोपीय संघ का पाम तेल आयात इस साल 46 लाख टन से बढ़कर 50 लाख टन हो सकता है। खबर है कि बांग्लादेश ने पाम तेल के मूल्य घटने के बाद दो लाख टन पाम तेल का आयात रोक दिया है और मूल्य के बिंदु पर दुबारा बातचीत शुरू की है।
कागरे सर्वेयर कंपनी एसजीएस मलेशिया बीएचडी के अनुसार एक से 25 जुलाई के बीत 11.2 लाख टन पाम तेल का निर्यात किया गया था। इंटरटेक एग्री सर्विसेज द्वारा लगाए गए अनुमान में भी निर्यात का लगभग यही स्तर बताया गया है। इ, अनुमान के अनुसार निर्यात 11.5 से 12 लाख टन के बीच निर्यात होगा।

उधर ब्रुसेल्स के कारोबारी कंपनी के अधिकारी ने बताया कि 2008 में पाम तेल खरीद पांच फीसदी बढ़ने की संभावना है। इसमें 85 फीसदी तेल खाने में इस्तेमाल होगा जबकि बाकी तेल केमिकल बनाने में इस्तेमाल होगा। ऐसे में यूरोप में बायो फ्यूल बनाने पर किसी तरह की पाबंदी से आयात पर कोई खास असर पड़ने की संभावना नहीं है। ढाका के एक कारोबार के अनुसार बांग्लादेश में खरीदारों द्वारा करीब दो लाख टन पाम तेल आयात किया जाना है। मूल्य गिरने के बाद उन्होंने या तो खरीद स्थगित कर दी है या फिर दुबारा बातचीत कर रहे हैं। आयात होने वाले करीब 60-70 फीसदी तेल का आयात घटे मूल्य पर हो रहा है जबकि बाकी 30-40 फीसदी तेल पिछले ऊंचे मूल्य पर आयात होना है। (Business Bhaskar)

एमसीएक्स शुरू कर पाएगा करेंसी फ्यूचर, मिली मंजूरी

नई दिल्ली August 26, 2008 ! एमसीएक्स को मुद्रा (करेंसी) का वायदा कारोबार शुरू करने के लिए सेबी ने अपनी सैद्धांतिक मंजूरी दे दी है।

गौरतलब है कि एमसीएक्स ने अपनी सहयोगी इकाई एमसीएक्स स्टॉक एक्सचेंज लिमिटेड में मुद्रा (करेंसी) का वायदा कारोबार शुरू करने के लिए भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) के समक्ष आवेदन किया था। सूत्रों के मुताबिक, एमसीएक्स स्टॉक एक्सचेंज लिमिटेड मंगलवार से सदस्य बनाने के लिए नामांकन की शुरुआत करेगी।

इसके लिए पहले ही 7 रोड शो आयोजित हो चुके हैं, जिसमें कमोडिटी ब्रोकर, शेयर ब्रोकर, विदेशी मुद्रा ब्रोकर, बैंकों के प्रतिनिधि, निर्यातक, आयातक और कारपोरेट जगत के 1000 से अधिक प्रतिनिधियों ने भाग लिया था। इन लोगों ने एक्सचेंज की सदस्यता के प्रति जबरदस्त दिलचस्पी दिखाई थी।

मुद्रा वायदा कारोबार के लिए आवेदन करने वाले अन्य एक्सचेंजों में नैशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) और बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) शामिल हैं। एनएसई को पहले ही मुद्रा कारोबार की अनुमति मिल चुकी है जहां 29 अगस्त से इस कारोबार को शुरू किया जाएगा। मालूम हो कि आय के मामले में एमसीएक्स देश के 22 कमोडिटी एक्सचेंजों में सबसे बड़ा है। इसकी हिस्सेदारी 75 प्रतिशत की है। (BS Hindi)

कच्चे तेल का बास्केट पहुंचा 115.87 डॉलर पर

नई दिल्ली August 26, 2008 ! पिछले हफ्ते देश की रिफाइनरियों द्वारा खरीदे जाने वाले कच्चे तेल की कीमतों में 1.56 डॉलर प्रति बैरल की वृद्धि हुई है। इस तरह क्रूड ऑयल बास्केट का भाव प्रति बैरल 115.87 डॉलर तक पहुंच चुका है।

गौरतलब है कि भारतीय क्रूड ऑयल बास्केट में ओमान-दुबई शोर क्रूड और ब्रेंट स्वीट क्रूड की हिस्सेदारी क्रमश: 62.3 और 37.7 फीसदी की है। कच्चे तेल की वैश्विक कीमतों का अनुसरण करते हुए भारतीय बास्केट का भाव 15 अगस्त के बाद लगातार बढ़ रहा है।

उल्लेखनीय है कि 15 अगस्त को कच्चे तेल की कीमत पिछले चार महीने में सबसे निचले स्तर तक चली गयी थी। उस दिन एक बैरल कच्चे तेल की कीमत 107.93 डॉलर तक पहुंच गयी थी। लेकिन तब से कीमतों में उछाल आते-आते यह 115.87 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच चुका है।

जुलाई महीने में भारतीय कच्चे तेल के बास्केट का भाव प्रति बैरल जहां 132.37 डॉलर था, वहीं इस महीने इसकी कीमतों में 14.3 फीसदी की कमी हुई है। अब तक इस महीने कच्चे तेल की कीमतों का औसत 113.50 डॉलर प्रति बैरल का रहा है।

पिछले हफ्ते न्यूयॉर्क मर्केंटाइल एक्सचेंज में लाइट स्वीट क्रूड ऑयल की साप्ताहिक कीमतें पिछले तीन हफ्तों में पहली बार चढ़कर बंद हुई है। लेकिन सोमवार को इसमें 50 फीसदी तक की कमी हुई है। पिछले हफ्ते कच्चे तेल की कीमतों में बढ़त की मुख्य वजह अमेरिका और रूस के बीच पैदा हो रहा राजनीतिक तनाव था। मालूम हो कि जॉर्जिया को लेकर अमेरिका और रूस में मनमुटाव की स्थिति पैदा हो चुकी है। (BS Hindi)

पहली तिमाही में स्टील निर्यात 25 फीसदी लुढ़का

नई दिल्ली August 26, 2008 ! इस्पात निर्यात पर कर थोपे जाने से मौजूदा वित्त वर्ष की पहली तिमाही में देश का इस्पात निर्यात 25 फीसदी कम होकर 27.5 लाख टन रह गया है।

हालांकि इस दौरान आयात में 20 फीसदी की वृद्धि हुई और यह 35 लाख टन तक पहुंच गया। परिणाम यह हुआ कि अप्रैल से जुलाई के बीच देश में इस्पात की आपूर्ति तकरीबन 15 लाख टन तक बढ़ गयी है।

इस्पात सचिव पी. के. रस्तोगी के मुताबिक, निर्यात में कमी आने से इस्पात की घरेलू उपलब्धता में बढ़ोतरी हुई है। यह एक सकारात्मक संकेत है और इसका लाभ सीधे उपभोक्ताओं तक पहुंचेगा। उल्लेखनीय है कि 10 मई को सरकार ने इस्पात और इस्पात निर्मित वस्तुओं के निर्यात पर 5 से 15 फीसदी का निर्यात कर लगा दिया था।

इसके एक महीने बाद सरकार ने इस्पात के फ्लैट उत्पादों पर लगने वाले निर्यात शुल्क को हटा लेने का फैसला किया जबकि इसके लाँग उत्पादों (छड़, ऐंगल, बार आदि) पर लगने वाले निर्यात शुल्क को 10 से 15 फीसदी कर दिया गया। हालांकि इस साल की शुरुआत में इस्पात के निर्यात शुल्क को 5 फीसदी से घटाकर शून्य फीसदी कर दिया गया था।

उधर देश की तीसरी बड़ी इस्पात निर्माता कंपनी जे. एस. डब्ल्यू. के बिक्री और विपणन प्रमुख जयंत आचार्य ने बताया कि सरकार के अनुरोध पर देश की इस्पात कंपनियों ने निर्यात थामने की पहल की थी ताकि घरेलू बाजार में इसकी उपलब्धता बढ़ायी जा सके। इससे देश में इस्पात की खपत पर सकारात्मक असर पड़ा। आचार्य ने बताया कि इस वजह से इस्पात उद्योग को इस्पात की बढ़ी हुई अंतरराष्ट्रीय कीमतों से मिलने वाले लाभ से वंचित रहना पड़ा।

उल्लेखनीय है कि वर्ष 2007-08 में इस्पात का निर्यात 50 लाख टन जबकि आयात 69 लाख टन का हुआ था। इस तरह, 2007-08 में ऐसा पहली बार हुआ जब देश से इस्पात का आयात निर्यात की तुलना में अधिक रहा। सरकार ने महंगाई पर अंकुश लगाने और इस्पात की उपलब्धता बढ़ाने के लिए कीमतों में वृद्धि की थी।

थोक मूल्य सूचकांक में इस्पात और लोहे का हिस्सा तकरीबन 3.64 फीसदी का है। जानकारों की माने तो महंगाई दर को 16 साल के रेकॉर्ड स्तर 12.63 फीसदी तक पहुंचाने में लौह-इस्पात का बहुत बड़ा योगदान है। फिलहाल अप्रैल 2007 की तुलना में फ्लैट इस्पात उत्पादों की कीमत 17 से 24 फीसदी तक बढ़ चुकी है।

जबकि लाँग उत्पादों की कीमत में तब से अब तक 50 से 60 फीसदी का उछाल आ चुका है। मई में सरकार ने इस्पात कंपनियों से कहा था कि वे अगले तीन महीने तक इस्पात की कीमतें न बढ़ायें। हालांकि कंपनियों ने अवधि के खत्म होने के बाद भी स्टील की कीमतें न बढ़ाने का फैसला लिया। (BS Hindi)

अब बढ़ेगा दर्द-ए-डीजल

सार्वजनिक तेल कंपनियों ने 57 रुपये प्रति लीटर कीमत की पेशकश की

नई दिल्ली August 26, 2008 ! घाटे की मार झेल रही सार्वजनिक क्षेत्र की तेल कंपनियों-इंडियन ऑयल, भारत पेट्रोलियम और हिंदुस्तान पेट्रोलियम ने औद्योगिक इस्तेमाल के लिए डीजल की कीमत 57 रुपये/लीटर करने का प्रस्ताव रखा है।
वर्तमान में औद्योगिक इस्तेमाल के लिए डीजल की कीमत 34.80 रुपये प्रति लीटर है। सूत्रों के मुताबिक, सार्वजनिक क्षेत्र की तीनों तेल कंपनियों ने इस संबंध में पेट्रोलियम मंत्रालय को प्रस्ताव सौंप दिया है। इसके तहत कंपनियां रेलवे और बिजली कंपनियों जैसे प्रत्यक्ष उपभोक्ताओं को बाजार मूल्य पर डीजल बेचने की इच्छुक हैं।

सूत्रों का कहना है कि तेल कंपनियों ने सब्सिडी पर ईंधन की बिक्री परिवहन और कृषि क्षेत्रों तक ही सीमित रखने का प्रस्ताव दिया है। औद्योगिक इकाइयों को सब्सिडी पर डीजल की आपूर्ति करने से वे अन्य ईंधन के स्रोत और नाफ्था के मुकाबले डीजल की अधिक खपत कर रही हैं। इसकी वजह से रिफाइनरी कंपनियों को जरूरतें पूरी करने के लिए ईंधन का आयात करना पड़ रहा है, जिससे उनका घाटा काफी बढ़ रहा है।

पिछले हफ्ते तेल कंपनियों के साथ हुई बैठक में पेट्रोलियम मंत्री मुरली देवड़ा को बताया गया था कि अप्रैल-जुलाई के दौरान डीजल की मांग में 18 फीसदी तक की बढ़ोतरी हुई है। इनमें ज्यादातर मांग बिजली संयंत्रों जैसे औद्योगिक उपयोगकर्ताओं की ओर की गई।

सूत्रों ने कहा कि पहली तिमाही में बिजली क्षेत्र में डीजल की मांग 152 फीसदी तक बढ़कर 53,000 टन पर पहुंच गई, जबकि मत्स्य और समुद्री क्षेत्र में डीजल की मांग में करीब 40 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई। उन्होंने कहा कि कीमतों में अंतर घटाने से 2008-09 में सरकार के राजस्व घाटा में 27,202 करोड़ रुपये तक की कमी आएगी।

इंडियन ऑयल, भारत पेट्रोलियम और हिंदुस्तान पेट्रोलियम डीजल की बिक्री पर इस समय 16.22 रुपये प्रति लीटर का नुकसान उठा रही हैं। यही वजह है कि सार्वजनिक क्षेत्र की इन कंपनियों ने सरकार के समक्ष उद्योगों को बाजार मूल्य पर डीजल बेचने का प्रस्ताव रखा है।

औद्योगिक इस्तेमाल के लिए 57 रुपये प्रति लीटर हो सकती है डीजल की कीमत
इस बाबत सार्वजनिक क्षेत्र की तेल कंपनियों ने सरकार को सौंपा प्रस्ताव
डीजल पर सब्सिडी परिवहन और कृषि क्षेत्रों तक सीमित रखने का विचार
कंपनियों के मुताबिक, उद्योगों की खपत से बढ़ रही है डीजल की मांग
बाजार मूल्य पर डीजल बेचने पर राजस्व घाटे में आएगी 27,202 करोड़ रुपये की कमी (BS Hindi)

Global pulses prices climb on Indian imports

MUMBAI, Aug 25 (Reuters) - Large tenders for pulses imports floated by India to augment supply in the festival season have pushed up global prices by 7-8 percent in a month and may flare up further on thriving local demand, trade officials said.

India, the world's biggest producer, consumer and importer of pulses, is battling rising prices and has asked state-run agencies to import pulses along with private traders to increase supply in the domestic market.

The state-run National Agricultural Co-operative Marketing Federation, State Trading Corp of India Ltd, Minerals and Metals Trading Corporation of India and PEC have floated tenders to import 1.03 million tonnes of pulses since June.

"These import tenders gave clear signals to international market that there is a big shortfall in India. We are in dire need of food grains. Obviously, exporters increased prices," said K.C. Bhartiya, president, Pulses Importers Association of India.

Import prices of yellow peas, moong or green gram, tur or pigeon peas and urad or black gram have risen by about 7-8 percent in a month in the international market, Bhartiya and private importers said.

India allowed duty-free import and banned export of pulses in 2006. The ban was extended till March 2009.

A drop in summer-sown or kharif pulses acreage will certainly lead to lower output and may increase India's dependence on imports, said a senior official at a Mumbai-based private grain importing firm, who declined to be named.

Acreage under kharif pulses fell by 15 percent to 9.56 million hectares as on August 22, compared to 11.29 million hectares a year ago, farm ministry data showed.
India's festival season has just started and demand for pulses usually increases during this time. State-run agencies have floated tenders asking bidders to supply the produce during this period, when prices go up.

Traders in Australia and Myanmar have been tracking Indian import orders and are increasing prices considering a shortfall in the biggest buyer's output due to erratic monsoon, said Ashwini Bansod, an analyst at M F Global Commodities India Ltd.

In the last one month, buying from overseas market has become more expensive than from the domestic market, importers said.

"Private players are importing very little quantity. Only government agencies are buying as they are getting subsidy," said Prem Kogta, an importer based in Jalgaon, Maharashtra.

Of the total quantity placed for imports, more than 85 percent was yellow peas as it is the only pulse available in bulk quantity in the international market.

"The government is substituting oranges by importing pineapples. Yellow peas can substitute chana, but can't substitute moong, urad and tur. People use these pulses in different ways," Bansod said.

India mainly sources yellow peas from Canada, the U.S. and Australia, chana from Australia and Tanzania, while moong, tur and urad come from Myanmar.

"Limited quantity is available in international market and there are many buyers like India, Pakistan and Bangladesh. So, we may see more costlier imports," Bhartiya said. (Reuters)

25 अगस्त 2008

सस्ते खाद्य तेल पर सरकार असमंजस में

सस्ते खाद्य तेल की योजना पर सरकार असमंजस में पड़ गई है। सरकार ने यह योजना उपभोक्ताओं को राहत देने के लिए बनाई थी, लेकिन अब इससे किसानों को परेशानी होने की आशंका दिखने लगी है। खाद्य तेल के दामों में हाल की गिरावट के बाद सब्सिडी देकर खाद्य तेलों के वितरण से किसानों की आने वाली खरीफ तिलहन फसल के दाम काफी नीचे आ सकते हैं। वहीं, दूसरी ओर आने वाले चुनावों को देखते हुए इस योजना को बंद करना सरकार को भारी पड़ सकता है।

सरकार ने जब पीडीएस के तहत सस्ता खाद्य तेल देने का फैसला किया था, उस समय ग्लोबल बाजार में पॉम ऑयल की कीमत करीब 1400 ड़ॉलर प्रति टन थी जो इस समय काफी घटकर महज 700 डॉलर प्रति टन रह गई है। इसी तरह देश में भी पॉम ऑयल का मूल्य 70 रुपये लीटर से घटकर 45 रुपये लीटर के स्तर पर आ गया है। यदि योजना के अनुसार इन दामों पर 15 रुपये की सब्सिडी दी जाती है तो उपभोक्ताओं को खाद्य तेल 30 रुपये प्रति लीटर के भाव मिलने चाहिए। इससे ग्राहकों को तो फायदा होगा, लेकिन इससे आने वाली तिलहन की फसल के दाम काफी नीचे आ सकते हैं। इसका खामियाजा किसानों को भुगतना पड़ेगा।

सरकारी सूत्रों के अनुसार नवंबर में कुछ राज्यों में होने वाले चुनावों को देखते हुए सरकार सस्ता खाद्य सुलभ कराने की इस योजना को निश्चित तौर पर बंद नहीं करेगी। हालांकि, तेल के खुदरा वितरण के वास्ते मूल्य निर्धारण के लिए केंद्र सरकार राज्यों से कह सकती है। राज्य अपने स्तर कर खाद्य तेल के पिछले एक साल के औसत खुदरा मूल्य के आधार पर वितरण के लिए दाम तय करेंगे। इससे संभव है कि 15 रुपये की सब्सिडी का लाभ किसानों के बजाय राज्यों को मिल सकता है। राज्य उपभोक्ताओं के अलावा किसानों के हितों को ध्यान में रखकर संतुलित मूल्य तय कर सकते हैं ताकि किसानों को खरीफ की तिलहन फसल बेचने में नुकसान न उठाना पड़े। केंद्र सरकार को इस योजना के तहत करीब 22,000 करोड़ रुपये की सब्सिडी देनी है। इसके लिए तीन सरकारी एजेंसियों पीईसी, नैफेड और एसटीसी को खाद्य तेल आयात करने का जिम्मा सौंपा गया है। इन एजेंसियों ने करीब एक लाख टन खाद्य तेल का आयात कर लिया है। (Business Bhaskar)

बिकवाल सटोरियों की पकड़ ढीली पड़ने से ग्वार के भाव बढ़े

जयपुर । पिछले दिनों कीमतों आई गिरावट के बाद सस्ता माल देख लिवाली निकलने से एक बार फिर ग्वार में तेजी का रुख बन गया है। इस कारण ग्वार के भाव पिछले दो दिन के दौरान सौ रुपए क्विंटल बढ़कर 1800 से 1830 रुपए क्विंटल हो गए हैं। पिछले सप्ताह सटोरियों द्वारा बिकवाली दबाव बनाने से ग्वार के भाव तीन सौ रुपए क्विंटल उतर गए थे। अब यह आशंका जताई जा रही है कि उत्पादक क्षेत्रों में अगर अब बारिश नहीं होती है तो ग्वार के भाव दो हजार रुपए क्विंटल के पार हो जाएंगे।

ग्वार व्यवसायियों का कहना है कि सटोरियों के हावी होने से पिछले सप्ताह कारोबारियों का गणित गड़बड़ा गया था और बाजार में कृत्रिम मंदी का माहौल बन गया था लेकिन अब बाजार पर सटोरियों की पकड़ ढीली पड़ गई है और ग्वार में मंदी का दौर थम गया है। हालांकि निकट भविष्य में और तेजी अब इस बात पर निर्भर होगी कि मौसम कैसा रहता है। व्यापारियों का कहना है कि जोधपुर और बीकानेर संभाग में अभी फसल को एक बारिश की और दरकार है। यदि समय रहते बारिश नहीं होती है तो फसल को नुकसान होगा तथा ग्वार के भाव दो हजार रुपए क्विंटल के पार हो जाएंगे। जयपुर मंडी में ग्वार का कारोबार करने वाले राजेश घीया का कहना है कि देश में हर वर्ष करीब एक करोड़ बोरी (प्रति बोरी सौ किलो) ग्वार का उत्पादन होता है इसमें से करीब साठ लाख बोरी अकेले राजस्थान में पैदा होती है। जोधपुर, बीकानेर और बाड़मेर संभाग ग्वार के प्रमुख उत्पादक क्षेत्र हैं।

इस कारण ग्वार के भाव जोधपुर मंडी हिसाब से चलते है। इस बार मानसून समय पूर्व आने से पहले ग्वार में नरमी का रुख बन गया था और ग्वार कारोबारियों तथा निर्यातकों में थोड़ी घबराहट पैदा हो गई थी लेकिन बाद में अच्छी बारिश ने बाजार में भी ठंडक हो गई। इस समय जयपुर मंडी में ग्वार के भाव 1800 से 2000 रुपए क्विंटल के बीच है, वहीं ग्वार गम के भाव भी इस समय 4275 रुपए क्विंटल चल रहे हैं। गौरतलब है कि जोधपुर, बीकानेर और बाड़मेर जिले में ग्वार की सर्वाधिक पैदावार होती है। वैसे राजस्थान के हर जिले में ग्वार की पैदावार की जाती है। (Business Bhaskar)

कमोडिटी बूम का दौर अब ढलान पर

कमोडिटी बाजार में घरेलू और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पिछले करीब ढाई साल की भारी तेजी पर अब ब्रेक लगते दिख रहे हैं। ब्रेक ही नहीं इनकी कीमतों का यह उफान शांत होने के बाद कीमतों का रुख नीचे की ओर हो गया है। वर्ष 2005 में शुरू हुआ यह दौर भारत और दुनिया के अधिकांश देशों के लिए कई बड़ी चिंताएं लेकर आया था क्योंकि इसके चलते महंगाई की दर के नये रिकार्ड बनते रहे।
कीमतों की यह तेजी केवल कृषि जिन्सों तक ही सीमित नहीं थी बल्कि धातुओं और कच्चे तेल सहित दूसरे औद्योगिक कच्चे माल में भी जारी थी। जिसके चलते आम आदमी को जहां ऊंची कीमतों के दंश को झेलना पड़ा वहीं ब्याज दरों में तेजी ने उस पर दोहरा वार किया।

लेकिन अब शायद सरकारें ही नहीं आम आदमी भी सुकून की सांस लेने की उम्मीद कर सकता है। कमोडिटी कीमतों में गिरावट का सबसे बड़ा संकेत गेहूं, चावल, मक्का, सोयोबीन और पॉम ऑयल की कीमतों में आ रही कमी में देखा जा सकता है। इसके साथ ही कच्चे तेल, बेस मेटल और सोने की कीमतों में भी इसी तरह का रुख बन रहा है। जबकि 2005 के बाद से विभिन्न कमोडिटी की कीमतों में विश्व बाजार में 36 फीसदी से 370 फीसदी तक की तेजी आई थी। हालांकि घरेलू बाजार में महत्वपूर्ण कमोडिटी की कीमतों में 10 फीसदी से 81 फीसदी तक की तेजी आई थी। चीनी एक अकेली ऐसी जिन्स रही है जिसकी कीमत में बढ़ोतरी की बजाय इस दौरान गिरावट देखी गयी।

यह बात अलग है कि अब चीनी ही एक ऐसी जिन्स होगी जिसकी कीमत आने वाले दिनों में घरेलू और अंतरराष्ट्रीय दोनों बाजारों में तेज होगी। इसके पीछे भारत में चीनी उत्पादन में गिरावट का अनुमान मुख्य कारण रहेगा। हाल के दिनों में सबसे अधिक गिरावट पॉम ऑयल की कीमतों में आई है। इसकी कीमत मार्च,2008 में 1400 डॉलर प्रति टन तक पहुंच गई थी लेकिन अब पॉम ऑयल की कीमत घटकर 750 डॉलर प्रति टन तक आ गई हैं। इसके चलते कई बड़े आयातकों ने सौदे उठाने से मना कर दिया है। पॉम ऑयल की कीमत में गिरावट का असर घरेलू बाजार में भी खाद्य तेलों की कीमतों में कमी के रूप में सामने आया है।
बात केवल पॉम ऑयल की ही नहीं है 2005 के बाद से गेहूं की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में 93 फीसदी तक का इजाफा हुआ था लेकिन अब गेहूं की आयात कीमत सरकार द्वारा निर्धारित न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद लागत के करीब आ चुकी है।

मक्का की अंतरराष्ट्रीय कीमत में भी नीचे का रुख है। इसके पीछे कच्चे तेल की कीमतों के उच्चतम स्तर से करीब 40 डॉलर प्रति बैरल तक की गिरावट को कारण माना जा रहा है। इसके बीच सीधा संबंध भी है क्योंकि पॉम ऑयल का उपयोग बॉयो फ्यूल के लिए हो रहा था। यही कहानी मक्का के साथ भी रही है। इन दोनों के बॉयो फ्यूएल में उपयोग होने के चलते गेहूं पर पशुओं के चारे में उपयोग का दबाव बना। यही नहीं अब चावल की अंतरराष्ट्रीय और घरेलू कीमतों में भी नीचे का रुख है। कृषि जिन्सों के मामले में विश्व स्तर पर उत्पादन की बेहतर खबरें भी कीमतो में गिरावट का कारण बनी हैं। असल में विश्व बाजार में जिन्सों की कीमतों में इजाफे का एक बड़ा कारण डॉलर का कमजोर होना रहा है। विश्व के अधिकांश देश डॉलर को रिजर्व करेंसी के रूप में रखते हैं। यही नहीं विश्व में अधिकांश ट्रेड भी डॉलर में होता है। डॉलर के कमजोर होने के चलते भी जिन्सों के दाम बढ़े।

एक अन्य बड़ा कारण रहा है जिन्सों में सट्टेबाजी का। इंडेक्स फंडों के कमोडिटी में निवेश ने कीमतों में उछाल को गुणात्मक रुख दिया। घरेलू बाजार में भी वायदा बाजार में कई जिन्सों को इसलिए प्रतिबंधित किया गया क्योंकि उसके चलते स्पॉट कीमतों में भारी तेजी आ गई थी। यह बात केवल संयोग ही नहीं है कि अमेरिका में भी नियामक एजेंसियों को कहना पड़ा कि कच्चे तेल में सट्टेबाजी कीमतों में तेजी का बड़ा कारण बन रही है।
जिन्सों की कीमतों में इस तेजी का पूरा फायदा किसानों को भी नहीं मिला क्योंकि किसान, प्रसंस्करण उद्योग, व्यापारी और दूसरे उपयोगकर्ता ही केवल इस कीमत बढ़ोतरी के कारक नहीं रह गये थे। जिन्सों में निवेश के विकल्प ने कीमतों में अधिक आग लगाई। लेकिन अब दुनिया भर के विशेषज्ञ इस बात पर सहमत होते दिख रहे हैं कि जिन्सों में तेजी का दौर रुक गया है। केवल कृषि जिन्सों में ही नहीं बल्कि बेस मेटल और सोना चांदी से लेकर कच्चे तेल तक में इसी तरह का रुख है। (Business Bhaskar)

खाने के तेल और होंगे स्वादिष्ट

नई दिल्ली : सोयाबीन के रकबे में बढ़ोतरी और पर्याप्त आपूर्ति के मद्देनजर खाने के तेलों में और कमी आ सकती है। 23 अगस्त को समाप्त हुए हफ्ते के दौरान भी खाने के तेलों की कीमतों में कमी दर्ज की गई थी।

कृषि मंत्रालय के ताजा आंकड़ों के अनुसार देश के कुल 92.8 लाख हेक्टेयर क्षेत्रों में सोयाबीन की बुआई की गई है, जो पिछले साल की समान अवधि के 86 लाख हेक्टेयर क्षेत्रों की तुलना में ज्यादा है।

कुल तिलहनों के रकबे में हालांकि इस अवधि के दौरान के दौरान कमी आई है, लेकिन मानसून में सुधार को देखते हुए कुल उत्पादन पर इसके असर की संभावना कम ही है।

कारोबारियों के अनुसार पिछले दिनों सरकार ने डॉमेस्टिक लेवल पर सप्लाई को सुनिश्चित करने के लिए 1,69000 टन खाने के तेल का आयात किया जिससे डॉमेस्टिक लेवल पर फिलहाल खाने के तेल के सप्लाई की कोई समस्या नहीं है।

उधर सेंट्रल एग्रीकल्चर मिनिस्टर शरद पवार ने कहा है कि खाने के तेल के आयात पर ड्यूटी लगाने की सरकार की फिलहाल कोई योजना नहीं है। (ET Hindi)

तेल अभी भी 100 डॉलर के निशाने पर

नई दिल्ली : डॉलर में मजबूती, एशियाई और यूरोपीय देशों की अर्थव्यवस्थाओं में मंदी के संकेत और अमेरिका में तेल की मांग में कमी के मद्देनजर शार्ट-टर्म में कच्चा तेल 100 डॉलर प्रति बैरल तक नीचे जा सकता है।

रूस के इस घोषणा के साथ ही कि जॉर्जिया से उसके सैनिकों के वापसी की प्रक्रिया पूरी हो गई है, कच्चे तेल की कीमतों में और कमी आने की संभावना को बल मिला है।

तेल मामलों के एक्सपर्ट नरेंद्र तनेजा के अनुसार शार्ट -टर्म में कच्चा तेल 80 डॉलर के आस -पास जबकि लांग -टर्म में 130 से 140 डॉलर प्रति बैरल के रेंज में रह सकता है।

इससे पहले न्यूयॉर्क मर्केंटाइल एक्सचेंज (नाइमेक्स) में हफ्ते के आखिरी कारोबारी दिन कच्चे तेल का अक्टूबर वायदा लगातार तीन कारोबारी सत्र की तेजी के बाद 6.59 डॉलर यानी 5.4 पर्सेंट गिरकर 114.59 डॉलर प्रति बैरल बंद हुआ। गुरुवार को कच्चे तेल का अक्टूबर वायदा 4.9 पर्सेंट की मजबूती से 121 डॉलर प्रति बैरल बंद हुआ था।

मार्केट एक्सपर्ट्स के अनुसार डॉलर में मजबूती और मांग में कमी को देखते हुए कच्चे तेल की कीमतों में और नरमी की संभावना बरकरार है। एक्सपर्ट्स शार्ट टर्म में कच्चा तेल के लिए 100 डॉलर प्रति बैरल के लेवल को वाजिब मानकर चल रहे हैं।

निवेशकों को आने वाले हफ्ते यों तो अमेरिका से जारी होने वाले विभिन्न आंकड़ों का इंतजार होगा लेकिन सबसे ज्यादा उनकी निगाहें अमेरिकी ऊर्जा मंत्रालय के तेल, गैसोलिन और डीजल के सप्लाई आंकड़ों पर होगी।

15 अगस्त को समाप्त हुए हफ्ते के दौरान गैसोलिन के स्टॉक में आई कमी के चलते कच्चे तेल की कीमतों में तेजी आई थी। क्रूड के स्टॉक में हालांकि इस हफ्ते के दौरान बढोतरी देखी गई थी।

साथ ही तेल निर्यातक देशों के संगठन ओपेक की 9 सितंबर को होने वाली बैठक का भी निवेशकों को बेसब्री से इंतजार है। वेनेजुएला ने हाल ही में कहा था कि तेल की कीमतों में अगर गिरावट जारी रही तो उनका देश ओपेक की बैठक में तेल की आपूर्ति में कटौती करने की सिफारिश करेगा। (ET Hindi)

जैव ईंधन नीति के मसौदे को मंत्री समूह की मंजूरी

नई दिल्ली August 25, 2008 ! केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार की अध्यक्षता में गठित मंत्रियों के एक समूह ने जैव ईंधन नीति (बायोफ्यूल पॉलिसी) के मसौदे को अपनी मंजूरी दे दी है।

इस मसौदे में पेट्रोलियम और जैव ईंधन मिश्रण संबंधी प्रावधान के अलावा जट्रोफा और करंजा के बीजों के लिए पूरे देश में एकसमान कर प्रणाली लागू करने का प्रस्ताव शामिल है।

अक्षय ऊर्जा मंत्रालय द्वारा तैयार इस प्रस्ताव को मंत्रिसमूह की मंजूरी मिलने के बाद इसे जल्द ही केंद्रीय मंत्रिमंडल के समक्ष पेश किया जाएगा।

सूत्रों के मुताबिक, इस नीति को जैव र्इंधन उत्पादकों और निवेशकों की चिंताओं को ध्यान में रखते हुए तैयार किया गया है। जबकि इस नीति का मुख्य मकसद जैव ईंधन उद्योग को प्रोत्साहित करना है। इस नीति को तैयार करते वक्त इस बात का खासा ख्याल रखा गया है कि जीवाश्म ईंधन पर देश की निर्भरता में कमी आए।

उल्लेखनीय है कि देश के कुल ईंधन खपत में 70 फीसदी हिस्सा आयातित तेल का होता है। ऐसे में इस नीति की कोशिश होगी कि आयातित ईंधन पर देश की निर्भरता जहां तक हो सके कम की जाए। उम्मीद की जा रही है कि इस प्रस्ताव में पेट्रोलियम ईंधन के साथ 20 फीसदी तक जैव ईंधन को मिलाने की इजाजत दी जाएगी।

जट्रोफा की खेती को प्रोत्साहित करने के लिए एक मिशन चलाने के अलावा राष्ट्रीय स्तर पर प्रदर्शनी आयोजित करने का प्रस्ताव भी इस मसौदे में हो सकता है, ऐसा अनुमान है।

इस नीति के जरिए पूरे देश में जट्रोफा और करंजा के बीजों पर लगने वाले कर को एकसमान बनाने की उम्मीद है। इस नीति में जैव ईंधन बीजों का न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करने के लिए राष्ट्रीय जैव ईंधन विकास बोर्ड (एनबीडीबी) के गठन का प्रस्ताव किए जाने की उम्मीद है।

अक्षय ऊर्जा मंत्रालय में राज्यमंत्री विलास मुत्तेमवार ने बताया कि इस नीति के मसौदे पर मंत्रियों के समूह ने अपनी मुहर लगा दी है। बकौल मुत्तेमवार, उन्हें उम्मीद है कि केंद्रीय मंत्रिमंडल जल्द ही इस प्रस्ताव को मान लेगा। उन्होंने बताया कि मूल मसौदे में कई संशोधन किए गए हैं।

हालांकि उन्होंने संशोधन से संबंधित कोई विस्तृत जानकारी देने से साफ मना कर दिया। गौरतलब है कि मंत्रियों के इस समूह में विलास मुत्तेमवार के अलावा ग्रामीण विकास मंत्री रघुवंश प्रसाद सिंह, पेट्रोलियम मंत्री मुरली देवड़ा, योजना आयोग के

सदस्यों सहित कई अन्य कैबिनेट मंत्री शामिल हैं।
जैव ईंधन उद्योग की लंबे समय से मांग रही है कि देश में इसके उपयोग को बढ़ावा देने के लिए पेट्रोल के साथ कम से कम 5 फीसदी तक जैव ईंधन मिलाने की अनुमति दी जाए।

वैसे इस साल अक्टूबर से पेट्रोल में 10 फीसदी तक इथेनॉल मिलाने के प्रस्ताव को सरकार ने मंजूरी दे दी है। जैव ईंधन की खेती का खासा विरोध भी हो रहा है। वह इसलिए कि आशंका है कि जैव ईंधन की खेती से खाद्य उत्पादों के रकबे में कमी हो जाएगी।

मुत्तेमवार ने साफ किया है कि जैव ईंधन की खेती को प्रोत्साहित करने से खाद्य सुरक्षा को कोई खतरा नहीं है। क्योंकि सरकार यह सुनिश्चित करेगी कि इनकी खेती बंजर जमीन पर ही हो। (BS Hindi)

सोने की चमक फिर बढ़ने की उम्मीद

मुंबई August 25, 2008 ! इस सप्ताह सोने की कीमतों के बढ़ने की संभावना है। जानकारों के मुताबिक, सोने के कारोबारी अब पहले की तरह कम कीमत पर इसे बेचने को तैयार नहीं हैं।

खासकर तब जब दुनिया के सबसे बड़े कमोडिटी निवेश विशेषज्ञ जिम रोजर्स का मानना है कि कृषि और गैर-कृषि जिंसों में जल्द ही जोरदार तेजी आने वाली है।

रोजर्स के अनुसार, जिंसों की आपूर्ति में गुणात्मक वृद्धि किए बगैर मूल्यवृद्धि पर नियंत्रण पा पाना मुश्किल ही नहीं असंभव है। इस निवेश गुरु का कहना है कि भले ही मांग में कमी हो जाए या किसी देश की अर्थव्यवस्था टूट जाए, उत्पादन बढ़ाए बगैर कीमतों पर नियंत्रण कर पाना संभव नहीं है।

आने वाले दिनों में बाजार का यह हाल सर्राफा बाजार में तेजी लाएगा, ऐसी उम्मीद की जा रही है। बॉम्बे बुलियन असोसियशन (बीबीए) के अध्यक्ष सुरेश हुंडिया ने बताया कि सर्राफा बाजार में तेजी आने की एक और वजह जल्द ही देश में त्योहारों का शुरू होने वाला दौर है।

उन्होंने कहा कि इसी समय यहां शादी-विवाह का मौसम भी शुरू होता है। इसे देखते हुए सर्राफा कारोबारी अभी से सोने की जमकर जमाखोरी करने में जुटे हैं। उनके अनुसार, भारत में 12.5 किलोग्राम वाले सोने के बिस्कुट की बजाय 1 किलोग्राम और 100 ग्राम के बिस्कुट खरीदे जाते हैं।

इसका असर यह हुआ कि बाजार में इस समय 1 किलोग्राम और 100 ग्राम वाले बिस्कुटों की आपूर्ति सख्त हो चुकी है।

शनिवार को लंदन मेटल एक्सचेंज में सोना 1 फीसदी की कमी के साथ 829.50 डॉलर प्रति औंस पर बंद हुआ। जबकि न्यू यॉर्क मकर्टाइल एक्सचेंज में दिसंबर महीने के वायदा में 0.5 फीसदी की कमी आयी और यह 834.70 डॉलर प्रति औंस तक पहुंच गया।

हालांकि पिछले हफ्ते की तुलना में इसमें 3.5 फीसदी या 27.76 डॉलर की मजबूती आ चुकी है। मुंबई के हाजिर सर्राफा बाजार में स्टैंडर्ड सोने में 400 रुपये यानी 3.5 फीसदी की मजबूती आयी और यह
11,810 रुपये प्रति 10 ग्राम तक पहुंच गया।

वहीं शुद्ध सोने में 410 रुपये की मजबूती आयी और यह 11,880 रुपये प्रति 10 ग्राम पर बंद हुआ। एमसीएक्स में अप्रैल 2009 का अनुबंध 2.60 फीसदी के साथ 12,136 रुपये प्रति 10 ग्राम पर बंद हुआ।
साल 2008 के बीते सात महीने सोना कारोबार के लिए सुस्ती के दिन रहे लेकिन उम्मीद की जा रही है कि अगस्त में इसमें तेजी आएगी।

अभी पूरा अगस्त बीता भी नहीं कि इस महीने में 65 टन सोने का आयात हो चुका है। हालांकि पिछले साल अगस्त में कुल 74 टन सोने का आयात हुआ था। यह महीना सोने के लिए कितना बेहतरीन गुजरा है, इसे समझने के लिए इस साल जून और जुलाई का आयात आंकड़ा ही काफी है।

जून में जहां 23 टन सोने का आयात हुआ था, वहीं जुलाई में केवल 22 टन सोने का ही आयात किया गया। उम्मीद की जा रही है कि इस साल सोने की कुल खपत पिछले साल की खपत को पार कर जाएगी। गौरतलब है कि पिछले साल देश में 743 टन सोना बेचा गया था।

हुंडिया ने बताया कि इस साल सोने का भाव 10,800 से 11,800 रुपये के बीच रहने का अनुमान है। रेलीगेयर इंटरप्राइजेज के जयंत मांगलिक ने बताया कि सोने की कीमत महंगाई दर और वैश्विक राजनीतिक स्थिति से काफी प्रभावित होती है। राजनीतिक अस्थिरता से इसकी कीमतों में काफी बदलाव होता रहता है।

इसका असर यह होता है कि सोने का 'प्राइस रेंज' बड़े रेंज में मंडराता रहता है। पिछले साल यूरो की तुलना में डॉलर में जहां मजबूती देखी गयी थी, वहीं इस साल अन्य विदेशी मुद्राओं की तुलना में डॉलर का विनिमय दर बड़ा ही अस्थिर रहा है। (BS Hindi)